Sunday 29 March 2015

इस स्वतंत्रता संग्राम में तो ‘वन्देमातरम ‘ की लय से हिंदु –मुस्लिम एकता से अंग्रेजों का साम्राज्य थर्रा गया था.., उनका एक ही लक्ष्य था .., अन्रेजों का साम्राज्य उखड फेंकना.



बोलू: देखू,आज २९ मार्च है.., तू क्या देख रहा है..




(https://www.facebook.com/BapuKeTinaBandaraAbaBanaGayeHaiMastaKalandara?ref=bookmarks)
देखू: आज १८५७ के क्रातिकारी दिवस की ११४ वी साल गिरह है , देश में मुर्दानगी व सदमा का माहौल है 
बोलू: हाँ क्रिकेट के वर्ल्ड कप के स्पर्धा से बाहर हो जाने से मीडिया भी TRP की नुकसान से सदमा में है.., और राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास को जानने में देश में मुर्दानगी छाई है 
सुनू : हाँ एक खबर मैं भी सुन रहा हूं ..., एक नौटंकीवाल की जो जिसे पहले दमा की खांसी से लोकसभा चुनाव हारने पर सदमा लगा था, बाद में “ व्यस्था परिवर्तन के खांसी के नारे से “ भारी बहुमत प्राप्त कर अपने खांसी के इलाज का दावा कर, अब अपने वरिष्ठ गुरूओं को लात मार कर .., दमा के फार्मूले से दम लगाकर, कार्यकताओं से पार्टी के अंगों की दबान जुबाकर उनकों सदमा लगा दिया है...
देखू: हाँ में देख रहा था , २३ मार्च को 30 सालों बाद “तीन देश रत्नों” के बलिदान दिवस को प्रधानमंत्री से सभी पार्टियों के छुटभैये नेता श्रेय ले रहे थे..., जैसे हममें ही.. सरदार भगत सिंग का ही खून दौड़ रहा है...
बोलू : आज का दिन तो TRP वाला मीडिया भी भूल चुका है.., सोशल मीडिया को भी इसकी भनक नहीं लगी है
देखू: वर्ष 2005 में आमिर खान ने देश के 1857 का पहले स्वतंत्रता संग्राम और इसके नायक बनकर मंगल पांडे पर फिल्म बनाई.., नई पीढी ने मल्टीप्लेक्स में २०० रूपये के टिकट खरीदकर कहा, आमीर खान ने मंगल पांडे की क्या शानदार एक्टिंग की है, युवा पीढी ने मंगल पांडे के आदर्शो से ज्यादा आमीर खान तारीफ से उन्हें अरब पति बन दिया .., जबकि आज भी , मंगल पांडे के वंशज की परिस्थिती व घर जर्जर अवस्था में है.
बोलू: हां , २ साल बाद ही मंगल पांडे की १५० वीं पुण्य तिथी थी , देश वासियों को तो छोड़ों , आमीर खान ने भी ये जयन्ती कूड़ेदान में डाल दी.. , कोई प्रतिक्रया नहीं हुई
बोलू: यह तो देशवासियों को, वीर सावरकर का अहसान मानना चाहिए .., जिन्होंने प्रमाण सहित सिद्ध किया कि १८५७ का यह एक स्वातंत्रय समर था, जिनकी प्रेरणा से सरदार भगत सिंग,आजाद, सुभाषचन्द्र बोस जैसे लाखों क्रांतीकारियों को जन्म दिया
देखू : मैं साफ़-साफ़ देख रहा हूँ कि इसमे राजनीती के वोट बैंक है, सभी पार्टियों को गौ-ह्त्या प्रतिबन्ध से देश को विदेशी मुद्रा की आवक के साथ..., पार्टीयों को अपने, वोट बैंक का आधार कमजोर होने का डर लग रहा है , क्योंकी १८५७ की भारयीय आजादी के प्रथम बगुल का कारण था ''गाय'' !!
१८५७ में जब प्रथम बार भारत की आजादी के लिए बागी बलिया के अमर शहीद मंगल पाण्डेय बगुल फुकी थी ! उसका एक मात्र कारण था ...कारतूस में ''गाय'' की चर्बी !
जब इस महानायक को पता चला तो इस बात को लेकर 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने परेड ग्राउंड में ही अपने साथियों को विद्रोह के लिए ललकारा ! और अंग्रेज सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली मारकर ढेर कर दिया ! इसके बाद सामने आए लेफ्टिनेंट बॉब को भी मंगल पाण्डेय ने गोली से उड़ा दिया ! इस दौरान जब मंगल पाण्डेय अपनी बंदूक में कारतूस भर रहे थे, तो एक अंग्रेज अफसर ने उन पर गोली चलाई ! निशाना चूकने पर मंगल ने उसे भी तलवार से मौत के घाट उतार दिया !
इसके बाद अंग्रेज अफसर कर्नल वीलर ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया, लेकिन कोई सैनिक आगे नहीं आया ! अंत में कर्नल हिअर्सी के दबाव में मंगल पाण्डेय ने खुद को गोली मार ली ! घायल मंगल को अस्पताल भेजा गया ! इसके बाद उनका कोर्ट मार्शल हुआ और फांसी की सजा मुकर्रर की गई ! आठ अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी दे दी गई !
बोलू: आज ''गाय'' और इस महानायक के वंशज दोनों को स्तिथि बहुत ही दयनीय हैं ! जो गाय भारतीय आजादी की नीव बनी ! जिसके कारण आजादी की लड़ाई की बिगुल फुकी गयी ! आज उसी ''गाय'' की रक्षा करने वाला कोई नहीं हैं !
देखू: यह कैसा देश हैं ? कैसी हैं यहाँ की कानून व्यवस्था ? कैसे हैं यहाँ के लोग ?
हमें आजादी की लड़ाई की बुनियाद बनी ''गौ' माता की हत्या पर पूरे भारत वर्ष में रोक ..और इस महानायक के जन्म दिन को राष्ट्रीय क्रन्तिकारी दिवस घोषित करने की मांग को लेकर ..अपने अपने स्थानीय क्षेत्रो में कमेटी बनाकर ..जन चेतना के जरिए जन आंदोलन करने की जरूरत हैं, साथ में ...अदालत में इस मांग की लेकर याचिका दायर करने की जरूरत हैं !
देखू: हाँ इस स्वतंत्रता संग्राम में तो ‘वन्देमातरम ‘ की लय से हिंदु –मुस्लिम एकता से अंग्रेजों का साम्राज्य थर्रा गया था.., उनका एक ही लक्ष्य था .., अन्रेजों का साम्राज्य उखड फेंकना..
बोलू: मैं इन कुछ क्रांतीकारियों के नाम जनता को बताता हूँ ... नाना साहब पेशवा 2. तात्या टोपे 3. बाबु कुंवर सिंह 4. बहादुर शाह जफ़र
5. मंगल पाण्डेय 6. मौंलवी अहमद शाह 7. अजीमुल्ला खाँ 8. फ़कीरचंद जैन
9. लाला हुकुमचंद जैन 10. अमरचंद बांठिया 11. झवेर भाई पटेल
12. जोधा माणेक 13. बापू माणेक 14. भोजा माणेक 15. रेवा माणेक
16. रणमल माणेक 17. दीपा माणेक 18. सैयद अली 19. ठाकुर सूरजमल
20. गरबड़दास 21. मगनदास वाणिया 22. जेठा माधव 23. बापूगायकवाड़ 24. निहालचंद जवेरी25. तोरदान खान26. उदमीराम27. ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव28. तिलका माँझी 29. देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह
30. नरपति सिंह 31. वीर नारायण सिंह 32. नाहर सिंह 33. सआदत खाँ
34. सुरेन्द्र साय35. जगत सेठ राम जी दास गुड वाला36. ठाकुर रणमतसिंह
37. रंगो बापू जी38. भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर39. वासुदेव बलवंत फड़कें 40. मौलवी अहमदुल्ला
41. लाल जयदयाल 42. ठाकुर कुशाल सिंह 43. लाला मटोलचन्द44. रिचर्ड विलियम्स 45. पीर अली 46. वलीदाद खाँ 47. वारिस अली 48. अमर सिंह
49. बंसुरिया बाबा 50. गौड़ राजा शंकर शाह 51. जौधारा सिंह
52. राणा बेनी माधोसिंह 53. राजस्थान के क्रांतिकारी 54. वृन्दावन तिवारी
55 महाराणा बख्तावर सिंह 56 ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
सुनू : मैं , तो जनता का छुपा दर्द सुन रहा हूँ..,
देखू : मैं तो देख रहा हूं , जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी , भारतवर्ष में व्यापार करने के बहाने , धन बल, साम-दाम- दंड –भेद , जातिवाद, धर्मवाद, अलगाववाद से देश को अपने प्रभुत्व से २०० सालों तक गुलाम रखा ...वैसे ही विदेशी कंपनियों ने ६८ साल से आज तक , अपनी नीती से, देशी माफिया, नेताओं से देश में राज कर, देश को कर्ज से गर्त में डाल दिया है
देखू : यह सब देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो रहे है..., यह हमारा वार्तालाप सुनकर मैं आशा करता हूँ कि देशवासियों के रगों  में एक नए खून का संचार होगा
२९ मार्च १८५७ हुई कल की बात.., १९४७ के बाद के पुतले बने वोट बैंक से की सौगात से, सत्ता की बारात से..., देश में आज भी छाई है..विदेशी हाथ,साथ,विचार संस्कार के छतरी से काली रात.

