Wednesday 19 February 2014



यह लेख कलकत्ता से दिल्ली तक लम्बा है... अन्ना अब आम आदमी पार्टीके खांसी से अब आम औरत पार्टी” (आऔ पार्टी) के झांसे में आकर उसे आज झांसी की रानी समझते है, लगता है आज के बापू ... नोवाखली जाकर गांधी के पाप का प्रायश्चित करने जा रहें है... जानिए शारदा चिट फंड के कला का काला चिट्टा, इसके आड़ में बांग्लादेश के घुसपैठीयों से बिठा रही है देश का भट्टा...!!!???, गुजरात मे लोकायुक्त की नियुक्ति मे देरी होने पर नरेन्द्र मोदी को कोसने वाले अन्ना को बंगाल नही दिखता जहाँ लोकायुक्त कानून का नामोनिशान तक नही हैँ

Posted on this Facebook page on May 25, 2013 May 25, 2013 at 12:36pm
ममता जो अपने को गरीबों की मसीहा समझती तू...? वह ही गरीबों की लुटेरी निकली...??? केन्द्र सरकार को कंधा देने की किमत रेल मंत्रालय ले कर वसूली, बंगाल के नगरपालिकाओ के चुनाव मे उन्नत छवि के झाँसे मे रेल मंत्रालय मे कम और अपने को झाँसा मंत्री बनाने मे ज्यादा महत्व दिया.. उसी समय रेल दुर्घटना होने पर मरे हुए लोगों के संवेदना देने का भी समय नही था.. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वे रेल मंत्रालय अपने मंत्री दिनेश त्रिवेदी को देकर बंगाल की सत्ता मे आसीन हो गई, और यू.पी.अ.-2 सरकार को 1 लाख करोड की वित्तिय सहायता के माँग से सरकार को समर्थन वापस लेने की धमकी देने लगी, प्रति वर्ष 12 रसोई गैस सिलेडरों की माँग की धमकी से समर्थन वापस लेना , उल्टा दाँव पडा..??

रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने जब रेल का किराया 1 पैसा प्रति कि.मी. बढाया तो गरीबो पर आर्थिक बोझ के नाम से उनसे इस्तीफा ले लिया.. और बाद मे यू.पी.अ.-2 रेल मंत्री पवन बंसल ने रेल का किराया 10 पैसा प्रति कि.मी. बढाया, जनता की गाढी कमाई की घोटालों से वसूल की एक जमाने मे नेहरू भी हेराल्ड अखबार से अपनी व काँग्रेस का बखान करते थे, जनता ऊब चुकी थी , नेहरू भी जीप घोटाले मे बाजी मार गये...??? हेराल्ड अखबार प्रकाशन, घाटे मे जाने से सरकारी मदद से जिन्दा रखा गया ,वही हाल ममता का हुआ , समाचार चैनल-10 और अखबार के बखान से जनता को चिट फंड के नाम से 30 हजार करोड रूपये से ज्यादा का चिट (धोखा) किया गया

आज तक जितने भी राज्य कर्जे में हैं? वह सत्ताखोरो के घोटालो की वजह से ही है? यू.पी.अ.-2 सरकार की तो बात ही मत पूछो.. देश तो घोटालो की वजह से कंगाल हो गया है - 

भारत में नया बांग्ला देश गढ़ रहे हैं- घुसपैठिए website 3Nov 2012 post on www. meradeshdoooba
बंगाल में एक फीलगुड कहावत है, ए पार बांग्ला, ओ पार बांग्ला. आम जनता की बात छोड़िए, मुख्यमंत्री एवं राज्य के दूसरे बड़े नेताओं को यह कहावत उचरते सुना जाता रहा है. संकेत सा़फ है, ओ पार बांग्ला के निवासी भी अपने बंधु हैं. भाषा एक है, संस्कृति एक है, फिर घुसपैठ को लेकर चिल्ल-पों काहे की. राज्य में भाजपा के अलावा कोई भी दूसरी पार्टी इस मुद्दे को नहीं उठाती. असम में असम गण परिषद जो आरोप कांग्रेस की सरकार पर लगाती है, वही आरोप बंगाल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पर लगता रहा है कि वोट बैंक मज़बूत करने के लिए इन्हें बड़े पैमाने पर बसाया गया है. आंकड़े सा़फ-सा़फ सच बयां करते हैं. राज्य के सीमावर्ती ज़िलों में तो बांग्लादेशियों का बहुमत है और भारतीय नागरिक अल्पमत में आ गए हैं. राज्य में सांस्कृतिक एकता सिर चढ़कर बोलती है

