Tuesday 10 March 2015



चेतो.., मोदी सरकार.., अब कश्मीर को शेख अब्दुल्ला युग की सरकार मत बनाओं.., मैं लाल बहादुर शास्त्री बोल रहा हूँ , (आओं खेले स्वदेशी रंग .., लालबहादुर शास्त्री  और वीर सावरकर के विचारों के संग- भाग-२
)
१.       मोदीजी आपने तो ५६ इंच का सीना दिखाकर, चुनाव जीता.., जबकि मेरे शरीर की लम्बाई भी ५६ इंच नहीं थी..., आप तो चाय बेचकर.., अपने जीवन की गरीबी दिखाकर,  प्रधानमंत्री बने.., मेरी गरीबी को तो, मैं हिन्दुस्तान की गरीबी से  देखता था.., मेरे पास तो चाय पीने के भी पैसे नहीं थे.., और प्रधानमंत्री बनने के बाद मेरा एक ध्येय था.., देश के गरीबों में विदेशी खून के बजाय, “जय जवान-जय किसान” के स्वाभिमानी देशी खून से देश में श्वेत क्रांती से, दूध की नदियाँ बहाकर देशवासियों को रिष्ट – पुष्ट बनाकर.., जवानों व किसानों के जज्बे से हमारा देश अंतर्राष्टीय पटल पर छा  गया ...
२.       मुझे तो पकिस्तान के चंगेज खान..,  जनरल अयूब खान ने, हमारे देश में आक्रमण करते हुए   कहा था..,  यह चार फूट कद का , बच्चे की तरह दिखने व बच्चे की आवाज वाला, प्रधानमंत्री क्या यह लड़ाई लड़ पाएगा..., तब इस युद्ध की चुनौती स्वीकारते हुए मैंने कहा “मेरी काया की लम्बाई से उसकी नींव, जमीन में कई गुना गहरी है”  
३.       मोदीजी आप तो अपना ५६ इंच का सीना कह कर दंभ भरते हो..., मैंने जब से मैंने, होश संभाला. मैं तो हर देशवासियों में “५६ इंच का दिल” देखता था.., और इस दिल में २०० सालों से , विदेशी खून का विष डाला दिखता है..., सत्ता परिवर्तन के बाद में भी इसी खून के खेल से, देश के टुकड़े कर, विदेशी खून में संविधान से जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद का खून डालकर, आज भी राष्ट्र इसी खून से त्रस्त है.., और यह देशवासियों के दिमाग में इतने  गहन रूप से भर दिया कि आज भी  विदेशी भाषा.., आचार .., विचार.. के बिना  देशवासी रोटी नहीं  खा सकता है..
४.       प्रधानमंत्री बनने के बाद, देश की नेहरू की गन्दगी दूर किए बिना.., देश में राष्ट्रवादी धारा का प्रवाह नहीं होगा यह मेरा प्रबल मत था.., शेख अब्दुल्ला द्वारा “द्विराष्ट्रवाद के नेहरू खेल” का मुझे अच्छी तरह  आभान था.., इसलिए,शेख अब्दुल्ला की शेखी मैंने उनको गद्दी से उतारकर.., कांग्रेसी SNAKE को SHAKE कर उन्हें भी अपनी हड्डियों की श्रंखला के टूटने का भीषण आभाष हो गया था ..,  आज जो धारा ३७० की आड़ में जो खून का तांडव खेला जा रहा है.., उसके निदान के प्रयास के पहिले ही ताशकंद में मेरी ह्त्या कर, देशी ताकतों ने विदेशी हाथों से मेरे देश के स्वर्णीम युग का स्वप्न छीन लिया.      