Tuesday 24 March 2015

“सत्ता एक मेवा है , उसकी जय है और सत्य आत्महत्या कर रहा है “ और “मेरा संविधान महान, यहाँ हर माफिया पहलवान “ खादी की आड़ में गरीबों को. अफीमी नारों के खंजर से मारा जा रहा है...


“सत्ता एक मेवा है , उसकी जय है और सत्य आत्महत्या कर रहा है “ और “मेरा संविधान महान, यहाँ हर माफिया पहलवान “ खादी की आड़ में गरीबों को. अफीमी नारों के खंजर से मारा जा रहा है...
बापू को आधार बना कर आम जनता (देखू) उससे सवाल पर सवाल किये जा रही है , देश की बदहाल स्थिती पर उसे रोना आ रहा है, पर क्या करे वह मजबूर है।
बापू के तीन बंदर भी मस्ती मे चूर है वे भी बदले हालातो का पूरा आनन्द उठा रहे है। सौ मे नब्बे बैइमान फिर भी मेरा भारत महान के कहावत लोगो की रग रग मे ऐसे बस गइ है कि बापू के तीन बंदर बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुर मत सुनो कि मुख्य भूमिका मे आ गये है, बेचारे बन्दर करे तो क्या करे उन्हे बापू ने ही तो आदेश दिया था इसलिये वे बापू के कहे अनुसार चल रहे है, बापू के तीन बंदरो ने उनके आदेशों को सुना तभी तो देश की हालत इतनी बिगड गइ है।
बापू के तीन बंदर अब मस्त कलंदर बन गये है, उनके बीच देश के बदहाल के बारे मे चर्चाए तो होती है पर व इच्छा होने के बावजूद देश के परिस्थिती बदल नही सकते , देश की इस बदली हालत पर एक संवादात्मक रिपोर्ट ... ।
इस संवादात्मक कथानक के माध्यम से यहाँ उन कारणो का भी उल्लेख किया गया है, जिसमे कभी सोने की चिडिया कहा जाने वाला देश आज आज भ्रष्टाचारियों के हाथ की कठपुतली बंनकर रह गया है। वैसे यह देश का दुर्भाग्य ही रहा है जिसे राष्ट्रपिता पिता की झूठी उपाधि से नवाजते रहे है, उसने अहिसा के नाम पर देश के साथ छल किया, महात्मा गाधी ने अहिसा शब्द भ्रामक अर्थ कर... देश्वासियोको गुमराह किया। उन्होने शांति को हिंसा का पर्याय मानकर देशभक्त युवावो को कुंठित कर दिया । हत्यारो के समक्ष आत्मसमर्पण को उन्होने अहिसा के रूप मे महिमा-मंडित कर अपने नाम के आगे महात्मा शब्द लिखवा लिया , पर हकीकत यह है कि महात्मा गाधी ने भारत को एक “बुझदिल“ लोगो का देश बनाने का काम किया और यही उसी का नतीजा है आज देश मे भ्रष्टाचार, आतकवाद सिर चढ कर बोल रहा है.. और इसी देश का श्लोग्न बन गया है “मेरा संविधान महान, यहाँ हर माफिया पहलवान “ और सत्यमेव जयते की आड़ में , सत्ताखोर , चुनाव में धर्मवाद, अलगाववाद,जातिवाद, व घुसपैठीयों के आड़ में सट्टा लगाकर चूनाव जीतने पर... भ्रष्टाचार से चूना लगाकर
दूसरा श्लोगन बन गया है ... “सत्ता एक मेवा है , उसकी जय है और सत्य आत्महत्या कर रहा है
=============================================================================
आओं, पार्टी नहीं देश का पार्ट बने, “मैं देश के लिए बना हूँ””, देश की माटी बिकने नहीं दूंगा , “राष्ट्रवाद की खाद” से भारतमाता के वैभव से, हम देश को गौरव से भव्यशाली बनाएं...
इन., ‘बन्दरों” के कहने का सार यही है........????
चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो । नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसके अन्न और पानी का इस काया पर ऋण है । . जिस समीर का अतिथि बना यह आवारा जीवन है ।
जिसकी माटी में खेले, तन दर्पण-सा झलका है । उसी देश के लिए तुम्हारा रक्त नहीं छलका है ।
तवारीख के न्यायालय में तो तुम प्रतिवादी हो । नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
क्या आप अब भी इन बन्दरो को देखकर मूक दर्शक बनकर डूबते हुए देश को, अब भी देखते रहोगे...

Monday 23 March 2015

देश गर्त में जाएगा, जब तक देशवासी में.., यह सोच रहेगी कि.., भगत सिंग मेरे पडोस में पैदा हो..., यदि देशवासी.., “सोच बदले तो देश बदलेगा...,” “राष्ट्रवाद.., राष्ट्रवाद..., राष्ट्रवाद..,”



बोलू: अरे देखू.., आज, तू क्या देख रहा है,

,https://www.facebook.com/BapuKeTinaBandaraAbaBanaGayeHaiMastaKalandara


देखू : आज देश के नेता तीन शहीदों का बलिदान दिवस... ८४ सालों के बाद जोर शोर से मना रहें है,,
बोलू: लेकिन इन्हें तो आज तक देश के क्रान्तीकरियों को शहीद का दर्जा नहीं मिला.., इनके घर तो जर्जर अवस्था में हैं..और आज के सत्ताखोरों के स्वतंत्रता सेनानी के तमगे से इन क्रांतीकारियों की जमीनें हड़प कर उनका अस्तित्व समाप्त कर रहें हैं..
सूनू: हाँ आज की वर्तमान सरकारें भी इनकी ह्त्या के रहस्य की फाईलों को गुप्त रख, कह रहीं है..जनता को राज बताने पर विदेशी ताकतों से हमारे सम्बन्ध खराब होने से विदेशी सहायता न मिलने से देश की अर्थ व्यवस्था.., चौपट हो जायेगी
बोलू: हाँ..., यही ६८ सालों से सभी सरकारों की व्यथा है..
देखू: हाँ, मैं देख रहा हूँ, जहां खुदीराम बोस का मुजफ्‌फरपुर के बर्निंगघाट पर अंतिम संस्कार किया गया था लेकिन उस स्थल पर शौचालय बना दिया गया है. इसी तरह किंग्सफोर्ड को जिस स्थल पर बम मारा गया था उस स्थल पर मुर्गा काटने और बेचने का धंधा हो रहा है.
बोलू :यह शहीदों के प्रति घोर अपमान और अपराध है? देश के स्वाभिमान का घोर अपमान है...
अगर सरदार भगत सिह को तुम कब्र से उठाओं तो तुम उसे दुखी पाओगे, क्योंकि जिस आजादी के लिए बेचारे ने जान गवाई , वह आजादी दो कौड़ी की साबित हुई , तुम शहीदों को उठाओं कब्रों से और “पूछों”. क्या इसी आजादी के लिए तुम मरे थे , इतने प्रसन्न हुए थे ...??, इन राजनीतिज्ञों के हाथ में ताकत देने के लिए तुमने कुरबानी दी थी ..?????, तो भगत सिह छाती पीट-पीट कर रोयेगा कि हमें क्या पता था , जिंदगी का..., गांधी तो ज़िंदा थे – आजादी आई और आजादी आने के बाद गांधी छाती पीटने लगे थे , गांधी बार-बार कहते थे मेरी कोई सुनता नहीं , मैं खोटा सिक्का हो गया हूँ , मेरा कोई चलन नही है गांधी दुखी है, गांधी सोचते थे : एक सौ पच्चीस साल जीऊंगा , लेकिन आजादी के नौ महीने बाद उन्होंने कहा अब मेरी एक सौ पच्चीस साल जीने की कोइ इच्छा नहीं है , यह बड़ी हैरानी की बात है , शहीदों की चिताओं पर भले मेले भर रहे हों , लेकिन शहीदों के चिताओं के भीतर आंसू बह रहें हैं
सूनू: बात तूने पते की कही है,,,, जनता भी यही कह रही है,,,
बोलू: देश के शहीदो के अपमान से बने , गाँधी के नाम से, नेता, अपनी नंगई से बनें बेईमान, सत्ता को सट्टा के नाम से देश को भ्रष्टाचार से खोखला कर दिया, आज भी हमारे क्रंतिकारी शहीद भगतसिग, सुभाषचन्द्र बोस , चन्द्रशेखर से वीर सावरकर को भी देश्द्रोहीयों की काली सूची मे है...आज शहीदो के चिताओ पर राजनेता अपनी भ्रष्टाचार की, रोटी सेंककर, अपने को शहीदों से महान बनाने की हौड मे है.. देश का शहद चाटकर , आज देश के गली , मुहल्ले ,नगर , शहर, शिक्षा व अन्य संस्थानों पर ऐसे करोड़ों नाम हैं...,जिसे अपने नाम कर लिए है...??
देखू: हाँ.., ३० साल बाद, नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इस स्वाभिमान को जगाने, उनके स्मारक में जाकर जोशीला भाषण मैंने सूना
देखू: हाँ , सवेरे से प्रधानमंत्री की दौड़ में होड़ लगाने के लिए, सभी पार्टियों के छुटभैये नेता श्रेय ले रहे थे..., जैसे हममें ही.. सरदार भगत सिंग का ही खून दौड़ रहा है..., और तो और श्रदांजली देते समय अन्ना हजारे के आंसू छलक गए थे..
बोलू: लेकिन अन्ना हजारे तो गांधी वादी नेता है...., और गांधी ने तो अहिसा के भ्रामक प्रचार से देश के लोगों को गुलाम मानकर, जलियांवाला बाग़ के भीषण हत्याकांड निर्दोष लोगों की ह्त्या के प्रतिकार न करने से ही, जबकि लाला लाजपत राय की इस प्रतिरोध में मौत होने से..., क्रांतीकारियों में इस शासन को उखाड़ फेंकने का जूनून पैदा हो गया
सूनू: हाँ गांधीजी को तो अंग्रेजों से जलपान मिल रहा था.., इसलिए जलियांवाला बाग़ के भीषण हत्याकांड का विरोध नहीं किया था.., उन्होंने तो इन क्रांतीकारियों के कार्य की निंदा कर, अंग्रेजों को एक नया शक्तिबल देकर देशवासियों का दमन करने का पुख्ता इंतजाम कर दिया था
बोलू: हां.., वे तो.., अंग्रेजों के सेफ्टी वाल के लिए अंग्रेजों के सुरक्षा कवच बने.., जब भी क्रांतीकारियों का आन्दोलन, ज्वलंत होने लगता था.., तब गांधीजी से अहिंसा की बारिश करवाकर.., उनके मंसूबों पर पानी फेर देते थे
देखू: हाँ.., अब तो मैं देख रहा हूं ..., सेना की जमीन भी हड़प कर, सत्ता की बंदरबांट से आदर्श महलों व घोटालों के मकडजाल से जनता इसमें फंस कर ६८ सालों से उसका खून चूसा जा रहा है.., हमारी गांधी के स्वराज के पुतले की “स्वराज” का ढिंढोरा पीटकर, विदेशी हाथ, विदेशी, विदेशी साथ विदेशी संस्कार से देश में बेतहासा लूट पर छूट मिल रही है..
बोलू: देश के क्रांतीकारी तो खाते पीते घर के थे, उन्हें सत्ता का लोभ नहीं.., भारतमाता की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराना था.., और इसे राष्ट्रीय धर्म मानकर देश के लिए कुर्बानी से देश के उज्जवल भविष्य की कामना की अपेक्षाओं को, ६८ सालों से सत्ताखोरों ने देश को विदेशी कर्ज से देश को डुबो दिया है...
सूनू: अभी नेता तो भगत सिंग व अन्य क्रांतीकारियों से अपनी सत्ता की पुरी तल कर, जनता में जोश भरने का खेल, खेल रहे हैं..
देखू : देश की हालत देखकर मैं तो गंभीर हो गया हूँ, मेरे रोये खड़े हो गए हैं.., अब देश का क्या होगा
बोलू: देश गर्त में जाएगा, जब तक देशवासी में.., यह सोच रहेगी कि.., भगत सिंग मेरे पडोस में पैदा हो..., यदि देशवासी.., “सोच बदले तो देश बदलेगा...,” “राष्ट्रवाद.., राष्ट्रवाद..., राष्ट्रवाद..,” सावरकर, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद व अनन्य क्रांतीकारी जैसों से ...