अभी हाल मे 2012 के विधानसभा चुनाव मे जीत के बाद, ममता बनर्जी ने बंगला देशी मूल के मुस्लिमो को मंत्री बनाते हुए कहा , क्या हुआ ? उंनकी हमारी भाषा एक है, इस वोट बैक के व सत्ता के चक्कर मे, अब राष्ट्रवाद द्सरी ओर पीछे छूट जाता है.

और ममता बनर्जी ने यहा तक कह दिया के पशिचम बंगाल का नाम बंग प्रदेश रखा जाये, याद रहे शेख मुजीबर रहमान को बंग बन्धु के नाम से उपाधित किया गया था, युपीए -2 के चुनाव प्रचार के समय पी चिदंबरम ने खुले आम कह् दिया था, अब मै समझता हू, कि देश मे रह रहे , बंगलादेशीओ को भारतीय नागरीकता दे देनी चाहिए

दक्षिण दिनाजपुर के हिली गांव में भारत-बांग्लादेश सीमा पर कुछ दीवारें बनाई गई हैं, कोई नहीं जानता कि इन्हें किसने बनाया है, पर यह समझने में मुश्किल नहीं है कि यह तस्करों के गिरोह की करतूत है. वहां सुबह से शाम तक तस्करी और घुसपैठ जारी रहती है. घुसपैठिए ज़्यादा से ज़्यादा गर्भवती महिलाओं को सीमा पार कराते हैं और उन्हें किसी भारतीय अस्पताल में प्रसव कराकर उसे जन्मजात भारतीय नागरिकता दिलवा देते हैं. इस काम में दलाल और उनके भारतीय रिश्तेदार भी मदद करते हैं.

2006 में चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में ऑपरेशन क्लीन चलाया था. 23 फरवरी 2006 तक अभियान चला और 13 लाख नाम काटे गए. हालांकि चुनाव आयोग पूरी तरह संतुष्ट नहीं था और उसने केजे राव की अगुवाई में मतदाता सूची की समीक्षा के लिए अपनी टीम भेजी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन राज्य सचिव अनिल विश्वास ने कहा था, उन्हें सैकड़ों पर्यवेक्षक भेजने दीजिए, अब कोई भी क़दम हमें जीतने से नहीं रोक सकता. इस बयान से अंदाज़ा लगाया गया कि माकपा को अपने समर्पित वोट बैंक पर कितना भरोसा रहा है. 

'राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वाममोर्चा के सत्ता में आने के समय से ही मुस्लिम घुसपैठियों को वोटर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई. उस समय ममता बनर्जी ने कहा था कि राज्य में दो करोड़ बोगस वोटर हैं. विभिन्न संस्थाओं एवं मीडिया के मोटे अनुमान के मुताबिक़, भारत में डेढ़ से दो करोड़ घुसपैठिए बस गए हैं और बंगाल के एक बड़े हिस्से पर इनका क़ब्ज़ा है. अब ममता भी चुप हैं, क्योंकि उन्हें भी 2011 में बंगाल की कुर्सी दिख रही है.
पश्चिम बंगाल सरकार के सूत्रों के मुताबिक़, वर्ष 1980 तक कुल 32,84,065 शरणार्थियों का पुनर्वास हुआ था. अकेले बंगाल में इनकी संख्या 20,95,000 थी. इसके अलावा अवैध रूप से राज्य में रह रहे बांग्लादेशियों की आबादी कहने को 57 से 60 लाख के बीच है, पर असली संख्या इससे काफी ज़्यादा है. पूर्व आई बी प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल के राज्यपाल टी वी राजेश्वर राव ने 1990 में कोलकाता से प्रकाशित एक अंग्रेजी दैनिक में छपे अपने लेख में इस समस्या की तल्ख हक़ीक़त सामने रखी थी. उन्होंने राज्य सरकार के हवाले से ही लिखा था कि 1972 से 1988 तक बंगाल में 28 लाख बांग्लादेशी नागरिक आए, लेकिन उनमें से पांच लाख यहीं के होकर रह गए. 1971 के पहले बांग्लादेशियों का भारत आना मुजीबुर्रहमान और इंदिरा गांधी के बीच हुए समझौते का हिस्सा था, पर आरोपों के मुताबिक़ 77 के बाद से घुसपैठियों एवं वाममोर्चा सरकार के बीच राजनीतिक पुनर्वास के लिए जैसे एक अलिखित समझौता हुआ. डेमोग्राफिक एग्रेशन अगेंस्ट इंडिया पुस्तक के लेखक बलजीत राय ने 5 अक्टूबर 1992 को द स्टेट्‌समैन में पाठक के एक पत्र को उद्धृत किया, जिसमें लिखा था, मैं यह सुनकर चकित हूं कि जलपाईगुड़ी को छोड़कर पश्चिम बंगाल के सभी सीमावर्ती ज़िलों के मजिस्ट्रेटों ने राज्य मुख्यालय को रिपोर्ट भेजी कि उनके ज़िलों में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की कोई समस्या नहीं है. यह केवल कल्पना की बात नहीं रही कि भारी संख्या में घुसपैठियों को उनके मुस्लिम भाइयों ने पनाह दी है. राजमार्गों और रेल पटरियों के किनारे इन लोगों ने कालोनियां बना ली हैं. यह कृपा है उन राजनीतिक दलों की, जो अपने वोटबैंक की ह़िफाज़त करना चाहते हैं. बलजीत राय ने यह भी लिखा कि ये घुसपैठिए अब बिहार और पश्चिम बंगाल के हिस्सों को मिलाकर मुस्लिम बंगभूमि की मांग कर रहे हैं. कितनी दयनीय हालत है कि एक समय सरकार की आंख और कान कहे जाने वाले अधिकारी पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दलों को ख़ुश करने के लिए इस राष्ट्रीय संकट के प्रति अंधे-बहरे हो गए हैं. लेखक ने राज्य की राष्ट्रवादी ताक़तों के नैतिक स्तर पर भी सवाल उठाया है.
भारत और बांग्लादेश के बीच 4095 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें बंगाल से लगी सीमा की लंबाई 2216 किलोमीटर है. इसमें बीएसएफ की साउथ बंगाल फ्रंटियर 1145.62 किलोमीटर तक निगरानी करती है, जिसकी सीमा दक्षिण में सुंदरवन से लेकर उत्तर में दक्षिण दिनाजपुर ज़िले तक है. ग़ौरतलब है कि 367.36 किलोमीटर सीमा रेखा नदी-नाले के रूप में है, जबकि 778.36 किलोमीटर रेखा ही ज़मीन से होकर गुजरती है. पूरे बंगाल में कुल 600 किलोमीटर तक सीमा रेखा नदी-नालों के रूप में है. घुसपैठियों एवं तस्करों को सबसे ज़्यादा सुविधा नदी-नाले के कारण होती है. दिन में जब उन नदी-नालों में औरतें नहाती हैं, तो स्थानीय लोगों की ओर से बीएसएफ जवानों का विरोध किया जाता है. साउथ बंगाल फ्रंटियर की देखरेख वाली 529.12 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ इसलिए नहीं लग पाई है कि गांव वालों ने अदालत की शरण ली है. बीएसएफ के सूत्रों ने बताया कि इसका मक़सद बाड़ लगाने के काम को लटकाना है. सीमा पर बसे लोगों का अपना स्वार्थ है. दक्षिण दिनाजपुर के हरिपुर गांव के बीचोबीच अंतरराष्ट्रीय सीमारेखा है. भारत के मुसलमान रेखा से सटी मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं. अब समझा जा सकता है कि बीएसएफ का काम कितना कठिन है. ऐसे ही दर्ज़नों गांव हैं. बेरोज़गारी के चलते लोगों ने घुसपैठ की एजेंसी एवं तस्करी का काम पेशे की तरह अपना लिया है. दूसरी बात यह कि बाड़ लगाने का काम केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के ज़िम्मे है और बीएसएफ इसमें हस्तक्षेप नहीं करती. बीएसएफ के पास जवानों की भी कमी है. अभी बंगाल में 20 बटालियनें ही तैनात हैं, जबकि ज़रूरत 34 बटालियनों की है. रात में ठीक तरह से निगरानी हो सके, इसके लिए अत्याधुनिक उपकरणों की कमी है. सुंदरवन इलाक़े में बीएसर्ऐं की जल शाखा को और भी चुस्त करने की ज़रूरत है. वैसे बीएसएफ ने 300 अतिरिक्त सीमा निगरानी चौकियां लगाने का फैसला किया है, पर अगले पांच सालों में यह संभव होगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता.

