Wednesday 30 January 2019

देश के तीन तिकड़म बाज...., गांधी , जवाहर व जिन्ना के .. “गांधी की गंदी राजनीती, जवाहर के जहर व जिन्ना के जिन्न “ इन तीन भेडियों ने शेर की खाल में अय्याशी का चोला पहनकर “सत्ता परिवर्तन” से जनता को “आजादी” कहकर जातिवाद, भाषावाद की कुल्हाड़ी से देश को खण्डित कर ५ लाख से अधिक नर मुंडों की बलि लेकर,जमाकर अपने को बापू,चाचा व कायदे-आजम की उपाधी लेकर, १९४७ से आज तक इनकी विचारधारा से भारतमाता लहू लूहान है


हे राम V/s राम रहीम”, यह इस युग में गांधी की ब्रह्मचर्य व्रत के पीछे छुपी नारी शोषण के प्रयोग की बाबा राम रहीम बाबा की पुनरावृति है. 
गांधी को तो मीडिया अमर कर गयी , बाबा को TRP के चक्कर में मीडिया निगल गई. 

दोस्तों.., सीमा पर हमारे सेना के ८ जवानों के शहीदी की कोई खबर नहीं , क्योंकि इस खबर में TRP की शहद नहीं थी .मीडिया ने बाबा राम रहीम के भक्तों से, धार्मिक उन्माद की खबर को जंगल की आग से भी तेजी से भड़काई 

देश के तीन तिकड़म बाज...., गांधी , जवाहर व जिन्ना के .. गांधी की गंदी राजनीती, जवाहर के जहर व जिन्ना के जिन्न इन तीन भेडियों ने शेर की खाल में अय्याशी का चोला पहनकर सत्ता परिवर्तनसे जनता को आजादीकहकर जातिवाद, भाषावाद की कुल्हाड़ी से देश को खण्डित कर ५ लाख से अधिक नर मुंडों की बलि लेकर,जमाकर अपने को बापू,चाचा व कायदे-आजम की उपाधी लेकर, १९४७ से आज तक इनकी विचारधारा से भारतमाता लहू लूहान है 

१९४७ तक हमारी शिक्षा दर यदि २५% भी होती तो जनता इनका हिसाब कर देती .., पानी सर से ऊपर बहने से पहिले नथूराम गोड़से ने गांधी की ह्त्या करने के बाद , इस मकसद के १५० से अधिक कारण बताये थे .., और यूं कहें , अंग्रेजों द्वारा थोपी गई तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे सत्ताखोरों की आजादीकह, कही जनता हमारी आजादी छीन न ले व गुलाम जनता को सच्ची आजादीमिलने के भय से नथूराम गोड़से के कारणों को अति प्रतिबंधित कर दिया . जिन कारणों से ये तीनों तिकड़म अपने को आज भी हस्तियाँ मानकर , अपने हस्त रेखाओं पर हंस कर कह रही हैं, देखों हम अपने खंडित देशों में ७१ सालों बाद इस रहस्य से नोटों , सिक्कों, गली-मुहल्लों के नाम व पुतलों से विराजमान हैं.

१४ अगस्त २०१७ की फेस बुक व वेबस्थल की पुरानी पोस्ट 

GOD-SE, GOD-SAYS, GOD-SAID (देश की अखंडता का दिवस १५ अगस्त.. या ३० जनवरी ...???..!!!.)

नथूराम गोड्से (GOD-SE, GOD-SAYS, GOD-SAID) जिन्होंने राष्ट्रवाद की आत्मा की आवाज से जजों को गांधी की गंदी राजनीती के १५० से अधिक कीचड़ का उदाहरण देते हुए इसमें छद्म अहिसावाद के आड़ में लाखों हिन्दुस्थानियों का बलिदान, विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा धर्म परिवर्तन को उनका साहस कहना, यौन शोषण व बलात्कारियों को क्षमा का विशेष अधिकार कहकर, देश में जातिवाद को आबाद रखने के खेल से देश की संप्रभुता को ख़तरे की चिरम सीमा पर पहुंचाने के खेल , खेलने प्रयास में सफल होने से पहिले ही इस नासूर को मारने के लिए गांधी को मारना अति महत्वपूर्ण हो गया था ..

