बापू के तीन बंदर, अब बन गये है मस्त कलन्दर –मेरा देश डूबा.कांम से
बोलू: गांधी ने अंगेजों के चाटुकारिता की वजह से ही , (भाग-४ कुल २० भागों मे) , भारतीय नौसेना के विद्रोह के प्रति कांग्रेस नेताओ का विश्वासघात था जब , १८ फ़रवरी १९४६ को लगभग २०,००० भारतीय नौसेनिको ने बम्बई में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया. गांधी को इस विद्रोह में ‘हिंसा’ की बू आई .फलत: वे नौ-सैनिको के समर्थन में एक शब्द भी नहीं बोले. भारतीय नौसेना के क्रोधित जवानो ने गांधी के अहिंसा-सन्देश को मातृभूमि के प्रति छलावा और विश्वासघात माना. यदि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और पंडित नेहरु, नौसेना के इस विद्रोह को समर्थन देते, तो देश का विभाजन होने की नौबत न आती.
सुनू: गांधी ने अपने प्रार्थना सभा में विभाजन का अनुमोदन किया, ४ जून १९४७ को, जब गांधीजी ने पहली बार प्रार्थना सभा में विभाजन का अनुमोदन किया, तो किसी ने उनके शब्दों की याद दिलाई: “भारत का विभाजन करने से पहले,मेरे टुकड़े कर डालो!”
गांधीजी ने उत्तर दिया: “जब मैंने यह शब्द बोले थे तो जनता मेरे साथ थी. आज जब जनता मेरा विरोध कर रही है,तो मैं क्या करू?”, असत्य पर आधारित गांधीजी के इस स्पष्टीकरण को सुनकर प्रार्थना में उपस्थित सभी लोग स्तब्ध रह गए.
देखू: गांधीजी ने ‘विभाजन’ स्वीकृत कराने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के विवेक पर पानी फिर दिया था , जब १४-१५ जून १९४७ को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के अधिवेशन में विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकार होने वाला था .इस निर्णायक क्षण पर, सत्य-साधक गांधीजी जिन्होंने प्रण किया था की देश का विभाजन उनकी लाश पर ही होगा, हस्तक्षेप करने के लिए आ धमके. उन्होंने बड़ी चतुराई से संवेदंशील कांग्रेस सदस्यों के आत्म-विवेक को धो डाला और विभाजन-प्रस्ताव का समर्थन परिपुष्ट किया. उन्होंने तर्क दिया कि क्योकि उनकी प्रतिनिधि कांग्रेस कार्यकारिणी उसे पहले ही पारित कर चुकी है, उनका कर्त्तव्य हो जाता है की वे कार्यकारिणी के समर्थन में डट कर खड़े हो, अन्यथा दुनिया सोचेगी की उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष और कार्यकारिणी में विश्वास नहीं है.
बोलू: गांधी तो, सम्पूर्ण भारत को पाकिस्तान बनाने की संस्तुति के हिमायती थे. गांधी एक पग आगे और बढे और कहा की यदि लोक-हित करने में पाकिस्तान आगे रहता है, तो सारे भारत को ही पाकिस्तान बना दिया जाय और वे अपनी भूल स्वीकार करने और प्रत्येक व्यक्ति से पाकिस्तान स्वीकार करने की संस्तुति में सबसे आगे रहेंगे.
सुनू: गांधी की तुष्टीकरण की नीति , गंदी राजनीति में परिवर्तित हो गई , जब उन्होंने कहा कि हिंदुस्थान नहीं ,इंडिया कहो , स्वेच्छाचारी तानाशाह के समान गांधीजी ने घोषणा की कि मुस्लिम-बहुल क्षेत्र स्वयं को ‘पाकिस्तान’ पुकार सकते है, परन्तु शेष भारत का विशाल भाग स्वयं को हिन्दुस्तान न पुकारे, क्योकि उसका अर्थ ‘हिन्दुओ’ का ‘देश’ होता है.
देखू: जिन्ना ने दो युक्तिसंगत सुझाव गांधीजी को दिए थे जो उनके द्वारा द्वारा अस्वीकार का दिया गया, गांधीने जिन्ना के दो युक्तिसनागत सुझाव स्वीकार नहीं किए उसमे पहला था कि वे खिलाफत आन्दोलन का समर्थन न करे. और दूसरा ...विभाजन के समय हिन्दू-मुस्लिम जनता की अदला-बदली होनी चीहिए. बाबा साहेब आंबेडकर ने तो इसका पुरजोर समर्थन किया था, यदि गांधी और नेहरु इस सुझाव को मानकर क्रियान्वयन करते, तो विभाजन-परवर्ती नरसंहार को रोका जा सकता था और विभाजन के बाद भी खंडित-भारत में हमे निरंतर हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक दंगों का सामना न करना पड़ता.
