मेरा
संविधान महान ,
यहाँ हर माफिया पहलवान......,
जब जज “थिरके” माफियाओं की मुरली के धुन.., नौकरशाही से फिल्मशाही भी दबंग.., तो.,क्यों न नोंचे संविधान का अंग...
जब
माफियाओं की नग्नता को, गरीबों के कपड़ों से पहनाए, जामा तब
क्यों न लगे, कानून में जंग.., यह है
.., ६९ सालों से, देश के गरीबी का इस
भूखा नंगा हिन्दुस्तान का यह है. “छुपा रंग..”
२. “अदालत – अदा नहीं किया तो लात ..., इसी लात से गरीबों की मौत.., देश के जजशाही, नौकरशाही सत्ताशाही को धन के नशे की लत “
A.P.L, B.P.L….. से Z.P.L… घोटाला इनके जीवन मे है वरदान .... जज भी बनें धन से भाग्यवान..
३. आज का कानून. (कान + ऊन = क़ान मे ऊन= कानून बहरा हो गया है), अपराधी की पुस्तिका है, न्यायालय उनकी पाठशाला और जेल उसकी कार्यशाला है
इसमे अपराधी के लिये एक राहत का शब्द है जमानत...... ??????????
यह जमानत शब्द अपराधी के लिये अमानत बन गया है
इसमे एक अग्रिम जमानत भी है, जो अपराधी , अपराध करने से पहले ले लेता है और संविधान मुँह ताकता रहता है ?
२. “अदालत – अदा नहीं किया तो लात ..., इसी लात से गरीबों की मौत.., देश के जजशाही, नौकरशाही सत्ताशाही को धन के नशे की लत “
A.P.L, B.P.L….. से Z.P.L… घोटाला इनके जीवन मे है वरदान .... जज भी बनें धन से भाग्यवान..
३. आज का कानून. (कान + ऊन = क़ान मे ऊन= कानून बहरा हो गया है), अपराधी की पुस्तिका है, न्यायालय उनकी पाठशाला और जेल उसकी कार्यशाला है
इसमे अपराधी के लिये एक राहत का शब्द है जमानत...... ??????????
यह जमानत शब्द अपराधी के लिये अमानत बन गया है
इसमे एक अग्रिम जमानत भी है, जो अपराधी , अपराध करने से पहले ले लेता है और संविधान मुँह ताकता रहता है ?
४. अपराधी, जमानत के आड मे देश की अमानत (धरोहर ) बन जाता है
4 बार जमानत ------ अपराध में , प्रायमरी पास ......... ?
10 बार जमानत अपराध में, हाई स्कूल पास ................ ??
12 बार जमानत अपराध में, मिडल हाई स्कूल ..................???
15 बार जमानत.... अपराध में, स्नातक पास ..........................
15 से ज्यादा ........ अपराध में, डाँक्टरी पास ..........................
इस महाविद्यालय से उसे एक प्रस्तिती प्रमाण पत्र, जिसमे “ माफिया “ की उपाघि मिलती है
५. आज “ माफिया “ शब्द कानून के लिये " माफ किया " है
यह शब्द संविधान को धत्ता बताकर कानून का “संरक्षित सदस्य“ बन जाता है.
इनके शिक्षा व जनता को डराने व धमकाने की कला के अनुसार हर सत्ता व विपक्षी पक्ष अपने - अपने पक्षो मे शामिल कर अपनी गुणवत्ता बढाते है, और एक समय ऐसा आता है , जज ,पुलीस, नौकरशाही (आइ.ए. एस, आइ. पी एस., जिला अधिकारी...इत्यादी ) के रोजी रोटी व तबादले का अधिकार इन दागी नेताओ के हाथ आ जाता है.
इनके एक टेलीफोने से प्रशासन में हडकप मच जाता है , अधिकांश प्रशासनीक अधिकारी रोजी रोटी व तबादले बचाने के लिये भ्रष्ट नेता के चरणदास बनकर, उनके पद चिन्हो पर चलकर, लूट के भागीदार बनकर , जनता की गाडी कमाई मे डाका डाल रहे है जिससे, जनता गरीबी व भूखमरी के हालत मे जीने को मजबूर है,
६. इन के 5 साल के बच्चे राणा सागा के औलाद लगते है, और जबकि गरीबो के 5 साल के कुपोषीत बच्चे 50 साल जैसे लगते है आधे से ज्यादा तो 5-6 साल के पहिले ही मर जाते है ?
७. आज का कानून – मेरे विचार ....
इस देश न्याय पांने के लिये किसी भी व्यक्ती को, एक मकडी के जाल मे फसकर, मकडी (कानून) से लडना पड़ता है, इस जाल से उलझते- उलझते उसकी शारीरिक , मानसिक ताकत व घर बार बिक जाता है, और क्या मिलता है? तारीख पर तारीख , न्याय पाने के चक्कर मे पीढिया गुजार दी जाती है...?? , घर मे कागजो के पुलीदों का ढेर ..., कहते हैं कानून मे कंकाल के अन्दर कंकाल होते है , जितना निकालों इसमे उलझते जाते है.
