Thursday 30 January 2020


हे राम V/s राम रहीम”, यह इस युग में गांधी की ब्रह्मचर्य व्रत के पीछे छुपी नारी शोषण के प्रयोग की बाबा राम रहीम बाबा की पुनरावृति है.



गांधी को तो मीडिया अमर कर गयी , बाबा को TRP के चक्कर में मीडिया निगल गई.

दोस्तों.., सीमा पर हमारे सेना के जवानों के शहीदी की कोई खबर नहीं , क्योंकि इस खबर में TRP की शहद नहीं थी .मीडिया ने बाबा राम रहीम के भक्तों से, धार्मिक उन्माद की खबर को जंगल की आग से भी तेजी से भड़काई

देश के तीन तिकड़म बाज...., गांधी , जवाहर व जिन्ना के .. गांधी की गंदी राजनीती, जवाहर के जहर व जिन्ना के जिन्न इन तीन भेडियों ने शेर की खाल में अय्याशी का चोला पहनकर सत्ता परिवर्तनसे जनता को आजादीकहकर जातिवाद, भाषावाद की कुल्हाड़ी से देश को खण्डित कर ५ लाख से अधिक नर मुंडों की बलि लेकर,जमाकर अपने को बापू,चाचा व कायदे-आजम की उपाधी लेकर, १९४७ से आज तक इनकी विचारधारा से भारतमाता लहू लूहान है


१९४७ तक हमारी शिक्षा दर यदि २५% भी होती तो जनता इनका हिसाब कर देती .., पानी सर से ऊपर बहने से पहिले नथूराम गोड़से ने गांधी की ह्त्या करने के बाद , इस मकसद के १५० से अधिक कारण बताये थे .., और यूं कहें , अंग्रेजों द्वारा थोपी गई तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे सत्ताखोरों की आजादीकह, कही जनता हमारी आजादी छीन न ले व गुलाम जनता को सच्ची आजादीमिलने के भय से नथूराम गोड़से के कारणों को अति प्रतिबंधित कर दिया . जिन कारणों से ये तीनों तिकड़म अपने को आज भी हस्तियाँ मानकर , अपने हस्त रेखाओं पर हंस कर कह रही हैं, देखों हम अपने खंडित देशों में ७१ सालों बाद इस रहस्य से नोटों , सिक्कों, गली-मुहल्लों के नाम व पुतलों से विराजमान हैं.





१४ अगस्त २०१७ की फेस बुक व वेबस्थल की पुरानी पोस्ट
GOD-SE, GOD-SAYS, GOD-SAID (देश की खंडता का दिवस १५ अगस्त.. या ३० जनवरी ...???..!!!.)
नथूराम गोड्से (GOD-SE, GOD-SAYS, GOD-SAID) जिन्होंने राष्ट्रवाद की आत्मा की आवाज से जजों को गांधी की गंदी राजनीती के १५० से अधिक कीचड़ का उदाहरण देते हुए इसमें छद्म अहिसावाद के आड़ में लाखों हिन्दुस्थानियों का बलिदान, विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा धर्म परिवर्तन को उनका साहस कहना, यौन शोषण व बलात्कारियों को क्षमा का विशेष अधिकार कहकर, देश में जातिवाद को आबाद रखने के खेल से देश की संप्रभुता को ख़तरे की चिरम सीमा पर पहुंचाने के खेल , खेलने प्रयास में सफल होने से पहिले ही इस नासूर को मारने के लिए गांधी को मारना अति महत्वपूर्ण हो गया था ..


नथूराम गोडसे, एक राष्ट्रवादी योद्धा, जिसने अपने प्राणों की आहुती से ..., गांधी को , देश के साथ खिलवाड़ से.., देश के टुकड़े करने के बाद भी, देश की तुष्टी करण की नीती से, देश को असहाय बनाने के बाद, आगे के खेल से, देश को पंगु बनाने का, अंजाम न दे सके , इस ह्त्या का उद्देश्य बताया,
याद रहे, नथूराम गोड़से ने स्वंय अपना मुकदमा लड़ते हुए , गांधी की ह्त्या करने के १५० कारण गिनाये थे...,तब अदालत में बैठे दर्शकों की आँखे, आंसू लबालब भरकर, जमीन में गिरकर नाथूराम गोड़से को सलाम कर रही थी ...

