Tuesday 27 November 2012



“देश में भारतीय रेल ही एकमेव राष्ट्रीय जनसेवा है,”
जहां आरक्षण फ़ार्म पर जाति नहीं पूछी जाती है…??, तथा वरिष्ठ नागरिकों को किराए में विशेष छूट दी जाती है,

याद रहे ,सता परिवर्तन (१९४७) के बाद भी भारतीय रेल आज तक देश के चार भागों में उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम में विभाजित है …इसलिए उसे अपने गंतव्य स्थान में पहुँचने पर किसी राज्य की अनुमति नहीं लेनी पड़ती है,

वही राज्य की बसों को एक राज्य से, दूसरे राज्य की परिवहन सेवा में राज्य सरकारो, और तो और… एक नगर निगम की स्थानीय बसों को दूसरे नगर निगम में मुनाफे के खेल में आपस में लड़ाई हो जाती है…

याद रहे मुंबई से नई मुंबई की बस सेवा में पहले सिर्फ राज्य सेवा परिवहन को अनुमति थी , १५ साल ही, मुम्बई बस सेवा को नई मुंबई की बस सेवा की अनुमति दी गई … जबकि आज तक नई मुम्बई की परिवहन सेवा, नगरपालिका में घपले/घोटालों की वजह से नुक्सान में चल रही है

रेल की आरक्षित सीटों पर हर वर्ग, धर्म, जाति व अमीर से गरीब तक एक साथ यात्रा करते है , आज के ६६ वर्षों के इतिहास में जातिवाद, धर्मवाद के नाम से किसी यात्री में झगडा नहीं हुआ है, कोइ भी यात्री… रेल्वे में खानपान देने वाले कर्मचारी से उसकी जाति नहीं पूछता है ,
यात्रियों में भी रेल के चलने के बाद ही ,एक दूसरे से परिचय पाने की उत्सुकता से वे उसके, गंतव्य स्थान व उसके आगे जाने की जानकारी पूछते है, और अपने नए यात्रियों को .. जो शहर के बारे में अनजान है… उन्हें मार्गदर्शन कर कहते है, गंतव्य स्थान पर उतरने के बाद के नजदीक का रास्ता , व टैक्सी व आटोरिक्शा के लूटेरो से बचने के लिए उचित किराया व बस अड्डे की पैदल दूरी की जानकारी देते है…
यदि कोई यात्री अपने घर से भोजन लाता है तो सद्भाव से यहाँ तक पूछता है , भाई साहब.. क्या?, हमारी बनाई रोटी सब्जी खाओगे… ऐसे लाखों उदाहरण है… रेल यात्रा के दौरान ही, यात्री… भविष्य के घनिष्ठ मित्र बन गयें है

दोस्तों….?????, यदि हम ४-४८ घंटो का सफर ६६ सालों से रेल में कर आज तक आनंदित है, तो इस तरह का जीवन में… राष्ट्रवादी सफ़र… अपनी जिन्दगी में करें.. तो देश हजारों गुना आगे बढ़ जाएगा … जागों…. और भारतीय रेल के आदर्शों से ही … हम सब मिलकर… हम राष्ट्रवादी विचारधारा के जिंदादिली से सुपरफास्ट … से दुरंतो के लक्ष्य से अपने देश व जीवन को स्वर्णमय के साथ… स्वर्गमय बनाएं….
अतरिक्त पोस्ट- यह देश की बिडंबना है की सत्ता परिवर्तन के बाद हमारे सत्ताखोरों ने देश को उत्तर , दक्षिण , पूरब, पश्चिम के चार भागों में बांटने ने बजाय भाषावाद के नाम से १२ से ज्यादा प्रांत बनाकर, व सेना की प्रान्त के नाम से पहचान देश को बांटने का तड़का व जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद से विभिन्न अलग –अलग कानूनों से अलगाववाद के बीज तो तभी ही बो दिए थे...
आज राजनीती की कड़ाई में घुसपैठीयों की चासनी से वोट बैक का भजिया खाकर ...भारत निर्माण भज कर .., देश के जनता को भामा रहें है...
और तो और रेलवे की दलाली से देश के नेता अपने मुंह काली से देश का भठ्ठा बिठा रहें है...