नथूराम गोडसे, एक राष्ट्रवादी योद्धा, जिसने अपने प्राणों की आहुती से ..., गांधी को , देश के साथ खिलवाड़ से.., देश के टुकड़े करने के बाद भी, देश की तुष्टी करण की नीती से, देश को असहाय बनाने के बाद, आगे के खेल से, देश को पंगु बनाने का, अंजाम न दे सके , इस ह्त्या का उद्देश्य बताया,
याद रहे, नथूराम गोड़से ने स्वंय अपना मुकदमा लड़ते हुए , गांधी की ह्त्या करने के १५० कारण गिनाये थे...,तब अदालत में बैठे दर्शकों की आँखे, आंसू लबालब भरकर, जमीन में गिरकर नाथूराम गोड़से को सलाम कर रही थी ...
१. गांधी ह्त्या के पहिले नथूराम गोडसे ने गांधी को प्रणाम किया, बाद में गोली मारी.

२. नथूराम ने अदालत में कहा , मैंने गांधी को गोली मारने में इतनी सावधानी से, इतने, पास से गोली मारी ताकि उनके बगल में दो युवतियां, जो हमेशा उनके साथ रहती थी.., उन्हें गोली के छर्रे लगने से, मैं बदनाम न हो जाऊं (याद रहे, गांधी उन युवतियों के साथ नग्न सोकर, ब्रह्मचर्य /सत्य के प्रयोग में इस्तेमाल करते थे)

३. नथूराम ने कहा, ह्त्या के समय गांधी के मुख से आहकी आवाज निकली, “हे रामशब्द नहीं ...,
जिसे कांग्रेस ने हेराल्ड अखबार के प्रचार से हे रामशब्द से देशवासियों को भरमाया..

न्यायाधीश खोसला ने, अपने सेवा निर्वत्ती के बाद कहा था , यदि मुझे न्याय के लिए स्वतंत्र विचार दिया जाता तो मैं, नथूराम गोड़से को निर्दोषी मानता , मैं तो कानून का गुलाम था, इसलिए मुझे नाथूराम गोड़से व उसके अन्य साथियों को मृत्यु दंड सुनाना पड़ा
नथूराम गोड़से व उनके साथी, ‘भारतमाता की गोद मेंसोने के लिए इतने आतुर थे कि उन्होंने उच्च न्यायालय में अपनी सजा को चुनौती नहीं दी और न ही क्षमा याचना की अपील राष्ट्रपति से की ...

यह शांती का दूत..????, कपूत निकला.., याद रहे, इस अनशन की खाल में बापू ने .., दो विश्व युध्ह में २ लाख हिंदुस्थानी सैनिकों की अकारण बलि देकर, जो कुत्ते की मौत मारे गए थे .. व १९४७ में देश का अंग भंग कर ५ लाख हिन्दुस्थानियो की बलि लेकर..., इस अहिसा के परदे में खूनी खेल खेलकर, आज तक शांती दूत का चेहरा दिखाया है...

गाँधी वध के पश्चात जब सावरकर जी को न्यायलय ने सम्मान बरी किया तो जज का, वीर सावरकर के लिए यह
वक्तव्य था ...,

सावरकर ने अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया, लेकिन ऐसे तुच्छ कार्य में उन्हें घसीटना बहुत ही निंदनीय है, इस बात की जांच की जानी चाहिए की ऐसे महान व्यक्ति का नाम इस कार्य में क्यों घसीटा गया
जबकि स्वयं नथूराम गोडसे ने गाँधी वध में सावरकरजी की संलिप्तता को सिरे से नकार दिया,

धर्मनिरपेक्षता के झूठे आडम्बर में फंसे तथाकथित सेकुलर उस दिन सूर्य के सामान जुगनू से प्रतीत हो रहे थे, जो की सूर्य को अपनी मद्दम रौशनी दिखा कर उसे निचा दिखाने की कोशिश कर रहे है,

वीर सावरकर के क्रातिकारी के जज्बे को सलाम करने के के लिए, 13 मार्च 1910 मे जहाज से कूदकर,पानी मे अंग्रज सैनिको की पीछे से गोली गोलियो की बौछर का सामना करते हुए , फ्रांस के मार्सेल तट पर पहुँचे, इस साहसिक घटना को जीवित कर , प्रेरित करने के लिए, घटना की 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य मे एक भव्य स्मारक बनाने के लिए भारत सरकार को सूचित किया , और भारत सरकार ने वीर सावरकर को देश्द्रोही कहकर आपत्ति उठाने से वह प्रकल्प बंद करवा दिया..

