८ जून १९४२ अखंड भारत के इतिहास का विश्वास घातक दिवस .,यह “भारत छोड़ों” आन्दोलन नहीं“भारत तोड़ों” आन्दोलन है तुम्हारी तिकड़ी अखंड
भारत के साथ धोखा है तुष्टिकरण से सत्तालोलुपता के “अखंड
भारत” को “खंडित भारत” से देशवासियों को एक गंदी राजनीती से देश को गर्त में ले जाएगा – वीर सावरकर
८ जून १९४२ अखंड भारत के इतिहास का
घातक दिवस, की ७६ वी बरसी ,देश के
डाकुओं द्वारा तुष्टिकरण के अस्त्र से देश को खंडित करने का बीजोरोपण साबित हुआ
... पतंजली के ज्ञाता वीर ही नहीं परमवीर सावरकर की यह ४० से अधिक भविष्यवाणी
वाणियों में यह एक सटीक भविष्य वाणी है.
१. ये गांधी की ही देंन थी कि, भारत सरकार पर ५५
करोड़ रु. पाकिस्तान को देने का दबाव डाला, माउंटबैटन ने
गांधीजी को पाकिस्तान को ५५ करोड़ रु. दिलवाने की सलाह दी. २२ अक्तूबर १९४७ को
पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया. कश्मीर में युद्ध चलाए रखने के लिए उसे धन की
सख्त जरुरत थी. गांधीजी ने पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपए रोकड़ राशि में से दिलवाने के
लिए, नेहरु और पटेल पर दबाव डालने हेतु, आमरण उपवास आरम्भ किया. अन्ततोगत्वा, नेहरु और
पटेल उपर्युक्त राशी पाकिस्तान को देने को विवश हुए, यद्यपि
बाद में पाकिस्तान को इससे भी अधिक धन-राशी भारत को देनी थी. जो आज तक नहीं मिली
२. गांधी ने भारत – विभाजन कराने वाली भयंकर
भूलों के तो बीज बो दिए थे
विघटन के बीज लखनऊ-पैक्ट (समझौते) में, जब
कांग्रेस ने लखनऊ पैक्ट में दो विषाक्त सिद्धांत स्वीकार किए : पहला ,संप्रदाय के आधार पर मुसलमानों को प्रतिनिधित्व, तथा मुस्लिम लीग को भारत के सभी मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था मान्य.,सिद्धांत रूप में तो कांग्रेस द्वी राष्ट्रवाद को अस्वीकार करती थी, परन्तु व्यवहार में उसने लखनऊ-पैक्ट के रूप में उसे मान लिया क्योकि इसमें
मुसलमानों की लिए पृथक मतदान स्वीकार किया गया था. इस प्रकार इस पैक्ट में विभाजन
का बीज बोया गया.
हिंदुस्थान के प्रतिनिधि तीन कट्टर मुसलमान थे, मार्च १९४६ में ब्रिटिश सरकार के मंत्रिमंडल के तीन सदस्य, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स, मि.ए.वी. अलेग्जेंडर और लार्ड
पैथिक लारेंस वार्ता और विचार-विमर्श के लिए भारत आए. हिन्दुओ की पूण्य भूमि
हिंदुस्थान का प्रतिनिधित्व तीन कट्टर मुसलमानों ने किया. भारतीय कांग्रेस और
हिंदुस्थान के समस्त हिन्दुओ के प्रतिनिधि थे कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम
आजाद. .मुहम्मद अली जिन्ना, मुस्लिम लीग के अध्यक्ष , हिंदुस्थान के मुसलमानों के प्रतिनिधि थे! नवाब भोपाल ने भारत की देसी
रियासतों के शासको का प्रतिनिधित्व किया. ब्रिटिश सरकार की ओर से तीन ईसाई और
हिंदुस्थान की ओर से तीन मुसलमान हिंदुस्थान के ७७ प्रतिशत हिन्दुओ के भाग्य का
निर्णय करने को बैठे.
३. कांग्रेस ने हिन्दू मतदाताओं को धोखा दिया,जब..
कांग्रेसियों ने १९४६ का निर्णायक चुनाव‘अखंड भारत ’के नाम पर लड़ा था. बहुमत प्राप्त करने के बाद ,उन्होंने
पाकिस्तान के कुत्सित प्रस्ताव को मान कर हिन्दू मतदाताओ के साथ निर्लज्जतापूर्वक
विश्वासघात किया. वीर सावरकर ने उनकी भर्त्सना की कि जब उन्होंने निर्लज्ज होकर
अपना सिद्धांत बदला है, और अब वे हिन्दुस्तान के विभाजन
पर सहमत हो गए है, तो या तो वे अपने पदों से त्यागपत्र
दे और स्पष्ट पाकिस्तान के मुद्दे पर पुन: चुनाव लड़े या मातृभूमि के विभाजन के लिए “जन-मत ” कराएं .