1991 की जनगणना में सा़फ दिखा कि असम एवं पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती ज़िलों की जनसंख्या भी कितनी तेज़ी से बढ़ी. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, सीमावर्ती ज़िलों के क़रीब 17 प्रतिशत वोटर घुसपैठिए हैं, जो कम से कम 56 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का निर्णय करते हैं, जबकि असम की 32 प्रतिशत विधानसभा सीटों पर वे निर्णायक हालत में हैं. असम में भी मुसलमानों की आबादी 1951 में 24.68 प्रतिशत से 2001 में 30.91 प्रतिशत हो गई, जबकि इस अवधि में भारत के मुसलमानों की आबादी 9.91 से बढ़कर 13.42 प्रतिशत हो गई. 1991 की जनगणना के मुताबिक़, इसी दौरान बंगाल के पश्चिम दिनाजपुर, मालदा, वीरभूम और मुर्शिदाबाद की आबादी क्रमशः 36.75, 47.49, 33.06 और 61.39 प्रतिशत की दर से बढ़ी. सीमावर्ती ज़िलों में हिंदुओं एवं मुसलमानों की आबादी में वृद्धि का बेहिसाब अनुपात घुसपैठ की ख़तरनाक समस्या की ओर इशारा करता है. 1993 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री ने भी लोकसभा में स्वीकार था कि 1981 से लेकर 1991 तक यानी 10 सालों में ही बंगाल में हिंदुओं की आबादी 20 प्रतिशत की दर से बढ़ी, तो मुसलमानों की आबादी में 38.8 फीसदी का इज़ा़फा हुआ. 1947 में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 29.17 प्रतिशत थी, जो 2001 में घटकर 2.5 प्रतिशत रह गई. सबूत तमाम तरह के हैं. 4 अगस्त, 1991 को बांग्लादेश के मॉर्निंग सन अख़बार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, एक करोड़ बांग्लादेशी देश से लापता हैं. यह सब होते हुए बांग्लादेश सरकार आज तक घुसपैठ की बात स्वीकार नहीं करती.

2001 की जनगणना के मुताबिक़, भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 1.5 करोड़ थी. सीमा प्रबंधन पर बने टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, हर महीने तीन लाख बांग्लादेशियों के भारत में घुसने का अनुमान है. केवल दिल्ली में 13 लाख बांग्लादेशियों के होने की बात कही जाती है, हालांकि अधिकृत आंकड़ा चार लाख से कम ही बताता है. भारत-बांग्लादेश सीमा का गहन दौरा करने वाले लेखक वी के शशिकुमार ने इंडियन डिफेंस रिव्यू (4 अगस्त, 2009) में छपे अपने लेख में बताया कि किस तरह दलालों का गिरोह घुसपैठ कराने से लेकर भारतीय राशनकार्ड और वोटर पहचानपत्र बनवाने तक में मदद करता है. दक्षिण दिनाजपुर के हिली गांव में भारत-बांग्लादेश सीमा पर कुछ दीवारें बनाई गई हैं, कोई नहीं जानता कि इन्हें किसने बनाया है, पर यह समझने में मुश्किल नहीं है कि यह तस्करों के गिरोह की करतूत है. वहां सुबह से शाम तक तस्करी और घुसपैठ जारी रहती है. घुसपैठिए ज़्यादा से ज़्यादा गर्भवती महिलाओं को सीमा पार कराते हैं और उन्हें किसी भारतीय अस्पताल में प्रसव कराकर उसे जन्मजात भारतीय नागरिकता दिलवा देते हैं. इस काम में दलाल और उनके भारतीय रिश्तेदार भी मदद करते हैं. मालूम हो कि सीमा के क़रीब रहने वाले लोगों में परंपरागत रूप से अब भी शादी-ब्याह का रिश्ता चलता है. यही नहीं, कुंआरी लड़कियों को बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में दुल्हनों के तौर पर बेच दिया जाता है. कई दलाल तो शादी कर उन्हें कोठे पर पहुंचा देते हैं. सीमा से लगी ज़मीन की ऊंची क़ीमतों से भी साबित होता है कि घुसपैठ एवं तस्करी को स्व-रोज़गार का कितना बड़ा साधन बना लिया गया है.

