Monday 28 August 2023

प्रज्ञान रोवर के प्रबुद्ध ज्ञान से विश्व की उन्नति




 विज्ञान का अर्थ विशेष ज्ञान अब चंद्रयान ३ , चंद्रमा की भूमि में प्रज्ञान ( रौवर ) एक प्रबुद्ध ज्ञान से विश्व को चंद्रमा के लाख़ों वर्षों से छुपे रहस्य का उल्लेख कर आज के विज्ञान द्वारा शोध कर मानवता की सेवा से विश्व उन्नत  होकर सुजलाम सुफ़लाम का संदेश से 

सार्थक बने 






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बेटा प्रज्ञान ,

तू चंद्रमाँ  पर पहुँच गया है , अब सावधानी से बिना गिरे देश को विस्तारीत संदेश देना ताकि हम ब्रह्मांड के अन्य ग्रहों की सैर से देश को शौर्य की उपलब्धि 

प्रदान करें


Son Pragyan

You have reached the moon, now without falling carefully give the detailed message to the country so that we can visit other planets of the universe to achieve the feat of bravery.

Wednesday 23 August 2023

माँ आपके आशीर्वाद व मेरा दृढ़ संकल्प की सफलता , भारत माता को अर्पित

 


एक माँ शतायु की उम्र पूर्ण कर अपने बेटे नरेंद्र  को प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद देकर…, देश के ९ साल के उन्नत कार्य को देखकर , विश्व में कीर्ति से संतुष्ट होकर इस दुनिया को अलविदा कर , बचपन में हर बालिग़ का माता द्वारा चंदामामा को दिखाकर एक स्वप्न पैदा होता है ख़ासकर भोजन के समय कहानी सुनाकर बालक इस उत्सुकता से रोटी / दलिया खा कर स्वस्थ रहता था 




( आज की माताओं ने भोजन के समय बच्चों को हाथ में मोबाइल पकड़ा कर उनके जीवन को गुमराह कर , बालक चंद्रमा से अनजान व प्रकृति से अनभिज्ञ है )




यह माताजी हीरा बेन का आशीर्वाद है की देश को एक आत्मविश्वासी प्रधानमंत्री मिला जिसका जुनून कभी हार न मानने व ग़लतियों से सबक़ लेकर कैसे विजय को उत्सव में परिवर्तित किया जा सकता है 





याद रहे “इसरो” ऐसा संस्थान है जो हमारे देश के वैज्ञानिकों के बल बूते उन्नत होते गया मोदी सरकार के पहिले ख़ासकर मंदबुद्धि मनमोहन सरकार के समय उनकी प्रथम 

मुख्य प्राथमिकता 2G 3G, कोयला व सैकड़ों घोटालों से common wealth से माफियाओं की हेल्थ बढ़ाने में मशगूल थे , व इनके कार्यकाल में देश के वैज्ञानिकों ने जिन्होंने देश को उन्नत बनाने में सहयोग दिया उनकी हत्या का सिलसिला शुरू हुआ था 


याद रहे “चंद्रयान 2” के जीवंत प्रसारण के समय मोदीजी भी “इसरो केन्द्र”  में उपस्थित थे


व चंद्रयान 2 के सफलता से उतरने के पहिले हिचकोले खाने से देश के वैज्ञानिकों में अपनी मेहनत के सफलता का सदमा लगा


व इसरो के डाईरेक्टर सोमनाथ फ़फ़क फफ़क कर रोने लगे तब मोदीजी नें उन्हें ढाढस बढ़ाते हुए कहा आपके संगठन की विजय ज़रूर होगी , आप लोगों को चंद्र यान के अगले मिशन में धन की कमी नही होगी 


यह वैज्ञानिकों का कमाल है की कम पैसों में इस मिशन को पूरा कर रहें हैं .


प्रधानमंत्री इस मिशन की सफलता के लिए दक्षिण अफ़्रीका के ब्रिक्स सम्मेलन से समय निकालकर “चंद्र यान 3 “ का जीवंत प्रसारण देख रहें है


प्रयत्न व साभार 

www.meradeshdoooba.com

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चंदामामा दूर के नही…. , एक दिन तू देश को चाँद पर ले जाएगा .


Chanda Mama is not far away…. One day you will take the country to the moon.


तेरा बचपन का सपना अब प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरा होग़ा


Your childhood dream will now be fulfilled after becoming the prime minister.