१. गांधी ह्त्या के पहिले नथूराम गोडसे ने गांधी को प्रणाम किया, बाद में गोली मारी.

२. नथूराम ने अदालत में कहा , मैंने गांधी को गोली मारने में इतनी सावधानी से, इतने, पास से गोली मारी ताकि उनके बगल में दो युवतियां, जो हमेशा उनके साथ रहती थी.., उन्हें गोली के छर्रे लगने से, मैं बदनाम न हो जाऊं (याद रहे, गांधी उन युवतियों के साथ नग्न सोकर, ब्रह्मचर्य /सत्य के प्रयोग में इस्तेमाल करते थे)

३. नथूराम ने कहा, ह्त्या के समय गांधी के मुख से आहकी आवाज निकली, “हे रामशब्द नहीं ...,
जिसे कांग्रेस ने हेराल्ड अखबार के प्रचार से हे रामशब्द से देशवासियों को भरमाया..
न्यायाधीश खोसला ने, अपने सेवा निर्वत्ती के बाद कहा था , यदि मुझे न्याय के लिए स्वतंत्र विचार दिया जाता तो मैं, नथूराम गोड़से को निर्दोषी मानता , मैं तो कानून का गुलाम था, इसलिए मुझे नाथूराम गोड़से व उसके अन्य साथियों को मृत्यु दंड सुनाना पड़ा

नथूराम गोड़से व उनके साथी, ‘भारतमाता की गोद मेंसोने के लिए इतने आतुर थे कि उन्होंने उच्च न्यायालय में अपनी सजा को चुनौती नहीं दी और न ही क्षमा याचना की अपील राष्ट्रपति से की ...



यह शांती का दूत..????, कपूत निकला.., याद रहे, इस अनशन की खाल में बापू ने .., दो विश्व युध्ह में २ लाख हिंदुस्थानी सैनिकों की अकारण बलि देकर, जो कुत्ते की मौत मारे गए थे .. व १९४७ में देश का अंग भंग कर ५ लाख हिन्दुस्थानियो की बलि लेकर..., इस अहिसा के परदे में खूनी खेल खेलकर, आज तक शांती दूत का चेहरा दिखाया है...

गाँधी वध के पश्चात जब सावरकर जी को न्यायलय ने सम्मान बरी किया तो जज का, वीर सावरकर के लिए यह
वक्तव्य था ...,

सावरकर ने अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया, लेकिन ऐसे तुच्छ कार्य में उन्हें घसीटना बहुत ही निंदनीय है, इस बात की जांच की जानी चाहिए की ऐसे महान व्यक्ति का नाम इस कार्य में क्यों घसीटा गया







जबकि स्वयं नथूराम गोडसे ने गाँधी वध में सावरकरजी की संलिप्तता को सिरे से नकार दिया,

धर्मनिरपेक्षता के झूठे आडम्बर में फंसे तथाकथित सेकुलर उस दिन सूर्य के सामान जुगनू से प्रतीत हो रहे थे, जो की सूर्य को अपनी मद्दम रौशनी दिखा कर उसे निचा दिखाने की कोशिश कर रहे है,

वीर सावरकर के क्रातिकारी के जज्बे को सलाम करने के के लिए, 13 मार्च 1910 मे जहाज से कूदकर,पानी मे अंग्रज सैनिको की पीछे से गोली गोलियो की बौछर का सामना करते हुए , फ्रांस के मार्सेल तट पर पहुँचे, इस साहसिक घटना को जीवित कर , प्रेरित करने के लिए, घटना की 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य मे एक भव्य स्मारक बनाने के लिए भारत सरकार को सूचित किया , और भारत सरकार ने वीर सावरकर को देश्द्रोही कहकर आपत्ति उठाने से वह प्रकल्प बंद करवा दिया..

