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चल चुग जा रे पंछी ये देश है,भ्रष्टाचार का खजाना,
तुने देश का तिनका तिनका चुगकर हजारो नगरी बसाइ,
मजा कर जो किसानो के मेहनत तेरे काम आइ,
अच्छा है सब कुछ लूट कर दौलत तुने कमाइ,
आज जग के आँख का तु है तारा, चाल तेरी मतवाली,
अब ना भूल इस बाग को अब तू और तू ही है इसका माली,
तेरे किस्मत मे लिखा है, इस खेत ही नही, इस देश को लूट कर खाना,
चमक रहे है , पंख और टोपिया तुम्हारे और तुम्हारे धनों का मैखाना,
जिनके साथ तुने लगाए है भ्रष्टाचारीओ के मेले,
मेरी अखियो से आज तू मेरी दुवा ले ले,
किसको पता है इस इस देश मे मुझे हो कब तक हो रहना ......... और
अब जल्दी ... जल्दी.... चुग जा रे............ पंछी
कौन जाने अब कब आये, दुबारा ऐसा मौका , नही है इसे गवाँना ..........
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