Saturday 30 April 2016
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www.meradeshdoooba.com: जागे हुए लोगों से कहता हूँ..., जम्हाई लेतें हैं..,...: जागे हुए लोगों से कहता हूँ..., जम्हाई लेतें हैं.., सोते हुए लोगों से कहता हूँ..., अंगडाई लेते हैं ...,तब कब्र के मुर्दे से कहा , मैं क...
जागे हुए लोगों से कहता हूँ..., जम्हाई लेतें हैं.., सोते हुए लोगों से कहता हूँ..., अंगडाई लेते हैं ...,तब कब्र के मुर्दे से कहा , उसने मुझसे कहा,मैं कुछ और कह पाता, मुझे भ्रष्टाचार का इंजेक्शन लग चुका था, “आप देशद्रोही बनकर , देश के लिए पागल होकर कुछ तो कहो,ताकि मेरी मजार पर आदर्श नेताओं , माफियाओं की मंजिल न बन सके”
जागे हुए
लोगों से कहता हूँ..., जम्हाई लेतें हैं.., सोते हुए लोगों से कहता हूँ..., अंगडाई
लेते हैं ...,तब कब्र के मुर्दे से कहा , उसने मुझसे कहा,मैं कुछ और कह पाता, मुझे भ्रष्टाचार का इंजेक्शन लग चुका था, “आप
देशद्रोही बनकर , देश के लिए पागल होकर
कुछ तो कहो,ताकि मेरी मजार पर आदर्श
नेताओं , माफियाओं की मंजिल न बन सके”
क्या अब
आदर्श भवन के भव्य भ्रष्टाचार के महल के साथ मुंबई स्थित मुकेश
अम्बानी के महलनुमा घर ‘एंटीलिया’ को भी ध्वस्त
करने का आदेश देकर एक स्वस्थ क़ानून का निमार्ण होगा .
सेना –
सत्ता – राजनेता – नौकरशाही का अटूट आदर्श जोड़ .. ६ मंजिल के भवन को ३१ मंजिला भवन द्रुत गति से बना कर देश के धूर्तों का का खेल ...,
जनरल दीपक कपूर ने कारगिल के शहीदों के नाम पर एक फ्लैट हड़प लिया .., इसी रेलम –
पेल में सभी NOC देने की एवज अधिकारीयों वालों
की फ्लैट देने की शर्त में ६ मंजिला इमारत
की भ्रष्टाचार की ३१ मंजिलें बन गई.
आदर्श घोटाले की गुत्थी सुलझाने के दौरान धीरे-धीरे वो राज सामने आ रहे हैं
जिनकी जड़ें सेना में फैले भ्रष्टाचार से जुड़ी हैं। रिटायर्ड जनरल दीपक कपूर और
मुंबई एरिया चीफ मेजर जनरल आर के हुड्डा की बेनामी प्रॉपर्टी खंगाल रही सीबीआई के
हाथ कुछ ऐसे दस्तावेज लगे हैं जिनमें जनरल कपूर समेत आर्मी के बड़े अधिकारियों पर
सेना की जमीन को अवैध तरीके से बिल्डर को बेचने का आरोप है
इसी भ्रष्टाचार की लूट की छूट की आड़ में मुकेश अमबानी अम्बानी नने १२ हजार
करोड़ के २७ मंजिले भवन, जो दुनिया का सबसे महंगा घर
है एंटीलिया की जमीन कौड़ी के भाव में खरीद ली
दुनिया
के सबसे बड़े अमीरों में शामिल बिजनेसमैन मुकेश का अंबानी का मुंबई स्थित महलनुमा
घर ‘एंटीलिया’ एक बार
फिर सवालों के घेरे में है। महाराष्ट्र विधानसभा वक्फ बोर्ड द्वारा पेश की गई
एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड ने अंबानी को घर बनाने
के लिए जमीन बेचने के लिए गलत तरीके अपनाए.
रिपोर्ट के अनुसार वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी को निजी उपयोग के लिए नहीं बेचा
जा सकता, क्योंकि
यह ट्रस्ट की संपत्ति होती है. विधानसभा
में पेश एटीआर में कहा गया है कि करीम भाई इब्राहिम ने 1986 में यह
जमीन धार्मिक शिक्षा और अनाथालय बनाने के लिए वक्फ बोर्ड को दी थी, लेकिन
बोर्ड ने इसे अंबानी को बेच दिया।
भ्रष्टाचारियो
के कुतुबमीनार की जीत...??????????
भ्रष्टाचारियो के कुतुबमीनार की जीत...??????????