Thursday 22 November 2012



संविधान के रक्षक-
आज ६७ सालों से इस संविधान को राष्ट्रनीती की बलि देकर (सिर्फ लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल को छोड़कर) सत्ता के अफीमी नारों से लोमड़ी वाद के खेल से अशोक स्तंभ के शेरों को घायल कर अफीमी नारों से देश को चलाया है.....,देश विदेशी आकांओं के मकडजाल में फंस कर..., कर्ज के गर्त में जाकर भीषण गुलामी की ओर धकेला जा रहा है....
ऊपर से देश के ३३ हजार कानूनों को इस लोमड़ी वाद ने जनता को इस जाल में फंसाकर ..., न्याय प्रकिया में घर-बार बिकाकर ..., लड़ने की प्रतिरोध की शक्ति खत्म कर दी है....,
इस लोमड़ी वाद ने अपने लूट पर लूट के कारनामों में खुली छूट लेकर, क़ानून की हथकड़ी को जोड़कर , झूला बनाकर, नौकरशाही से झूला झूलाकर , संविधान का मसीहा कह कर ....काले धन की रकम डकारकर ...अकूत सम्पत्ती के साम्राज्य से कोई दंड से धन नहीं लौटाया है....,
जनता को क़ानून के जाल में फांसकर तारीख पर तारीख देकर, घर बार बिकाकर , लड़ने की शक्ति से हताश कर बेबस कर दिया है...,

इस लूट के बावजूद अब भी अपने को संविधान का मसीहा कहकर फूले नहीं समा रहें है....

जानें........, -हिंदुस्था न का अशोक स्तं भ – के चिन्ह का अर्थ ....,
हमारा राष्ट्रीय चिह्न, अशोक स्तंकभ (अशोक चिह्न में इसे इस प्रकार से दर्शाया गया है कि इसमें प्रदर्शित चार शेर और सामने से दृष्टिगत शेरों के चार पैर परम् मौलिक ऊर्जा के चार अंशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी भी दिशा से सामने देखने पर शेरों के तीन मुँह और चार पैर ही दृष्टिगोचर होते हैं। जिससे यह तात्पर्य निकलता है कि इस मौलिक ऊर्जा के चार अंशों में से तीन अंश ऊपर उठकर आकाश में अवस्थित हैं, शेर के माध्यम से इस मौलिक ऊर्जा की अभिव्यक्ति इसे सर्वशक्तिमान प्रतिपादित करती है। अशोक चिह्न में शेरों के आधार पर स्थित पशु और चक्र, इस परम मौलिक ऊर्जा के एक अंश का प्रतीक होकर दृश्य जगत का भाग है। इसमें चिह्नित अश्व एवं गाय चैतन्य जगत का प्रतिनिधित्व करने के साथ, परम मौलिक ऊर्जा तथा प्रकृति को अभिव्यक्त करते हैं। अशोक चिह्न में चैतन्य जगत को अश्व एवं गाय के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। )

जाने इस लोमड़ी के बारे में आज के नव युवकों का ज्ञान ..., जब मै लोगों से पूछता हूँ ? कि हमारे राष्ट्रीय चिह्न, अशोक स्तं भ मे कितने शेर है ।
लगभग 80 प्रतिशत लोगो ने कहा 3 शेर है । 10 – 12 लोगो ने हिचक कर कहा 4 शेर ..?? 8-10 प्रतिशत लोगो ने विश्वास से कहा 4 शेर। फिर, मैने कॉलेज के छात्रों से पूछा ? 95 प्रतीशत छात्रों ने कहा, 3शेर । एक छात्रो ने मुझसे कह दिया, अंकल आपको दिखता नही है क्याो ?, इसमें एक बडा शेर है व दो छोटे शेर है ।
मैने इन 8-10 प्रतिशत लागों से कहा कि इसके पीछे चौथा शेर नही बल्कि एक लोमडी है ।जिसके वजह से ये तीनो शेर अपाहिज हो चुके है ।
देश की जनता में जो शेर के रक्तक का चौकन्नापन, फूर्ती होनी चाहिए थी वह खत्मर होती जा रही है ।
आज हर सरकारी विभाग में, मंत्रालय, कोर्ट व इत्याीदि में जहॉं लोहे, मिट्टी
की उभरी आकृती मे भी 3 शेर ही देखने मिलते है । किसी भी सरकारी विभाग में यदि चार शेर वाला अशोक चिह्न दिखाई देना एक सौभाग्यि की बात होती है ।
आज तक मैने जहा भी इन शेरो की उभरे हुई आकृति देखी है वह काले रंगो मे, उससे मुझे लगता है की शेर को भ्रष्टाचार की काली कालिख लगी हुइ है।
आज देश को एक लोमडी , 3 शेरो को नकेल डालकर चला रही है । आज 65 साल बाद भी वे जातिवाद , भाषावाद , आतंकवाद, आरक्षण, अलगाववाद , क्रिकेट के द्वारा से शेर के अगले पॉंव अपंग से हो गए है, इनके दाँत भी तोट टूट चुकें है, जो दॉंत बचे हुए है उनका पैनापन भी समाप्त हो चुका है । इन सत्तास की लोमडी की वजह से हमारी जनता की मौलिक ऊर्जा की स्तिथी ऐसी हो गई है कि ये हम पर नकेल कसने के बावजूद, हमारी प्रतीक्रीया लगभग समाप्त हो चुकी है । देश के प्रति लोगों का शरीर दुर्बल होते जा रहा है । हमारे दॉंतो व नाखून ( विचारों ) टुटते हुए जर्जर होते जा रहे है । और हम ऐन-केन प्रकारेण घुटन के साथ में घायल अवस्थार में जीवन जीने का प्रयास कर रहे है ।
ये लोमडी अपने रथ पर भष्टाीचार, टॅक्स ,काले धन व अन्य का बोझ डालकर हम जनता को और दुर्बल कर रही है ताकि हम इससे भी बदतर हालत में जीवन जीने को अभ्यिस्तस हो ?

