कृपया पढ़े, मंथन ,चिंतन कर राष्ट्र भाषा व मातृभाषा के पतवार के उपयोग से डूबते देश के नाव को बचायें…
हिंदी दिवस …!!!, विदेशी भाषा द्वारा इसे चिंदी दिवस के नाम से हर साल मखौल उड़ाया जाता है…
देश पर अंग्रेज़ी हावी…, अंग्रेज़ी रोटी देने वाले व संभ्रांत लोगों की भाषा.. की भ्रांति से देश के प्रति मुर्दानगी से नर व नारी में मर्द व मर्दानी की भावना नदारद .. व विदेशी हाथ साथ विचार संस्कार से देश की संरचना के बदलाव की भावना से विदेशी इशारे से NGO को धन से लबालब कर देश में “भारत तेरे टुकड़े होंगे … इंशाअल्लाह .. “ JNU में तो अपने को नेहरू के DNA से जन्में हिंदू छात्र छात्रा भी इस नारे का उद्घोष से क्रांतिकारी घोषित करने का दम्भ भर रही थी…
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यह चित्र मोदीजी, भारतमाता व राष्ट्र को समर्पित
अब अंग्रेजी नही बनेगी राष्ट्र के युवाओं को रोटी देने वाली भ्रम की भाषा...,
देश को जकड़ने वाली
अंग्रेजी भाषा की देशी व क्षेत्रीय भाषाओं
के प्रभुत्व से अब देश की बेड़ियाँ टूटेगी....
अब देश में उच्च शिक्षा 11 देशी भाषाओं में पढ़ाई जाएँगी
याद रहे .....
भारतेंदु हरिश्चंद्र मात्र 34 साल जीवन जीने वाले जो साहित्यकार,
पत्रकार,
कवि और नाटककार
थे
1850 के आसपास के भारत में भ्रष्टाचार,
प्रांतवाद,
अलगाववाद,
जातिवाद और छुआछूत
जैसी समस्याएं अपने चरम पर थीं. तब उन्होने देश भर में अपने नाट्य मंचों को हिन्दी व क्षेत्रीय
भाषाओं से समाज की आँखें खोलने मेँ एक अहम भूमिका निभाई
जिन्होने विश्व को यही सार्थक उक्ति कही थी
संदेश दिया था कि मातृभाषा से ही देश की उन्नती है
“ निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।। ”
निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है,
क्योंकि यही सारी
उन्नतियों का मूलाधार है।
मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है।
विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान,
सभी देशों से जरूर लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा के द्वारा ही करना चाहिये।
संक्षेप्त में अंग्रेजी भाषा जो देश को गुलाम रखने वाले अंग्रेजों के
अंग्रेजों के पिल्लूओ ने हिन्दी के साथ
क्षेत्रीय भाषा जो देश की व क्रांतिकारियों की भाषा थी जिसे आज भी एक सुनोजियत
षडयंत्र के तहत समाप्त किया जा रहा था अब उसकी समाप्ती का दौर आ गया है
विदेशी भाषा को चंद लोग जानने वाले देश पर आज भी विदेशी राष्ट्रो के
इशारों से देश की राष्ट्रवाद व राष्ट्रनीती
(धर्म परिवर्तन, घुसपैठियों का
संगठन से वोट बैंक बनाकर व देश का कायरता का
झूठा इतिहास पढ़ाकर देश को खंडित भारत की उपमा से देश के टुकड़े करने की नीती
की योजना बना रहे थे ) बदलकर राजनीति की चासनी से देश पर राज कर देश को डूबाने का
ही काम कर रहें हैं
सुदूर क्षेत्रीय भाषा के गरीब
तबकों के अभिभावक भी भारी स्कूल फीस भरकर
अपने बालकों को अंग्रेजी भाषा में शिक्षण देकर देश की मुख्य धारा से अलग कर,
वह छात्र मूक विदेशी
भाषा का अनुसरण तो करता है पर वह उसके पल्ले नही पड़ता है
8वीं कक्षा के बाद
उसे अंग्रेजी भाषा के पल्ले पड़ने का एहसास होता है व मैट्रिक में पहुँचने तक वह
भाषा का ज्ञान लेते रहता है
तब तक वह विदेशी भाषा के बोझ तले दबता हुआ शिक्षा का अधूरा ज्ञान ग्रहण करता
है
विश्व के जिन देशों ने स्वदेशी भाषा में शिक्षा का प्रसार किया है आज अंग्रेजी भाषा के देश
उनसे पिछड़ते जा रहें है
जापान मेँ 10 वी का छात्र अपनी भाषा से आगे अनुसंधान के लिए पढ़ाई करता है जबकि हमारे देश का छात्र रोजगार वाले क्षेत्र के लिए पढ़ाई में अपने को बंधुवा अफसर बनाने के लिए आतुर व गर्व में रहता है
अपनी भाषा में अनुसरण कर अति उन्नत देशों में इस्राइल रूस फ्रांस जापान स्पेन पोलैंड जर्मनी स्विट्ज़रलैंड चीन डच इटली जैसे अनेक देश हैं
और हम हैं सत्ता परिवर्तन के 75 सालों बाद भी उक्त देशों से तकनीकी व हथियार खरीद कर देश के
राजस्व का बड़ा भाग बर्बाद कर रहें हैं व
विदेशी निवेश से देश को पंगु बना
रहें हैं