Thursday 7 August 2014



क्या अब आमीर खान भी अपनी फिल्म “पीपली लाइव” की तरह गांवों में जाकर,क्या इस पीके फिल्म की पब्लिसिटी के लिए , ट्रांसिस्टर लेकर नग्न होकर जायेंगे..,
यदि, सत्यमेव जयते का हमारे नेता सत्कार करते तो, आज संविधान के जज, वकील और सरकारी बाबूओं की टोली भूखी मरती...
मेरे वेबस्थल का स्लोगन है, “सत्ता मेवा है..,इसकी जय है” “मेरा संविधान महान..., यहां हर माफिया पहलवान”
जब, सत्ता, मेवा, जयते – सत्ता एक मेवा है, इसकी जय है (सत्यम) (जो, मेरे वेबस्थल का स्लोगन है...), जब भ्रष्टाचार के त्रिशूल से (शिवम है), और भारत निर्माण के मेक अप से देश की सुंदरता का बखान हो रहा है (सुंदरम है ), – दोस्तो... यही डूबते देश की कहानी है, यह देश की, लूट – पानी है...., सत्य की खाल से, माफियाओ की ढाल बनी है , यह देश के बरबादी की मनमानी है .
१८७२ के पुलिस कानून बनने के पहले, देश में सिर्फ सदाचार से जनता भी समाज में सम्मान खोने के डर से उनकी आत्मा..., दुराचार, दुष्कर्म, बेईमानी करने से उसका हाथ पकड लेती थी
लार्ड मैकाले ने १८३५ में ब्रिटिश संसद में कहा था , मैंने हिन्दुस्तान (पाकिस्तान, बर्मा व अन्य हिन्दुस्थान से जुड़ें देश) की और छोर की यात्रा की , मुझे कोई चोर उच्चका ,भिखारी नहीं मिला , सैकड़ों सालों की गुलामी के लिए विदेशी भाषा की गुलामी थोपो...,
विदेशी आक्रमणकारियों के हमारे देश इतने हमले होने के बावजूद हमारा समाज , गुरूकुल शिक्षा से देशी,भाषा,विचार,संस्कार से समृद्ध था
दोस्तों आज इस विदेशी संस्कृति की आड़ में गरीबो की देश शोषण व अमीरों के वह्सीकर्ण से हिन्दुस्तान डूब रहा है...
२००५ में आमीर खान ने मंगल पांडे फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई थी , युवा वर्ग कह रहे थे..., आमीर खान ने क्या बेहतरीन भूमिका निभाई है, लेकिन मंगल पांडे की क्रांती व बलिदान की अहम् भूमिका को भूल गए..,
२००७ में, दो साल बाद , मंगल पांडे का १५० वाँ जन्म था, इस फिल्म से करोड़ों रूपये कमाने वाले आमीर खान , दुर्लक्ष्य कर , इस दिन कोई उत्सव तो दूर की कौड़ी रही.., देश को कोई सन्देशतक नहीं दिया..., देश के अखबारों के विज्ञापनों भी बुझ गए थे,,
मंगल पांडे, इन दिखावेबाजों के धूल के तले आज तक दबें पड़ें हैं..
‘मंगल पांडे’ ने यह अहसास कराया कि जिन आजाद हवाओं में वह सांस ले रहे हैं वह उन्हें मंगल पांडे जैसे सेनानियों के बलिदान की बदौलत मिली है।’’
हमारे देश की गरीबी बेचकर , धनाड्य वर्ग से , फिन्म इंडस्ट्री के लोग और अमीर बनते गए १९५०-६० के दशक से “जागते रहो”, दो बीघा जमीन “और हाल की “जय हो “ और सत्यजीत रे जैसे फिल्म निर्माता अंतर्राष्ट्रीय पटल में वाहवाही लूटते रहें, देश की गरीबी की छवी से विश्व में प्रसिद्ध हो गए..,
विदेशी देशों में इन्होनें हमारी ऐसी छवी बना दी थी कि विदेशी कहते थे , इस देश की संस्कृति पाषाण युग की है,,, यह देश सांप की पूजा करने वाला देश है...,

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