देश के कारगिल के शहीदो के नाम से, देश के दरिंदों ने भ्रष्टाचार को माखन लगा कर इस 31 मंज़िला कुतुबमीनार को बनाया। इस इमारत का खर्च 100 करोड़ से ज्यादा है लेकिन 125 करोड़ रुपये के कागजी घोड़े (कानून के कागज़) मे खर्च करने के बावजूद न्यायव्यवस्था को धोखा देकर राज्य सरकार के मिली भगत वाले, आयोग ने क्लीन चिट दे दी है।
याद रहे मुंबई हाईकोर्ट ने 14 महीने पहले इस आदर्श भ्रष्टाचार के मंदिर को ढहाने का आदेश दिया था...???, इसके बावजूद अदालत को ठेंगा दिखा कर यह जांच रिपोर्ट तैयार की है।
महाराष्ट्र के दो बार मुख्यमंत्री बने विलास राव देशमुख कही इस आंच से कहीं झूलस न जाए, इसलिए उन्हे केन्द्रीय मंत्री के पद से सुशोभित किया गया। 11 महीने पहले विलास राव देशमुख लिवर(Liver= live + fever भ्रष्ठाचार से जिंदा रहने की बीमारी) की बीमारी का शिकार होगाए। उनकी मृत्यु के बाद सभी मंत्रियो ने आदर्श भ्रष्टाचार का ठीकरा विलास राव (विलासिता + मुख्य) का नाम कहकर फोड़ दिया।
देश के दो सूरमा, एक पूर्व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री व केन्द्रीय मंत्री विलासराव देशमुख , और कन्हैयालाल गिड्वानी जो गिरवानी बनकर आदर्श मंजिल से गिरकर शहीद हो गये है? दोस्तों आप ही अपने विवेक से बतायें ये देश के सोसाइटी (SOCIETY – SUCIDEE- आत्महत्या) के शहीद हैं या गरीबों के आत्महत्यारे..????
इस 400 फ्लाटो मे (एक फ्लॅट एक सब्जीवाले को, व कई झूठे नामों से भी आबंटन) किया गया तथा सभी अधिकार राजनेताओ ने अपने नाम रखे। हाल ही मे, महाराष्ट्र सरकार ने 500 करोड़ की योजना से नाशिक मे विलास राव देशमुख के भ्रष्टाचार के आदर्शो को जीवित रखने की लिए 50 एकड़ से ज्यादा की भूमि आबंदित की है। इस घोटाले मे दूसरे टपकने वाले कन्हैयालाल गिडवानी ,जो आदर्शतम बनने के लिए सीबीआई को 2 करोड़ की रिशवत देने के मामले मे पकड़े जाने से जेल गए थे, वह बाद मे जमानत मे रिहा हो गये और हार्ट अटैक (Heart Attack= High+ tech)।
देश के कारगिल के शहीदो के नाम से, देश के दरिंदों ने भ्रष्टाचार को माखन लगा कर इस 31 मंज़िला कुतुबमीनार को बनाया। इस इमारत का खर्च 100 करोड़ से ज्यादा है लेकिन 125 करोड़ रुपये के कागजी घोड़े (कानून के कागज़) मे खर्च करने के बावजूद न्यायव्यवस्था को धोखा देकर राज्य सरकार के मिली भगत वाले, आयोग ने क्लीन चिट दे दी है।
याद रहे मुंबई हाईकोर्ट ने 14 महीने पहले इस आदर्श भ्रष्टाचार के मंदिर को ढहाने का आदेश दिया था...???, इसके बावजूद अदालत को ठेंगा दिखा कर यह जांच रिपोर्ट तैयार की है।
महाराष्ट्र के दो बार मुख्यमंत्री बने विलास राव देशमुख कही इस आंच से कहीं झूलस न जाए, इसलिए उन्हे केन्द्रीय मंत्री के पद से सुशोभित किया गया। 11 महीने पहले विलास राव देशमुख लिवर(Liver= live + fever भ्रष्ठाचार से जिंदा रहने की बीमारी) की बीमारी का शिकार होगाए। उनकी मृत्यु के बाद सभी मंत्रियो ने आदर्श भ्रष्टाचार का ठीकरा विलास राव (विलासिता + मुख्य) का नाम कहकर फोड़ दिया।
देश के दो सूरमा, एक पूर्व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री व केन्द्रीय मंत्री विलासराव देशमुख , और कन्हैयालाल गिड्वानी जो गिरवानी बनकर आदर्श मंजिल से गिरकर शहीद हो गये है? दोस्तों आप ही अपने विवेक से बतायें ये देश के सोसाइटी (SOCIETY – SUCIDEE- आत्महत्या) के शहीद हैं या गरीबों के आत्महत्यारे..????
इस 400 फ्लाटो मे (एक फ्लॅट एक सब्जीवाले को, व कई झूठे नामों से भी आबंटन) किया गया तथा सभी अधिकार राजनेताओ ने अपने नाम रखे। हाल ही मे, महाराष्ट्र सरकार ने 500 करोड़ की योजना से नाशिक मे विलास राव देशमुख के भ्रष्टाचार के आदर्शो को जीवित रखने की लिए 50 एकड़ से ज्यादा की भूमि आबंदित की है। इस घोटाले मे दूसरे टपकने वाले कन्हैयालाल गिडवानी ,जो आदर्शतम बनने के लिए सीबीआई को 2 करोड़ की रिशवत देने के मामले मे पकड़े जाने से जेल गए थे, वह बाद मे जमानत मे रिहा हो गये और हार्ट अटैक (Heart Attack= High+ tech)।
याद रहे आदर्श भ्रष्टाचार के मंजिल के किराए व बिक्री के विज्ञापनो की वैबसाइट. अखबारो व इंटरनेट मे प्रकाशित हो गयी थी। एक कमरे का किराया प्रतिमाह 4 लाख रुपये और बिक्री की कीमत 60 करोड़ से ज्यादा आँकी गयी थी। बड़े दुख के साथ मे लिखना पढ़ रहा है सुशील कुमार शिंदे ,जो इसके मुख्य सूत्रधार है, जिनके केन्द्रीय बिजली मंत्री के कार्यकाल मे देश की आधी बिजली गायब करने के बाद उन्हे, इसी भ्रष्टाचार की गरिमा से सुशोभित करने के लिए देश के गृहमन्त्री पद से सुशोभित किया गया है... जिसके तुरंत बाद उन्होने, पूना की एक सभा मे कहा...???? देश की जनता भेडो से से भी बदतर है, जो बोफोर्स घोटाले तक भूल गई है...????, तो क्या हमारे नए घोटाले को याद करेगी....????, अपने अटपटे बयानो से आज के डूबते देश के आतंकी घटनाओ के बारे मे हँसते हुए कहते है,”मैंने पहले ही कह दिया था आतंकवादी हमले होंगे ”। अपरोक्षय रूप से उनका कहना है इसको रोकने की ज़िम्मेदारी मेरी नहीं है...???।
दोस्तों .., जब संविधान हो गुलाम, तो नेता बने, बेलगाम व जनता बन रही हे बेजुबान। जब देश मे सांसदो की वेतन की बढोतरी का बिल 5 मिनट मे पास हो जाता है, और आरटीआई मे राजनेताओ को दायरे मे न लाने का बिल, बिना बहस के सभी पक्षो द्वारा सहमति दे दी जाती है, देशवासियों जागो सोचो....? सोचो....?? सोचो...???. क्या से क्या हो रहा हैं ...?????