दोस्तों अब गांधी जयंती के आयोजन में झूठे दिखावे के आचरण से, देश को, सरकारी अवकाश व विज्ञापनों व अन्य खर्चों से १० हजार करोड़ का चूना लगाने वाला है...
गांधी की गंदी राजनीती व जवाहर लाल नेहरू के जहर से देश ६८ साल के सत्ता परिवर्तन के शासन में कंगाल हो गया है..., आज सभी पार्टीयाँ विदेशों में विदेशी हाथ माँगने जा रहें हैं...

सत्ता तो मद से भरी.., मदारियों का समूह १९४७ से सत्ता परिवर्तन को आजादी के झांसे से बन्दर बांट से देश को लूट रहा है...
६७२ राजधर्म तो जातिवाद, भाषावाद,अलगाववाद, धर्मवाद व घुसपैठीयों से राजनीती में गहरी पैठ से जनता को गरीबी से तडफा-तड़फा कर..., हलाल कर ..., आज अपने को देश का लाल बनाकर., २ अक्टूबर से १४ नवम्बर से सालों - साल तक इनके पुतले..,बिना नहलाए पूजे जा रहें है...और तो और ७० सालों से देश में गरीबी की वजह से गांधी का चष्मा चुरा लिया जाता है..., २ अक्टूबर तक सत्ताखोर बदहवासी में रहता है...



ooooo
नथूराम गोडसे, एक राष्ट्रवादी योद्धा, जिसने अपने प्राणों की आहुती से ..., गांधी को , देश के साथ खिलवाड़ से.., देश के टुकड़े करने के बाद भी, देश की तुष्टी करण की नीती से, देश को असहाय बनाने के बाद, आगे के खेल से, देश को पंगु बनाने का, अंजाम न दे सके , इस ह्त्या का उद्देश्य बताया,

याद रहे, नथूराम गोड़से ने स्वंय अपना मुकदमा लड़ते हुए , गांधी की ह्त्या करने के १५० कारण गिनाये थे...,तब अदालत में बैठे दर्
शकों की आँखे, आंसू लबालब भरकर, जमीन में गिरकर नाथूराम गोड़से को सलाम कर रही थी ...
१. गांधी ह्त्या के पहिले नथूराम गोडसे ने गांधी को प्रणाम किया, बाद में गोली मारी.

२. नथूराम ने अदालत में कहा , मैंने गांधी को गोली मारने में इतनी सावधानी से, इतने, पास से गोली मारी ताकि उनके बगल में दो युवतियां, जो हमेशा उनके साथ रहती थी.., उन्हें गोली के छर्रे लगने से, मैं बदनाम न हो जाऊं (याद रहे, गांधी उन युवतियों के साथ नग्न सोकर, ब्रह्मचर्य /सत्य के प्रयोग में इस्तेमाल करते थे)

३. नथूराम ने कहा, ह्त्या के समय गांधी के मुख से आहकी आवाज निकली, “हे रामशब्द नहीं ...
जिसे कांग्रेस ने हेराल्ड अखबार के प्रचार से हे रामशब्द से देशवासियों को भरमाया.. 

न्यायाधीश खोसला ने, अपने सेवा निर्वत्ती के बाद कहा था , यदि मुझे न्याय के लिए स्वतंत्र विचार दिया जाता तो मैं, नथूराम गोड़से को निर्दोषी मानता , मैं तो कानून का गुलाम था, इसलिए मुझे नाथूराम गोड़से व उसके अन्य साथियों को मृत्यु दंड सुनाना पड़ा 

नथूराम गोड़से व उनके साथी, ‘भारतमाता की गोद मेंसोने के लिए इतने आतुर थे कि उन्होंने उच्च न्यायालय में अपनी सजा को चुनौती नहीं दी और न ही क्षमा याचना की अपील राष्ट्रपति से की ...