५.       मोदीजी मेरा जीवन की शुरुवात तो गरीबी से हुई.., और मेरी ह्त्या तो सत्ता में भ्रष्टाचार निकालने व देश को उन्नत से ५० करोड़  देशवासियों के मुट्ठी बल को स्वर्णिम युग से देदिव्यमान करने के लिए सत्त्तालोलूप्तों ने  देश की प्रतिभाओं की जागृत होने के खौफ से..., माफिया जो, विदेशी हाथ, विदेशी साथ, विदेशी भाषा, विदेशी विचार से देश को २०० साल लूटने के खेल के बाद भी एक समानांतर गुलामी का जाल बुन रहें थे..., इसकी बू.., मुझे जवाहरलाल नेहरू के काल से ही आ रही थी
६.       मैंने तो अपने जीवन के ध्येय को .., इमानदारी से राष्ट्र की सेवा को समर्पीत कर .., मैंने इमानदारी के जूनून से ही पार्टी के व सरकार पदों में काम किया.., मेरे जीवन में, नेहरू काल में लाखों कार्यकर्ताओं. राजनेताओं ने.., गांधीवाद की आड़ में साधुवादी बनकर, देश को लूटा.., इस माहौल को देखकर भी मैंने उनकी छाया से जीवन में छांव लेने की कल्पना तक नहीं की थी.   
७.       मुझे, मेरे जीवन में जितने भी पद मिले उसे मैंने भारतमाता का गौरव बढ़ाने के लिए समर्पित रहा, मैं बहुत गहनता से जुटा रहा.., कई बार नेहरू की नौकरशाही की लुंज-पुंजता से, वे भ्रष्टाचार से पूंजी बना गए..., इसका दुःख मुझे बहुत होता था.., क्योंकि उस वृक्ष के (जड़ का) राजा देश के  प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे..., मैंने कठोर मेहनत के बावजूद, असफलताओं  के लिये कभी अफ़सोस नहीं किया, और राजीनामा देता रहा
८.       इसका लाभ, मेरे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लिया.., मुझे तो वे मोहरा बनाकर अपनी सत्ता चमकाते रहें.. और देशवासियों को मेरे राजीनामा से राजी कर .., शांती के मसीहा बनकर, नोबल पुरूस्कार जीतने के फेर में सेना को नो-बल कर दिया था
९.       हमारे आयुद्ध कारखाने में, हथियार बनाने के बजाय चूड़ी का कारखाना लगाकर दुश्मनों को देश में “आकर -युद्ध” की प्रेरणा से  देशवासियों को चूड़ी पहनाने का जामा/खेल खेल रहे थे...,
१०.   नेहरू की मृत्यू के बाद मैं तो प्रधानमंत्री पद का काबिल भी  नहीं था.., दिग्गजों के आपसी बंदरबांट की लड़ाई मे, मुझे प्रधानमंत्री पद दिया गया .., तब मुझे लगा,  “अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे.., अब इन नेताओं राजनैतिक जीवन को रेगिस्तान की मरूस्थली बनाओं..
११.   मैं कायल था तो सिर्फ और सिर्फ, वीर सावरकरजी  की विचारधारा से, जिन्होंने १९५४ में नेहरू को चेताया था कि चीन हम पर आक्रमण करने वाला है..., देश की सुरक्षा के लिए अणुबम के साथ हाइड्रोजन बम बनाने  व स्कूलों में सैनिक शिक्षा अनिवार्य कने का मंत्र दिया था.., उलट १९६२ में चीन द्वारा एकतरफा जीत से नेहरू, वीर  सावरकर से बौखालागाये थे..इस चेतावनी का अनुसरण न करने की अपनी गलती छुपाने के बजाय, उनहें उनके  घर “सावरकर सदन” में नजरबन्द कर दिया और उनके पत्रों की भी जांच शुरू कर दी.. अंत में थल सेना के जनरल करिअप्पा ने अपना पद त्यागते हुए खा था.., यदि हमने वीर सावरकर की बात मानी होती तो चीन आक्रमण के बारे में भी नहीं सोचता था. इस राष्ट्रवादी की आर्थिक परिस्तिथी व उनके अतुल्य देशभक्ति से प्रेरित होकर,  मैंने पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान करने से मेरे पार्टी में खलबली मच गई थी
१२.   मेरे इर्द गिर्द सत्ताखोरों की फ़ौज.., इसी भ्रम मे थी कि मैं पाकिस्तान से युद्ध हार जाऊंगा.., और मैं जल्द ही इस्तीफा दे दूंगा.., मेरी राष्ट्रवादी विचारधारा से पकिस्तान तो बह गया था, और मेरे दिग्गज साथियों को अपना  राजनैतिक जीवन, बहने का खतरा मंढरा रहा था...