देख बेटा तेरे बचपन के सपने को प्रधानमंत्री बनकर , देश की कीर्ति को चाँद पर पहुँचा दिया है


Look son, by becoming the Prime Minister of your childhood dream, the country's fame has reached the moon.


माँ आपके आशीर्वाद व मेरा दृढ़ संकल्प की सफलता , भारत माता को अर्पित

Mother your blessings and success of my determination, dedicated to Mother India

Friday 18 August 2023

शरद पवार मेरे गुरु व राजनीति के भीष्म पितामह हैं

 




चेतों.., चेतों…, मोदी सरकार …, आपकी विश्व व देश की बड़तीं रैंकिंग से देशवासी गर्वित है व वोट बैंक का सूपड़ा साफ़ हो रहा है ,देशवासियों ने तो ठान लिया था आपको आगामी लोकसभा चुनाव में ४००+ सीटों से जिताने का 


देशवासी तो अब सन्न है , विकास के गंगोत्री में महाराष्ट्र के दो मंत्रियों के भ्रष्टाचार का ज़हर मिलाकर , यह जनता पर पुराने सरकारों की तरह क़हर ढहाने की प्रतिक्रिया है 



चाचा -भतीजा जिन्होंने देश से महाराष्ट्र का पानी पी लिया  और देश के किसान बिना पानी पिये , सूखे गले कोस रहें है की हम अन्ना दाता का खून चूसकर, जमाख़ोरों के गठबंधन से महँगाई के चाबुक से भ्रष्टाचार से जनता कराह रही थी 




तब कांग्रेस से राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी जनता को बहका कर का रहें थे “ हमारे पास जादू की छड़ी नहीं है की महंगाई दूर हो जाये “


चेतों…,चेतों…, चेतों…,

यह खेल सत्ता के लालसा में  आपकी पार्टी  को रसातल में ले जायेगी ..



और देश को पुनः डुबोने का मार्ग प्रशस्त होगा 


प्रयत्न व साभार 

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शरद पवार मेरे गुरु व राजनीति  के भीष्म पितामह हैं


Sharad Pawar is my mentor and Bhishma Pitamah of politics

Tuesday 15 August 2023

१५ अगस्त १९४७ .., देश का वीभत्स दिवस

 १५ अगस्त १९४७ .., देश का वीभत्स दिवस .., 




(प्रधान मोदीजी भी बार -बार संबोधित कर चूकें है )


सीमा से देश के भीतर २५ लाख सनातनी  की हत्या से पशुओं के कसाई खाने का साक्षात दृश्य का नज़राना दिखाई दे रहा था 


Direct - Action के नारे से जिन्ना हावी था इसलिए हिंदुस्तान से एक दिन पहिले आजादी ली 




बिना खड्ग बिना ढाल मोहनदास गाँधी ने अपना खड्ग व ढाल भी हिंसा करवाने वाले को देकर स्वन्य को महापंडित कर ,पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं का तिरस्कार उन्हें शरणार्थी मानने से इंकार कर उन्हें पाकिस्तान जाने का आदेश दिया व अनशन की धमकी दी 


नेहरू जो गाँधी के कहने पर उतावली से प्रधानमंत्री पद की 

कुर्सी से चिपक गये 


यह बेगुनाह २५ लाख लोगों के रक्तरंजित  खून से कराहती भारतमाता के कटे अंगों का साक्ष्यात प्रमाण था


अंत में हमने ब्रिटिश सरकार से याचना कर द्वितीय विश्व युद्ध में देश एक लाख हिंदुस्तान की हत्या करवाकर Transfer of Power से ९९ साल के सत्ता का करार से आज़ादी के नाम से आज ७६ सालो बाद भी जनता को गुमराह किया जा रहा है 


दोस्तों एक चिंतन करने वाली प्रेरणा है की  द्वितीय युद्ध में भी २५ लाख सैनिक नही मारे गये.जितने देश में मारे गये थे 


यदि क्रांति से यह ,स्वतंत्रता  मिली होती तो हमें १९१५ में प्रथम 

विश्वयुद्ध में अखंड विशाल भारत …, बर्मा श्रीलंका से हिन्दूकुश का भू- भाग मिलता 


इस का एक ही निचोड़ है कि देश के कालें अंग्रेजों ने अहिंसा के नाम से safety valve बनकर क्रांतिकारियों की हत्या से यू कहे अशोक स्तंभ के शेरों के दाँत तोड़कर उन्हें असहाय कर अपने को सुरक्षित कर सत्ता पर ९९ साल के कारगर से क़ब्ज़ा  कर लिया…