दोस्तों अब गांधी जयंती के आयोजन में झूठे दिखावे के आचरण से, देश को, सरकारी अवकाश व विज्ञापनों व अन्य खर्चों से १० हजार करोड़ का चूना लगाने वाला है...

गांधी की गंदी राजनीती व जवाहर लाल नेहरू के जहर से देश ६८ साल के सत्ता परिवर्तन के शासन में कंगाल हो गया है..., आज सभी पार्टीयाँ विदेशों में विदेशी हाथ माँगने जा रहें हैं.

सत्ता तो मद से भरी.., मदारियों का समूह १९४७ से सत्ता परिवर्तन को आजादी के झांसे से बन्दर बांट से देश को लूट रहा है...
६७२ राजधर्म तो जातिवाद, भाषावाद,अलगाववाद, धर्मवाद व घुसपैठीयों से राजनीती में गहरी पैठ से जनता को गरीबी से तडफा-तड़फा कर..., हलाल कर ..., आज अपने को देश का लाल बनाकर., २ अक्टूबर से १४ नवम्बर से सालों - साल तक इनके पुतले..,बिना नहलाए पूजे जा रहें है...और तो और ७० सालों से देश में गरीबी की वजह से गांधी का चष्मा चुरा लिया जाता है..., २ अक्टूबर तक सत्ताखोर बदहवासी में रहता है..


Thursday 23 January 2020




१२४  वी जन्म तिथी पर..., कब उठेगा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्य से पर्दा?कल के पुतले बने आज के वोट बैंक के चेहरे.., हर चौराहे बने राजनीती के मोहरे .., मोह भंग से .., मुंह चुराता लोकतंत्र .., अब बन गया है सत्ता से लूट तंत्र का मंत्र..!!!!

सुभाष चन्द्र बोस जी बंगाल व कलकत्ता में देश की गुलामी के विरोध  ब्रिटिशों के पुतले तोड़ने का कार्य शुरू मत करों...
सबूत के साथ, आप जिन्दगी भर जेल में कैद रहोगे....

१. देश के इस अमीर घराने के तेजस्वी युवक को राष्ट्र के प्रती जूनून को वीर सावरकर ने यह कहकर राष्ट्रीय राजनीती में आने के लिए प्रेरित किया , वे नहीं चाहते थे कि सुभाष चन्द्र बोस बंगाल तक ही सिमटे रहें... नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।

२. वीर सावरकर की पुस्तक १८५७ एक स्वतंत्रता संग्रामपढ़ कर ऐसे भी सुभाष चन्द्र बोस की रगों में खून बढ़ गया था..,

३. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तो वीर सावरकर को अपना गुरू मानते थे , वे पूना में उनके घर जाकर भावी योजनाओं के बारे में चर्चा करते थे.

४. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को सावरकर ने हिटलर से मिलकर, देश को आजाद कराने में सहयोग की वार्ता करने को कहा

५. हिटलर के सन्देश से कि हिन्दुस्तान को आजाद कराना मेरे बांये हाथ का खेल है,” बशर्ते हिन्दुस्तान पर जर्मनी का अधिकार रहेगा, हिटलर के इस सन्देश को सावरकर के कहने पर सुभाष चन्द्र बोस ने नकार दिया

६. अपने पढाई के दौरान एक बार कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें, BLOODY INDIAN कहा तो उनके दिल में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का जूनून पैदा हो गया.