यह शांती का दूत..????, कपूत निकला.., याद रहे, इस अनशन की खाल में बापू ने .., दो विश्व युध्ह में २ लाख हिंदुस्थानी सैनिकों की अकारण बलि देकर, जो कुत्ते की मौत मारे गए थे .. व १९४७ में देश का अंग भंग कर ५ लाख हिन्दुस्थानियो की बलि लेकर..., इस अहिसा के परदे में खूनी खेल खेलकर, आज तक शांती दूत का चेहरा दिखाया है...

गाँधी वध के पश्चात जब सावरकर जी को न्यायलय ने सम्मान बरी किया तो जज का, वीर सावरकर के लिए यह
वक्तव्य था ..., “सावरकर ने अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया, लेकिन ऐसे तुच्छ कार्य में उन्हें घसीटना बहुत ही निंदनीय है, इस बात की जांच की जानी चाहिए की ऐसे महान व्यक्ति का नाम इस कार्य में क्यों घसीटा गया

जबकि स्वयं नथूराम गोडसे ने गाँधी वध में सावरकरजी की संलिप्तता को सिरे से नकार दिया,

धर्मनिरपेक्षता के झूठे आडम्बर में फंसे तथाकथित सेकुलर उस दिन सूर्य के सामान जुगनू से प्रतीत हो रहे थे, जो की सूर्य को अपनी मद्दम रौशनी दिखा कर उसे निचा दिखाने की कोशिश कर रहे है,

वीर सावरकर के क्रातिकारी के जज्बे को सलाम करने के के लिए, 13 मार्च 1910 मे जहाज से कूदकर,पानी मे अंग्रज सैनिको की पीछे से गोली गोलियो की बौछर का सामना करते हुए , फ्रांस के मार्सेल तट पर पहुँचे, इस साहसिक घटना को जीवित कर , प्रेरित करने के लिए, घटना की 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य मे एक भव्य स्मारक बनाने के लिए भारत सरकार को सूचित किया , और भारत सरकार ने वीर सावरकर को देश्द्रोही कहकर आपत्ति उठाने से वह प्रकल्प बंद करवा दिया.. 

दोस्तों अब गांधी जयंती के आयोजन में झूठे दिखावे के आचरण से, देश को, सरकारी अवकाश व विज्ञापनों व अन्य खर्चों से १० हजार करोड़ का चूना लगाने वाला है...

गांधी की गंदी राजनीती व जवाहर लाल नेहरू के जहर से देश ६८ साल के सत्ता परिवर्तन के शासन में कंगाल हो गया है..., आज सभी पार्टीयाँ विदेशों में विदेशी हाथ माँगने जा रहें हैं...

सत्ता तो मद से भरी.., मदारियों का समूह १९४७ से सत्ता परिवर्तन को आजादी के झांसे से बन्दर बांट से देश को लूट रहा है...

राजधर्म तो जातिवाद, भाषावाद,अलगाववाद, धर्मवाद व घुसपैठीयों से राजनीती में गहरी पैठ से जनता को गरीबी से तडफा-तड़फा कर..., हलाल कर ..., आज अपने को देश का लाल बनाकर., २ अक्टूबर से १४ नवम्बर से सालों - साल तक इनके पुतले..,बिना नहलाए पूजे जा रहें है...और तो और ७० सालों से देश में गरीबी की वजह से गांधी का चष्मा चुरा लिया जाता है..., २ अक्टूबर तक सत्ताखोर बदहवासी में रहता है...
 


यह, मेरे द्वारा बनाया गया .... रेखा चित्र... शहीद भगत सिग, के जन्म दिन को समर्पित है, उनके गुरु परमवीर सावरकर व सावरकर के गुरू लोकमान्य तिलक व लाल- बाल- पाल के देश के अतुल्य योगदान के लिए , निस्वार्थ सेवा .... इन राष्ट्रवाद के प्रेरकों को, कोटि कोटी प्रणाम .... जिन्हें आज देश के इतिहास में, दफ़न कर दिया है , और दिग्भ्रमित इतिहास पढ़ा कर , गाँधी के गंदी राजनीतिक की तुष्टीकरण से, राष्ट्र के टुकड़े करने के ....और सत्ता के हस्तांतरण (TRANSFER OF POWER) से, देशवासियों को आजादी का झाँसा देकर, उनके विचारों की प्रशंसा, की आड़ में, असंवेधानिक रूप से , महात्मा और राष्ट्रपिता से अलंकृत कर, जनता को बरगलाया गया है....?????, हद तो तब हो गई..... जब १९९० के दशक में नोटों पर, उनका चित्र छापकर (जो कि , हिन्दुस्तान के संविधान की अवहेलना है ), आज भारतीय रिजर्व बैंक (R.B.I.) को देखकर, गांधी भी... भ्रष्टाचार की आँधी से, रोता बापू ऑफ इंडिया (R.B.I.) बनकर , अपने सिद्धांतो का प्रायश्चित करना चाह रहे है...,, कहना चाह रहे है ..... मेरी मार्केटिग (MARKRTING = MAR+KAT+KING) कर, जनता की भ्रष्टाचार से मार काट कर, देश के किंग (राजा) मत बनों
kkkkkk