४. कांग्रेसियों ने विभाजन क्यों स्वीकार किया?इसमें
गांधी की अहम छद्म अहिंसा का मूल मंत्र था,कांग्रेसियों ने
मुस्लिम लीग द्वारा भड़काए कृत्रिम दंगो से भयभीत होकर जिन्ना के सामने कायरता से
घुटने टेक दिए .यदि दब्बूपन, आत्म-समर्पण, घबराहट और मक्खनबाजी के जगह वे मुस्लिम लीग के सामने अटूट दृढ़ता तथा अदम्य
इच्छा शक्ति दिखाते, तो जिन्ना पाकिस्तान का विचार छोड़
देता. लिआनार्ड मोस्ले के अनुसार पंडित नेहरु ने इमानदारी के साथ स्वीकार किया कि
बुढापे ,दुर्बलता ,थकावट और
निराशा के कारण उनमे विभाजन के कुत्सित प्रस्ताव का सामना करने के लिए एक नया
संघर्ष छेड़ने का दम नहीं रह गया था.उन्होंने सुविधाजनक कुर्सीयों पर उच्च पद-परिचय
के साथ जमे रहने का निश्चय किया. इस प्रकार राजनितिक-सत्ता, सम्मान और पद के लालच से आकर्षित विभाजन स्वीकार कर लिया.
५. क्या दंगे रोकने का उपाय केवल विभाजन ही था?, सरदार पटेल गांधीजी के पिंजरे में बंद एक शेर थे. उन्हें दंगाइयों के साथ “जैसे को तैसा”घोषणा करने के लिए खुली छूट नहीं थी, इसलिए उन्होंने क्षुब्ध होकर कहा था, “ये दंगे भारत
में कैंसर के सामान है. इन दंगो को सदा के लिए रोकने के लिए एक ही इलाज ‘विभाजन ’है”. यदि आज
सरदार पटेल जीवित होती, तो वे देखते की दंगे विभाजन के
बाद भी हो रहे है. क्यों? क्योंकि जनसँख्या के अदल-बदल
बिना विभाजन अधूरा था.
६. जनसंख्या के अदल-बदल बिना विभाजन का गांधी ने सुखाव ठुकरा दिया.. यदि
ग्रीस और टर्की ने ,साधनों के सिमित होते हुए भी ,ईसाई और मुस्लिम आबादी का अदल-बदल कर के,मजहबी
अल्पसंख्या की समस्या का मिलजुल कर समाधान कर लिया ,तो
विभाजन के समय में हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं किया गया? खेद है की पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेसी नेताओ ने इस संबंध में
डा. भीमराव आंबेडकर के सूझ्भूझ भरे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिन्ना ने भी
हिन्दू-मुस्लिम जनसँख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था. परन्तु मौलाना आजाद के
पंजे में जकड़ी हुई कांग्रेस ने नादानी के साथ इसे अस्वीकार कर दिया. कांग्रेसी ऐसे
अदूरदर्शी थे कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि जनसंख्या की अदला-बदली बिना खंडित
हिंदुस्थान में भी सांप्रदायिक दंगे होते रहेंगे.
७. पाकिस्तान को अधिक क्षेत्रफल दिया गया,१९४६
के निर्णायक आम चुनाव में, अविभाजित हिंदुस्थान के लगभग
सभी (२३%) मुसलमनो ने पाकिस्तान के लिए वोट दिया ,परन्तु
भारत के कुल क्षेत्रफल का ३०% पाकिस्तान के रूप में दिया गया. दुसरे शब्दों में
उन्होंने अपनी जनगणना की अनुपात से अधिक क्षेत्रफल मिला ,यह जनसंख्या भी बोगस थी. फिर भी सारे मुस्लिम अपने मनोनीत देश में नहीं
गए.
८. झूठी मुस्लिम जन-गणना के आधार पर विभाजन का आधार माना, कांग्रेस ने १९४९ तथा १९३१ दोनों जनगणनाओ का बहिष्कार किया. फलत:, मुस्लिम लीग ने चुपके-चुपके भारत के सभी मुसलमानों को उक्त जनगणनाओ में
फालतू नाम जुडवाने का सन्देश दिया. इसे रोकने वाला या जाँच करने वाला कोई नहीं था.