राख तले चिंगारी ही आग का बीज होती है , जो बुझी आग को प्रज्ज्वलित कर सकती है..., ऐसे ही देश के विभिन्न छेत्रों की करोड़ों प्रतिभाए दम घुट कर मर रही हैं..,



१. यह कलाकृती.., मुम्बई के फूटपाथ के, गरीबी रेखा के झोपड़े में रहने वाले युवक की है.., जो गरीबी की वजह से स्कूल छोड़ देते है.., लेकिन जीवन में उनमें,जज्बे से हुन्नर अपने आप निर्माण होता है.., फुटपाथ ही उसकी जीवन के सृजन की कलाकृति व जीने का आनंद है.., कभी रंग बिरंगे चोक / चाँक से तो कभी , रंगोली के पावडर पर अपनी कलाकृति १ से डेढ़ घंटे में बना कर , राह चलते राहगीर, इस युवक को १ से २ रूपये का सिक्का देकर, वह युवक अपनी जीवन याचिका का निर्वाह करता है...
२ .बरसात के मौसम में तो इसकी मेहनत चंद घंटों में ही धुल जाती है.. , तब भी अपनी मेहनत धुलने का अफ़सोस नहीं करते हैं..., वह मौसम देखकर फिर से नये विषयों पर एक नयी कलाकृति का निर्माण करता है
३. .देश के प्रधानमंत्री से छुटमैय्य नेताओं ने, २३ मार्च को, ८४ साल बाद, जोर शोर से इन तीनों बलिदानियों की पूण्य तिथी मनाई, लेकिन इस युवक ने अपने जीवन के सजीव रंगों में इस कलाकृति में ऐसी जान फूंखी है.., जैसे लगता है कि ये क्रांतीकारी इसके दिल में बसा है...,जैसे यह कलाकृति सजीव होकर अभी बोल उठेगी..
४. कहते है, राख तले चिंगारी ही आग का बीज होती है , जो बुझी आग को प्रज्ज्वलित कर सकती है..., ऐसे ही देश के विभिन्न छेत्रों की करोड़ों प्रतिभाए दम घुट कर मर रही हैं.., और जुगाड़ पद्धती स अपना जीवन यापन कर रही है.., विदेशी भी इनकी प्रतिभाओं से अचंभित होकर, इनकी जुगाड़ पद्धती को अपना पेटेंट बना रही है.., यदि इन करोड़ों प्रतिभाओं को सम्मान दिया जाए तो ये, ही.., देश में बुझे राष्ट्रवाद को ज्वलंतशील बना सकती है..,
५. ६८ सालों से गरीबी उत्थान के लिए लाखों योजनाए बन चुकी हैं..., जो माफियाओं की भोजनाएं बनकर इनके हक़ की कमाई, देशी विदेशी बैंकों व आलीशान भवनों के निर्माण से कैद है..., ६८ साल के सत्तापरिवर्तन की यह मार्मिल तस्वीर है..
७. ६८ सालों से ही.., गरीबों के देशी हाथों की शक्ती को काटकर / छीनकर .., विदेशी हाथों से, भारत निर्माण से अच्छे दिनों का देशवासी इन्तजार कर रहें है..

Saturday 21 March 2015

बापू के तीन बंदर, अब बन गये है मस्त कलन्दर... देशवासियों.., हमें देश का दर्द कहकर.. खांसी आने वाली है..., कही जनता भी हमें खांसीवाल का बन्दर न समझे ...इसलिए कुछ समय रुके.., हम और बहुत कुछ आपसे कहेंगें...