Thursday 24 January 2019

The Accidental Prime Minister (पुस्तक में प्रधानमंत्री सोनिया गांधी की बंधुवा मजदूर बनाकर देश की १४० करोड़ आबादी को धोखा देने के खुलासा पर यह फिल्म बनी है) V/s वीर सावरकर द्वारा 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम,शोध व प्रमाण सहित अपने हाथों से इंग्लॅण्ड में लिखी , इस किताब का नाम जाने बिना कभी न डूबने वाले ब्रिटिश साम्राज्य थर्रा गया था, व प्रकाशन के पूर्व ही इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था ..., यही किताब थी जिसने देश में क्रांतिकारिता को जन्म दिया ..क्या इस पर भी फिल्म बनाकर देश में राष्ट्रवाद की लहर फैलाएगी...!!!


 The Accidental Prime Minister (पुस्तक में प्रधानमंत्री सोनिया गांधी की बंधुवा मजदूर बनाकर देश की १४० करोड़ आबादी को धोखा देने के खुलासा पर यह फिल्म बनी है)  V/s वीर सावरकर द्वारा 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम,शोध व प्रमाण सहित अपने हाथों से इंग्लॅण्ड में लिखी , इस किताब का नाम जाने बिना कभी न डूबने वाले ब्रिटिश साम्राज्य थर्रा गया था, व प्रकाशन के पूर्व ही इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था ...,

यही किताब थी जिसने देश में क्रांतिकारिता को जन्म दिया ..क्या इस पर भी फिल्म बनाकर देश में राष्ट्रवाद की लहर फैलाएगी...!!!

August 26, 2014 के फेस बुक व वेबस्थल की पोस्ट


 किताबे तो कितने नेताओं ने लिखवाई और अपना हित साधकर देश की सत्ता में काबिज ही नहीं अपने को इतिहास में अमर करने का दांव खेलने का प्रपंच छोड़ गए...,

देश का गौरवशाली अतीत का असली इतिहास छुपाकर, हमें बुजदिल कौम व शांती, अहिंसा के झांसे से देश के टुकड़े कराकर.., “बापू...” “महात्मा...”, “आराम हराम है..”, “गरीबी हटाओं”, “मेरा भारत महानके नारे देने वालों के नाम देश में लाखों, संस्थान,सड़क से गलियारों के नाम से राष्ट्रवाद को धीमे जहर से मारने के खेल से, अपने अमरत्व को मजबूत बनाने का खेल देश में बदस्तूर जारी है... 

लेकिन.. वीर सावरकर.....,
एक महान नायक, जिनके बारे में कितना ही लिखा जाय कम है.. जिनके अनेक रूप, विद्वान,तत्व चिन्तक,क्रांतीकारक, लेखक, महाकवि,सर्वोत्तम वक्ता,पत्रकार, धर्मशील, नीतीमान,पंडित मुनि,इतिहास संशोधक, राष्ट्रीत्व के दर्शनकार,प्रवचनकार,अस्पृश्यता निवारक शुद्धीकरण के प्रणेता, समाज सुधारक , विज्ञान निष्ठा सिखाने वाले,भाषा शुद्धी करने वाले पीपी सुधारक,संस्कृत भाषा प्रभु,बहुभाषिक, हिंदुसंघटक,राष्ट्री काल दर्शक के प्रणेता , कथाकार,आचार्य,तत्वज्ञ महाजन, स्तिथप्रज्ञ, इतिहास समीक्षक , धर्म सुधारक,विवेकशील नेता, महानात्मा ,अलौकिक दृष्टा... व कई गुणों से सपन्न ने पांडुलिपी की तरह.. 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम,शोध व प्रमाण सहित अपने हाथों से इंग्लॅण्ड में लिखी , इस किताब का नाम जाने बिना कभी न डूबने वाले ब्रिटिश साम्राज्य थर्रा गया था, व प्रकाशन के पूर्व ही इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था ...,

यही किताब थी जिसने देश में क्रांतिकारिता को जन्म दिया.