अत: १९४१ की जनगणना में मुसलमानों की संख्या में विशाल वृद्धि हो गई. आश्चर्य की
बात है कि कांग्रेसी नेताओं ने स्वच्छा से १९४१ की जनगणना के आंकड़े मान्य कर लिए, यद्यपि उन्होंने उसका बहिष्कार किया था. उन्ही आंकड़ा का आधार लेकर मजहब के
अनुसार देश का बटवारा किया गया. इस प्रकार देश के वे भाग भी जो मुस्लिम बहुल नहीं
थे,पाकिस्तान में मिला दिए गए.
९. स्वाधीन भारत का अंग्रेज गवर्नर जनरल की सहमती दी....,गांधीजी
और पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्खता के साथ माऊंट बैटन को दोनों
उपनिवेशों, हिंदुस्थान और पाकिस्तान का गवर्नर जनरल, देश के विभाजन के बाद भी मान लिया. जिन्ना में इस मूर्खतापूर्ण योजना को
अस्वीकार करने की बहुत समझ थी. अत: उसने २ जुलाई १९४७ को पत्र द्वारा कांग्रेस और
माऊंट बैटन को सूचित कर दिया की वह स्वयं पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनेगा.परिणाम
यह हुआ की माऊंट बैटन स्वाधीन खंडित बहरत के गवर्नर जनरल नापाक-विभाजन के बाद भी
बने रहे.
१०. सीमा-आयोग का अध्यक्ष अंग्रेज पदाधिकारी को मनोनीत किया गया ,माऊंट बैटन के प्रभाव में,गांधीजी और पंडित नेहरु ने
पंजाब और बंगाल के सीमा आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीरिल रैड क्लिफ को स्वीकार कर
लिया.सीरिल रैडक्लिफ जिन्ना का जूनियर (कनिष्ठ सहायक) था, जब उसने लन्दन में अपनी प्रैक्टिस आरम्भ की थी. परिणाम स्वरुप, उसने पाकिस्तान के साथ पक्षपात और लाहौर, सिंध
का थरपारकर जिला,चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र, बंगाल का का खुलना जिला एवं हिन्दू-बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिला दिये
११. बंगाल का छल-पूर्ण सीमा निर्धारण किया गया,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदासीनता के कारण ४४ प्रतिशत बंगाल के
हिन्दुओ को ३० प्रतिशत क्षेत्र पश्चिमी बंगाल के रूप में संयुक्त बंगाल में से
दिया गया.५६ प्रतिशत मुसलमानों को ७० प्रतिशत क्षेत्रफल पूर्वी पाकिस्तान के रूप
में मिला.
चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र जिसमे ९८ प्रतिशत हिन्दू-बौद्ध रहते है,एवं हिन्दू-बहुल खुलना जिला अंग्रेज सीमा-निर्धारण अधिकारी रैडक्लिफ
द्वारा पाकिस्तान को दिया गया.कांग्रेस के हिन्दू नेता ऐसे धर्मनिरपेक्ष बने रहे
की उन्होंने अन्याय के विरुद्ध मुँह तक नहीं खोला.
१२. सिंध में धोखे भरा सीमा-निर्धारण किया, जब सिंध के हिन्दुओ ने यह मांग की की सिंध प्रान्त का थारपारकर जिला जिसमे
९४ प्रतिशत जनसँख्या हिन्दुओ की थी,हिंदुस्थान के साथ विलय
होना चाहिए,तो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने सिन्धी हिन्दुओ
की आवाज इस आधार पर दबा दी की देश का विभाजन जिलानुसार नहीं किया जा सकता.परन्तु
जब आसाम के जिले सिल्हित की ५१ प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने पकिस्तान के साथ जोड़े
जाने की मांग की,तो उसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया.
बोलू: मजहब के आधार पर विभाजन-धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गांधी का
खेल था... यदि गांधीजी पंडित नेहरु सच्चे धर्म-निर्पेक्षतावादी थे तो उन्होंने देश
का विभाजन मजहब के आधार पर क्यों स्वीकार किया?
बोलू: गांधी की आड़ में कांग्रेस में एक बड़ा खेल खेला , हिन्दू राज्य को ठुकराकर, जब गांधीजी और नेहरु
ने देश का विभाजन मजहब के आधार पर स्वीकार किया, पाकिस्तान
मुसलमानों के लिए और शेष बचा हिंदुस्थान हिंदूओ के लिए, तो उन्हें हिंदूओं को तर्कश: :द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के अनुसार अपना
हिन्दूराज्य स्थापित करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए था .यह पंडित नेहरु
ही थे जिन्होंने स्वेच्छाचारी तानाशाह के समान अगस्त १९४७ में घोषणा की थी कि जब
तक वे देश की सरकार के सूत्रधार है,भारत “हिंदू राज्य” नहीं हो सकेगा. कांग्रेस के सभी
हिंदू सदस्य इतने दब्बू थे कि इस स्वेच्छाचारी घोषणा के विरुद्ध एक शब्द भी बोलने
की भी उनमें हिम्मत नहीं थी.
