Monday 23 March 2015

राख तले चिंगारी ही आग का बीज होती है , जो बुझी आग को प्रज्ज्वलित कर सकती है..., ऐसे ही देश के विभिन्न छेत्रों की करोड़ों प्रतिभाए दम घुट कर मर रही हैं..,



१. यह कलाकृती.., मुम्बई के फूटपाथ के, गरीबी रेखा के झोपड़े में रहने वाले युवक की है.., जो गरीबी की वजह से स्कूल छोड़ देते है.., लेकिन जीवन में उनमें,जज्बे से हुन्नर अपने आप निर्माण होता है.., फुटपाथ ही उसकी जीवन के सृजन की कलाकृति व जीने का आनंद है.., कभी रंग बिरंगे चोक / चाँक से तो कभी , रंगोली के पावडर पर अपनी कलाकृति १ से डेढ़ घंटे में बना कर , राह चलते राहगीर, इस युवक को १ से २ रूपये का सिक्का देकर, वह युवक अपनी जीवन याचिका का निर्वाह करता है...
२ .बरसात के मौसम में तो इसकी मेहनत चंद घंटों में ही धुल जाती है.. , तब भी अपनी मेहनत धुलने का अफ़सोस नहीं करते हैं..., वह मौसम देखकर फिर से नये विषयों पर एक नयी कलाकृति का निर्माण करता है
३. .देश के प्रधानमंत्री से छुटमैय्य नेताओं ने, २३ मार्च को, ८४ साल बाद, जोर शोर से इन तीनों बलिदानियों की पूण्य तिथी मनाई, लेकिन इस युवक ने अपने जीवन के सजीव रंगों में इस कलाकृति में ऐसी जान फूंखी है.., जैसे लगता है कि ये क्रांतीकारी इसके दिल में बसा है...,जैसे यह कलाकृति सजीव होकर अभी बोल उठेगी..
४. कहते है, राख तले चिंगारी ही आग का बीज होती है , जो बुझी आग को प्रज्ज्वलित कर सकती है..., ऐसे ही देश के विभिन्न छेत्रों की करोड़ों प्रतिभाए दम घुट कर मर रही हैं.., और जुगाड़ पद्धती स अपना जीवन यापन कर रही है.., विदेशी भी इनकी प्रतिभाओं से अचंभित होकर, इनकी जुगाड़ पद्धती को अपना पेटेंट बना रही है.., यदि इन करोड़ों प्रतिभाओं को सम्मान दिया जाए तो ये, ही.., देश में बुझे राष्ट्रवाद को ज्वलंतशील बना सकती है..,
५. ६८ सालों से गरीबी उत्थान के लिए लाखों योजनाए बन चुकी हैं..., जो माफियाओं की भोजनाएं बनकर इनके हक़ की कमाई, देशी विदेशी बैंकों व आलीशान भवनों के निर्माण से कैद है..., ६८ साल के सत्तापरिवर्तन की यह मार्मिल तस्वीर है..
७. ६८ सालों से ही.., गरीबों के देशी हाथों की शक्ती को काटकर / छीनकर .., विदेशी हाथों से, भारत निर्माण से अच्छे दिनों का देशवासी इन्तजार कर रहें है..

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