बोलू: अबे देखू , तू क्या देख रहा है,,,
देखू : अरे दिल्ली में बड़ा “केमिकल लोचा चल रहा है..., इन बन्दरों ने हमें भी पछाड़ दिया है.., सत्ता की बेशर्मी में, बापू की ह्त्या कर दी है.. 
बोलू : अरे, बापू की ह्त्या तो नथूराम गोडसे ने १९४८ में ही कर दी थी..??. 
देखू : नहीं, बापू के विचारों की ह्त्या हो गयी है .., पहिले यह “आपू” बन्दर, अपने को बापू का बन्दर कहता था..., अब लंगूर बनकर अपने विरोधी बंदरों को भगा रहा है...
बोलू : ये बन्दर, असल में बन्दर हैं ही, नहीं हैं..., राष्ट्रवादी भी नही हैं..., इनमे सत्ता के भोगवाद का जूनून है..
ये सत्ता हथियाने के खेल में, बापू के बन्दर के खेल में, बापू के साथ हमें भी बदनाम कर रहें हैं..., इनमे विदेशी धन के खून से बन्दरबाज के खेल से.., देश, विदेश के विभिन्न विचारों के लोगों का समूह है..., इन्होने, इस खेल में रंग भरने के लिए, महाराष्ट्र के ईमानदार गांधीवादी अन्ना को मदारी के रूप में हाजिर कर.., बंदरों की “आपू” नीती से “अनशन” सीरियल की फिल्म से, मीडिया भी TRP से मालामाल हो गयी.., मदारी के साथ बन्दर भी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर छा गये थे .., विदेशी शक्तियाँ भी देश की जनता को भरमाकर अपना धन झोंक कर, इस नीती से “जोंक” बनकर देश का खून चूसने का खेल, खेल रही थी
सूनू: हाँ मैंने सूना था, जब मदारी बने, अन्ना के अनशन में , ये बन्दर उत्पात मचाते हुए कहने लगे “ अब यह आन्दोलन (खेल), मदारी का बलिदान माँगता है.., ताकि इन बंदरों को अपने कृत्य में बल मिले
बोलू: हाँ तब यह मदारी भी, अपना खेल छोड़कर कहने लगा, मेरे नाम से इन बंदरों ने अपना खेल.., खेल लिया है...,
सूनू: हाँ, मैं सून रहा था.., इसके बाद, अन्ना इन बंदरों से कह रहें थे, मुझे मुक्त कर.., आप गाँव –गाँव घूम के अहिंसा की विचारधारा से जनता में स्वदेशी जागरण से एक क्रांती लाओ...
बोलू: लेकिने इनका मकसद तो शोर्ट कट से, विदेशी बटन से, सत्ता की शर्ट पहनने की उतावली से अन्ना को दरकिनार कर .., राजनीती में “बाप” बनने के खेल में अपने “आप” घुस गये
बोलू: हाँ. “आपू बंदरों” में तो, पहिले चुनाव से ही “सापू खेल” तो चल रहा था. सत्ता की बन्दरबाँट में पहिले चुनाव में सर्प युद्ध चल रहा था.., अपने को बंदरों का बन्ना बनने के लिए बिन्नी के जहर से वे सब घायल हो गये थे ..., बाद में “आपू बंदरों ने, जिनके आश्रय से उन्हें मैदान मिला था.., वह कूद मार रहें थे था.., उन पर धौस जमाने के धाँसू बनने के खेल से मैदान को रोदने के रूद्र रूप से .., कई वरिष्ठ पदाधिकारियों को यह खेल रास न आने से.., वे तो बापू की छवी बिगड़ने के डर से इस बन्दर पार्टी को छोड़कर चले गये
सुनूँ: हाँ मैं भी सून रहा हूँ, हाल के चुनाव जीतने के बाद एक वरिष्ठ बन्दर जो बार-बार, चुनाव के पहिले व शपथ ग्रहण के समय, और बंगलूरू में भी कह रहा था “'इंसान का इंसान से हो भाईचार..,यही पैगाम हमारा..,,का नारा की शराफत का खेल से जनता को भरमा रहा था
बोलू: लेकिन यह तो लंगूर निकला , अब सत्ता के अंगूर खाने में आबाद होने से, लोमड़ी के खेल को भी पछाड़ दिया है..., पहिले कहता था हमें सत्ता के अंगूर नही.., हम जनता को भ्रष्टाचार के जंजीर से मुक्त करेंगे.., सभी को मुफ्त बिजली पानी वाई-फाई.. देंगें
सूनू : हाँ लोग कह रहे थे पहिले जन लोकपाल के नारों से जनता को भरमाया था, और राष्ट्रीय गद्दी पाने की ललक से, सत्ता छोड़ने के मलाल से.., इस उल्टी गुलांटी मारने के लिए जनता की अदालत में माफी माँगी थी.. और जनता ने माफ़ भी कर दिया था , अब चुनाव जीतने के बाद, अपनी बंदरों की अदालत में ही “लोकपाल” नीती को नकार कर ...ठोकपाल नीती से, अब लंगूर बना.., अब कह रहा है मुझे किसी भी बन्दर से नहीं है, भाईचारा...मेरा और केवल, मेरा “सर्वोसर्वा सत्ता” का नारा
सूनू: लोग कह रहे बंदरों में उत्पात है.., अभी तो इस आहट से जनता आहत है..,
देखू: हाँ, दुबारा सत्ता में आने के बाद तुरंत अन्ना ने आशीर्वाद तो दे दिया.., भूमी अधिग्रहण बिल के नए खेल में को शुरू करने में, दुबारा मदारी बनने के चक्कर में , “आप के साथ” हाथ मिलाया ..., लेकिन अब एक महीने के भीतर सत्ता को अंगूरी से लंगूरी के असली रंग से अन्ना भी समझ रहे है कि मेरे इस पिछले खेल से मेरी क़द्र इस “आपू...सापू...पार्टी” अपने को मेरा बापू बनकर अब मेरी एक आना क़द्र भी नहीं रह गयी है.., अब दिल्ली की राजनीती देखकर अन्ना का दिल दहल गया है.., जनता भी दिल थाम्बे बैठी है..., कि, क्या यह नौटंकी के कुर्सी के चार खम्बे सही साबित ५ साल तक रहेंगे.
बोलू: देशवासियों.., हमें देश का दर्द कहकर.. खांसी आने वाली है..., कही जनता भी हमें खांसीवाल का बन्दर न समझे ...इसलिए कुछ समय रुके.., हम और बहुत कुछ आपसे कहेंगें... 

Tuesday 17 March 2015



अन्ना तेरे  त्रिशूल के हम दो फूल, अब जनता की आँखों में झोकेंगे धूल..
क्या फिर से..?? अन्ना को गन्ना बनाकर चूसने का खेल बनेगा ,
क्या..!!!, त्रिशूल के, “त्रिनेत्र” को गिराकर.., क्या अब, अपने चाटुकारों के चौखट से अपना मुखौटा बचाए रखेंगे .., नौटन्कीवाल..!!!!....????.

      कहते है..,  राजनीती में सफल व्यक्ती वही होता है जो विरोधियों को उनके ही हथियार से ख़त्म कर दे.. अब चुनावी जीत के बाद.., करंजीवाल तो, अपने ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं  से संशयित हैं कि कहीं तख्ता पलट न हो जाए.., इसलिए कुर्सी के चारों पावों को पकड़ कर , कही  खरोच न आ जाये.., इसलिए पार्टी के चारों लोकतंत्र के खम्भों  की कमान पकड़कर सर्वोसर्वा के खेल में..., कोई और पार्टी का  बन्ना (दुल्हा-राजा) न बन जाए इससे भयभीत हैं...,  

याद रहे पिछले चुनाव में बिन्नी ने करंजीवाल को बन्ना बनने के राह  में जो रोड़े बनाए,  आज भी उसका दर्द, उन्हें  कोड़े की तरह सता  रहा है...   

      पार्टी के संस्थापक, संविधान निर्माता..,जो बुनियाद से भवन तक बनाकर चले  गए थे..., जो छोड़कर गए उनसे नौटन्कीवाल खुश थे लेकिन जो छोड़ने को तैयार नहीं थे उन्हें जलील कर , आरोपी बनाकर निकाल दिया.
करंजीवाल के दमन से तो अंजलि दामनिया ने दामन छोड़ते हुए अश्रुपूर्वक विदाई देते हुए कहा..ऐसी राजनीती से तो मेरा  ह्रदय कांप गया है..., अब दुबारा  मैं राजनीती में  नहीं आऊंगी     

३  कहते हो जब सत्ता बंदरो के हाथ आती है... और बंदरों के हाथ उस्तरा आता है तो वे आपस में सत्ता के वर्चस्व में , बन्दर बांट में आपस में भिड़ंत कर उत्पात मचाते हैं,,, और मोहल्ले वाले खौफ में रहते हैं  

४  अब “आप पार्टी” बनाम केजरीवाल की “मैं पार्टी..,”.चुनाव व शपथ  ग्रहण के समय  “'इंसान का इंसान से हो भाईचार..,यही पैगाम हमारा..,,का नारा ,  इसी भेड़िये  की खाल में, राजनीती के भेद को जानकर, अपने को छद्म पैगम्बर के खेल में, वोट बैंक की तुष्टीकरण से मुस्लिमों द्वारा अपने को नेता मान लेने का , व  कृष्ण की छद्म भूमिका से मोदी के सत्ता  का रथ कैसे रोका जाता है... यह तोड़  केजरीवाल ने जाना

५  जामा मस्जिद के इमाम बुखारी ने, जो हमेशा अपने को मुस्लिमों का पैगम्बर मानकर हर चुनाव में, फतवे जारी करते थे..,, और विपक्ष भी घबराए रहता था . जब इस बार  इमाम बुखारी ने   “आप पार्टी” को वोट देने के फतवे का ऐलान किया तो , केजरीवाल ने छुपे खाल से इमाम के फतवे को नकार कर,  अपने को छद्म मुस्लिम पैगम्बर के झांसे से वाह-वाही लूटी , हिन्दू-मुस्लिम एकता को  वोटों से बरगला कर , ६८ सालों की धर्मनिरपेक्षता की छद्म राजनीती के खेल में, इस  खेल को जीत कर ..., उत्तरप्रदेश  के मुलायम-मायावती  और बिहार के  लालू –नीतीश  जैसे  नेताओं को भी मात देकर  अचंभित कर दिया

६  ६८ सालों से , देश के राजनेताओं कि  इस तरह की  राजनीती  को नौटंकीवाल ने  पिद्दी साबित कर, इस नए फ़ॉर्मूले से  वे भी अब  असमंजस में है.., कैसे हमारे मुद्दे का अपहरण कर, जनता को बेवकूफ बनाकर, हिन्दू-मुस्लिम एकता के छद्म बैंड - बाजे से .., राजनीती का छुछुंदर अब सता से मस्त कलंदर बन गया है...,

७   सत्ता के , करंजीवाल को अब पता है कि STING OPERATION तो कच्चे धागों  का खेल है, इससे आज की राजनीती में कानूनी दाग नहीं लगता है..., उनके इस घिनौने कृत्य  को सैवेधानिक चुनौती देने से.., परिणाम आने में..,  क़ानून में देर भी है..., और अंधेर भी है..., लालू घोटाला चालीसा से A जी से z जी के कानूनी विचाराधीन गुनहगार, आज भी VIP सुरक्षा से लैस हैं...