Wednesday 21 November 2012



सिर्फ एक बूँद राष्ट्रवाद की ……….
यह कार्टून: देश के घोटालेबाज आदमखोर भेडिया नेताओं को समर्पित है, जिन्होने देश प्रेमी का चोला पहंनकर आम आदमी का खून पी कर देश के मासूम हिन्दुस्तानी लोगों, जो इन भेडियों के द्वारा काल के गाल समा गये है
मै उंन मासूमों को श्रदांजलि स्वरूप प्रस्तूत कर रहा हूँ – देशद्रोही

यदि इंडियन लोगों को राष्ट्रवाद का नशा लग जाये…??? तो हिन्दुस्थानी शराब पीना छोड देगा….???
एक आरटीआई कार्यकर्ता ने पुछा?…. हम, हमारे देश को क्या कह सकते है ? …इंडिया?….भारत?…… या हिन्दुस्थान…?
तो उसे, जवाब मिला कि इस देश को इन नामो में से कुछ भी कह सकते है?
दुनिया मे ऐसा कोइ देश नही है जिसे तीन नामो से पुकारा जाता हो?
मेरी इन नामो की शब्दावली निम्न प्रकार से है.
1. इंडिया – अकूत धन से चमकने वालो के लिये…इंडिया?. यो कहे शाईनिंग इंडिया.
2. भारत –जो, इन चमकने वालो के पिछलग्गू , इनके गलत कामों के सह्भागिता मे भी शामिल होने वालो लोगो के लिये भारत?…… और इंडियन बनने की होड मे दौड रहे है? (भार-रत)
3 हिन्दुस्थान- मेहनत कर भूखमरी की कगार पर पहुचने व आत्महत्या करने वालों के लिये हिन्दुस्थान…?
इस देश की अमीर इंडिया…? और गरीब हिन्दुस्तान के हालात की मार्मिक तस्वीर यह है.,
दो साल अखबार मे समाचार था, मध्य प्रदेश के टीनू जोशी दपति (I.A.S.- आफिसर) के घर 500 करोड की काली सम्पति…? बरामद हुई है, अभी और लाँकर खुलने बाकी है, उसी के बगल के समाचार कालम मे सटकर यह खबर भी थी, मध्य प्रदेश मे एक परिवार के 4 सदस्यो ने गरीबी से आत्महत्या की ?. हाँ, एक घर मे ..काले धन वाला चमकदार इंडियन रहता है, और दुसरे झोपडें मे बिना बिजली के मेहनत और ईमानदारी से रोजी रोटे कमाने वाला हिन्दुस्थानी, जो सिर्फ और सिर्फ विकास के नाम पर, वोट बैक के शोषण का मोहरा है. आज गरीबों का वोट बैक, सत्ताधारियों का इनते नाम पर योजनाये निकालकर धन बैंक के लूट का चेहरा है.
भार-रत भारत – जो हिन्दुस्थानीओ के मेहनत को नजर अंदाज कर इंडियन लोगों के साथ मिलकर, एन केन प्रकारेण धन कमाने के चक्कर मे अपने संस्कार, की तिलांजली देकर, अपनी आत्मा का गला घोटकर, अपनी जीवन शैली को अय्याशी बनाने के लिये, इंडियन लोगो का डाँक्टर (डाँग + टर्र = कुत्ता और मेढक ) बनकर उनके धन के लूट मे रखवाली कर (कुत्ता) , चुनावी मौसम मे इंडियन लोग मेढक की तरह का जोर शोर से प्रसार कर रहे है.
यह शर्म की बात है , हम अपने आपको सुपर पावर कहते है, और आज हम भुखमरी, शिशु व महिला मृत्यु दर मे हमारे देश के आकडे भयानक हैं और देश की तुलना अफ्रीकी देशो से भी ऊपर की तालिका मे की जाती है?
आज हमारे देश का, दुनिया मे किसान आत्महत्या का विश्व कीर्तिमान है और यह आँकडा दिन प्रतिदिन बढते ही जा रहा है?, लेकिन हमारे देश मे अन्नदाता (किसान) आत्महत्या कर रहा है जो देश के एक हर एक तबके को निवाला देता है?
यदि विषेश तौर से कहा जाय तो किसान आत्महत्या, राष्ट्र पर कलंक है, किसान देश का अन्नदाता है, उसकी बदौलत देश्वासिओं को भोजन नसीब होता है, 1 किसान आत्महत्या का मतलब देश के 100 परिवारो को निवाला खिलाने वाला देश से चला गया,
आज देश मे किसानों के परिवारो की महिने की औसत आय 2200 रूपये है ,जबकि सरकारी चपरासी की महिने की औसत आय 10000 रूपये से ज्यादा है, इसमे उसकी उपर की कमाइ जिसे रिश्वत कहते है शामिल नही
दो साल पहिले, मुबई मे थाने शहर मे एक बेरोजगार अधेड उम्र के युवक ने अपनी आत्महत्या के पहले अपने पत्र मे लिखा, मै महँगाई के वजह से परेशान हू और इसका जवाबदार कृषि मंत्री शरद पवार हे.

