आओ एक नई जन्माष्टमी, मनाए...देश का असली कृष्ण... आज भी भूखा है…????,
देश मे सूखा है, हर मुहल्ला भ्रष्टाचारियों का
पनहा है , जो, देश का , अपने को जहांपनहा कहलवाता है... (सत्ता मे आज कंस का वंश है क्यो कि जनता
मे नही है कृष्ण का अंश) क्यो आज का मन का मोहन... कंस बनकर , दुनिया के मन मोहने के रिझाने /चक्कर मे... , देश की
माखन हांडी फोड़ कर, देशी व विदेशी माफियाओ को खिला रहा है,
दोस्तो भेड़िये की खाल मे आज कंस.... कृष्ण के नाम से...????
, आज भी कंस जागा हुआ है, देश का कृष्ण
(देशवासी) सोया है, इस हाल को देखकर...वह, मन ही मन रोया है, डर से मन ही मन खोया है...,
याद रहे महाभारत के कृष्ण मे करोड़ो लोगो की आत्माए थी, इसलिए कौरौवों का नरसंहार किया था... और , अकेले
महाभारत के भ्रष्टाचारियों के युद्द की जीत से गीता का महाग्रंथ बना ...देश का हर
कृष्ण भूखा है , क्योकि उसने अपनी आत्मा (दु:ख) को अकेली
आत्मा समझ कर, मौजूदा हालात से लड़ने मे अपने को असहाय मान
रहा है.... आप प्रण करे , देश के सभी, कृष्ण
मिलकर... एक आत्मा बनकर (इसे राष्ट्रवाद कहते हैं) … देश के
वोट बैक के अलगावाद, भाषावाद, जातिवाद,
घुसपैठ के इस जंजीर को तोड़ कर... अपनी-अपनी गुलामी के बंधन से मुक्त
हो कर, , इसे सुनहरे देश के रूप मे एक संसार बनाए, एक गाना है... आ चलके तुझे मै लेकर चलू
एक ऐसे गगन के तले
जहा गम भी न हो, जहा आँसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार हो
जहा रंग बिरंगे सत्संगी, आशा का संदेशा लाए
जहा प्रेम मिलें, जहा तृप्ति मिलें....
आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ एक ऐसे गगन के तले.. जहाँ ग़म भी न हो, आँसू भी न हो, बस प्यार ही प्यार पले.. एक ऐसे गगन के तले.. सूरज की पहली किरण से, आशा का सवेरा जागे.. चंदा की किरण से धुल कर, घनघोर अंधेरा भागे.. कभी धूप खिले कभी छाँव ... जहा रंग बिरंगे सत्संगी, आशा का संदेशा लाए
जहा प्रेम मिलें, जहा तृप्ति मिलें.... दोस्तो जागो... डूबते देश को बचाओ...??
Posted on 1st January 2013.
एक ऐसे गगन के तले
जहा गम भी न हो, जहा आँसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार हो
जहा रंग बिरंगे सत्संगी, आशा का संदेशा लाए
जहा प्रेम मिलें, जहा तृप्ति मिलें....
आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ एक ऐसे गगन के तले.. जहाँ ग़म भी न हो, आँसू भी न हो, बस प्यार ही प्यार पले.. एक ऐसे गगन के तले.. सूरज की पहली किरण से, आशा का सवेरा जागे.. चंदा की किरण से धुल कर, घनघोर अंधेरा भागे.. कभी धूप खिले कभी छाँव ... जहा रंग बिरंगे सत्संगी, आशा का संदेशा लाए
जहा प्रेम मिलें, जहा तृप्ति मिलें.... दोस्तो जागो... डूबते देश को बचाओ...??
Posted on 1st January 2013.
राष्ट्रवाद- आओ इस भ्रष्टाचार के उल्टे पिरामीड को ढहाये और इन शेरों में अपना खून डाले और वे देश के लिये दहाडे
1947 का सत्यमेव जयते ………1948………….. 2012 से अब तक ‘’सत्ता एक मेवा है और इसकी जय है’’ बन गया है
राष्ट्रवाद की सरल परिभाषा:
1. पहले मेरा देश खुशहाल रहे
2 फिर मेरा शहर व मुहल्ला खुशहाल रहे
3. मेरा पडोसी खुशहाल रहे
4. मेरा परिवार व मै खुशहाल रहे