८  जनता तो इस खेल में ६८ सालों से  अँधेरे  में है.., जनता तो  इस बात को ६८ सालों से भूली हुई  है..,  और न्याय की देरी से..,  इसमें और अन्धकार का समावेश होते रहता  है  ..

९  अंधेरी गुफा में, कितने भी प्रकार का  अन्धेरा रखो, तो भी .., किसी को पता नहीं चलता है..., और सत्ता परिवर्तन के बाद ही  जातिवाद, धर्मवाद, अलगाववाद के इस  गुफा के अँधेरे से...,  देश...,  विदेशी हाथों के चुंगल से गर्त में चला गया है..

१०  यही मेरे देश का दर्द है.., इस दर्द का राज व मर्ज, आज तक  देशवासी  समझ नहीं पाये  है..,

११  मुस्लिम उम्मीदवारों से खार खाए बैठे, नौटंकीवाल के जीवन में बहार है.., पिछले चुनावी सत्ता में मुख्यमंत्री पद  “भगौड़ेवाल” से  सत्ता की छटपहाट में मुस्लिम वोट बैंक हड़पने के ख्वाब से, मुस्लिमों को उम्मेदवारी देने  से कहीं अपने द्वार बंद न हो जाएँ , इस  के डर से, पार्टी में बगावत होने से, दावत खाने के खेल में  खलल था.. जो सत्ता के करंजीवाल ने जाना  

१२  याद रहे पिछले चुनाव  में आप पार्टी के २८ विधायक चुनाव जीतने से सत्ता में आने की छटपहाट से ,, आप पार्टी के गोपाल राय व अन्य लोग  , दिसंबर २०१२ में “राणेगण सिद्धी गाँव ” में अन्ना अनशन के वक्त, अन्ना का आशीर्वाद लेने गए थे ..., तब अन्ना ने उन्हें  राणेगण सिद्धी से लताड़ कर बाहर कर दिया था..,
१३   फरवरी २०१५  में , दिल्ली में,  करंजीवाल तो अन्ना  के संग , सत्ता को  कचहरी बनाने के खेल में, कचौरी खाने के खेल में  जुटे है.., अब समय ही बताएगा कि करंजीवाल, अन्ना को दुबारा गन्नाकर बनाकर, चूसकर अपना भविष्य उज्जवल करेंगे..
या इस खेल में अन्ना..., पिछले अनशन की तरह मोहरा बन कर रह जायेंगे...,

१५  कभी..,  अन्ना ने  मोदी पर निशानासाधा था ,और कहा था, ममता बेनर्जी के लिए प्रचार करेंगे.., दिल्ली लोकसभा चुनाव में घोटालों की महारानी ममता की ममता से कायल होकर उनके समर्थन में  अन्ना ने कहा, ‘हमें उनमें आशा की किरण दिखाई देती है. यदि लोग ऐसे नेताओं का समर्थन करने लगें तो देश को बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.उन्होंने कहा कि ममता चप्पल और एक साधारण सी साड़ी पहनती हैं और बतौर मुख्यमंत्री वेतन भी नहीं लेतीं।  और एक सभा लेने की घोषणा की... लेकिन कम संखया में  लोगों को देखकर , सभा में आने से यह कहकर मन  कर दिया कि मेरी  सभा में लाख लोग आयेंगे तो ही,  मैं आऊँगा ..., ममता ने  ठगी-ठगी, महसूस कर,  हाथ मलकर, सभा को निरस्त करने का आदेश दे दिया...


१६  पहले , अन्ना  कहते थे कि  मेरा धन तो  केजरीवाल ने डकार दिया...,क्या अब, अन्ना  पुन:  करंजीवाल के समर्थेन से भीड़ का फंडा बनाकर.., क्या एक बार फिर साबित करेंगे कि भ्रमवाली भीड़ से ही मेरी ख्याती है... और राजनीती के बिना  जीवन का कोई मोल नही है ...

Monday 16 March 2015



एक पुतले ने…??? दूसरे पुतले को माला डाली…??????????? – दूसरा पुतला जागा और पहला पुतला, उल्टे पाँव, सरपट दौडा… ???
१ देश तो राष्ट्रवाद की भावना भूलकर , पुतले की आड़ में, देश में मुर्दानगी छायी है...,जिन्दा पुतला.., मरे पुतले की आड़ में भ्रष्टाचारी बनकर देश की खान खदान,ईमान बेच खाता है...,
२. जनता को पता चलने पर, इन नौकरशाही ,सत्ताशाहीयों पर कार्यवाही करने के लिए कानूनशाही भी अपने पुतला चाल से फाईलों को हिलाने में, न्याय पर, तारीख पर, तारीख देकर.. इनकी तारीफ़ कर,इनके कसीदे पढ़कर, , इनके फाईलों में धूल फांखकर..., क़ानून के दीमक (वकील), अपना दिमाग लगाकर, इन फाइलों को चट कर , क़ानून को फेल कर देते हैं,, और जीवंत पुतला ताल ठोककर, भ्रष्टाचार का एक नया किला बनाकर..., आगे वे, अपना ही पुतला, गली गली चौराहे पर लगाकर..., देश का गौरव कह ..., इतिहास में अमर हो जाता हैं..., और इस लुंज-पूंज शाही से, देश के भविष्य के गर्भ में और भी भीमकाय पुतलों का निर्माण होकर, देश के संसाधनों पर अतिक्रमण होते रहेगा
क्योंकि १९४७ से आज तक इनके लिए हथकड़ी से लेकर जेल नहीं बनी है.., और साबूत छूटकर, जीते जी लोकतंत्र के ताबूत में एक नई कील ठोककर, देश के वर्तमान को इतिहास बना देते हैं...,
३. मेरे देशवासियों, देश की हर योजनाओ पर ध्यान रखना… , आगे योजनाओ के पाठयक्रम से क्या-क्या नये घोटालो का उदघाटन होगा…??? भ्रष्टाचार से योजनाए, शिलान्यास से सत्यानास की ओर जा रही है, हजारो योजनाए धूल चाट रही है..?? छोटी योजनाए कागज पर कब आयी .. कब गयी.. जनता को पता भी नही चलता है..???, योजनाओ के नाम से, यह सिर्फ भ्रष्टाचार का पाठयक्रम बन गया है..?? इसमे अच्छे नम्बर पाने वालो के लिए, राजनिती की उँची मंजिल की एक नई सीढी अपने आप तैयार होती है…???
४ आज, गाँधी शब्द और इमानदार पुतले (मुन्ना मोहन), की आड मे, नीव में, बैइमान व विदेशी बैंक, धनवान बन रहे हैं..???
५. राजीव गाँधी कहते थे गरीबों की योजनाओ का पैसा 15% तक, जनता तक पहुँचता है, राहुल गाँधी कहते है.. 5% तक ..???
अभी हाल मे सुप्रीम कोर्ट ने ताल ठोक कर कहा कहा है कि गरीब लोगों के नाम से बनी योजनाओ सिर्फ 1% गरीबों तक पहुँचती है..???
क्या मेरा देश…?? भ्रष्टाचार से लूटा…. या मेरा देश डूबा…???

६. दोस्तों गांधी जयन्ती तो इनके लिए प्रेरक दिवस की आड़ में, लूट दिवस की, भ्रष्टाचार से लूट की होली, दिवाली है क्योंकि इसी दिन ही तो गांधी की तूती बोली है......
गांधी के आदर्श से, अपने को गांधी के उपनाम (इंदिरा से राहुल गांधी) से, अपना भाग्य कह, उनका वंश वादी कहकर , वंशवाद के दंश से...., लूट का अधिकृत लाइसेंस मानकर, देश को, एक पुतले की आड़ में नेता, कैसे भ्रष्टाचार से देश को २१वी शताब्दी में ले जाने के नारों से, लूट के महासमंदर से,कर्ज से देश को १८ वी शताब्दी से भी बेकार स्तिथी में धकेल दिया है......कि वर्तमान सरकार को विदेशी झोलियों के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है..

Friday 13 March 2015



असली हीरा तो, कोयले की खान से मिलता है, लेकिन कांग्रेस का “हीरा” देश के “कोयले की खान के साथ, कोयले की फाईल ” भी खा गया....
आज, देश के राष्ट्रीय राजनीती में कोर्ट के सम्मन से देश के प्रधानमंत्री द्वारा भले आज के कांग्रेस पार्टी द्वारा सम्मान का विषय हो..., एक प्रधानमंत्री के नाम से देश पर कलंक है..., क्योंकि इस प्रधानमंत्री ने भष्टाचार के रंग से “रंक माफिया” को राजा बना दिया.., “कर लो दुनिया राजनेताओं को” जिस किसी भी माफिया ने पहचाना, वह मीडिया, रियल एस्टेट, खान खदान पर काबिज हो कर राष्ट्रनीती का निर्धारण कर रहा था

१९४७ से अब तक का इतिहास देखे तो विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा बेतहासा लूट के बावजूद , १९४७ में हमारा एक रूपया , एक डौलर के बराबर था , इसमें १९४७ से ही भष्टाचार की झालर (बल्बों की लड़ी ) में जातिवाद , भाषावाद, अलगाववाद, आरक्षण, घुसपैठ व प्रांतवाद की रौशनी से, आज रूपये को सठिया कर माफियाओं को सेठीया बना दिया है.., और हम आज, ऐसी कर्ज की शताब्दी में है.... जहां, हिन्दुस्थान अपने १० हजार साल से ज्यादा के इतिहास में भी नही था ...