Sunday 17 April 2016
गांधी ने शिवाजी आदि को “पथभ्रष्ट देशभक्त” कहा, गांधी ने कट्टर मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए भारत के राष्ट्रीय वीरों वीरो- महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविन्द सिंह को ‘पथभ्रष्ट देशभक्त’ कहा.
१.
२८ मई ., वीर
सावरकर की जयंती से देश की जय करने वाले.. आओं नूतन वर्ष की बेला पर वीर सावरकर को
याद करें..., जय
जय वीर ही नहीं, परमवीर
सावरकर, देश का जुगनू , जिसने विश्व के
क्रांतीकारीओं को जगा दिया ..
२.
भले ही ५० सालों की दो जन्मों की
आजीवन कारावास के सजा घोषित होने.., २६ फरवरी २०१६ को वीर सावरकर की ५० वीं
पुण्यतिथी पूर्व से वर्तमान सरकारों ने वीर सावरकर के सपनों को साकार कर एक “राष्ट्रवाद
की लौ” से देश के अन्धकार को दूर करने के बजाय
इस मसीहा के मशाल को बुझाने का कार्य कर.., इन्हें
गुमनामी में खो दिया
३. एक जुगनू , जिसकी चमक
कोहिनूर हीरे के कहीं हजार गुना ज्यादा, जिसके सामने अंग्रेजों का न डूबने वाला
सुरजी साम्राज्य का सूरज भी धुंधलाता था
४. सावरकर शब्द से ही “ब्रिटिश सरकार” को थर्रा देता
था, १८५७ का
क्रांतीकारियों का इतिहास जिसे “ग़दर/विद्रोह” की
अंग्रेजों की संज्ञा को क्रांतीकारियों की आजादी के संघर्ष का इतिहास सिद्ध करने
की पुस्तक लिखने पर , ब्रिटिश
सरकार ने बिना पढ़े इस पर पावंदी लगा दी थी
५. सरदार भगतसिंग इस पुस्तक को पढ़कर, उनमें देश भक्ती की ज्वाला प्रदान की व
उन्होंने इस पुस्तक का गुप्त रूप से प्रकाशित कर क्रांतीकारियों की धमनी में एक
नये जोश का खून प्रदान किया
६. शत्रु के देश इंग्लैंड में ब्रिटिश सरकार को
चुनौती देने वाले एक मात्र सावरकरजी ही
७. इंग्लैंड में दशहरा, व १८५७ की ५० वी जयन्ती का आयोजन करने
वाले , एक
मात्र वीर सावरकरजी
८. इंग्लैंड में सिक्खों का इतिहास लिखने
वाले एक मात्र वीर सावरकरजी
९. भारत आने पर इंग्लैंड की महारानी की मृत्यु पर , कांग्रेस के मातम समारोह पर , कांग्रेस को लताड़कर कहने वाले, वे हमारी शोषित रानी थी..., उसमें मातम मना कर तुम अंग्रेजों के
पिछलग्गू बन रहे हो.., आजादी
ब्रिटिशों के तलुवे चाटने से नहीं मिलेगी
१०.
वीर सावरकर के ४० से ज्यादा भविष्य
वाणीया आज सार्थक हुई है..., १९४२
में उन्होंने कहा था “यह
भारत छोड़ो आन्दोलन, भारत
तोड़ों आन्दोलन बनेगा”
११.
नेहरू को चेतावनी देने वाले वीर सावरकर ने १९५२
में ही कह दिया था , चीन
हम पर आक्रमण करेगा, और
आसाम में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्ला देश) नागरिकों की घुसपैठ से देश में शत्रुओं
का निर्माण होगा...
१२.
गांधी व हिन्दुस्तानियों को चेतावनी
दी, जाती
प्रथा समाप्त नहीं की तो धर्म परिवर्तन के साथ आगे देश को बड़ा धोखा मिलेगा
१३.
एक महान क्रांतीकारी के विचारधारा को हमारे
इतिहासकारों ने देश को खंडित कर सत्ता परिवर्तन को आजादी कहने वाले के तलुवे चाटकर
इतनी गहराई में दफ़न कर दिया कि यह सच्चाई ,जनता तक न पहुंचे...
१४.
अब तो, मोदी सरकार तो उन्हें भारतरत्न के
सम्मान को भूल चुकी है..., क्या...!!!, २८ मई २०१६ को, उनकी जन्म तिथी को राष्ट्रीय प्रेरणा दिवस के रूप में
मनायेगी....