७. रंगून (बर्मा) मैं , लाखों की संख्या में नए रंगरूट, आजाद हिन्द फ़ौज में भर्ती के लिए आये थे.., तब उन्होंने एक स्वर में कहा, जो मेरी सेना में देश के लिए मरना चाहता है, उनके लिए मेरी सेना के दरवाजे खुलें हैं, और जिसे मंजूर हैं हाथ ऊपर करें, तब सभी हिन्दू ,मुस्लिम व अन्य धर्मों के रंगरूटों ने हाथ उठाते हुए , सेना में शामिल हुए

८. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, मुझे इतना खून चाहिए कि ब्रिटिश सरकार को मैं डूबोकर मार दूं..

९. राष्ट्रीय राजनीती में आने से पाहिले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हिन्दी नहीं आती थी, तब उन्के शिक्षक जगदीश नारायण तिवारी ने धाराप्रवाह हिन्दी सिखाकर, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जनसभाओं में हिन्दी मैं ही संबोधन कर एक नया जोश भर दिया था

१०. और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, कहते थे, हिन्दी ही एक भाषा है, जो देश के विभिन्न राज्यों को अपनी भाषा की इर्ष्या को तोड़कर एक कड़ी में पिरो सकती है,

११. अब कुछ पढ़े.., भाजपा का U TURN...., राजनाथ सिंह ने चुनाव प्रचार के दौरान दावा किया था कि अगर नेता जी की मौत से जुड़े कागजातों को सार्वजनिक किया जाता है तो यह ज्यादा अच्छा होगा। लेकिन ऐसा लगता है कि पीएमओ राजनाथ की इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता। पीएमओ ने आरटीआई के सेक्शन 8 (2) का हवाला दिया है। सेक्शन 8(2) के मुताबिक कोई भी जानकारी जो ऑफिशल सीक्रिट ऐक्ट,1923 के तहत आती है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। हालांकि अथॉरिटी को यह हक है कि वह इन डॉक्युमेंट्स को सार्वजनिक कर सकती है, अगर उसे लगता है कि इससे लोगों के हितों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।

१२. बीजेपी ने एक बार फिर यू-टर्न लिया। जब बीजेपी सत्ता में नहीं थी तब सुभाष चंद्र बोस की मौत की गुत्थी सरकार से सार्वजनिक करने की मांग करती थी। अब बीजेपी सत्ता में आई तो इससे मुकर गई। नेताजी के रहस्यात्मक तरीके से गायब होने की करीब 39 क्लासिफाइड फाइल बीजेपी ने सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। इससे पहले जब मनमोहन सिंह की सरकार थी तब बीजेपी के सीनियर नेता इन फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग करते थे।

गए  साल जनवरी में लोकसभा चुनावी कैंपेन के दौरान राजनाथ सिंह ने नेताजी के जन्मस्थान कटक में उनके 117वीं जयंती के मौके पर यूपीए सरकार से इनकी मौत से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि देश के नागरिकों को अपने स्वतंत्रता सेनानी की मौत के बारे में जानने का हक है। अब राजनाथ सिंह केंद्रीय गृह मंत्री हैं। सिंह ने दावा किया था कि दस्तावेजों के सार्वजनिक करने में व्यापक जनहित जुड़ा है। लेकिन मोदी सरकार का पीएमओ इससे सहमत नहीं दिखाई देता जो कि उसके जवाब से झलकता है।

प्रधानमंत्री ऑफिस ने इस मसले पर दाखिल आरटीआई के जवाब में कहा है कि नेताजी की मौत से जुड़ी 41 फाइलें हैं, जिनमें से दो अनक्लासिफाइड फाइलें हैं। जवाब में मोदी सरकार ने कहा कि हम इन फाइलों को सार्वजनिक नहीं कर सकते। सरकार ने कहा कि हम इस मसले पर पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की पोजिशन जारी रखेंगे। पीएमओ ने कहा, 'इन फाइलों को सार्वजनिक करने से विदेशी संबंधो पर असर पड़ेगा। इन फाइलों को हमें आरटीआई सेक्शन 8(1)(ए) और सेक्शन 8(2) के तहत सार्वजनिक करने से छूट मिलती है।

