सावरकर
की उक्ती “शक्ती ही शक्ती का सम्मान करती है” , विश्व में दुर्बल बनकर देश का इतिहास
नहीं संवारा जा सकता है.
जी
हाँ .., वीर सावरकर की ४० से अधिक भविष्यवाणियां सार्थक हुई है ..,१९४७ में देश
आजाद होने पर वीर सावरकर ने आवाहन किया की देश को सुपर पॉवर बनाने के लिए भारत को
हाइड्रोजन बम के साथ ध्वनि बम भी बनाना
चाहिए .
१९४५
में विश्वपटल पर कोरिया को खंडित कर दक्षिण कोरिया पर अमेरिका व उत्तर कोरिया पर
रूस का अधिकार हुआ, दोनों कोरिया अपने अपने शुभचिंतकों पर आश्रित व केवल शतरंजी मोहरे बनाकर आपस में लड़ाने का खेल खेल
रहे थे .
दक्षिण
कोरिया तो संपन्न था , उत्तर कोरिया की अर्थव्यस्था कमजोर होने के बावजूद उसने अपनी सीमा व देश की सुरक्षा व बदला लेने की
भावनाओं से परमाणु तकनीकी चोरी छुपे खरीद कर किम जोंग के कार्यकाल में हाइड्रोजन
बम का परिक्षण कर दुनिया को अचंभित कर सुपर पावर देशों में दहशत पैदा कर दी की
कैसे एक छोटा देश दुनिया को बर्बाद कर सकता है...
खासकर
इसके निशाने पर अमेरिका है , इसे जानकार अमेरिका के होश फाक्ता / उड़ गए ..
और
जानकार कि इसके परदे के पीछे चीन की महत्वपूर्ण भूमिका है.
दक्षिण
कोरिया का हाथ थामने के लिए ट्रम्प ने सिंगापूर में एक निस्पक्ष्य जगह सिंगापूर
में किम जोंग से मुलाक़ात की ताकि वह अपने परमाणु हथियार की बलि दे..
लेकिन किम जोंग ने अमेरिका को टरका
दिया लेकिन कोई नए परमाणु हथियार का परिक्षण नहीं किया और अमेरिका सरकार को (अंध)
विश्वास में लेकर गुमराह किया
अब
अमेरिका सरकार को अपने तले जमीन सरकते देख
, वियतनाम में ट्रम्प सरकार ने किम जोंग को उकसाया की यदि आप परमाणु हथियार को छोड़
दे तो आप को विश्व में एक नंबर की शक्ती बनाने का विश्वास अमेरिका देगा ..अब देखना
है की अमेरीकी सरकार इस जाल में किम जोंग को फंसाकर अपना हित साधने में सफल होती है क्या
!!!!!
इस
लेख का निचोड़ यही है की दुनिया को झुकाने
के लिए राष्ट्रवाद ही देश की आत्मा है जिसे गीता में कहा गया कि इसको दुनिया की
कोई ताकत भेद नहीं सकती है
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