१५.
दुनिया
ने वीर सावरकरजी को सत्कारा..
१६.
हमारे इतिहासकारों ने, उन्हें दुत्कारा...
पत्रकार, पुकारकार से पुत्रकार बनने के पहिले, देश के पतनकार बन गए,
१७.
छोटी –छोटी सुविधा के लिए , अपने ईमान व देश के इतिहास बेचते गए
जाने सच्चाई...पूरा लेख पढ़ कर, वीर सावरकर, गांधी को कांग्रेस
पार्टी द्वारा मंडित “महात्मा” के “छद्म रूप’ को नहीं मानते थे, वीर सावरकर तो राष्ट्र की आत्मा के साथ देश के गौरवशाली अतीत का शोध कर, भारतमाता के लुटे व
अंग भक्ष किए देह में , हिंदुत्व की शान से भारत माता की अखण्डता से वैभवशाली कर , देश को गौरवशाली
बनाने के ध्येय को पूरा करने के लिए सत्ता परिवर्तन (१९४७) से पूर्व ‘वीर शिवाजी” व बाद में अपने
सिद्धांतों से अडिग रहकर “वीर महाराणा प्रताप” का जीवन से अपने जीवन को इच्छा मृत्यु
से समाप्त किया
१८५७ के स्वतंत्र संग्राम को भापकर , इन्डियन कांग्रेस की नीव डालने वाले अंग्रेज ह्यूम ने देश के नेताओं को सेफ्टी बनाने का ताना – बाना बुनकर, कांग्रेसी नेताओं व मुस्लिम लीग को सत्तालोलुप बनाकर देश के टुकड़े कर, वे आज भी देश के मसीहा से अपने को कायदे आजम कहकर , आज भी पुतलों से दो देशों के पुलों के साथ दिलों को तोड़कर आज भी सुशोभित हैं
वीर सावरकर ने जीते-जी अंग्रेजों से ऐसा प्रतिशोध लिया कि लिया कि लेबर पार्टी की सरकार ने कहा “इंग्लैंड के सभी शत्रुओं में जो सर्वश्रेष्ठ हैं, वे एक सावरकर ही है...,इंग्लैंड एक भाग्यवान राष्ट्र है, जिसे सावरकर जैसे चारित्र्य , संपन्न, प्रखर राष्ट्रभक्त और कमाल का बुद्धिमान शत्रु मिला”
१ कांग्रेस ने १९४६ का निर्णायक चुनाव अखंड भारत के नाम पर लड़ा था बहुमत प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पाकिस्तान के कुत्सित प्रस्ताव को मानकर हिंदू मतदादाओं के साथ निर्लज्जता पूर्वक विश्वासघात किया
१अ . वीर सावरकर ने उनकी भर्त्सना की कि जब उन्होंने निर्लज्ज होकर अपना सिद्धांत बदला है, और अब वे हिन्दुस्थान के विभाजन पर सहमत हो गये हैं, तो या तो वे अपने पदों से त्यागपत्र दें और स्पष्ट पाकिस्तान के मुद्दे पर पुन: चुनाव लड़ें या मातृभूमि के विभाजन के लिए “जन-मत” (प्लेबिसाइट) कराएं
२. कांग्रेसियों ने विभाजन क्यों स्वीकार किया? इसमें गांधी की अहम छद्म अहिंसा का मूल मंत्र था, कांग्रेसियों ने मुस्लिम लीग द्वारा भड़काए कृत्रिम दंगो से भयभीत होकर जिन्ना के सामने कायरता से घुटने टेक दिए .यदि दब्बूपन, आत्म-समर्पण, घबराहट और मक्खनबाजी के जगह वे मुस्लिम लीग के सामने अटूट दृढ़ता तथा अदम्य इच्छा शक्ति दिखाते, तो जिन्ना पाकिस्तान का विचार छोड़ देता.
लिआनार्ड मोस्ले के अनुसार पंडित नेहरु ने इमानदारी के साथ स्वीकार किया कि बुढापे ,दुर्बलता ,थकावट और निराशा के कारण उनमे विभाजन के कुत्सित प्रस्ताव का सामना करने के लिए एक नया संघर्ष छेड़ने का दम नहीं रह गया था.उन्होंने सुविधाजनक कुर्सीयों पर उच्च पद-परिचय के साथ जमे रहने का निश्चय किया. इस प्रकार राजनितिक-सत्ता, सम्मान और पद के लालच से आकर्षित विभाजन स्वीकार कर लिया.
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३. क्या दंगे रोकने का उपाय केवल विभाजन ही था...?, सरदार पटेल गांधीजी के पिंजरे में बंद एक शेर थे. उन्हें दंगाइयों के साथ “जैसे को तैसा ”घोषणा करने के लिए खुली छूट नहीं थी, इसलिए उन्होंने क्षुब्ध होकर कहा था, “ये दंगे भारत में कैंसर के सामान है. इन दंगो को सदा के लिए रोकने के लिए एक ही इलाज ‘विभाजन ’है”. यदि आज सरदार पटेल जीवित होती, तो वे देखते की दंगे विभाजन के बाद भी हो रहे है. क्यों? क्योंकि जनसँख्या के अदल-बदल बिना विभाजन अधूरा था.