इस वेबस्थल का मुख्य उद्धेश्य है...,
यह वेबस्थल जो दिखता है वह लिखता है.., जागो इंडियाके अफीमी नारों से देश बेचनेवालों से निदान करने का एक और एक ही संकल्प से कहना चाहता है ...
Let's not make a party but become part of the country. I'm made for the country and will not let the soil of the country be sold..... (आओं, पार्टी नहीं देश का पार्ट बने, “मैं देश के लिए बना हूँ””, देश की माटी बिकने नहीं दूंगा , “राष्ट्रवाद की खादसे भारतमाता के वैभव से, हम देश को गौरव से भव्यशाली बनाएं}
www.meradeshdoooba.com (a mirror of india) स्थापना २६ दिसम्बर २०११. कृपया वेबसाइट की ६८० प्रवाष्ठियों की यात्रा करें व E MAIL द्वारा नई पोस्ट के लिए SUBSCRIBE करें - भ्रष्टाचारीयों के महाकुंभ की महान डायरी

under construction

कहाँ, गई.., ८ जुलाई की गूँज , मार्सेल्स द्वीप की कीर्ती के १०५ वी सालगिरह.., , विश्व ने वीर सावरकर की किर्ती का आज भी लोहा माना..”, आज के सत्ताखोर, अपने को सोना मानकर”, देश में घोटालों की व्यापम, व्यापकता की बाढ़ से गरीबों को डूबों कर ..., अब विदेशी कटोरों से चुल्लू भर पानी (विदेशी धन ) से देश को डूबाने के प्रयास में अब भी अग्रसर है..,

सत्ता परिवर्तने के बाद ही, सत्ताखोरों ने, देश की प्रतिभा को आत्मबल से निखाराने की बजाय, ढोल बजाकर, विदेशी छत्री की छांव से, अब भी, बड़े ताव से कह रहें हैं.., विदेशी माया के बगैर , देशवासियों की काया में निखार नहीं आयेगा ..

मेक इन इंडिया के नारे के ७०  महीने बाद भी, ७३  सालों पर मेक भ्रष्टाचार, इन इंडियाव इस प्रदूषण के देशी विदेशी शोर से देश वासी कान के परदे फटने के डर से, अपने आँख , नाक, कान, मूंह.., बंद कर बैठा है.

देश में फर्जी भाई के होड़ है.., सत्ता माफिया-मीडिया कॉर्पोरेट के कार पेटी से कार व धन के पेट से अति अच्छे दिनों की दौड़ है..,

देश के २५ लाख से अधिक निखरे डॉक्टर, इंजिनियर , computer के धुरंधर इस मकडजाल से निकलने के फेर से.., विदेश जाकर, विश्व का स्वास्थ्य निखार रहें है.., अपने श्रम के ५० हजार अरब डॉलर, से अधिक, सालाना देश में भेजने के बावजूद .., देश, विदेशी कर्ज के व्याज चुकाने से गर्त में जा रहा है..,विदेशी हमारे रूपये पर ७२  हथौड़े मारकर भी सुशोभित है..

देश के गद्दीदार, “वीर सावरकरको देश का गद्दार कह.., ७३  सालों से आराम को प्रणामकर, “गरीबों को हटाकर”, “मेरा भारतमें, मैं महानसे अच्छा महसूस कर ” , “भारत निर्माणके अच्छे दिनोंसे देश के गरीबों की व्यापम व्यायाम मौत से योजनाएं” , “भोजनाएंबनाकर, मीडिया से माफिया भी TRP के खेल से, अपने ही तारीफों के कसीदे से , “वंशवाद के पुतलोंकी छांव से आज देश के मसीहाबनें हैं

वीर वीर ...परमवीर सावरकर....की किर्तियाँ...., कितना भी बखान किया जाय कम हैं...,क्यों कि वे गुणों के खान थे ..., देश आज वीर सावरकरकी विचारधारा से ही विश्व गुरू बनेगा ...