सरकार की राष्ट्रवाद की परिभाषा

काँमन वेल्थ गेम (1 लाख करोड के घोटाले का खेल) के समाप्ति पर आयकर विभाग ने हर अखबार और दूरदर्शन मे विज्ञापन मे मुम्बई के वरली सी लिक के सेतु व साईना नेहवाल के चित्र के साथ मे लिखा था,
काँमन वेल्थ से देश को राष्ट्रवाद के रूप मे आपका धन वापस मिल रहा है और देश गौरान्वित हुआ है
और जनता से अपील की गई थी कि आप सही समय पर आयकर भरें और राष्ट्र निर्माण मे सहयोग करें.
यह विज्ञापन देख कर मेरा माथा ठनका, मुझे यह समझ मे नही आ रहा था कि आयकर विभाग सरकार की पीठ थपथपा रहा है या सरकार इस विज्ञापन से आयकर विभाग की पीठ थपथपा रही है
जो काँमन वेल्थ गेम (1 लाख करोड के घोटाले का खेल) का हाल है , वही हाल मुम्बई के वरली सी लिक के सेतु का है, 400 करोड की लागत जिसे पाँच साल मे पूरा होना था , उसे दस साल से अधिक लग गया और् सेतु 1700 करोड रूपये से अधिक लागत लग गई, यदि पाँच साल की अवधि के समय. 1700 करोड का चक्रवर्ती व्याज के रूप मे देखे तो यह सेतु 3500 करोड से भी अधिक मे बना, यदि यही धन जो देश के किसान निजी साहुकारो से अधिक 10% मसिक ऋण से लेते है तो यह राशी 15000 करोड से ज्यादा होती
राष्ट्रवाद के रूप आयकर विभाग व भारत सरकार से कहना चाहता हूं, कि यदि यह सेतु , सही समय व निर्धारीत राशी मे बनता तो .राष्ट बिना टोल लिये हुये इन पाच सालो मे 500 करोड से ज्यादा का ईधन बचा लेता था.
अभी एक सप्ताह पहले ही खबर आई थी कि, सी लिंक के टोल के फर्जी पास के गोरखधधे का
माफिया राज चल रहा है.......,