जनसंख्या के अदल-बदल बिना विभाजन का गांधी ने सुखाव ठुकरा दिया.. यदि ग्रीस और टर्की ने ,साधनों के सिमित होते हुए भी ,ईसाई और मुस्लिम आबादी का अदल-बदल कर के,मजहबी अल्पसंख्या की समस्या का मिलजुल कर समाधान कर लिया ,तो विभाजन के समय में हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं किया गया? खेद है की पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेसी नेताओ ने इस संबंध में डा. भीमराव आंबेडकर के सूझ्भूझ भरे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिन्ना ने भी हिन्दू-मुस्लिम जनसँख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था. परन्तु मौलाना आजाद के पंजे में जकड़ी हुई कांग्रेस ने नादानी के साथ इसे अस्वीकार कर दिया. कांग्रेसी ऐसे अदूरदर्शी थे कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि जनसंख्या की अदला-बदली बिना खंडित हिंदुस्थान में भी सांप्रदायिक दंगे होते रहेंगे.
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४. पाकिस्तान को अधिक क्षेत्रफल दिया गया, १९४६ के निर्णायक आम चुनाव में, अविभाजित हिंदुस्थान के लगभग सभी (२३%) मुसलमनो ने पाकिस्तान के लिए वोट दिया ,परन्तु भारत के कुल क्षेत्रफल का ३०% पाकिस्तान के रूप में दिया गया. दुसरे शब्दों में उन्होंने अपनी जनगणना की अनुपात से अधिक क्षेत्रफल मिला ,यह जनसंख्या भी बोगस थी. फिर भी सारे मुस्लिम अपने मनोनीत देश में नहीं गए.
५. झूठी मुस्लिम जन-गणना के आधार पर विभाजन का आधार माना, कांग्रेस ने १९४९ तथा १९३१ दोनों जनगणनाओ का बहिष्कार किया. फलत:, मुस्लिम लीग ने चुपके-चुपके भारत के सभी मुसलमानों को उक्त जनगणनाओ में फालतू नाम जुडवाने का सन्देश दिया. इसे रोकने वाला या जाँच करने वाला कोई नहीं था. अत: १९४१ की जनगणना में मुसलमानों की संख्या में विशाल वृद्धि हो गई. आश्चर्य की बात है कि कांग्रेसी नेताओं ने स्वच्छा से १९४१ की जनगणना के आंकड़े मान्य कर लिए, यद्यपि उन्होंने उसका बहिष्कार किया था. उन्ही आंकड़ा का आधार लेकर मजहब के अनुसार देश का बटवारा किया गया. इस प्रकार देश के वे भाग भी जो मुस्लिम बहुल नहीं थे,पाकिस्तान में मिला दिए गए.
६. स्वाधीन भारत का अंग्रेज गवर्नर जनरल की सहमती दी....,गांधीजी और पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्खता के साथ माऊंट बैटन को दोनों उपनिवेशों, हिंदुस्थान और पाकिस्तान का गवर्नर जनरल, देश के विभाजन के बाद भी मान लिया. जिन्ना में इस मूर्खतापूर्ण योजना को अस्वीकार करने की बहुत समझ थी. अत: उसने २ जुलाई १९४७ को पत्र द्वारा कांग्रेस और माऊंट बैटन को सूचित कर दिया की वह स्वयं पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनेगा.परिणाम यह हुआ की माऊंट बैटन स्वाधीन खंडित बहरत के गवर्नर जनरल नापाक-विभाजन के बाद भी बने रहे.
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७. सीमा-आयोग का अध्यक्ष अंग्रेज पदाधिकारी को मनोनीत किया गया ,माऊंट बैटन के प्रभाव में,गांधीजी और पंडित नेहरु ने पंजाब और बंगाल के सीमा आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीरिल रैड क्लिफ को स्वीकार कर लिया.सीरिल रैडक्लिफ जिन्ना का जूनियर (कनिष्ठ सहायक) था, जब उसने लन्दन में अपनी प्रैक्टिस आरम्भ की थी. परिणाम स्वरुप, उसने पाकिस्तान के साथ पक्षपात और लाहौर, सिंध का थरपारकर जिला,चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र, बंगाल का का खुलना जिला एवं हिन्दू-बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिला दिये.
बंगाल का छल-पूर्ण सीमा निर्धारण किया गया,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदासीनता के कारण ४४ प्रतिशत बंगाल के हिन्दुओ को ३० प्रतिशत क्षेत्र पश्चिमी बंगाल के रूप में संयुक्त बंगाल में से दिया गया.५६ प्रतिशत मुसलमानों को ७० प्रतिशत क्षेत्रफल पूर्वी पाकिस्तान के रूप में मिला.
चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र जिसमे ९८ प्रतिशत हिन्दू-बौद्ध रहते है,एवं हिन्दू-बहुल खुलना जिला अंग्रेज सीमा-निर्धारण अधिकारी रैडक्लिफ द्वारा पाकिस्तान को दिया गया.कांग्रेस के हिन्दू नेता ऐसे धर्मनिरपेक्ष बने रहे की उन्होंने अन्याय के विरुद्ध मुँह तक नहीं खोला.
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८. सिंध में धोखे भरा सीमा-निर्धारण किया, जब सिंध के हिन्दुओ ने यह मांग की की सिंध प्रान्त का थारपारकर जिला जिसमे ९४ प्रतिशत जनसँख्या हिन्दुओ की थी,हिंदुस्थान के साथ विलय होना चाहिए,तो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने सिन्धी हिन्दुओ की आवाज इस आधार पर दबा दी की देश का विभाजन जिलानुसार नहीं किया जा सकता.परन्तु जब आसाम के जिले सिल्हित की ५१ प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने पकिस्तान के साथ जोड़े जाने की मांग की,तो उसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया.