14 जुलाई, 2002 को संसद में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि भारत में 10करोड़ 20 लाख 53 हज़ार 950 अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं. इनमें से केवल बंगाल में ही 57 लाख हैं. इलीगल इमिग्रेशन फॉम बांग्लादेश टू इंडिया : द इमर्जिंग कन्फिल्क्ट के लेखक चंदन मित्रा ने पुस्तक में पश्चिम बंगाल के साथ असम में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों से जुड़ी गतिविधियों एवं कार्रवाइयों का पूरा ब्यौरा दिया है. वह लिखते हैं, सच कहें तो पश्चिम बंगाल बांग्लादेशी घुसपैठियों का पसंदीदा राज्य बन गया है. 2003 में मुर्शिदाबाद ज़िले के मुर्शिदाबाद-जियागंज इलाक़े के नागरिकों को बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचानपत्र देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया. इसमें भारतीय नागरिकों और ग़ैर-नागरिकों की पहचान तय करनी थी. हालांकि अंतिम रिपोर्ट अभी सौंपी जानी है, पर अंतरिम रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ. इस प्रोजेक्ट के दायरे में आने वाले 2,55,000 लोगों में से केवल 24,000 यानी 9.4 प्रतिशत लोगों के पास भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए कम से कम एक दस्तावेज़ था. 90.6 प्रतिशत या 2,31,000 लोग निर्धारित 13 दस्तावेज़ों में से एक भी नहीं पेश कर पाए. आख़िर में इन्हें संदिग्ध नागरिकता की श्रेणी में डालकर छोड़ दिया गया.