सुनूँ: गांधीजी ने मंत्रिमंडल के निर्णय को बदलवाया, पंडित नेहरु की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने सरदार पटेल की प्रार्थना पर यह निर्णय किया कि, सोमनाथ मंदिर का पुर्निर्माण सरकार के खर्चे पर होना चाहिए. परन्तु छद्म धर्म-निर्पेक्षतावाद के मसीहा गांधी ने, जो न मंत्रिमंडल के और न कार्यकारिणी के सदस्य थे, इस निर्णय को बदलवाया और आग्रह किया कि मंदिर सरकारी अनुदान से नहीं, जनता के दान से बनना चाहिए. बाद में १३ जनवरी १९४८ को गांधीजी ने ऐतिहासिक आमरण उपवास रख कर नेहरु और सरदार पटेल पर दबाव डाला कि दिल्ली की मस्जिद का पुर्ननिर्माण सरकार की खर्चे पर हो. यह कांग्रेसी जो “गांधी को अहिंसा के पुजारी” कहते थे, यह तो गांधी का दोगलापन ही था
देखू: विभाजन के समय जब पकिस्तान से हिन्दू विस्थापित कड़कते शीत में सडको पर फेंके गए, हजारो हिन्दू-सिख विस्थापित, पाकिस्तान में अपने बहुमूल्य घर, सम्पति और उनके बच्चो और महिलाओं को भी गँवा कर, दिल्ली जैसे तैसे पहुचे और उन्होंने पाकिस्तान जाने वालो द्वारा खाली छोड़ी हुई लावारिस मस्जिदों में शरण ले ली थी. हिंदुस्थान की हिन्दू पुलिस ने इन असहय हिन्दू शरणार्थियो को बूढों-औरतो-बच्चो समेत घसीट कर मस्जिदों के बाहर निकला और दिल्ली की सडको पर कड़कते जाड़े में, सनसनाती सर्द हवाओं में कपकपाते हुए, गांधीजी की इच्छा पूरी करने के लिए धकेल दिया.
सुनूँ: ये गांधी की ही देंन थी कि, भारत सरकार पर ५५ करोड़ रु. पाकिस्तान को देने का दबाव डाला, माउंटबैटन ने गांधीजी को पाकिस्तान को ५५ करोड़ रु. दिलवाने की सलाह दी. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया. कश्मीर में युद्ध चलाए रखने के लिए उसे धन की सख्त जरुरत थी. गांधीजी ने पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपए रोकड़ राशि में से दिलवाने के लिए, नेहरु और पटेल पर दबाव डालने हेतु, आमरण उपवास आरम्भ किया. अन्ततोगत्वा, नेहरु और पटेल उपर्युक्त राशी पाकिस्तान को देने को विवश हुए, यद्यपि बाद में पाकिस्तान को इससे भी अधिक धन-राशी भारत को देनी थी. जो आज तक नहीं मिली
बोलू: यह बात... नाथूराम गोडसे को नागवारा लगी , गांधी की जो हिन्दुस्थान की ५५ करोड़ रु. की रूपये रोकड़ राशि पाकिस्तान को दें दी थी..., इसी पैसे से, जो पाकिस्तान भारत को तोड़ने की साजिस करेगा , उसे यह बात इतनी चुभी कि उसने गांधी की हत्या कर..., अदालत में खुले आम स्वीकार, किया कि “यह मेरे अंतरात्मा की आवाज है,” कि भविष्य में गांधी ऐसे तुष्टीकरण की जिद से, देश को बर्बाद कर देंगें
देखू: फिर भी नाथूराम गोडसे के बयान के बावजूद, कांग्रेस ने एक नया पांसा फेका और महान क्रांतीकारी वीर सावरकर व राष्ट्रीय स्वंय संघ को इसमें घसीटा, ताकि उनके नाम का प्रयोग कर गांधी को “ अहिंसा का महान पुजारी” के हत्यारे के रूप में दिखाकर, अपनी सत्ता चमकायें लकिन अदालत ने वीर सावरकर व राष्ट्रीय स्वंय संघ को निर्दोष साबित कर, कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया
सुनूँ: गांधी ने एक बड़ा छल किया , जो सरदार पटेल के विरुद्ध आरोप-अभियान चलाया था . जब, गांधी द्वारा आमरण उपवास का निर्णय उस आरोप-अभियान का परिणाम था जो मौलाना आजाद ने चलाया था और जिसे पंडित नेहरु का गुप्त समर्थन प्राप्त था. उपवास की अवधि में सबसे अधिक भेंट के लिए आने वाले नेता मौलाना आजाद ही थे.उन्होंने ही गुप्त रूप से गांधीजी पर दबाव डाला कि उपवास तोड़ने से पहले वे अपनी सातों शर्ते मनवा ली. सरदार पटेल ने समझाने का प्रयत्न किया कि उनके उपवास से हिन्दुओ की, भारत सरकार की और गृहमंत्री की दुनिया की आँखों में बदनामी होगी.परन्तु मौलाना आजाद द्वारा दिग्भ्रमि हो कर दृढ़ता से अड़े रहे.