Sunday 8 August 2021

८ अगस्त १९४२ भारत तोड़ो दिवस...., जिन्ना के DIRECT ACTION दिवस की नीव पढ़ गई व कवि इकबाल के झण्डा ऊंचा रहे हमारा तिरंगा को हरे रंग के सल्तनत बनाने के पहिले 1943 को अल्लाह को प्यारे हो गए … वीर परमवीर दामोदर सावरकर की दमदार भविष्यवाणी 14th अगस्त 1947 को सार्थक हुई ...


 

इस लेख के पहिले 5 अगस्त को कश्मीर जोड़ों दिवस धारा 370 व 35 (A) को धवस्त करने की  दूसरी वर्ष गांठ के लिए इस अविस्मरणीय दिवस के उपलक्ष्य  में हमारे सम्माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुत –बहुत  बधाई ...

 

  अगस्त १९४२ भारत तोड़ो दिवस...., जिन्ना के DIRECT  ACTION दिवस  की नीव पढ़ गई   कवि इकबाल के झण्डा ऊंचा रहे हमारा  तिरंगा को हरे रंग के सल्तनत बनाने के पहिले 1943 को  अल्लाह को प्यारे हो गए

 

वीर परमवीर दामोदर सावरकर की दमदार  भविष्यवाणी 14th अगस्त 1947 को सार्थक हुई ...

 

८ अगस्त  १९४२ अखंड भारत के इतिहास का विश्वास घातक दिवस .,यह “भारत छोड़ों” आन्दोलन नहींभारत तोड़ों” आन्दोलन है तुम्हारी तिकड़ी अखंड भारत के साथ धोखा है तुष्टिकरण से सत्तालोलुपता के “अखंड भारत” को “खंडित भारत” से देशवासियों को एक गंदी राजनीती से देश को गर्त में ले जाएगा – वीर सावरकर

 

  जून १९४२ अखंड भारत के इतिहास का घातक दिवसकी ७६ वी बरसी ,देश के डाकुओं द्वारा तुष्टिकरण के अस्त्र से देश को खंडित करने का बीजोरोपण साबित हुआ ... पतंजली के ज्ञाता वीर ही नहीं परमवीर सावरकर की यह ४० से अधिक भविष्यवाणी वाणियों में यह एक सटीक भविष्य वाणी है.

 

१.             ये गांधी की ही देंन थी किभारत सरकार पर ५५ करोड़ रु. पाकिस्तान को देने का दबाव डालामाउंटबैटन ने गांधीजी को पाकिस्तान को ५५ करोड़ रु. दिलवाने की सलाह दी. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया. कश्मीर में युद्ध चलाए रखने के लिए उसे धन की सख्त जरुरत थी. गांधीजी ने पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपए रोकड़ राशि में से दिलवाने के लिएनेहरु और पटेल पर दबाव डालने हेतुआमरण उपवास आरम्भ किया. अन्ततोगत्वानेहरु और पटेल उपर्युक्त राशी पाकिस्तान को देने को विवश हुएयद्यपि बाद में पाकिस्तान को इससे भी अधिक धन-राशी भारत को देनी थी. जो आज तक नहीं मिली

२.            गांधी ने भारत – विभाजन कराने वाली भयंकर भूलों के तो बीज बो दिए थे
विघटन के बीज लखनऊ-पैक्ट (समझौते) मेंजब कांग्रेस ने लखनऊ पैक्ट में दो विषाक्त सिद्धांत स्वीकार किए : पहला ,संप्रदाय के आधार पर मुसलमानों को प्रतिनिधित्वतथा मुस्लिम लीग को भारत के सभी मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था मान्य.,सिद्धांत रूप में तो कांग्रेस द्वी राष्ट्रवाद को अस्वीकार करती थीपरन्तु व्यवहार में उसने लखनऊ-पैक्ट के रूप में उसे मान लिया क्योकि इसमें मुसलमानों की लिए पृथक मतदान स्वीकार किया गया था. इस प्रकार इस पैक्ट में विभाजन का बीज बोया गया.
 हिंदुस्थान के प्रतिनिधि तीन कट्टर मुसलमान थेमार्च १९४६ में ब्रिटिश सरकार के मंत्रिमंडल के तीन सदस्यसर स्टैफोर्ड क्रिप्समि.ए.वी. अलेग्जेंडर और लार्ड पैथिक लारेंस वार्ता और विचार-विमर्श के लिए भारत आए. हिन्दुओ की पूण्य भूमि हिंदुस्थान का प्रतिनिधित्व तीन कट्टर मुसलमानों ने किया. भारतीय कांग्रेस और हिंदुस्थान के समस्त हिन्दुओ के प्रतिनिधि थे कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद. .मुहम्मद अली जिन्नामुस्लिम लीग के अध्यक्ष , हिंदुस्थान के मुसलमानों के प्रतिनिधि थे! नवाब भोपाल ने भारत की देसी रियासतों के शासको का प्रतिनिधित्व किया. ब्रिटिश सरकार की ओर से तीन ईसाई और हिंदुस्थान की ओर से तीन मुसलमान हिंदुस्थान के ७७ प्रतिशत हिन्दुओ के भाग्य का निर्णय करने को बैठे.