१. हिंदुत्व में जनेऊ धारण करने के सैकड़ों वैज्ञानिक कारण है, लेकिन देश भक्ती के सात्वीक रस से जनेऊ को राष्ट्र का वीर रस से, समुन्द्र में चलते ब्रिटिश जहाज से कूद मारने के लिए जिसे गोल खिड़की से अपने शरीर की चौड़ाई, जनेऊ से माप कर वीर सावरकर ने निश्चित कर लिया कि उनका शरीर उस खिड़की से आसानी से बिना अटके निकाल सकता है..., शौच के बहाने उस शौचालय की खिड़की से एक ऐतिहासिक साहसिक छलांग से , उस विशाल गहराई के समुन्द्र की परवाह न करते ३ किलोमीटर से ज्यादा दूरी तैर कर.., (२८ मई वीर सावरकर की जन्म तिथी है) अंगरेजी सैनिकों द्वारा नाव से उनका पीछा करते, वीर सावरकर , गोलियों की बौछार के जोखिम की परवाह न करते वे मार्सेल्स द्वीपमें सुरक्षित पहुँच गए थे..., लेकिन फ्रांस की पुलिस द्वारा सावरकर का अंग्रेजी संवाद न समझ पाने से इंग्लैण्ड की पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर पुन: पानी के जहाज में ले गयी.., इस कृत्य से अंग्रेजों की विश्वभर में कडू आलोचना हुई

२. यह वीर सावरकर देश का दुर्भाग्य था कि उन्हें बचाने व भगाने में फ़्रांस द्वीप में श्यामजी वर्मा व उनके साथियों के मार्सेल्स द्वीपमें पहुँचने में १५ मिनट की देर हो गई थी और वे अंग्रेज सैनिकों द्वारा पकड़े गए अन्यथा वे अंडमान जेल में कैद न होते

३. मोदीजी तो बार-बार दंभ भरते थे कि, उनके गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में, सावरकर के प्रेरक गुरू श्यामजी वर्मा का अस्थी कलशलाने का श्रेय उन्हें हैं.., लेकिन श्यामजी वर्मा के विचारों को वास्तविक कर बुलंदी में पहुंचाने का कार्य वीर सावरकर ने ही किया.., उदाहरण,इंग्लैंड के इंडिया हाऊसको क्रांतीकारी हाऊस बना दिया था

४. आप तो श्यामजी वर्मा की अस्थियों का विसर्जन से गुजरात में इनका स्मारक बनाकर गौरान्वित हो..., लेकिन देश में भारत सरकार का आज भी कोई अधिकृत वीर सावरकर का स्मारक नहीं है..., यह तो मुम्बई में , शिवसेना के बाल ठाकरे के भारी सहयोग से दादर स्थान में वीर सावरकर का एकमात्र स्मारक बना

५. याद रहे ..8 जुलाई 2010, को वीर सावरकरजी मार्सेल्स द्वीप की ऐतिहासिक छलांग के पसीने से, 100 वर्षों पूरे होने के उपलक्ष्य में फ़्रांस सरकार, अपने खर्च पर, अपनी भूमि पर मूर्ती का निर्माण कर , सरकारी समारोह से वीर सावरकरजी को अन्तराष्ट्रीय रूप से गौरान्वीत कर, फ़्रांस से विश्व की युवा पीढी को राष्ट्रवाद से यौवान्वित का सन्देश देना चाहती थी .., लेकिन कांग्रेस के लूटेरों ने फ़्रांस सरकार के इस प्रकल्प पर पानी फेर दिया,