सुनू: असांविधानिक धर्मनिरपेक्षतावाद के आड़ में कांग्रेस ने देश को धोखा
दिया, जब खंडित हिंदुस्थान को “हिंदू
राज्य” घोषित करने के स्थान पर सत्ताधारी छद्म
धर्मनिरपेक्षतावादीयों ने धूर्तता के साथ धर्मनिरपेक्षतावाद को ,१९४६ तक अपने संविधान में शामिल किये बिना ही, हिन्दुओं
की इच्छा के विरुद्ध राजनीति में गुप्त रूप से समाहित कर दिया.
बोलू : धर्म-निरपेक्षता एक विदेशी धारणा से वाहवाही बटोरने का खेल खेला ,यद्यपि गांधीजी और नेहरु “स्वदेशी के मसीहा” होने की डींगे मारते थे, तथापि उन्होंने विदेशी
राजनितिक धारणा ‘धर्म-निरपेक्षता’ का योरप से आयात किया, यद्यपि यह धारणा भारत के
वातावरण के अनुकूल नहीं थी.
देखू: धर्मविहीन धर्मनिरपेक्षता को पाखण्ड बनाया,यदि
इंग्लॅण्ड और अमेरिका, ईसाइयत को राजकीय धर्म घोषित
करने के बाद भी, विश्व भर में धर्म-निरपेक्ष माने जा
सकते है,तो हिंदुस्थान को हिंदुत्व राजकीय धर्म घोषित करने
के बाद भी,धर्म-निरपेक्ष क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता?पंडित नेहरु द्वारा थोपा हुआ धर्म-निरपेक्षतावाद धर्म-विहीन और नकारात्मक
है.
देखू: इसी की आड़ में पूर्वी पाकिस्तान (बंगला देश) में हिन्दुओं का नरसंहार
बेरहमी से हुआ और १९४७ में,पूर्वी पाकिस्तान में, हिंदुओं की जनसंख्या कुल आबादी का ३० प्रतिशत (बौद्धों सहित) अर्थात डेढ़
करोड़ थी. ५० वर्षो में अर्थात १९४७ से १९९७ तक इस आबादी का दुगना अर्थात ३ करोड़ हो
जाना चाहिए था.परन्तु तथ्य यह है कि वे घट कर १ करोड़ २१ लाख अर्थात कुल आबादी का
१२ प्रतिशत रह गये है.१९५० में ५० हजार हिंदुओं का नरसंहार किया गया. १९६४ में ६०
हजार हिन्दू कत्ल किये गए. १९७१ में ३० लाख हिन्दू, बौद्ध
तथा इसाई अप्रत्याशित विनाश-लीला में मौत के घाट उतारे गए. ८० लाख हिंदुओं और
बौद्धों को शरणार्थी के रूप में भारत खदेड़ दिया गया. हिंदुस्थान के हिन्दू
सत्ताधारियो द्वारा हिंदुओं को इस नरसंहार से बचने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
बोलू: हमारे देश में कांग्रेस ने हिदू विस्थापितों की उपेक्षा की गई, यदि इज्रायल का ‘ला ऑफ़ रिटर्न’प्रत्येक यहूदी को इज्रायल में वापिस आने का अधिकार देता है. प्रवेश के
बाद उन्हें स्वयमेव‘नागरिकता’ प्राप्त
हो जाती है.परंतु खेद है की हिन्दुस्थान के छद्म-धर्मनिरपेक्ष राजनितिक सत्ताधारी
उन हिदुओं को प्रवेश करने पर अविलंब नागरिकता नहीं देते, जो विभाजन के द्वारा पीड़ित हो कर और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में
अत्याचार से त्रस्त होकर भारत में शरण लेते है.
देखू: नेहरु ने लियाकत समझौता का नाटक खेला, जब विभाजन के समय कांग्रेस सरकार ने बार बार आश्वासन दिया था कि वह
पाकिस्तान में पीछे रह जाने वाले हिंदुओं के मानव अधिकारों के रक्षा के लिए उचित
कदम उठाएगी परन्तु वह अपने इस गंभीर वचनबद्धता को नहीं निभा पाई. तानाशाह नेहरु ने
पूर्वी पकिस्तान के हिंदुओं और बौद्धों का भाग्य निर्माण निर्णय अप्रैल ८ १९५० को
नेहरु लियाकत समझौते के द्वारा कर दिया उसके अनुसार को बंगाली हिंदू शरणार्थी
धर्मांध मुसलमानों के क्रूर अत्याचारों से बचने के लिए भारत में भाग कर आये थे, बलात वापिस पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली मुसलमान कसाई हत्यारों के पंजो
में सौप दिए गए
.