वीर सावरकर की किताब 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पढने के लिए दी, भगत सिंह इस किताब से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस किताब के बाकी संस्करण भी छापने के लिए सहायता प्रदान की, जून 1924 में भगत सिंह वीर सावरकर से येरवडा जेल में मिले और क्रांति की पहली गुरुशिक्षा ग्रहण की, यही से भगत सिंह के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया, उन्होंने सावरकर जी के कहने पर आजाद जी से मुलाकात की और उनके दल में शामिल हुए| बाद में वे अपने दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों के प्रतिनिधि भी बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, भगवतीचरण व्होरा,सुखदेव सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे।

सत्ता परिवर्तन के बाद किताब तो नेताओं ने लिखवाई , और अपना हित साधने के लिए नेशनल हेराल्डअखबार में कांग्रेसीयों ने अपनी स्तुती से जनता को बेवकूफ बनाकर राज किया..,”कौमी एकताहिन्दी के अखबार ने तो पहले ही दम तोड़ दिया था, अब नेशनल हेराल्ड जो कांग्रेस की सम्पत्ती थी , नीजी  सम्पत्ती बताकर इसे डकारने का खेल चल रहा है..

आज देश के भ्रष्टाचार के युग में किताबें लिखवाकर.., अपनी स्तुती से, अपनी कमजोरी को छुपाकर नेता लोगों ने भारी रकम कमाई है...

नटवर सिंग जो कांग्रेस में भ्रष्टाचार का हिस्सा थे अपने पुत्र के कल्याण के आरोप से वे गद्धी न छोडने से वे कांग्रेस की गड्डी (गाड़ी) से गड्ढे में फेंक दिए गए ..

अब प्रतिशोध में किताबी वार शुरू हो गया है..., इन्डियन वर्ग भी इस खेल व प्रकाशन की किताब खरीद कर..., किताब लिखवाने वालों को मालामाल कर देगा...
संजय बारू की किताब में लिखा है..., प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी को सोनियाजीके नाम से संबोधित करते थे, जबकि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री को सिर्फ मनमोहनकहती थी.., और प्रधानमंत्री को किस तरह काठ का पुतला समझकर... शीर्ष नेताओं ने देश पर १० सालों से, अपनी दबंगई से राज किया ... 

याद रहे.. भारतीय जनता पार्टी के हनुमान, जसवंत सिंग , जिन्हें किताब छपवाने के आरोप से पार्टी से उनकी शक्ती छीन ली गयी थी .. अब पार्टी से निष्कासित होकर.., जड़ी बूटी न मिलाने से अभी हाल ही मैं जमीन पर गिरकर मूर्छीत हो गए थे...


Sunday 13 January 2019

अखबारों के लेखों को झुठलाकर चुनौती देते हुए .., इंग्लैंड में “१८५७.., एक स्वतन्त्रता संग्राम” को सच बतलाकर, ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देकर, ५०वी जयंती का जज्बे पूर्वक आयोजन करने वाले एकमात्र वीर सावरकर ,वीर सावरकर ने विश्व के क्रांतीकारियों को सन्देश दिया की गुलामी देश ही नहीं मानव जाती पर कलंक है. इसका निदान किये बिना मानव अंधा से उसका जीवन अन्धकारमय है ..


अखबारों के लेखों को झुठलाकर चुनौती देते हुए .., इंग्लैंड में १८५७.., एक स्वतन्त्रता संग्रामको सच बतलाकर, ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देकर, ५०वी जयंती का जज्बे पूर्वक आयोजन करने वाले एकमात्र वीर सावरकर .



इंग्लैंड में हिन्दुस्तान के सभी धर्मों (हिंदु,मुस्लिम,सिख,ईसाई) को एकजुट कर दशहरा समारोह करने पर, गांधी द्वारा आश्चर्य व्यक्त कर , इस कार्य का अभिनन्दन करने वाले मोहनदास करम चंद गांधी द्वारा सराहना 



वीर सावरकर ने विश्व के क्रांतीकारियों को सन्देश दिया की गुलामी देश ही नहीं मानव जाती पर कलंक है. इसका निदान किये बिना मानव अंधा से उसका जीवन अन्धकारमय  है .

