१. सूअर का गोश्त व सुरा का सेवन करने वाला जिन्ना को , इस्लाम का पाक मसीहा मानकर, इस बंटवारे को पाक कहकर
पाकिस्तान राष्ट्र का कायदे आजम बना ...
२. गाय के गोश्त का भक्षण करने वाले व सुर – सुरा-सुन्दरी के कायल नेहरू को “पंडित” कह, हिन्दुस्तान की कमान से, खंडित
भारत के हार से, अंग – भंग से आज भी
इंडियन इतिहास में “भारत रत्न “ के
सम्मान व गली –मुहल्लों के नाम व पुतलों से मान दिया है .
३. ब्रह्मचर्य के प्रयोग से राष्ट्र को शर्मिन्दगी व अहिसां व
तुष्टीकरण की आड़ में एक “खूनी कटार” से देश को खंडित कर, सत्ता परिवर्तन से आजादी का ढोल
पीट कर इसे “बिना खडग - बिना ढाल” कहकर
, संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए “राष्ट्रपिता
उर्फ़ बापू” की उपाधी दे दी.
४. अखंड भारत के प्रधानमंत्री के प्रबल दांवेदार सरदार पटेल को रेस
से बाहर कर जिन्ना व नेहरू इस दौड़ में थे , व
गांधी अंग्रेजों के मकड़जाल की एक मकड़ी बन अधिकृत एक रेफरी / निर्देशी पंच बने थे.
५. जिन्ना की धरती पकड़ जिद्द से अखंड
भारत की अकड़ से प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा को मनाने के लिए गांधी ने मुंबई
के मालाबार हिल के बंगले “जिन्ना हाउस” के १९ फेरे लगाए थे , हर बार गांधी को जलील होना पड़ा
था,
६. गांधी की गंदी राजनीती , जवाहर के जहर व जिन्ना के जिन से खंडित व खूनी ह्त्या इस तिकड़ी जोड़ी से
जनता के घावों से हमें घायल देश मिला...
७. दोस्तों...!!!, सत्ता परिवर्तन के बाद विदेशी हाथ, विदेशी साथ,
विदेशी विचार विदेशी संस्कार से जातिवाद भाषावाद,अलगाव वाद के मलहम से व आरक्षण के धागों से वोट बैंक पट्टी से यह घाव ७०
सालों बाद भी भरा नहीं है ...,
विश्वगुरू व वेदों के सानी , ज्ञानी और देश की वैभवता के लोप से आज भी देशवासी एक अंधेरी सुरंग में हिचकोले खाते चल रहा है.
विश्वगुरू व वेदों के सानी , ज्ञानी और देश की वैभवता के लोप से आज भी देशवासी एक अंधेरी सुरंग में हिचकोले खाते चल रहा है.
काश हमने वीर परमवीर सावरकर की ४० से
अधिक सार्थक भविष्यवानियों की ओर ध्यान दिया होता ..., अब भी समय है यदि हम जागें व जंग जीतें ..,
एक कविता बलवीर सिंह रंग की है जो इसराइल की विचारधारा है
ओ विप्लव के थके साथियों विजय मिली
विश्राम न समझो..,
उदित प्रभात हुआ फिर भी छाई चारों ओर उदासी
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे
पूरा अपना काम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का
दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का
युगारंभ के प्रथम चरण की
गतिविधि को परिणाम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर
देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर
समर शेष है सजग देश है
सचमुच युद्ध विराम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
उदित प्रभात हुआ फिर भी छाई चारों ओर उदासी
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे
पूरा अपना काम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का
दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का
युगारंभ के प्रथम चरण की
गतिविधि को परिणाम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर
देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर
समर शेष है सजग देश है
सचमुच युद्ध विराम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
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