मार्च के दूसरे सप्ताह में बीएसएफ और बांग्लादेश राइफल्स के बीच हुई बातचीत भी रुटीन ही रही. दोनों पक्षों ने घुसपैठ एवं तस्करी पर रोक लगाने और सीमा पर अमन क़ायम रखने पर सहमति जताई. बीएसएफ के महानिदेशक रमन श्रीवास्तव और 19 सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल के साथ आए बीडीआर के महानिदेशक मेजर जनरल मैनुल इस्लाम ने पिछले साल नवंबर में गृह सचिव स्तर की वार्ता के दौरान हुई सहमतियों पर काम आगे बढ़ाने की बात कही. बांग्लादेश ने भारत में आतंकी हरक़तें करने के लिए अपनी ज़मीन का इस्तेमाल न होने देने का वादा निभाने की बात कही. हाल में उलफ नेताओं की गिरफ़्तारी से इसका सबूत भी मिला, पर जब तक बांग्लादेश घुसपैठ की बात नहीं स्वीकार करता या उन्हें वापस लेने के लिए नहीं तैयार होता है, तब तक जनसंख्या के इस हमले को रोकने में मदद नहीं मिलने वाली. बीडीआर ने सीमा से लगी 150 गज ज़मीन को लेकर पैदा होते रहे विवाद को भी आपसी सहमति से सुलझाने का वादा किया है. घुसपैठ की समस्या का एक तार भारत में आतंकी गतिविधियों से जुड़ा हुआ है. बांग्लादेश का आतंकी संगठन हरकत-उल-जेहादी-इस्लामी (हूजी) भारत में दर्ज़नों आतंकी हमले एवं हरक़तें करा चुका है. गृह मंत्रालय के सूत्रों ने भी स्वीकार किया है कि वह लगातार अपने कॉडर भारत भेज रहा है. बांग्लादेश के सईदपुर, रंगपुर, राजशाही, कुस्ठिया, पबना, नीतपुर, रोहनपुर, खुलना, बागेरहाट एवं सतखीरा इलाक़ों से ज़्यादातर घुसपैठिए आते हैं और इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी खुलकर मदद करती है. जैसा कि बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री तपन सिकंदर ने चौथी दुनिया को बताया कि घुसपैठ रोकने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को ही तत्पर होना होगा और इसमें स्थानीय आबादी का भी सहयोग काफी अहम है. इसके साथ ही वोटबैंक की राजनीति भी बंद होनी चाहिए. उन्होंने 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक के प्रस्तावों को तुरंत लागू करने की ज़रूरत बताई, जिसमें राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं पुलिस महानिदेशकों ने शिरकत की थी. इस बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि घुसपैठियों को पकड़कर उन्हें किसी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंपा जाए, ताकि उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया आसान हो सके. इतने साल बीत जाने के बावजूद यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा है. बीएसएफ सूत्रों के मुताबिक, अभी घुसपैठियों को पकड़ कर राज्य पुलिस को सौंपा जाता है और फिर वे भारतीय जेलों की भीड़ बढ़ाते हैं.

भारत से पूर्वोत्तर का इलाका सिलीगुड़ी कॉरीडोर या चिकन नीक पट्टी से जुड़ा हुआ है. ऐसी भी रपटें आई हैं कि मुस्लिम आतंकी इस हिस्से को काटकर अलग इस्लाकमस्तान बनाना चाहते हैं. इसे ऑपरेशन पिनकोड का नाम दिया गया है और उनका इरादा पूर्वोत्तरइलाकों में 3000 जेहादियों को घुसाना है. मुगलिस्तान रिसर्च इंस्टीट्यूट र्ऑें बांग्लादेश ने मुगलिस्तान का एक नक्शा जारी किया है. सीमा प्रबंध टास्क फोर्स के मुताबिक़, भारतीय सीमा में 905 मस्जिदें बनाने और 439 मदरसे खोलने की योजना है. बांग्लादेशी घुसपैठियों के मामले में पूरी सतर्कता बरतने की ज़रूरत है. सचमुच, अगर समय रहते उपाय न किए गए तो पश्चिम बंगाल आबादी के बोझ के कारण एक गहरे संकट में फंस सकता है. देश के दूसरे हिस्से भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे. बंगाल में पूरे देश का केवल तीन प्रतिशत भूभाग है, जबकि वह कुल आबादी के 8.6 प्रतिशत हिस्से का भार ढो रहा है. अचरज की बात है कि विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, ऋषि अरविंद और सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रवादी महापुरुषों को पैदा करने वाला पश्चिम बंगाल सदियों से इस तरह की संवैधानिक धोखाधड़ी को बर्दाश्त कर रहा है. भाजपा नेता एवं पत्रकार चंदन मित्रा ने एक बार टिप्पणी की थी कि कोलकाता का लगभग हर दूसरा आदमी अपने को बुद्धिजीवी की श्रेणी में रख अगली एक अप्रैल से जनगणना का काम शुरू होना है और ता है, पर ऐसा लगता है कि राज्य में हो रही ऐसी अलोकतांत्रिक चुनावी धोखाधड़ी के प्रति वह संवेदनहीन हो गया है.

याद रहे 26/11 के घटना के समय सीमा पार से आतंकवादीओ के आकाओ की चुनौती भरी आवाज आई थी, हिन्दुस्तान मे हमारे लाखों समर्थक है, रोक सको तो रोक ?

लेकिन हमारे सत्ताधारी अभी भी बैठें मूक है, और आस लगाये बैठे है कि , इस निती से वापस सत्ता मे आयेगे

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