मृतुन्जय .., जिससे काल भी डरा .., इंग्लॅण्ड की भूमी पर देश की गुलामी को बेड़ियों से मुक्त
करने की दहाड़ से दुश्मन भी सन्न रहता था.., सावरकर की हुंकार से विश्व के क्रन्तीकिरियों में एक जूनून भर गया था ,
इंडिया हाउस .., क्रांति हाउस बन, वीर सावरकर के भाषणों से
इंग्लॅण्ड की जनता भी उनके विचारों की कायल हो गई,
चाणक्य , वीर शिवाजी , महाराणा प्रताप के गुणों से भरपूर..,
अब वीर सावरकर जैसे महान विभूति के पुनर्जन्म जन्म से ही ..,
या वीर परमवीर सावरकर के विचारों के अनुसरण से देश विश्व
गुरू बनेगा...
वीर सावरकर में बचपन से वीर छत्रपति शिवाजी के गुण व सत्ता परिवर्तन के बाद भी वे
राष्ट्रवादी सिद्धान्तों से देश की गरिमा न झुककर, सत्तालुप्त न रह कर महाराणा प्रताप की तरह घास की रोटी खाना
पसंद किया. सत्ता परिवर्तन के बाद भी उनका भुगुर का पैतृक घर नेहरू द्वारा जब्त
करने के बाद , वीर सावरकर ने कहा मुझे मेरा घर न मिलने का दुःख नहीं है ..,
मैं तो देश के लिए लड़ रहा था ,
मुझे दुःख है कि हमें खंडित हिन्दुस्तान की ऊंची चोटी पहाड़ी
नदी सागर मिले ..
१८५७ को अंग्रेजों द्वारा ग़दर / विद्रोह की संज्ञा देकर
हमें बुझदिल कौम बनाकर .., कांग्रेस द्वारा इस झूठे इतिहास का पिछलगू बनकर,
तलवा चाटू से देश
को गुलामी में बांधकर रखने के खेल को वीर सावरकर ने इंग्लॅण्ड में सहप्रमाण सिद्ध कर दिया कि हुम की कांग्रेस देश के आंदोलन को दबाने की एक
सेफ्टी वाल्व है’
सन २००७ में वीर सावरकर ने शत्रु के घर इंग्लॅण्ड में १८५७
के ५०वी जयन्ती का भव्य समारोह मनाया , साथ ही साथ दशहरा ,
गुरु गोविन्द सिंह की जयन्ती मनाई . जब मोहनदास गांधी
इंग्लॅण्ड में अपने राजनीती जीवन के शैशव काल में थे . तब सावरकर शत्रु के घर अपनी
ख्यति से चरम पर थे.
अंडमान जेल में जीवन के १२ साल के कठोर यात्लाओं ता यातनाओं
में रहने के बाद जेल की दीवारों में किल से लिखे १० हजार से अधिक कविताओं को लिखके
मौखिक याद कर .., जेल से बाहर आकर उन्होंने इस काव्य ग्रन्थ के रूप में
संगृहीत किया.
जीवन में कई बार उनके जीवन में मृत्यु भी छू कर गई लेकिन वे
तनिक भी न घबराये.
आज तक वीर सावरकर की चालीस से ज्यादा भविष्यवाणियां सत्य
बनी है
१. ताशकंद जाने से पहले वीर सावरकर ने लालबहादुर शास्त्री
को चेताया और कहा “शास्त्रीजी हम जीते हुए राष्ट्र है ,
रूस के प्रधान्मत्री को हमारे देश मे बुलाओ,
यदि आप ताशकंद जाओगे तो वापस नही आओगे.. और हमारे द्वारा
जीता भाग भी लुटा आओगे.. यही हाल वीर सावरकर के जीवन के साथ भी,
लालबहादुर शास्त्री की ह्त्या से मौत के सदमे के बाद,वीर सावरकर बिमार होते गये,
उन्होने कहा “अब देश गर्त मे चला गया, अब मुझे इस देश मे जीना नही है”
वीर सावरकर ने दवा लेने से इंकार कर दिया,
एक बार डाक्टर ने उन्हे चाय मे दवा मिला कर दी,
तो वीर सावरकर को पता चलने पर उन्होने चाय पीना भी बंद कर
दिया ,
और एक राष्ट्र का महानायक इच्छा मृत्यु (कहे तो आत्महत्या)
से चला गया.
वीर सावरकर की यह भविष्यवाणी भी सही निकली ……?????
उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई,
हिन्दू समाज उपनिषदों और गीता में वर्णित आत्मा की अमरता को
स्वीकार करता है । गीता में कहा गया है-
नैनं
छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं
क्लेदयन्तापो न शोषयति मारुत: ।
शस्त्रादि इसे न
काट पाते जला न सकता इसे हुताशन ।
सलिल प्रलेपन न
आर्द्र कर खा न सकता प्रबल प्रभंजन ।
वासांसि जीर्णानि
यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरो पराणि ।
तथा शरीराणि विहाय
जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।
जीर्ण वस्त्र को
जैसे तजकर नव परिधान ग्रहण करता नर ।
वैसे जर्जर
तन को तजकर धरता
देही नवल कलेवर ।
(जन्म, 28 मई 1883 · मृत्यु, फ़रवरी 26, 1966(1966-02-26) (उम्र 82) · मृत्यु का कारण. इच्छामृत्यु यूथेनेशिया ...
मृत्यु का कारण: इच्छामृत्यु यूथेनेशिया प्र...
मृत्यु: फ़रवरी 26, 1966 (उम्र 82); बम्बई, भारत
जन्म: 28 मई 1883; ग्राम भागुर, जिला नासिक बम्बई
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि वीर सावरकर ने खुद अपने लिए
इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति चुनी थी। उनका निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था। उससे एक महीने पहले से उन्होंने उपवास करना
शुरू कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि इसी उपवास के कारण उनका शरीर बेहद कमजोर होता
गया और फिर 82 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया।)
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