८. आज न्याय की , “एक बन्दर और दो बिल्ली की कहानी गुजरे जमाने की बात हो गइ है, आज न्याय का बन्दर, अपने साथ दो बन्दर रखकर, न्याय के लिये तडफती बिल्लीयो को कहते है, न्याय के तराजू के पलडे की रोटी खत्म हो गई है, दोनो का पलडा एक समान है. जाओ, आगे न्याय चाहिए तो अपने घर बार बेच कर रोटी का जुगाड करो, “
९. यहां न्याय तो नही मिलता है, हाँ, न्याय के नाम पर गरीबी जरूर मिलती है ?
१०. इंडिया के कानून के शब्द कोश मे एक महत्वपूर्ण शब्द है प्राकृतिक न्याय ,इस शब्द के आड मे वकील बहस कर जज को झक झोर देता , जिसने, जितने ज्यादा व्याख्या (दलील) की क्षमता वह उतना बडा वकील कहलाता है
इस प्राकृतिक न्याय ने देश ने प्राकृतिक सौन्दर्य खो दिया है, भू मफिया जमीन , व दुसरे माफिया जनता व देश को लूट रहे है
११. आज एक मुकदमे का फैसला आने मे कम से कम 20-40 साल का समय लग जाता है , इस्का अर्थ हुआ के हम जज, पुलिस, वकीलो को बिना न्याय के वेतन दे रहे है
१२. एक जज का कार्यकाल 2-4 साल का होता है, नया जज की नियुक्ति पर उसे हर मुकदमे का नए सिरे का अध्यन करना पड़ता है, फिर से तारीख पर तारीख लगती है, जब तक वह मामले को समझने लगता है तो वह सेवांनृवितहो जाता है
१३. प्रेमचन्द की कहानी मे लिखा गया है, अदालते मतलब – कागजी घोडे दौड़ाना, इस कागजी घोडो पर बैठकर जजों वकीलों व पुलीसौं की फौजें आनन्द उठाते हुए अपनी आजीविका के साथ फरियादी को लूट रही है
किसी ने कहा है, “सभी कानून बेकार है अच्छे लोगो को उनकी जरूरत नही होती है और बुरे लोग उससे सुधरते नही है”,
१४, आज के माहौल मे बुरे लोग सिर्फ बेईमानी के छाता तले, इस क़ानून को महाभ्रष्ट कर सुधरते है और वे अपनी सम्पती व सत्ता का अधिकार कर देश को चला रहे है,
१२. मैकोले का कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी. ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में. ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि::
"मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा. इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा.“ वो आगे लिखता है कि
"जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा."
१३. एक ओटो रिक्शा के पीछे के लिखा था “सत्य परेशान होता है, लेकिन पराजित नही होता”
आज के मौजुदा हलात मे सत्य इतना परेशान होता है कि पराजित नही होने से पहले आत्महत्या कर लेता है - उदाहरण किसान आत्महत्या,और मध्यम वर्ग की आम जनता, गरीबी व भूखमरी से आत्महत्या के लाखो खबरे अखबारो मे पढने अखबारों मे मिलती है.
दुनिया के जिस देश मे प्रतिशोध वाला कानून है, वहा सबसे कम अपराध होते है. हमारे संविधान से न्याय न मिलने से हजारो फरियादी अपराधी बन चुके है, और परम्परागत अपराधी करोडपती है
१४. याद रहे ३ साल पहिले.., , इरान मे एक युवति के चेहरे पर एसिड फए फेकने पर उसकी दोनो आँखे चली गई, तो अदालत ने हुक्म दिया कि अपराधी की दोनो आँखे फोंड दी जाये उसी तरह से सऊदी अरब का भी इसी तरह का कानून है, व बचे हुए मध्य पूर्व देशो के कानून, हमारे संविधान से भी बहुत कठोर है
आज देश मे 4 करोड मामले विभिन्न अदालतो मे विचाराधीन है, हमे शुक्रगुजार होना चहिये, देश के पंचायती राज का, वहाँ के निवासी उंनके न्याय का सम्मान करते हुए, राज्य की अदालतो मे नही जाते है, उसी तरह से उन नक्सली शासीत प्रदेश का न्याय, जहाँ, जन अदालत से उन्हे न्याय मिलता है (जिंनका कानून देश के 30-40% हिस्से मे है)
१५. यदि इनके मामले देश की अदालतो मे आते, तो अदालतों मे विचाराधीन मामले 12 करोड से भी ज्यादा होते थे, मतलब, 24 करोड से भी ज्यादा से भी ज्यादा लोग, 30% देश की वयस्क आबादी न्याय के चक्कर मे अपने जीवन का समय बरबाद कर रही होती ?
१६. ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के ७० सालों बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं. 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है? कारण यही IPC है, IPC का आधार ही ऐसा है.
कहते हैं.., “शराब ने समुन्द्र से भी ज्यादा लोगों को डूबोया है.., और हमारा देश में भी भ्रष्टाचार के शराब से कानूनी प्रपच से गरीबों को डूबा कर ..., देशवासियों को पस्त कर, त्रस्त कर, इस, एक् “अंग्रेजो के अस्त्र” से देशवासीयो को मारकर..,पीटकर..., बीमारी , तनाव व अवसाद. (DEPRESSION) से अपने दबंगी के DEEP- IMPRESSION से देश के मसीहा बनकर, छायें हैं..., दोस्तों डूबते देश की यही कहानी है
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