बोलू: हां लियाकत अली के तुष्टिकरण के विरोध कने के लिए लिए वीर
सावरकर गिरफ्तार कर लिया, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
लियाकत अली खान को पंडित नेहरु द्वारा दिल्ली आमंत्रित किया गया तो छद्म
धर्मनिरपेक्षतावादी कृतघ्न हिन्दुस्थान सरकार ने नेहरु के सिंहासन के तले,स्वातंत्र वीर सावरकर को ४ अप्रैल १९५० के दिन सुरक्षात्मक नजरबंदी क़ानून
के अन्दर गिरफ्तार कर लिया और बेलगाँव जिला कारावास में कैद कर दिया.पंडित नेहरु
की जिन्होंने यह कुकृत्य लियाकत अली खान की मक्खनबाजी के लिए किया, लगभग समस्त भारतीय समाचार पत्रो ने इसकी तीव्र निंदा की. लेकिन नेहरू के
कांग्रेसी अंध भक्तों ने कोई प्रतिक्रया नहीं की
देखू; १९७१ के युद्ध के बाद , हिंदू शरणार्थियो को बलपूर्वक बांग्लादेश वापिस भेजा
श्रीमती इंदिरा गाँधी की नेतृत्व वाली हिन्दुस्थान सरकार ने बंगाली
हिंदूओं और बौद्ध शर्णार्थियो को बलात अपनी इच्छा के विरुद्ध बांग्लादेश वापिस
भेजा.इनलोगो ने इतना भी नहीं सोचा कि वे खूंखार भूखे भेडीयो की मांद में भेडो को
भेज रहे है.
बोलू: बंगलादेशी हिंदुओं के लिए अलग मातृदेश की मांग को इंदिरा गांधी ने
अपने दुर्गा देवी की छवि को आंच न आये , इसलिए वह
भी अपने निहित स्वार्थों की वजह से इसे अनदेखा कर दिया
सूनू: यह आज तक कांग्रेस का दुग्गला पण रहा है,एक
तरफ तो , यदि हिन्दुस्थान की सरकार १० लाख से भी
कम फिलिस्थिनियो के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक अलग मातृभूमि का प्रस्ताव रख सकती
है तो वह २० लाख बंगाली हिंदुओं और बौद्धों के लिए जो बांग्लादेश के अन्दर और बाहर
नारकीय जीवन बिता रहे है उसी प्रकार का प्रस्ताव क्यों नहीं रख सकती.
देखू: इसके पहले कि और एक विडबन्ना , जो
बांग्लादेश के ‘तीन-बीघा’ समर्पण
कर दिया, जब
१९५८ के नेहरु-नून पैक्ट (समझौते) के अनुसार अंगारपोटा और दाहग्राम
क्षेत्र का १७ वर्ग मिल क्षेत्रफल जो चारो ओर से भारत से घिरा था,हिन्दुस्थान को दिया जाने वाला था .हिन्दुस्थान की कांग्रेसी सरकार ने उस
समय क्षेत्र की मांग करने के स्थान पर १९५२ में अंगारपोटा तथा दाहग्राम के शासन प्रबंध
और नियंत्रण के लिए बांग्लादेश को ३ बीघा क्षेत्र ९९९ वर्ष के पट्टे पर दे दिया.
बोलू: लेकिन, अब तो वोट बैंक
के तुष्टीकरण की भी कांग्रेस ने सभी हदें पार कर दी , जब केरल में लघु पाकिस्तान, मुस्लिम लीग की
मांग पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने तीन जिलो, त्रिचूर
पालघाट और कालीकट को कांट छांट कर एक नया मुस्लिम बहुल जिला मालापुरम बना दिया .इस
प्रकार केरल में एक लघु पाकिस्तान बन गया. केंद्रीय सरकार ने केरल सरकार के
विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया.
आयें ..., हम प्रतिज्ञा ले.. इस
राष्ट्रवादी धागे को और मजबूत बनाएं...
Let's not make a party but become part of the country. I'm made for the country
and will not let the soil of the country be sold. के संकल्प
से गरीबी हटकर, भारत निर्माण से, इंडिया शायनिंग से, हमारे LONG –
INNINGसे, “FEEL GOOD FACTOR” से देश के
अच्छे दिन आयेंगें..,
साभार
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