६. लेकिन, हाल ही के दौरे में.., जब मोदीजी, फ़्रांस में थे, तब वे, विश्व युद्ध में भारतीय सैनिक, जो अंग्रेजों के पिट्ठू बनकर, जर्मंनी सेनाओं द्वारा फ्रांस में बर्बरता पूर्वक मारे गए .., उनके स्मारक में तो गए.., लेकिन मार्सेल्स द्वीपजहां वीर सावरकर ने ब्रिटिश के चलते हुए पानी के जहाज से, ऐतिहासिक छलांग मारकर, विश्व व क्रांतीकारियों को अचंभित कर दिया था, उस स्थान में मोदीजी ने जाने की जरूरत ही नहीं समझी और न ही उनका उल्लेख अपने भाषण में किया

७. यदि, इस दौरे में मोदी सरकार, फ़्रांस सरकार से अनुरोध करती कि २६ फरवरी २०१६ को , वीर सावरकर की ५० वी पूण्य तिथी के उपलक्ष्य में २०१० के फंसे हुए सावरकर स्मारक के अधूरे काम को पूरा कर, फ्रांस व हिन्दुस्तानी सरकार मिलकर, संयुक्त रूप से माल्यापर्ण दिवस मनाने से वीर सावरकर को गर्वीत करती तो हमारे हिन्दुस्तानीयों के गौरवशाली इतिहास की जागृती से विश्व से देश की जनता में, वीर सावरकर व उनकी कीर्ती व राष्ट्राभिमान से राष्ट्रवाद की महक आती
८. आज ६८ सालों बाद वीर सावरकरको सुभाषचंद्र बोस से भी भयंकर देशद्रोही कह कर, छद्म राष्ट्र निर्माण के मसीहाओ ने, इस इतिहास को इतनी गहन गहराई में दफ़न कर दिया है, ताकि हमें बुजदिल कौम कहकर, देशवासियों को हताश कर, हमारा गौरवशाली अतीत को न जत्लाकर, विदेशी जल्लादों के हाथों हमारे देश को लुटवाते रहें

९. अब देखना होगा २८ मई को मोदी सरकार वीर सावरकर का जन्म दिवस .., एक छोटा समारोह मनाकर..., एक खाना पूर्ती का खेल खेलेगी या सावरकर की विचारधारा का प्रसार करेगी..,

१०. अब सवाल यह उठता है कि क्या यह महान क्रांतीकारी, मोदी सरकार के कार्यकाल में, भी इतिहास के पन्नों में दफ़न रहेगा..और क्या,वीर सावरकर को देशद्रोहीकी श्रेणी से जनता को अब और भी भ्रमित करते रहेंगें...!!!!! =======

April १२,•२०१५ की फेस बुक व वेबस्थल की post
२. १. मोदीजी, आप फ़्रांस में हैं.., लगाओ दहाड़, बने.., मार्सेल्स द्वीप में बने वीर सावरकरजी का स्मारकऔर २६ फरवरी २०१६ को वीर सावरकरजी की ५० वी पूण्य तीथी पर उनका माल्यार्पण हो..

३. 8 जुलाई 2010.., देश के इतिहास का सबसे बड़ा काला दिन, जागो मोदी सरकार, फ़्रांस ने तो श्यामजी वर्मा की अस्थियाँ ७० साल तक सजोई थी, लेकिन सावरकर के पराक्रम की याद व आस्था आज १०५ सालों बाद भी सजोई रखी है

३. आप तो श्यामजी वर्मा की अस्थियों का विसर्जन से गुजरात में इनका स्मारक बनाकर गौरान्वित हो...

४. 8 जुलाई 2010, को वीर सावरकरजी मार्सेल्स द्वीप की ऐतिहासिक छलांग के पसीने से, 100 वर्षों पूरे होने के उपलक्ष्य में फ़्रांस सरकार, अपने खर्च पर, अपनी भूमि पर मूर्ती का निर्माण कर , सरकारी समारोह से वीर सावरकरजी को अन्तराष्ट्रीय रूप से गौरान्वीत कर, विश्व की युवा पीढी को राष्ट्रवाद से यौवान्वित का सन्देश देना चाहती थी .., लेकिन कांग्रेस के लूटेरों ने फ़्रांस सरकार के इस प्रकल्प पर पानी फेर दिया,