 

३. कांग्रेस ने हिन्दू मतदाताओं को धोखा दिया,जब.. कांग्रेसियों ने १९४६ का निर्णायक चुनावअखंड भारत ’के नाम पर लड़ा था. बहुमत प्राप्त करने के बाद ,उन्होंने पाकिस्तान के कुत्सित प्रस्ताव को मान कर हिन्दू मतदाताओ के साथ निर्लज्जतापूर्वक विश्वासघात किया. वीर सावरकर ने उनकी भर्त्सना की कि जब उन्होंने निर्लज्ज होकर अपना सिद्धांत बदला हैऔर अब वे हिन्दुस्तान के विभाजन पर सहमत हो गए हैतो या तो वे अपने पदों से त्यागपत्र दे और स्पष्ट पाकिस्तान के मुद्दे पर पुन: चुनाव लड़े या मातृभूमि के विभाजन के लिए “जन-मत ” कराएं .

 

४. कांग्रेसियों ने विभाजन क्यों स्वीकार किया?इसमें गांधी की अहम छद्म अहिंसा का मूल मंत्र था,कांग्रेसियों ने मुस्लिम लीग द्वारा भड़काए कृत्रिम दंगो से भयभीत होकर जिन्ना के सामने कायरता से घुटने टेक दिए .यदि दब्बूपनआत्म-समर्पणघबराहट और मक्खनबाजी के जगह वे मुस्लिम लीग के सामने अटूट दृढ़ता तथा अदम्य इच्छा शक्ति दिखातेतो जिन्ना पाकिस्तान का विचार छोड़ देता. लिआनार्ड मोस्ले के अनुसार पंडित नेहरु ने इमानदारी के साथ स्वीकार किया कि बुढापे ,दुर्बलता ,थकावट और निराशा के कारण उनमे विभाजन के कुत्सित प्रस्ताव का सामना करने के लिए एक नया संघर्ष छेड़ने का दम नहीं रह गया था.उन्होंने सुविधाजनक कुर्सीयों पर उच्च पद-परिचय के साथ जमे रहने का निश्चय किया. इस प्रकार राजनितिक-सत्तासम्मान और पद के लालच से आकर्षित विभाजन स्वीकार कर लिया.

 

५. क्या दंगे रोकने का उपाय केवल विभाजन ही था?, सरदार पटेल गांधीजी के पिंजरे में बंद एक शेर थे. उन्हें दंगाइयों के साथ “जैसे को तैसाघोषणा करने के लिए खुली छूट नहीं थीइसलिए उन्होंने क्षुब्ध होकर कहा था, “ये दंगे भारत में कैंसर के सामान है. इन दंगो को सदा के लिए रोकने के लिए एक ही इलाज ‘विभाजन ’है”. यदि आज सरदार पटेल जीवित होतीतो वे देखते की दंगे विभाजन के बाद भी हो रहे है. क्योंक्योंकि जनसँख्या के अदल-बदल बिना विभाजन अधूरा था.

 

६. जनसंख्या के अदल-बदल बिना विभाजन का गांधी ने सुखाव ठुकरा दिया.. यदि ग्रीस और टर्की ने ,साधनों के सिमित होते हुए भी ,ईसाई और मुस्लिम आबादी का अदल-बदल कर के,मजहबी अल्पसंख्या की समस्या का मिलजुल कर समाधान कर लिया ,तो विभाजन के समय में हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं किया गयाखेद है की पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेसी नेताओ ने इस संबंध में डा. भीमराव आंबेडकर के सूझ्भूझ भरे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिन्ना ने भी हिन्दू-मुस्लिम जनसँख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था. परन्तु मौलाना आजाद के पंजे में जकड़ी हुई कांग्रेस ने नादानी के साथ इसे अस्वीकार कर दिया. कांग्रेसी ऐसे अदूरदर्शी थे कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि जनसंख्या की अदला-बदली बिना खंडित हिंदुस्थान में भी सांप्रदायिक दंगे होते रहेंगे.

 

७. पाकिस्तान को अधिक क्षेत्रफल दिया गया,१९४६ के निर्णायक आम चुनाव मेंअविभाजित हिंदुस्थान के लगभग सभी (२३%) मुसलमनो ने पाकिस्तान के लिए वोट दिया ,परन्तु भारत के कुल क्षेत्रफल का ३०% पाकिस्तान के रूप में दिया गया. दुसरे शब्दों में उन्होंने अपनी जनगणना की अनुपात से अधिक क्षेत्रफल मिला ,यह जनसंख्या भी बोगस थी. फिर भी सारे मुस्लिम अपने मनोनीत देश में नहीं गए.