१९९१ में कंगाली के ईलाज के लिए प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने एक डॉक्टर मनमोहन सिंग की, कांग्रेस ने इस “हीरे” की खोज की, जिसने वित्त मंत्री बनते ही देश की मुद्रा का २०% अवमूल्यन कर , विदेशी निवेशकों ( यूं कहे आक्रमणकारियों) को भरमाकर , देशी व विदेशी माफियाओं की मिली भगत से रूपये को सठिया कर , “कर्ज के कोढ़” से देश को कंगाल कर दिया है.. अब इस “कर्ज के कोढ़” को भारत निर्माण के नारे से देशवासियों को भरमाया जा रहा है
असली हीरा तो कोयले की खान से मिलता है, लेकिन कांग्रेस का “हीरा” देश का “कोयले की खान के साथ कोयले की फाईल ” भी खा गया
प्रधानमंत्री ने “भ्रष्टाचारियों” की “परतंत्रता के मंत्र” से..., “कोयले’ से देश को फूँका
कांग्रेस “कोयल” की आवाज में... हो रहा “भारत निर्माण” का गाना गा रही है ....
“भारत निर्माण” के नारे से...., हो रहा है, “भ्रष्टाचारियों का कल्याण”

जवाहर लाल नेहरू ने भारत की खोज की किताब लिखाकर, अय्याशी में शांती का मक्खन लगाकर , देश के टुकडे कर नोबल पुरूस्कार के आकांक्षा से सेना को नो बल कर , जवानों के हौसले पस्त कर दिए ...
गरीबी हटाओ के नारे से देश में आतंक बढाओ और सत्ता सुरक्षित रखो के सिद्धांत से , इंदिरा गांधी की मौत पर पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बेबाक कहा “इंदिरा गांधी अपने कर्मों से मारी गई है’
वहीं..., राजीव गांधी ने “मेरा भारत महान” के नारे से देश को २१ वी शताब्दी में ले जाने के झांसे से, देश का खजाना लुटा कर , तमिल आतंकवादियों के पंगे से मौत का, अपनी माँ, इंदिरा गांधी का इतिहास दुहराया....,

Thursday 12 March 2015



१. कहते हैं, जहां अपराध बढवाना हो... तो, वहां पुलिस थाना खुलवा दो..., 
अपराधों के संरक्षण में माफियाओं के गुनाहों का इल्जाम में, जनता को फसां कर उसकी गाढ़ी कमाई पर हाथ मारों, जनता को कानूनी जाल में उलझाकर घर बार उजाड़ दो...
२. आज हर देशवासी पुलिस थाने में शिकायत करने पर, वहां उसे ऐसा लगता है कि वह ही मुजरिम है..,,घंटों तक इन्तजार, पुलिस थाने में पुलिसिया व्यवहार से वह चकित रहता है ..., जनता की सेवा करने के लिए नियुक्त अधिकारी भी अपने काम का अहसान दिखाता है..
३. युवाओं में जोश का आपा दिखाकर.., युवा विकास का सपना दिखाकर, वोट पाकर, जनता पर चोट कर, अब मुख्य मंत्री ने भ्रष्टाचार एक सुनहरा सपना के ख्वाब में , देवेन्द्र फडनवीस ...., विपक्षीयों पर हौव्वा बनने की बजाए, फडनवीस, बीस से चार सौ बीस बनकर , भ्रष्टाचार से मंत्रालय व सचिवालय को इंद्र सभा बना रहें हैं....
४. महाप्रदेश की महामारी,, हफ्ते से हांफता, भ्रष्टाचार के कोड़े से लहूलूहान, पानसरे के पान में माफियाओं की सुपारी, स्वाइन फ्लू के फ्लो से भ्रष्टाचारियो के फ्लोर में चमक, यही है सत्ता का दीमक..., टोल चुंगी कर माफ़ करने के वादे..,, को पूरा न करने के विरोध करने पर माकपा के वरिष्ठ नेता की ह्त्या होने पर.., मंत्रालय की सुराख (खिड़की) से हत्यारों का सुराग देने वाले को ५ लाख रूपये के इनाम का आलाप.., अब चमका रहें है अपने सत्ता का चिराग..
५. महाराष्ट्र के देव, मुख्यमंत्री इन्द्र की इन्द्र सभा में म्याऊं – म्याऊं के बिल्ली डांस से चूहों द्वारा २२ करोड़ के नशे का व्यापार से मंत्रालय बना मूत्रालय.. सचिवालय में काम ठप्प कर, अब, शौचालय बना दिया है..
६. मुम्बई पुलिस में वाहनों में शराब की बोतल व ड्रग्स ले जाते हुए पुलिस कर्मचारियों को दबोचने के बावजूद फिर से बहाली हो जाती है..., और तो और कई पुलिस अधिकारी “ड्रग्स” बेचते भी पकड़े गए हैं
७. रेव पार्टीयाँ भी पुलिस की देखरेख में आयोजित व कई दफा पुलिस अधिकारीयों द्वारा ड्रग्स की सप्लाई की घटनाए आने के बावजूद मामला रफा दफा हो गया है...
वही एम्बुलेंस में भी जो ड्रग्स ‘वाहन” का एक सुरक्षित माध्यम है.., ..जिसका काम लोगों को मौत से बचाना है
और वे मौत का सामन ले जाती है


८. . अब, कानून पास करने से पहले यह सोचना होगा कि कानून का पालन करने वाली एजेंसियों का हश्र इस समाज में क्या है? आपकी पुलिस का अपराधीकरण ऐसा है कि थानों में क्राइम अधिक और बाहर कम है। देश का कोई कानून नहीं है, जिसका इस्तेमाल पुलिस धन उगाही के लिए न कर रही हो। अपराधियों को संरक्षण देना पुलिस का मुख्य काम हो गया है। थाने अपराधियों की मैनुफैक्चरिंग की फैक्ट्री बन गए हैं। इसका सबसे अच्छा प्रमाण यह है कि पुलिस थानों से जो गांव जितने दूर-दराज हैं, वहां कोई अपराध नहीं है। जहां लोगों ने पुलिस की शक्ल भी नहीं देखी है, वहां घर में ताले नहीं लगाने पड़ते। वहां जघन्य अपराध नहीं होते या नगण्य होते हैं। जिस शहर में जितनी पुलिस है और उसके करीब जितने गांव-बस्तियां हैं, उनमें उतना ही अपराध है। जहां भी अपराध बढ़ाना हो वहां पुलिस थाना बना दीजिए तुरंत फैक्ट्री चालू हो जाएगी। इसलिए सबसे पहले पुलिस को सुधारें उसके बाद ही कानून सुधारिए। हमारी अदालतों का भी हाल यही है। वहां ज्यादातर वकील लोगों को नोच लेते हैं। अपराधी और जज का सीधा ताल्लुक होना चाहिए। न्याय के साथ जब तक वकीलों की दलाली और मोहताजी जुड़ी रहेगी, कुछ नहीं होगा। हमारी सरकार को डेढ़ सौ साल बनाई गई अदालती प्रक्रियाओं को बदलने की गरज नहीं है। अदालतों में जन भाषा का कोई स्थान नहीं है। अंग्रेजों के स्पेलिंग मिस्टेक को ठीक करने तक की हिम्मत सरकार में नहीं है। जब आपको सत्ता परिवर्तित हिन्दुस्तान (जिसे सरकार आजाद इंडिया कह कर झूम रही है?) में प्रशासन चलाने की तहजीब ही नहीं आई तो फिर कानून पर कानून बनाते जाइए, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे में यह सोचना होगा कि हर मर्ज की दवा कानून पास करना नहीं है। पहले कानून के रखवालों को उस लायक बनाना होगा। हमारी पुलिस और न्यायिक संस्थाएं दोनों ही जनतंत्र की अपेक्षाओं के लायक नहीं हैं। उसमें भारी सुधार की दरकार है। उसके बाद ही कोई कानूनी बदलाव पर सोचना चाहिए
९. बिहार में भी लालू राज में, जब जनता उनसे रोड न होने की फ़रियाद करती थी तो वे मजाकिया लहजे में कहते थे ..., तुन्हारे गांव तक तो रोड, मैं कल ही बनवा दूं..., इससे तुम्हारे लोगों को एक नुकसान होगा, पुलिस की गाड़ी रोज आकर , तुम्हे तंग करेगी...,, अभी तो तुम लोग सुखी हो...,
१०. दोस्तों.., १९४७ के गुलाम हिन्दुस्थान में जनता पुलिस के अत्याचार से इतनी पीड़ित नहीं थी जितनी आज है..
गुलामी के “ब्रांड” से जनता..., सुखी इंसान से पर्यावरण का सम्मान था
११. सत्ता परिवर्तन का , इंडिया, भ्रष्टाचार. माफिया, पुलिस क़ानूनशाही के गढजोड़ से, अब जनता लूट रही है.
१२. उत्तरप्रदेश में तो एक नये आविष्कार से नेताओं के हौसले की बुलंदी से, वोट बैंक से उतारूप्रदेश, लटकाऊ प्रदेश से चढ़ाऊ प्रदेश का उदभव कर, एक नए दौर की शुरूवात की..,
मुख्यमंत्री का आदेश, प्रदेश के युवकों करों सेक्स योगा, पुलिस के जवानों जेल में भ्रष्टाचार व बलात्कार के योग से बनाओं अपनी योग्यता... 