साभार 

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१५ अगस्त १९४७ - देश का वीभत्स रक्त रंजित दिवस

August 15, 1947 - country's gruesome blood-stained day


इस अखंड भारत के विशालकाय बरगदी वृक्ष को काटना ही होगा , नही तो हमारा अस्तित्व ख़तरे में आ जायेगा

मेरा अखंड भारत का सपना चूर - चूर , 

देश अमानवता के खूनी खेल से खंडित व क्रूरता करने वाले महापमंडित


Shattered my dream of united India

The country divided by the bloody game of inhumanity and brutality

Monday 14 August 2023

१५ अगस्त के ७५ वर्ष पूरे होने एक नया जीवंत नारा - “ जो देश से करे प्यार वह कभी नही करे भ्रष्टाचार “

 


NewWBST@@0@1 चेतो मोदी सरकार लाल क़िले से इस नये नारे की अब करों हुंकार.. 


घुसपैठियों भारत छोड़ों


विदेशी माफियाओं का काला धन वापस लाओ…



“जो करे देश से प्यार…, वह कभी नही करे भ्रष्टाचार…,



Let the Modi government shout this new slogan from the Red Fort.


infiltrators leave india


bring back the black money of foreign mafia



“Whoever loves the country…, he should never do corruption…,



मोदीजी, आप चिंतित है की देश की अर्थवस्था ३ से ६ ट्रिलियन होने की….


यह नारा सफल होने पर जातिवाद व वोट बैंक की राजनीति ख़त्म होकर देश पांच  सालों  मे ३० ट्रिलियन से अधिक की अर्थव्यस्था बनकर विश्वगुरु बन जाएगा 

Wednesday 9 August 2023

वीर सावरकर की सार्थक भविष्यवाणी - १९४२ - यह “भारत छोड़ो” आंदोलन नही . यह “भारत तोड़ो” आंदोलन है


 

कृपया लंबा लेख पढ़ कर , मंथन करे …,


१९४२ में वीर सावरकर ने कांग्रेसियो को चेताया की आज़ादी चाहिये तो क्रांति द्वारा, याचना व शांति द्वारा पायी गयी आजादी देश के इतिहास व नई पीढ़ी,देश की भक्ति, धर्म, संस्कार, पुरखों के बलिदान से विमुक्त होकर देश पुनः विदेशी भाषा, हाथ , साथ, विचार  व संस्कार से ग़ुलामी के जंजीरो में जकड़ते जाएगा 


और यह “भारत छोड़ों आंदोलन” छद्म है यह अंततः “भारत तोड़ो आंदोलन” बनेगा 

इसके ठीक ५ साल बाद हमे याचना से अंग्रेजों के शर्त पर खंडित हिंदुस्थान मिला 


वीर सावरकर नेहरू को हमेशा चेताते रहे यह स्वतंत्रता “आराम हराम है “ के नारे से सत्ता की अय्याशी देश को ले डूबेगी 


देश के विकास से 

पहिले देश की सीमाओं की सुरक्षा प्राथमिक है 


वीर सावरकर ने नेहरू को चुनौति देते हुए कहा था मैं सत्ता लोलुप्त नही आप मुझे २ साल के लिए राष्ट्रपति का पद दें तो मैं सेना को सुसज्जित व सबल बनकर देश का हर नागरिक गर्वित व विश्व अचंभित रहेगा 

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यदि प्रधानमंत्री भी वीर सावरकर के उद्देश्य से सिर्फ़ एक प्राथमिक नारा “घुसपैठियों भारत  छोड़ों”  का नारा सार्थक नहीं किया तो ठीक पाँच बाद सन् २०२८ में देश का नक़्शा  भारत तोड़ो से टुकड़े गैंग हावी होके रक्तपात का दौर शुरू होगा 

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इस लेख के पहिले 5 अगस्त को कश्मीर जोड़ों दिवस धारा 370 व 35 (A) को धवस्त करने की  तीसरी वर्ष गांठ के लिए इस अविस्मरणीय दिवस के उपलक्ष्य  में हमारे सम्माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुत –बहुत  बधाई ...