 

८. झूठी मुस्लिम जन-गणना के आधार पर विभाजन का आधार मानाकांग्रेस ने १९४९ तथा १९३१ दोनों जनगणनाओ का बहिष्कार किया. फलत:मुस्लिम लीग ने चुपके-चुपके भारत के सभी मुसलमानों को उक्त जनगणनाओ में फालतू नाम जुडवाने का सन्देश दिया. इसे रोकने वाला या जाँच करने वाला कोई नहीं था. अत: १९४१ की जनगणना में मुसलमानों की संख्या में विशाल वृद्धि हो गई. आश्चर्य की बात है कि कांग्रेसी नेताओं ने स्वच्छा से १९४१ की जनगणना के आंकड़े मान्य कर लिएयद्यपि उन्होंने उसका बहिष्कार किया था. उन्ही आंकड़ा का आधार लेकर मजहब के अनुसार देश का बटवारा किया गया. इस प्रकार देश के वे भाग भी जो मुस्लिम बहुल नहीं थे,पाकिस्तान में मिला दिए गए.

 

९. स्वाधीन भारत का अंग्रेज गवर्नर जनरल की सहमती दी....,गांधीजी और पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्खता के साथ माऊंट बैटन को दोनों उपनिवेशोंहिंदुस्थान और पाकिस्तान का गवर्नर जनरलदेश के विभाजन के बाद भी मान लिया. जिन्ना में इस मूर्खतापूर्ण योजना को अस्वीकार करने की बहुत समझ थी. अत: उसने २ जुलाई १९४७ को पत्र द्वारा कांग्रेस और माऊंट बैटन को सूचित कर दिया की वह स्वयं पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनेगा.परिणाम यह हुआ की माऊंट बैटन स्वाधीन खंडित बहरत के गवर्नर जनरल नापाक-विभाजन के बाद भी बने रहे.

 

१०. सीमा-आयोग का अध्यक्ष अंग्रेज पदाधिकारी को मनोनीत किया गया ,माऊंट बैटन के प्रभाव में,गांधीजी और पंडित नेहरु ने पंजाब और बंगाल के सीमा आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीरिल रैड क्लिफ को स्वीकार कर लिया.सीरिल रैडक्लिफ जिन्ना का जूनियर (कनिष्ठ सहायक) थाजब उसने लन्दन में अपनी प्रैक्टिस आरम्भ की थी. परिणाम स्वरुपउसने पाकिस्तान के साथ पक्षपात और लाहौरसिंध का थरपारकर जिला,चटगाँव पहाड़ी क्षेत्रबंगाल का का खुलना जिला एवं हिन्दू-बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिला दिये

११. बंगाल का छल-पूर्ण सीमा निर्धारण किया गया,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदासीनता के कारण ४४ प्रतिशत बंगाल के हिन्दुओ को ३० प्रतिशत क्षेत्र पश्चिमी बंगाल के रूप में संयुक्त बंगाल में से दिया गया.५६ प्रतिशत मुसलमानों को ७० प्रतिशत क्षेत्रफल पूर्वी पाकिस्तान के रूप में मिला.
चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र जिसमे ९८ प्रतिशत हिन्दू-बौद्ध रहते है,एवं हिन्दू-बहुल खुलना जिला अंग्रेज सीमा-निर्धारण अधिकारी रैडक्लिफ द्वारा पाकिस्तान को दिया गया.कांग्रेस के हिन्दू नेता ऐसे धर्मनिरपेक्ष बने रहे की उन्होंने अन्याय के विरुद्ध मुँह तक नहीं खोला.

 

१२. सिंध में धोखे भरा सीमा-निर्धारण कियाजब सिंध के हिन्दुओ ने यह मांग की की सिंध प्रान्त का थारपारकर जिला जिसमे ९४ प्रतिशत जनसँख्या हिन्दुओ की थी,हिंदुस्थान के साथ विलय होना चाहिए,तो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने सिन्धी हिन्दुओ की आवाज इस आधार पर दबा दी की देश का विभाजन जिलानुसार नहीं किया जा सकता.परन्तु जब आसाम के जिले सिल्हित की ५१ प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने पकिस्तान के साथ जोड़े जाने की मांग की,तो उसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया.
बोलू: मजहब के आधार पर विभाजन-धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गांधी का खेल था... यदि गांधीजी पंडित नेहरु सच्चे धर्म-निर्पेक्षतावादी थे तो उन्होंने देश का विभाजन मजहब के आधार पर क्यों स्वीकार किया?

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