Tuesday 10 March 2015



चेतो.., मोदी सरकार.., अब कश्मीर को शेख अब्दुल्ला युग की सरकार मत बनाओं.., मैं लाल बहादुर शास्त्री बोल रहा हूँ , (आओं खेले स्वदेशी रंग .., लालबहादुर शास्त्री  और वीर सावरकर के विचारों के संग- भाग-२
)
१.       मोदीजी आपने तो ५६ इंच का सीना दिखाकर, चुनाव जीता.., जबकि मेरे शरीर की लम्बाई भी ५६ इंच नहीं थी..., आप तो चाय बेचकर.., अपने जीवन की गरीबी दिखाकर,  प्रधानमंत्री बने.., मेरी गरीबी को तो, मैं हिन्दुस्तान की गरीबी से  देखता था.., मेरे पास तो चाय पीने के भी पैसे नहीं थे.., और प्रधानमंत्री बनने के बाद मेरा एक ध्येय था.., देश के गरीबों में विदेशी खून के बजाय, “जय जवान-जय किसान” के स्वाभिमानी देशी खून से देश में श्वेत क्रांती से, दूध की नदियाँ बहाकर देशवासियों को रिष्ट – पुष्ट बनाकर.., जवानों व किसानों के जज्बे से हमारा देश अंतर्राष्टीय पटल पर छा  गया ...
२.       मुझे तो पकिस्तान के चंगेज खान..,  जनरल अयूब खान ने, हमारे देश में आक्रमण करते हुए   कहा था..,  यह चार फूट कद का , बच्चे की तरह दिखने व बच्चे की आवाज वाला, प्रधानमंत्री क्या यह लड़ाई लड़ पाएगा..., तब इस युद्ध की चुनौती स्वीकारते हुए मैंने कहा “मेरी काया की लम्बाई से उसकी नींव, जमीन में कई गुना गहरी है”  
३.       मोदीजी आप तो अपना ५६ इंच का सीना कह कर दंभ भरते हो..., मैंने जब से मैंने, होश संभाला. मैं तो हर देशवासियों में “५६ इंच का दिल” देखता था.., और इस दिल में २०० सालों से , विदेशी खून का विष डाला दिखता है..., सत्ता परिवर्तन के बाद में भी इसी खून के खेल से, देश के टुकड़े कर, विदेशी खून में संविधान से जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद का खून डालकर, आज भी राष्ट्र इसी खून से त्रस्त है.., और यह देशवासियों के दिमाग में इतने  गहन रूप से भर दिया कि आज भी  विदेशी भाषा.., आचार .., विचार.. के बिना  देशवासी रोटी नहीं  खा सकता है..
४.       प्रधानमंत्री बनने के बाद, देश की नेहरू की गन्दगी दूर किए बिना.., देश में राष्ट्रवादी धारा का प्रवाह नहीं होगा यह मेरा प्रबल मत था.., शेख अब्दुल्ला द्वारा “द्विराष्ट्रवाद के नेहरू खेल” का मुझे अच्छी तरह  आभान था.., इसलिए,शेख अब्दुल्ला की शेखी मैंने उनको गद्दी से उतारकर.., कांग्रेसी SNAKE को SHAKE कर उन्हें भी अपनी हड्डियों की श्रंखला के टूटने का भीषण आभाष हो गया था ..,  आज जो धारा ३७० की आड़ में जो खून का तांडव खेला जा रहा है.., उसके निदान के प्रयास के पहिले ही ताशकंद में मेरी ह्त्या कर, देशी ताकतों ने विदेशी हाथों से मेरे देश के स्वर्णीम युग का स्वप्न छीन लिया.      
५.       मोदीजी मेरा जीवन की शुरुवात तो गरीबी से हुई.., और मेरी ह्त्या तो सत्ता में भ्रष्टाचार निकालने व देश को उन्नत से ५० करोड़  देशवासियों के मुट्ठी बल को स्वर्णिम युग से देदिव्यमान करने के लिए सत्त्तालोलूप्तों ने  देश की प्रतिभाओं की जागृत होने के खौफ से..., माफिया जो, विदेशी हाथ, विदेशी साथ, विदेशी भाषा, विदेशी विचार से देश को २०० साल लूटने के खेल के बाद भी एक समानांतर गुलामी का जाल बुन रहें थे..., इसकी बू.., मुझे जवाहरलाल नेहरू के काल से ही आ रही थी
६.       मैंने तो अपने जीवन के ध्येय को .., इमानदारी से राष्ट्र की सेवा को समर्पीत कर .., मैंने इमानदारी के जूनून से ही पार्टी के व सरकार पदों में काम किया.., मेरे जीवन में, नेहरू काल में लाखों कार्यकर्ताओं. राजनेताओं ने.., गांधीवाद की आड़ में साधुवादी बनकर, देश को लूटा.., इस माहौल को देखकर भी मैंने उनकी छाया से जीवन में छांव लेने की कल्पना तक नहीं की थी.   
७.       मुझे, मेरे जीवन में जितने भी पद मिले उसे मैंने भारतमाता का गौरव बढ़ाने के लिए समर्पित रहा, मैं बहुत गहनता से जुटा रहा.., कई बार नेहरू की नौकरशाही की लुंज-पुंजता से, वे भ्रष्टाचार से पूंजी बना गए..., इसका दुःख मुझे बहुत होता था.., क्योंकि उस वृक्ष के (जड़ का) राजा देश के  प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे..., मैंने कठोर मेहनत के बावजूद, असफलताओं  के लिये कभी अफ़सोस नहीं किया, और राजीनामा देता रहा
८.       इसका लाभ, मेरे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लिया.., मुझे तो वे मोहरा बनाकर अपनी सत्ता चमकाते रहें.. और देशवासियों को मेरे राजीनामा से राजी कर .., शांती के मसीहा बनकर, नोबल पुरूस्कार जीतने के फेर में सेना को नो-बल कर दिया था
९.       हमारे आयुद्ध कारखाने में, हथियार बनाने के बजाय चूड़ी का कारखाना लगाकर दुश्मनों को देश में “आकर -युद्ध” की प्रेरणा से  देशवासियों को चूड़ी पहनाने का जामा/खेल खेल रहे थे...,
१०.   नेहरू की मृत्यू के बाद मैं तो प्रधानमंत्री पद का काबिल भी  नहीं था.., दिग्गजों के आपसी बंदरबांट की लड़ाई मे, मुझे प्रधानमंत्री पद दिया गया .., तब मुझे लगा,  “अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे.., अब इन नेताओं राजनैतिक जीवन को रेगिस्तान की मरूस्थली बनाओं..
११.   मैं कायल था तो सिर्फ और सिर्फ, वीर सावरकरजी  की विचारधारा से, जिन्होंने १९५४ में नेहरू को चेताया था कि चीन हम पर आक्रमण करने वाला है..., देश की सुरक्षा के लिए अणुबम के साथ हाइड्रोजन बम बनाने  व स्कूलों में सैनिक शिक्षा अनिवार्य कने का मंत्र दिया था.., उलट १९६२ में चीन द्वारा एकतरफा जीत से नेहरू, वीर  सावरकर से बौखालागाये थे..इस चेतावनी का अनुसरण न करने की अपनी गलती छुपाने के बजाय, उनहें उनके  घर “सावरकर सदन” में नजरबन्द कर दिया और उनके पत्रों की भी जांच शुरू कर दी.. अंत में थल सेना के जनरल करिअप्पा ने अपना पद त्यागते हुए खा था.., यदि हमने वीर सावरकर की बात मानी होती तो चीन आक्रमण के बारे में भी नहीं सोचता था. इस राष्ट्रवादी की आर्थिक परिस्तिथी व उनके अतुल्य देशभक्ति से प्रेरित होकर,  मैंने पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान करने से मेरे पार्टी में खलबली मच गई थी
१२.   मेरे इर्द गिर्द सत्ताखोरों की फ़ौज.., इसी भ्रम मे थी कि मैं पाकिस्तान से युद्ध हार जाऊंगा.., और मैं जल्द ही इस्तीफा दे दूंगा.., मेरी राष्ट्रवादी विचारधारा से पकिस्तान तो बह गया था, और मेरे दिग्गज साथियों को अपना  राजनैतिक जीवन, बहने का खतरा मंढरा रहा था...
१३.   माफियाओं की दूकान बंद हो रही थी..., मैंने कभी नेहरू के, गांधी - नेहरू द्वारा समृद्ध टाटा बिड़ला बजाज के मिजाज को देखकर उनके तलुवे नहीं चाटे, मुझे तो ५० करोड़ गरीबों के तलुओ की मजबूती का इतना अभिमान व विश्वास  था कि देश की कटेंली/ कटींली राह में, चलकर भी उनके तलुओं को काँटों की चुभन नहीं होगी..., मुझे कांग्रेस से भारी उद्योग न लगाने का भारी विरोध करने पर कहना पड़ा, जैसे नेहरू को गांधी के विचार पसंद नहीं थे उसी तरह, मुझे गांधी के स्वदेशी विचारसे लघु व ग्रामीण उद्योग से गरीबों को अमीरी रेखा तक पहुँचाना है.., देश का तन-मन धन गरीबों के उत्थान से ही, मजबूत भारत का निर्माण होगा   
१४.   मुझे तो कांग्रेस सरकार ने १९ महीने ही दिए और देश के स्वर्णीम काल के भविष्य देख पाने के पहिले ही..., मेरी ह्त्या कर दी.., मेरी कांग्रेसी पार्टी ही नहीं विश्व को भी भयानक डर था कि मेरा दृण निश्चय था .., देश, विदेशी हाथ, विदेशी बात, विदेशी साथ, विदेशी विचार, विदेशी संस्कार के लगाम का पूर्ण सफाया करने का संकल्प..., जो चंद वर्ष में मेरे कार्यकाल में ही पूरा कामयाब होना था , और देश की खान खदान, ईमान देशी-विदेशी माफियाओं हाथों से निकलने का डर ही मेरे ह्त्या का कारण बना .
१५.    आज ४९ सालों बाद मैं भी.., रूस के ताशकंद में बंद कमरे में रात में १ बजे दूध पीने के बाद में विदेशी रसोईये का धोखे से जहर पिलाने के बाद की घुटन. को.., आज मेरे, देशवासियों में महसूस कर रहा हूँ, फर्क इतना है कि मैं घुटन से मारा गया, और देशवासी घूट घूट के जी रहा है.. कैसे विदेशी हाथ वाले, देशी उद्योगपतियों की आड़ में देश में माफियाराज से देश को गर्त में डालकर आज प्रति व्यक्ती ५० हजार रूपये का कर्ज करने व जवानों व किसानों का पसीना विदेशी बैंकों में कैद कर रखा है 
१६.   चेतो मोदी सरकार.., राष्ट्र तो देशवासिओं के १२५ करोड़ मुठ्ठी बल से उन्नत होगा, विदेशी धन से देश की अवनीती होगी, इस नीती से महंगाई के जूते से जनता की दुर्गती होगी..
कर लो राजनेताओं को मुठ्ठी मेंके माफियाओं के नारों ने देश को कर्ज से डूबाकर, उजाड़ दिया है. किसानों की भूमि छीनकर,, उसे विकासके बहाने देश का बेगानाबना दिया है.., किसान आज कैसा इंसान बन गया है.., आत्महत्या ही उसका धर्म बन गया है ....