 ८  अगस्त १९४२ भारत तोड़ो दिवस...., जिन्ना के DIRECT  ACTION दिवस  की नीव पढ़ गई  व  कवि इकबाल के झण्डा ऊंचा रहे हमारा  तिरंगा को हरे रंग के सल्तनत बनाने के पहिले 1943 को  अल्लाह को प्यारे हो गए …


वीर परमवीर दामोदर सावरकर की दमदार  भविष्यवाणी 14th अगस्त 1947 को सार्थक हुई ...


८ अगस्त  १९४२ अखंड भारत के इतिहास का विश्वास घातक दिवस .,यह “भारत छोड़ों” आन्दोलन नहीं“भारत तोड़ों” आन्दोलन है तुम्हारी तिकड़ी अखंड भारत के साथ धोखा है तुष्टिकरण से सत्तालोलुपता के “अखंड भारत” को “खंडित भारत” से देशवासियों को एक गंदी राजनीती से देश को गर्त में ले जाएगा – वीर सावरकर


८  जून १९४२ अखंड भारत के इतिहास का घातक दिवस, की ७६ वी बरसी ,देश के डाकुओं द्वारा तुष्टिकरण के अस्त्र से देश को खंडित करने का बीजोरोपण साबित हुआ ... पतंजली के ज्ञाता वीर ही नहीं परमवीर सावरकर की यह ४० से अधिक भविष्यवाणी वाणियों में यह एक सटीक भविष्य वाणी है.


१.             ये गांधी की ही देंन थी कि, भारत सरकार पर ५५ करोड़ रु. पाकिस्तान को देने का दबाव डाला, माउंटबैटन ने गांधीजी को पाकिस्तान को ५५ करोड़ रु. दिलवाने की सलाह दी. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया. कश्मीर में युद्ध चलाए रखने के लिए उसे धन की सख्त जरुरत थी. गांधीजी ने पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपए रोकड़ राशि में से दिलवाने के लिए, नेहरु और पटेल पर दबाव डालने हेतु, आमरण उपवास आरम्भ किया. अन्ततोगत्वा, नेहरु और पटेल उपर्युक्त राशी पाकिस्तान को देने को विवश हुए, यद्यपि बाद में पाकिस्तान को इससे भी अधिक धन-राशी भारत को देनी थी. जो आज तक नहीं मिली

२.            गांधी ने भारत – विभाजन कराने वाली भयंकर भूलों के तो बीज बो दिए थे

विघटन के बीज लखनऊ-पैक्ट (समझौते) में, जब कांग्रेस ने लखनऊ पैक्ट में दो विषाक्त सिद्धांत स्वीकार किए : पहला ,संप्रदाय के आधार पर मुसलमानों को प्रतिनिधित्व, तथा मुस्लिम लीग को भारत के सभी मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था मान्य.,सिद्धांत रूप में तो कांग्रेस द्वी राष्ट्रवाद को अस्वीकार करती थी, परन्तु व्यवहार में उसने लखनऊ-पैक्ट के रूप में उसे मान लिया क्योकि इसमें मुसलमानों की लिए पृथक मतदान स्वीकार किया गया था. इस प्रकार इस पैक्ट में विभाजन का बीज बोया गया.

 हिंदुस्थान के प्रतिनिधि तीन कट्टर मुसलमान थे, मार्च १९४६ में ब्रिटिश सरकार के मंत्रिमंडल के तीन सदस्य, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स, मि.ए.वी. अलेग्जेंडर और लार्ड पैथिक लारेंस वार्ता और विचार-विमर्श के लिए भारत आए. हिन्दुओ की पूण्य भूमि हिंदुस्थान का प्रतिनिधित्व तीन कट्टर मुसलमानों ने किया. भारतीय कांग्रेस और हिंदुस्थान के समस्त हिन्दुओ के प्रतिनिधि थे कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद. .मुहम्मद अली जिन्ना, मुस्लिम लीग के अध्यक्ष , हिंदुस्थान के मुसलमानों के प्रतिनिधि थे! नवाब भोपाल ने भारत की देसी रियासतों के शासको का प्रतिनिधित्व किया. ब्रिटिश सरकार की ओर से तीन ईसाई और हिंदुस्थान की ओर से तीन मुसलमान हिंदुस्थान के ७७ प्रतिशत हिन्दुओ के भाग्य का निर्णय करने को बैठे.