मजहब के आधार पर विभाजन-धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गांधी का खेल था... यदि गांधीजी पंडित नेहरु सच्चे धर्म-निर्पेक्षतावादी थे तो उन्होंने देश का विभाजन मजहब के आधार पर क्यों स्वीकार किया?
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९. गांधी के अहिंसा के छद्म भेष में अंग्रेजों का सेफ्टी वाल्व बनकर , कैसे तुष्टीकरण से हिन्दुस्तान के टुकडे कर .. कैसे कांगेस की झूठी महिमा से देश के राष्ट्रपिता से महात्मा के नाम की लूट से अब देश को काले आत्माओं ने तो.., “देश को भी लूट लिया है”
भाग-२
गांधी ने शिवाजी आदि को “पथभ्रष्ट देशभक्त” कहा, गांधी ने कट्टर मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए भारत के राष्ट्रीय वीरों वीरो- महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविन्द सिंह को ‘पथभ्रष्ट देशभक्त’ कहा.
यह गांधी का दोगला पन ही था, एक तरफ, गांधी ने कश्मीर के महाराजा को गद्दी छोड़ने की सलाह दी थी कि वे मुसलमानों के पक्ष में गद्दी छोड़ दे और बनारस में जा कर प्रायश्चित करें ,क्योकि कश्मीर में मुसलबान बहुसंख्य है. फिर उन्होंने निजाम हैदराबाद या नवाब भूपाल को यह सलाह क्यों नहीं दी, क्योकि उन राज्यों में तो हिन्दू बहुसंख्यक है?
१०. अब हम व देश की जनता को जाग कर , हमारे देश की जनता को गांधी के अहिंसा के छद्म भेष में अंग्रेजों का सेफ्टी वाल्व बनकर , कैसे हिन्दुस्तान के टुकडे कर , बापू , व महात्मा की झूठी उपाधि संविधान का उल्लंघन कर दे दिया व जवाहरलाल नेहरू के शान्ति के दूत के छद्म भेष से काश्मीर के टुकडे कर , चीन से यद्ध में घुटने टेक कर, ५० हजार वर्ग कि लोमीटर भूमि देने के बावजूद .. भारत रत्न की उपाधी से नवाजा गया है, आज इनके नाम पर देश के लाखों सड़क , संस्थान बापू व नेहरू के नाम की अमानत बन गयी है....जो आज इनके नाम के आड़ में भ्रष्टाचार के लूट का खेल खुले ले आम खेला जा रहा है , यदि जनता इस, गांधी के कांग्रेस की भयंकर भूलों से अवगत नहीं होगी तो... देश... मुर्दानगी से नहीं जागेगी
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यदि इन तीन कटुवों ने वीर सावरकर की बात मानी होती तो देश को काटकर, खंडित भारत नहीं होता
अब,मैं बनूंगा पाकिस्तान का “कायदे आजम”
देश को कलंकित करने के बावजूद भी, अब खंडित भारत से मेरे “महात्मा” का अलंकरण पक्का
“शांती के मसीहा” से प्रधानमंत्री बनकर, अय्याशी कर, चाचा से “बाल दिवस” मेरे नाम
हे माँ , मेरा कर्म, तुझे रखूँ अखंड ..,
इन तीन कटुवों ने कर दिया.., तेरा अंग भंग .
१८५७ के स्वतंत्र संग्राम को भापकर , इन्डियन कांग्रेस की नीव डालने वाले अंग्रेज ह्यूम ने देश के नेताओं को सेफ्टी बनाने का ताना – बाना बुनकर, कांग्रेसी नेताओं व मुस्लिम लीग को सत्तालोलुप बनाकर देश के टुकड़े कर, वे आज भी देश के मसीहा से अपने को कायदे आजम कहकर , आज भी पुतलों से दो देशों के पुलों के साथ दिलों को तोड़कर आज भी सुशोभित हैं
वीर सावरकर ने जीते-जी अंग्रेजों से ऐसा प्रतिशोध लिया कि लिया कि लेबर पार्टी की सरकार ने कहा “इंग्लैंड के सभी शत्रुओं में जो सर्वश्रेष्ठ हैं, वे एक सावरकर ही है...,इंग्लैंड एक भाग्यवान राष्ट्र है, जिसे सावरकर जैसे चारित्र्य , संपन्न, प्रखर राष्ट्रभक्त और कमाल का बुद्धिमान शत्रु मिला”
१ कांग्रेस ने १९४६ का निर्णायक चुनाव अखंड भारत के नाम पर लड़ा था बहुमत प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पाकिस्तान के कुत्सित प्रस्ताव को मानकर हिंदू मतदादाओं के साथ निर्लज्जता पूर्वक विश्वासघात किया
१अ . वीर सावरकर ने उनकी भर्त्सना की कि जब उन्होंने निर्लज्ज होकर अपना सिद्धांत बदला है, और अब वे हिन्दुस्थान के विभाजन पर सहमत हो गये हैं, तो या तो वे अपने पदों से त्यागपत्र दें और स्पष्ट पाकिस्तान के मुद्दे पर पुन: चुनाव लड़ें या मातृभूमि के विभाजन के लिए “जन-मत” (प्लेबिसाइट) कराएं
२. कांग्रेसियों ने विभाजन क्यों स्वीकार किया? इसमें गांधी की अहम छद्म अहिंसा का मूल मंत्र था, कांग्रेसियों ने मुस्लिम लीग द्वारा भड़काए कृत्रिम दंगो से भयभीत होकर जिन्ना के सामने कायरता से घुटने टेक दिए .यदि दब्बूपन, आत्म-समर्पण, घबराहट और मक्खनबाजी के जगह वे मुस्लिम लीग के सामने अटूट दृढ़ता तथा अदम्य इच्छा शक्ति दिखाते, तो जिन्ना पाकिस्तान का विचार छोड़ देता.