मेरी जीवन की गाथा तो बहुत लम्बी है.... चतो मोदी जी यह देश सावरकर की धारा से ही आगे बढेगा 


Sunday 8 March 2015



महिला दिवस - देश की दो तस्वीरों से, हिला देश ,

१.       पहली.., भांड मीडिया ने जेल में बलात्कारी को जज बनाकर उसके बयान को प्रस्तुती स्वरुप बनाकर, निर्भयता के TRP से मालामाल.., पहले तो हमारे देश को नागों की पूजा व दूध पिलाने वाला “पाषण युग का देश” बताकार.. हमें गयी गुज़री कौम से “नवाजते” रहे.., और हमारे सत्यजीत रे से अन्य  फिल्म निर्माताओं ने इस आग में घी डालकर अपने व्यक्तीत्व को चमकाकर, इसे “जय हो” फिल्म से अंतराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त की.., ऑसकर फिल्म की रेस में दौड़ते रहे.

२.       दूसरी..., देश को दीमक की तरह खोखला करने वाली हमारी क़ानून शाही द्वारा देश के बलात्कार व अन्य गिरफ्तार अपराधियों का जेल में सत्कार, नागालैंड के दीमापुर निवासियों ने कोबरा नाग बनकर..., लुंज पुंज क़ानून, जो जनता को ढेंगा दिखा रहें थे इन दीमकों को चट- कर देश में मीडिया-माफिया-मानवाधिकार..., जो इस “मावा” के खेल पर  पर ६८ सालों से अपना अधिकार मानता था.., उसे जनता ने “देश का धिक्कार” बना कर,  धुल चटाकर.., एक नारा दे दिया है..., फैसले में फासला मत बढ़ाओ , जनता पर जुल्म मत ढहाओ.., सावधान...!!!, अब जनता आ रही है.. न्याय की रस्सी लेकर...   
     महिला दिवस.,.नारी..,तुम्हारे लिए क्या मिला, दिवस.., तुम  तो अभी भी हो बेबस...  


३.       मर्दानी ..., अब भरवाओं.., मर्दों से पानी...
राजनीती से समाज ने तुम्हारी पवित्रता को पतितता से, बेड रूम (BED ROOM-शयनयान) की वस्तु बनाकर, भष्टाचार की ऊंची उड़ान भरी है और देश का बेड-रूप बना दिया है....
नारी तुम सब पर भारी..., अब अपने मर्दों (सरपंच से नेता) से कहों..., अब बेड रूम में तुम्हारे प्रपंच का खेल नहीं चलेगा..., भ्रष्टाचार के प्रपंच की पतितता से अब देश में नारी की कुरूपता का व्यव साय नहीं चलेगा 
४.       आओं.., अपने मर्दों से कहों.., राजनीती की बातें BED-ROOM में नहीं, घर के DRAWING –रूम (बैठक कमरे) में हो..., ताकि, मैं देश की एक नई तस्वीर बना सकूं...
अब तक तो.., देश के मर्द सत्ता के मद में देश का मधु पी रहें थे .....
५.       आओं..., मर्दों से कहो..., देश की महिलाओं को जगाकर कहो.., अब, हम तुम्हारी बैसाखी नहीं..., बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं..., अब हमारे संस्कारों की सम्मानता से.., हम देश के हर नागरिकों को समान प्यार से, उनके जीवन की प्रेरणा को और उज्जवलित करेंगें... 

नारी..., तेरा प्यार दिल के आँसुओ से भरा रहता है, तुम्हारा दिल तो वात्सलय से 24 घंटे धडकता.. है... हर दु:ख पहुचाने वाले पति से बच्चे हर सख्श तक को आप माफ कर देती हो.. तकि आप की आँसू से वे अपने गलती का अहसास समझ कर प्रायश्चित (सुधर सके) कर सके, 


६.       आप तो माँ की रूप में , सौ बार अपने आँसुओ से मौका देती है....माँ.., तेरे आँसु सागर से भी गहरे है. लेकिन तेरे सागर के आँसु तो लोगो को जीवन मे कैसे तैरना है,वह सिखाती है...आज तक तेरे आँसु के सागर कोई भी डूबा नही है...क्यो कि इसमे वात्सलय का नमक है...

आपके खून में ही तो देश का वात्सल्य , अभिमान व देश की हरियाली छीपी है..., तुम आरक्षण की वस्तु नहीं देश के संरक्षण की धारा हो...


हमारे समाज के पिस्सुओं ने, देश की बच्चियों से नारी को पतितता से वेश्यावृती के धन से अब बलात्कार की हुंकार भर कह रहें हैं..., युवाओं का यह है अधिकार.., है... 

नारी.., समाज के पिस्सुओं ने देहव्यापार में धकेले ढकेले कर..., तुम्हारी पतितता में भी पवित्रता है.., 
नारी.., इंसानों में सर्वोत्तम तुम ही और केवल तुम ही हो... 
वेश्या पतिता नहीं होती, पतन को रोकती है .
पतित जन की गन्दगी , अपने ह्रदय में सोखती है/
जो विषैलापन लिए हैं घूमते नरपशु जगत में ,
उसे वातावरण में वह फैलने से रोकती है.

यही तो गंगा रही कर , पापियों के पाप धोती ,
वह सहस्रों वर्ष से , बस बह रही है कलुष ढोती,
शास्त्र कहते हैं कि गंगा मोक्षप्रद है, पावनी है ,
किसलिए फिर और कैसे वेश्या ही पतित होती ?

मानता हूँ , वेश्या निज तन गमन का मूल्य लेती ,
किन्तु सोचो कौन सा व्यापार उनका ,कौन खेती ?
और यह भी , कौन सी उनकी भला मजबूरियां हैं ,
विवश यदि होती न, तो तन बेचती क्यों दंश लेती ?

मानता यह भी कि वेश्यावृत्ति , पापाचार है यह ,
किन्तु रोटी है ये उनकी , पेट हित व्यापार है यह ,
देह सुख लेते जो उनसे, वही उनको कोसते भी,
और फिर दुत्कार सामाजिक भी , अत्याचार है यह,
गौर से देखो , बनाते कौन उनको वेश्याएं ,
और वे हैं कौन, जो इस वृत्ति को खुद पोषते हैं ?
पतित तो वे हैं , जो रातों के अंधेरों में वहां जा -
देह सुख भी भोगते हैं , और फिर खुद कोसते हैं .