३. कांग्रेस ने हिन्दू मतदाताओं को धोखा दिया,जब.. कांग्रेसियों ने १९४६ का निर्णायक चुनाव‘अखंड भारत ’के नाम पर लड़ा था. बहुमत प्राप्त करने के बाद ,उन्होंने पाकिस्तान के कुत्सित प्रस्ताव को मान कर हिन्दू मतदाताओ के साथ निर्लज्जतापूर्वक विश्वासघात किया. वीर सावरकर ने उनकी भर्त्सना की कि जब उन्होंने निर्लज्ज होकर अपना सिद्धांत बदला है, और अब वे हिन्दुस्तान के विभाजन पर सहमत हो गए है, तो या तो वे अपने पदों से त्यागपत्र दे और स्पष्ट पाकिस्तान के मुद्दे पर पुन: चुनाव लड़े या मातृभूमि के विभाजन के लिए “जन-मत ” कराएं .


४. कांग्रेसियों ने विभाजन क्यों स्वीकार किया?इसमें गांधी की अहम छद्म अहिंसा का मूल मंत्र था,कांग्रेसियों ने मुस्लिम लीग द्वारा भड़काए कृत्रिम दंगो से भयभीत होकर जिन्ना के सामने कायरता से घुटने टेक दिए .यदि दब्बूपन, आत्म-समर्पण, घबराहट और मक्खनबाजी के जगह वे मुस्लिम लीग के सामने अटूट दृढ़ता तथा अदम्य इच्छा शक्ति दिखाते, तो जिन्ना पाकिस्तान का विचार छोड़ देता. लिआनार्ड मोस्ले के अनुसार पंडित नेहरु ने इमानदारी के साथ स्वीकार किया कि बुढापे ,दुर्बलता ,थकावट और निराशा के कारण उनमे विभाजन के कुत्सित प्रस्ताव का सामना करने के लिए एक नया संघर्ष छेड़ने का दम नहीं रह गया था.उन्होंने सुविधाजनक कुर्सीयों पर उच्च पद-परिचय के साथ जमे रहने का निश्चय किया. इस प्रकार राजनितिक-सत्ता, सम्मान और पद के लालच से आकर्षित विभाजन स्वीकार कर लिया.


५. क्या दंगे रोकने का उपाय केवल विभाजन ही था?, सरदार पटेल गांधीजी के पिंजरे में बंद एक शेर थे. उन्हें दंगाइयों के साथ “जैसे को तैसा”घोषणा करने के लिए खुली छूट नहीं थी, इसलिए उन्होंने क्षुब्ध होकर कहा था, “ये दंगे भारत में कैंसर के सामान है. इन दंगो को सदा के लिए रोकने के लिए एक ही इलाज ‘विभाजन ’है”. यदि आज सरदार पटेल जीवित होती, तो वे देखते की दंगे विभाजन के बाद भी हो रहे है. क्यों? क्योंकि जनसँख्या के अदल-बदल बिना विभाजन अधूरा था.


६. जनसंख्या के अदल-बदल बिना विभाजन का गांधी ने सुखाव ठुकरा दिया.. यदि ग्रीस और टर्की ने ,साधनों के सिमित होते हुए भी ,ईसाई और मुस्लिम आबादी का अदल-बदल कर के,मजहबी अल्पसंख्या की समस्या का मिलजुल कर समाधान कर लिया ,तो विभाजन के समय में हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं किया गया? खेद है की पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेसी नेताओ ने इस संबंध में डा. भीमराव आंबेडकर के सूझ्भूझ भरे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिन्ना ने भी हिन्दू-मुस्लिम जनसँख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था. परन्तु मौलाना आजाद के पंजे में जकड़ी हुई कांग्रेस ने नादानी के साथ इसे अस्वीकार कर दिया. कांग्रेसी ऐसे अदूरदर्शी थे कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि जनसंख्या की अदला-बदली बिना खंडित हिंदुस्थान में भी सांप्रदायिक दंगे होते रहेंगे.


७. पाकिस्तान को अधिक क्षेत्रफल दिया गया,१९४६ के निर्णायक आम चुनाव में, अविभाजित हिंदुस्थान के लगभग सभी (२३%) मुसलमनो ने पाकिस्तान के लिए वोट दिया ,परन्तु भारत के कुल क्षेत्रफल का ३०% पाकिस्तान के रूप में दिया गया. दुसरे शब्दों में उन्होंने अपनी जनगणना की अनुपात से अधिक क्षेत्रफल मिला ,यह जनसंख्या भी बोगस थी. फिर भी सारे मुस्लिम अपने मनोनीत देश में नहीं गए.