लिआनार्ड मोस्ले के अनुसार पंडित नेहरु ने इमानदारी के साथ स्वीकार किया कि बुढापे ,दुर्बलता ,थकावट और निराशा के कारण उनमे विभाजन के कुत्सित प्रस्ताव का सामना करने के लिए एक नया संघर्ष छेड़ने का दम नहीं रह गया था.उन्होंने सुविधाजनक कुर्सीयों पर उच्च पद-परिचय के साथ जमे रहने का निश्चय किया. इस प्रकार राजनितिक-सत्ता, सम्मान और पद के लालच से आकर्षित विभाजन स्वीकार कर लिया.
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३. क्या दंगे रोकने का उपाय केवल विभाजन ही था...?, सरदार पटेल गांधीजी के पिंजरे में बंद एक शेर थे. उन्हें दंगाइयों के साथ “जैसे को तैसा ”घोषणा करने के लिए खुली छूट नहीं थी, इसलिए उन्होंने क्षुब्ध होकर कहा था, “ये दंगे भारत में कैंसर के सामान है. इन दंगो को सदा के लिए रोकने के लिए एक ही इलाज ‘विभाजन ’है”. यदि आज सरदार पटेल जीवित होती, तो वे देखते की दंगे विभाजन के बाद भी हो रहे है. क्यों? क्योंकि जनसँख्या के अदल-बदल बिना विभाजन अधूरा था.
जनसंख्या के अदल-बदल बिना विभाजन का गांधी ने सुखाव ठुकरा दिया.. यदि ग्रीस और टर्की ने ,साधनों के सिमित होते हुए भी ,ईसाई और मुस्लिम आबादी का अदल-बदल कर के,मजहबी अल्पसंख्या की समस्या का मिलजुल कर समाधान कर लिया ,तो विभाजन के समय में हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं किया गया? खेद है की पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेसी नेताओ ने इस संबंध में डा. भीमराव आंबेडकर के सूझ्भूझ भरे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिन्ना ने भी हिन्दू-मुस्लिम जनसँख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था. परन्तु मौलाना आजाद के पंजे में जकड़ी हुई कांग्रेस ने नादानी के साथ इसे अस्वीकार कर दिया. कांग्रेसी ऐसे अदूरदर्शी थे कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि जनसंख्या की अदला-बदली बिना खंडित हिंदुस्थान में भी सांप्रदायिक दंगे होते रहेंगे.
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४. पाकिस्तान को अधिक क्षेत्रफल दिया गया, १९४६ के निर्णायक आम चुनाव में, अविभाजित हिंदुस्थान के लगभग सभी (२३%) मुसलमनो ने पाकिस्तान के लिए वोट दिया ,परन्तु भारत के कुल क्षेत्रफल का ३०% पाकिस्तान के रूप में दिया गया. दुसरे शब्दों में उन्होंने अपनी जनगणना की अनुपात से अधिक क्षेत्रफल मिला ,यह जनसंख्या भी बोगस थी. फिर भी सारे मुस्लिम अपने मनोनीत देश में नहीं गए.
५. झूठी मुस्लिम जन-गणना के आधार पर विभाजन का आधार माना, कांग्रेस ने १९४९ तथा १९३१ दोनों जनगणनाओ का बहिष्कार किया. फलत:, मुस्लिम लीग ने चुपके-चुपके भारत के सभी मुसलमानों को उक्त जनगणनाओ में फालतू नाम जुडवाने का सन्देश दिया. इसे रोकने वाला या जाँच करने वाला कोई नहीं था. अत: १९४१ की जनगणना में मुसलमानों की संख्या में विशाल वृद्धि हो गई. आश्चर्य की बात है कि कांग्रेसी नेताओं ने स्वच्छा से १९४१ की जनगणना के आंकड़े मान्य कर लिए, यद्यपि उन्होंने उसका बहिष्कार किया था. उन्ही आंकड़ा का आधार लेकर मजहब के अनुसार देश का बटवारा किया गया. इस प्रकार देश के वे भाग भी जो मुस्लिम बहुल नहीं थे,पाकिस्तान में मिला दिए गए.
६. स्वाधीन भारत का अंग्रेज गवर्नर जनरल की सहमती दी....,गांधीजी और पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्खता के साथ माऊंट बैटन को दोनों उपनिवेशों, हिंदुस्थान और पाकिस्तान का गवर्नर जनरल, देश के विभाजन के बाद भी मान लिया. जिन्ना में इस मूर्खतापूर्ण योजना को अस्वीकार करने की बहुत समझ थी. अत: उसने २ जुलाई १९४७ को पत्र द्वारा कांग्रेस और माऊंट बैटन को सूचित कर दिया की वह स्वयं पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनेगा.परिणाम यह हुआ की माऊंट बैटन स्वाधीन खंडित बहरत के गवर्नर जनरल नापाक-विभाजन के बाद भी बने रहे.