१३.   माफियाओं की दूकान बंद हो रही थी..., मैंने कभी नेहरू के, गांधी - नेहरू द्वारा समृद्ध टाटा बिड़ला बजाज के मिजाज को देखकर उनके तलुवे नहीं चाटे, मुझे तो ५० करोड़ गरीबों के तलुओ की मजबूती का इतना अभिमान व विश्वास  था कि देश की कटेंली/ कटींली राह में, चलकर भी उनके तलुओं को काँटों की चुभन नहीं होगी..., मुझे कांग्रेस से भारी उद्योग न लगाने का भारी विरोध करने पर कहना पड़ा, जैसे नेहरू को गांधी के विचार पसंद नहीं थे उसी तरह, मुझे गांधी के स्वदेशी विचारसे लघु व ग्रामीण उद्योग से गरीबों को अमीरी रेखा तक पहुँचाना है.., देश का तन-मन धन गरीबों के उत्थान से ही, मजबूत भारत का निर्माण होगा   
१४.   मुझे तो कांग्रेस सरकार ने १९ महीने ही दिए और देश के स्वर्णीम काल के भविष्य देख पाने के पहिले ही..., मेरी ह्त्या कर दी.., मेरी कांग्रेसी पार्टी ही नहीं विश्व को भी भयानक डर था कि मेरा दृण निश्चय था .., देश, विदेशी हाथ, विदेशी बात, विदेशी साथ, विदेशी विचार, विदेशी संस्कार के लगाम का पूर्ण सफाया करने का संकल्प..., जो चंद वर्ष में मेरे कार्यकाल में ही पूरा कामयाब होना था , और देश की खान खदान, ईमान देशी-विदेशी माफियाओं हाथों से निकलने का डर ही मेरे ह्त्या का कारण बना .
१५.    आज ४९ सालों बाद मैं भी.., रूस के ताशकंद में बंद कमरे में रात में १ बजे दूध पीने के बाद में विदेशी रसोईये का धोखे से जहर पिलाने के बाद की घुटन. को.., आज मेरे, देशवासियों में महसूस कर रहा हूँ, फर्क इतना है कि मैं घुटन से मारा गया, और देशवासी घूट घूट के जी रहा है.. कैसे विदेशी हाथ वाले, देशी उद्योगपतियों की आड़ में देश में माफियाराज से देश को गर्त में डालकर आज प्रति व्यक्ती ५० हजार रूपये का कर्ज करने व जवानों व किसानों का पसीना विदेशी बैंकों में कैद कर रखा है 
१६.   चेतो मोदी सरकार.., राष्ट्र तो देशवासिओं के १२५ करोड़ मुठ्ठी बल से उन्नत होगा, विदेशी धन से देश की अवनीती होगी, इस नीती से महंगाई के जूते से जनता की दुर्गती होगी..
कर लो राजनेताओं को मुठ्ठी मेंके माफियाओं के नारों ने देश को कर्ज से डूबाकर, उजाड़ दिया है. किसानों की भूमि छीनकर,, उसे विकासके बहाने देश का बेगानाबना दिया है.., किसान आज कैसा इंसान बन गया है.., आत्महत्या ही उसका धर्म बन गया है ....

मेरी जीवन की गाथा तो बहुत लम्बी है.... चतो मोदी जी यह देश सावरकर की धारा से ही आगे बढेगा 


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