५. १९६२ के चीन के दलाल.., मणि शंकर अय्यर जो इंग्लैंड में चीन के युद्ध का समर्थन करते हुए .., चीन के चहेते बनकर भारी चंदा इकठ्ठा कर रहे थे , वे भी नेहरू के चहेते बने रहे.., संसद में वीर सावरकर के तैल चित्र का अनावरण हो, या अंडमान के विमानपत का नाम वीर सावरकर के नाम रखने व फ़्रांस में स्मारक की भूमिका में वीर सावरकर के विरोध में अग्रीम भूमिका निभाकर आज भी कांग्रेस के स्तंभकार बने हुए है...

६ . देश के, सेना के, १४ लाख जवान तो प्रथम विश्व युद्ध मं, आजादी पाने के. कांग्रेसीयों के झांसे से.., ७५ हजार सैनिक तो बलि का बकरा बनेव २ लाख सैनिक विकलांगबने और कांग्रेसी तो , अंग्रेजों के तलुवे चाटकर अपने को, अंग्रेजों का सेफ्टी वाल्व बनाकर, महाबली बनाकर “KINGKONG” की उपाधि से महामंडित करते रहे.

७. याद रहे .., श्यामजी वर्मा ने वीर सावरकर की अप्रतिम प्रतिभा को पहचाना.., और सावरकर ने उनके विचार को सार्थक कर ,इंग्लैंड में श्यामजी वर्मा द्वारा इंडिया हाऊसको विश्व पटल में क्रांतीकारी हाऊसबनाकर, अंग्रेजों के रोंगटे खड़े कर दिए .., सजा के लिए,पानी के जहाज से अंडमान जेल ले जाते समय.., फ़्रांस के रास्ते में, अंग्रेजो के जहाज से एक ऊंची छलांग मार्सेल्स द्वीप के सागर में क्रांतीकारियों के दिलों में गागर भर दिया था

८. विश्व के क्रांतीकारियों में एक राष्ट्रवाद के हलचल से , इस अन्तराष्ट्रीय मुद्दे से एक अमिट छाप छोड़ दी थी.., अंग्रेजों से गुलाम देशों ने भी सावरकर का लोहा माना

९. विश्व समुदाय के विरोध से इनका यह मुकदमा हैग के अन्तराष्ट्रीय अदालत में चलाया गया..., यह भी अप्रितम उदाहरण था

१ ०. जर्मनी के आक्रमण के डर से फ़्रांस व इंग्लैण्ड की संधियों की वजह से उन्हें ५० साल की दो जन्मों के कारावास की कड़ी सजा सुनाकर अंडमान के काला पानी में सजा भुगतनी पड़ी .., लकिन वीर सावरकर की कला से वे मात्र, १३ साल के कारावास से पुनर्जन्म से, एक नए पूर्ण जन्म से.., देश की सेवा निस्वार्थ रूप से.., भारतमाता को गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए , बिना सत्ता मोह से , देश की आजादी को अखंड भारत के प्रखंड विचारों में कायम रहे

११. दोस्तों बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ रहा कि अन्ग्रेंजो के साथ सत्ता की मिलीभगत से देश को खंडित कर अहिंसा के झांसे से १९४७ में, १० लाख से ज्यादा हिन्दुस्तानियों का क़त्ल कर , सत्ता परिवर्तन के झांसे को आजादी कह कर , इन गद्दी दारों ने वीर सावरकर को नजरबन्द व सुभाषचंद्र बोस सरदार भगत सिंग के घरों पर खुफिया निगरानी से, इंग्लैंड की महारानी को, देश के गद्दी दार बनकर क्रांतीकारियों को गद्दार कर देश के टुकड़े कर देश के मसीहा बनकर, लाखों सड़क, मोहल्लों, शहर से देश संस्थानों को अपने नाम व पुतलों से अब अमर कहलाते रहे ...!!!!!!.