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७. सीमा-आयोग का अध्यक्ष अंग्रेज पदाधिकारी को मनोनीत किया गया ,माऊंट बैटन के प्रभाव में,गांधीजी और पंडित नेहरु ने पंजाब और बंगाल के सीमा आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीरिल रैड क्लिफ को स्वीकार कर लिया.सीरिल रैडक्लिफ जिन्ना का जूनियर (कनिष्ठ सहायक) था, जब उसने लन्दन में अपनी प्रैक्टिस आरम्भ की थी. परिणाम स्वरुप, उसने पाकिस्तान के साथ पक्षपात और लाहौर, सिंध का थरपारकर जिला,चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र, बंगाल का का खुलना जिला एवं हिन्दू-बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिला दिये.
बंगाल का छल-पूर्ण सीमा निर्धारण किया गया,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदासीनता के कारण ४४ प्रतिशत बंगाल के हिन्दुओ को ३० प्रतिशत क्षेत्र पश्चिमी बंगाल के रूप में संयुक्त बंगाल में से दिया गया.५६ प्रतिशत मुसलमानों को ७० प्रतिशत क्षेत्रफल पूर्वी पाकिस्तान के रूप में मिला.
चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र जिसमे ९८ प्रतिशत हिन्दू-बौद्ध रहते है,एवं हिन्दू-बहुल खुलना जिला अंग्रेज सीमा-निर्धारण अधिकारी रैडक्लिफ द्वारा पाकिस्तान को दिया गया.कांग्रेस के हिन्दू नेता ऐसे धर्मनिरपेक्ष बने रहे की उन्होंने अन्याय के विरुद्ध मुँह तक नहीं खोला.
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८. सिंध में धोखे भरा सीमा-निर्धारण किया, जब सिंध के हिन्दुओ ने यह मांग की की सिंध प्रान्त का थारपारकर जिला जिसमे ९४ प्रतिशत जनसँख्या हिन्दुओ की थी,हिंदुस्थान के साथ विलय होना चाहिए,तो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने सिन्धी हिन्दुओ की आवाज इस आधार पर दबा दी की देश का विभाजन जिलानुसार नहीं किया जा सकता.परन्तु जब आसाम के जिले सिल्हित की ५१ प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने पकिस्तान के साथ जोड़े जाने की मांग की,तो उसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया.
मजहब के आधार पर विभाजन-धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गांधी का खेल था... यदि गांधीजी पंडित नेहरु सच्चे धर्म-निर्पेक्षतावादी थे तो उन्होंने देश का विभाजन मजहब के आधार पर क्यों स्वीकार किया?
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९. गांधी के अहिंसा के छद्म भेष में अंग्रेजों का सेफ्टी वाल्व बनकर , कैसे तुष्टीकरण से हिन्दुस्तान के टुकडे कर .. कैसे कांगेस की झूठी महिमा से देश के राष्ट्रपिता से महात्मा के नाम की लूट से अब देश को काले आत्माओं ने तो.., “देश को भी लूट लिया है”
भाग-२
गांधी ने शिवाजी आदि को “पथभ्रष्ट देशभक्त” कहा, गांधी ने कट्टर मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए भारत के राष्ट्रीय वीरों वीरो- महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविन्द सिंह को ‘पथभ्रष्ट देशभक्त’ कहा.
यह गांधी का दोगला पन ही था, एक तरफ, गांधी ने कश्मीर के महाराजा को गद्दी छोड़ने की सलाह दी थी कि वे मुसलमानों के पक्ष में गद्दी छोड़ दे और बनारस में जा कर प्रायश्चित करें ,क्योकि कश्मीर में मुसलबान बहुसंख्य है. फिर उन्होंने निजाम हैदराबाद या नवाब भूपाल को यह सलाह क्यों नहीं दी, क्योकि उन राज्यों में तो हिन्दू बहुसंख्यक है?
१०. अब हम व देश की जनता को जाग कर , हमारे देश की जनता को गांधी के अहिंसा के छद्म भेष में अंग्रेजों का सेफ्टी वाल्व बनकर , कैसे हिन्दुस्तान के टुकडे कर , बापू , व महात्मा की झूठी उपाधि संविधान का उल्लंघन कर दे दिया व जवाहरलाल नेहरू के शान्ति के दूत के छद्म भेष से काश्मीर के टुकडे कर , चीन से यद्ध में घुटने टेक कर, ५० हजार वर्ग कि लोमीटर भूमि देने के बावजूद .. भारत रत्न की उपाधी से नवाजा गया है, आज इनके नाम पर देश के लाखों सड़क , संस्थान बापू व नेहरू के नाम की अमानत बन गयी है....जो आज इनके नाम के आड़ में भ्रष्टाचार के लूट का खेल खुले ले आम खेला जा रहा है , यदि जनता इस, गांधी के कांग्रेस की भयंकर भूलों से अवगत नहीं होगी तो... देश... मुर्दानगी से नहीं जागेगी
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यदि इन तीन कटुवों ने वीर सावरकर की बात मानी होती तो देश को काटकर, खंडित भारत नहीं होता
अब,मैं बनूंगा पाकिस्तान का “कायदे आजम”
देश को कलंकित करने के बावजूद भी, अब खंडित भारत से मेरे “महात्मा” का अलंकरण पक्का
“शांती के मसीहा” से प्रधानमंत्री बनकर, अय्याशी कर, चाचा से “बाल दिवस” मेरे नाम
हे माँ , मेरा कर्म, तुझे रखूँ अखंड ..,
इन तीन कटुवों ने कर दिया.., तेरा अंग भंग .
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