८. झूठी मुस्लिम जन-गणना के आधार पर विभाजन का आधार माना, कांग्रेस ने १९४९ तथा १९३१ दोनों जनगणनाओ का बहिष्कार किया. फलत:, मुस्लिम लीग ने चुपके-चुपके भारत के सभी मुसलमानों को उक्त जनगणनाओ में फालतू नाम जुडवाने का सन्देश दिया. इसे रोकने वाला या जाँच करने वाला कोई नहीं था. अत: १९४१ की जनगणना में मुसलमानों की संख्या में विशाल वृद्धि हो गई. आश्चर्य की बात है कि कांग्रेसी नेताओं ने स्वच्छा से १९४१ की जनगणना के आंकड़े मान्य कर लिए, यद्यपि उन्होंने उसका बहिष्कार किया था. उन्ही आंकड़ा का आधार लेकर मजहब के अनुसार देश का बटवारा किया गया. इस प्रकार देश के वे भाग भी जो मुस्लिम बहुल नहीं थे,पाकिस्तान में मिला दिए गए.


९. स्वाधीन भारत का अंग्रेज गवर्नर जनरल की सहमती दी....,गांधीजी और पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्खता के साथ माऊंट बैटन को दोनों उपनिवेशों, हिंदुस्थान और पाकिस्तान का गवर्नर जनरल, देश के विभाजन के बाद भी मान लिया. जिन्ना में इस मूर्खतापूर्ण योजना को अस्वीकार करने की बहुत समझ थी. अत: उसने २ जुलाई १९४७ को पत्र द्वारा कांग्रेस और माऊंट बैटन को सूचित कर दिया की वह स्वयं पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनेगा.परिणाम यह हुआ की माऊंट बैटन स्वाधीन खंडित बहरत के गवर्नर जनरल नापाक-विभाजन के बाद भी बने रहे.


१०. सीमा-आयोग का अध्यक्ष अंग्रेज पदाधिकारी को मनोनीत किया गया ,माऊंट बैटन के प्रभाव में,गांधीजी और पंडित नेहरु ने पंजाब और बंगाल के सीमा आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीरिल रैड क्लिफ को स्वीकार कर लिया.सीरिल रैडक्लिफ जिन्ना का जूनियर (कनिष्ठ सहायक) था, जब उसने लन्दन में अपनी प्रैक्टिस आरम्भ की थी. परिणाम स्वरुप, उसने पाकिस्तान के साथ पक्षपात और लाहौर, सिंध का थरपारकर जिला,चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र, बंगाल का का खुलना जिला एवं हिन्दू-बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिला दिये


११. बंगाल का छल-पूर्ण सीमा निर्धारण किया गया,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदासीनता के कारण ४४ प्रतिशत बंगाल के हिन्दुओ को ३० प्रतिशत क्षेत्र पश्चिमी बंगाल के रूप में संयुक्त बंगाल में से दिया गया.५६ प्रतिशत मुसलमानों को ७० प्रतिशत क्षेत्रफल पूर्वी पाकिस्तान के रूप में मिला.

चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र जिसमे ९८ प्रतिशत हिन्दू-बौद्ध रहते है,एवं हिन्दू-बहुल खुलना जिला अंग्रेज सीमा-निर्धारण अधिकारी रैडक्लिफ द्वारा पाकिस्तान को दिया गया.कांग्रेस के हिन्दू नेता ऐसे धर्मनिरपेक्ष बने रहे की उन्होंने अन्याय के विरुद्ध मुँह तक नहीं खोला.


१२. सिंध में धोखे भरा सीमा-निर्धारण किया, जब सिंध के हिन्दुओ ने यह मांग की की सिंध प्रान्त का थारपारकर जिला जिसमे ९४ प्रतिशत जनसँख्या हिन्दुओ की थी,हिंदुस्थान के साथ विलय होना चाहिए,तो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने सिन्धी हिन्दुओ की आवाज इस आधार पर दबा दी की देश का विभाजन जिलानुसार नहीं किया जा सकता.परन्तु जब आसाम के जिले सिल्हित की ५१ प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने पकिस्तान के साथ जोड़े जाने की मांग की,तो उसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया.

बोलू: मजहब के आधार पर विभाजन-धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गांधी का खेल था... यदि गांधीजी पंडित नेहरु सच्चे धर्म-निर्पेक्षतावादी थे तो उन्होंने देश का विभाजन मजहब के आधार पर क्यों स्वीकार किया?