1. बिहार में ६९
सालों से जातिवाद की बहार है.., घोटालों की बयार है..,
अफीमी नारों के आस से विकास का निकाश.., नीतीश
की जातिवाद की कोशिश से अब भी बिहार कोशों मील दूर है..,
2. लालू जैसे लाल
से लाखों नेता अपने को माई का लाल कहकर, भ्रष्टाचार के कटार
से वोट बैंक के इंक (INK) से गरीबों के हाथ बदरंग है..,
यही सत्ता का रंग है .., बिहार के साथ,
देश में जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद, अलगाववाद से तिरंगा बदरंग है.
3. जहां.., बिहार में. शिक्षा से तक्षशिला की शीला से देश, विश्वगुरू
कहलाता था.., आज जातिवाद की विष शीला से बिहार..,बीमार प्रदेश बन गया है.
4. अफीमी नारों व
विदेश के कर्ज की हवा से तिरगा फड़फड़ाकर “विकास” के नाम से जनता को भरमाया जा रहा है..
5. अब मोदी के “अच्छे दिनों” के द्वन्द का एक नए रंग से.., आपस में सीटों की लड़ाई है.., राजनीती दबंगता से जनता
दबते जा रही है ...,
6. अब यह चुनावी
तलवार से सत्ता के म्यानों की लड़ाई है..
7. महंगाई के भार
से, जवानों के जवानी के कंधे थकते जा रहें हैं .., माफिया, इस गोरखधंधे से चंगे होते जा रहें है..,
इनकी ५ साल के बच्चे राणा सांगा की औलादे लगती है .., और गरीब का पांच साल का बच्चा ५० साल का लगता है...
8. दिवंगत महान
व्यंगकार लेखक श्री हरीशंकर परसाई के १० हजार से अधिक राजनितिक लेख आज भी जीवंत
हैं. १९६० के दशक में.., उन्होंने बिहार के बारे में लिखा था,
श्रीकृष्ण भगवान् मुझे मिले थे. उन्होंने, कहा
मैं बिहार में चुनाव लडूंगा और लोगो को कहूँगा में श्रीकृष्ण भगवान् हूं , मैं आसानी से जीत जाऊंगा .., तब मैंने उनसे कहा आप
जब तक यह नहीं कहोगे मैं श्रीकृष्ण “यादव” हूँ , तब तक आप चुनाव नहीं जीत सकोगे. भगवान् और
मेरी शर्त लगी भगवान् श्री कृष्णा के विरोध में यादव नाम का उम्मीदवार खड़ा था और
वह जीत गया और भगवान् श्री कृष्ण हार गए
9. जयप्रकाश नारायण
ने तो कहा था, देश में सबसे अधिक खनिज होने के बावजूद बिहार
गरीब क्यों.???, इस जीत का रहस्य तो..., खनिज से ज्यादा बिहार में नेताओं के लिए जातिवाद,धर्मवाद
के उत्प्रेरक खनिज से.., बिहार भ्रष्टाचार के बहार से गाय
भैसों व अन्य जानवरों के चारे से, मुस्लिम यादव के भाई- चारे
नारे के आड़ में, २५ सालों तक चारे को डकारकर , प्रदेश के गरीबों को बहाकर.., एकछत्र राज्य करते
रहे...,
10. दोस्तों..,
देश का सबसे बड़ा जहर “अशिक्षा” है.., जिसकी वजह से जनता गरीब होते जा रही है..,
खोखले वादों के अफीमी नारों का शिकार हो जाती है.., और वोट बैंक की राजनीती करने वाले अपने को देश का मसीहा कहकर काले धन से
अमीरतम बनकर अपने को अप्रतिम कहकर सत्ता को जातिवाद, भाषावाद,धर्मवाद व घुसपैठीयों के कोड़े से जनता को पीटकर,अधमरा
कर, महंगाई बढ़ा कर कर्ज के गर्त से देश को डूबा रहें है.
11. इस लोकतंत्र
में आप और हम वोट बैंक के मोहरे हैं.., ५साल के रोते हुए
चेहरे हैं.. राममनोहर लोहिया ने सही कहा था ..., जिंदा कौमे
५ साल का इन्तजार नहीं करती है.
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