इंग्लैंड में, सिक्खों का इतिहास लिखने वाले वीर सावरकर.... . सावरकर पहले हिन्दु , जिनका सम्मान स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा प्रबंधक समिती ने किया, और तब के अध्यक्ष मास्टर तारा सिंग ने उन्हें चांदी के मुठ की तलवार भेट की



सिक्खों के लोहड़ी त्योंहार के दिन.., गुरु गोविन्द सिंग जयंती के सावरकर के कार्यों की लहर...,

१. दुश्मन के घर (इंग्लैंड) में, गुरु गोविन्द सिंग.... का महोत्सव मनाने वाले..,


२, दुश्मन के घर (इंग्लैंड) में, छत्रपति शिवाजी महाराज की जयन्ती .... का महोत्सव  व जश्न मनाने वाले..,




३. इंग्लैंड में, सिक्खों का इतिहास लिखने वाले वीर सावरकर....

४. सावरकर पहले हिन्दु , जिनका सम्मान स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा प्रबंधक समिती ने किया, और तब के अध्यक्ष मास्टर तारा सिंग ने उन्हें चांदी के मुठ की तलवार भेट की 


Friday 11 January 2019

चाय पर चर्चा के दौरान अपने घर में लालबहादुर शास्त्री ने मनोज कुमार से कहा , न तो मैं जवान दीखता हूँ , न ही किसान .., अब हमने अपने शत्रु पकिस्तान को अपने जवानों व किसानों के जज्बें से हराया..., मनोज जी आप ऐसे फिल्म बनाओ कि राष्ट्रवाद का उफान जनता में बढ़ता रहे ताकि हमारी ताकत से कोई बुरी नजर न रखे .


चाय पर चर्चा के दौरान अपने घर में लालबहादुर शास्त्री ने मनोज कुमार से कहा , न तो मैं जवान दीखता हूँ , न ही किसान .., अब हमने अपने शत्रु पकिस्तान को अपने जवानों व किसानों के जज्बें से हराया..., मनोज जी आप ऐसे फिल्म बनाओ कि राष्ट्रवाद का उफान जनता में बढ़ता रहे ताकि हमारी ताकत से कोई बुरी नजर न रखे .


इसके पश्चात...,  दिल्ली से मुंबई की २४ घंटे की पश्चिम एक्सप्रेस ट्रेन यात्रा के दौरान मनोज कुमार ने इस फिल्म “उपकार” के पुरे संवाद लिख लिए .


और  इस फिल्म को रिलीज़ के पहिले, व  लाल बहादुर शास्त्री की देशी – विदेशी माफियाओं द्वारा ह्त्या के बाद अश्रु पूर्ण श्रधान्जली देते हुए कहा “जिस प्रधानमन्त्री के लिए मैंने यह फिल्म बनायी वह बन्दा इसे देख नहीं पाया व मेरा यह सपना अधूरा रह गया”

ललिता शास्त्री भी लालबहादुर शास्त्री के मृत नीले शरीर को देखकर, जहर की आशंका के पुख्ता सबूत के लिए  शव विच्छेदन की मांग करती रही जिसे राजनेताओं ने ख़ारिज कर दिया

साभार :
www.meradeshdoooba.com (a mirror of india) स्थापना २६ दिसम्बर २०११ इस लिंक पर click कर   
कृपया वेबसाइट की 700 से अधिक  प्रवाष्ठियों की यात्रा करें व E MAIL द्वारा नई पोस्ट के लिए SUBSCRIBE करें - भ्रष्टाचारीयों के महाकुंभ की महान-डायरी (Let's not make a party but become part of the country. I'm made for the country and will not let the soil of the country be sold.)

११ जनवरी, आज एक महान फ़कीर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ५३ वी पुण्य तिथी (ह्त्या दिवस ) पर अश्रुपूर्वक प्रणाम..,जय –जवान किसान का सलाम.., अपने १८ महीनों के कार्यकाल में देश में अकाल व विदेशी आक्रमण के काल के गाल में निगलने वाले अजगरों को अपने फौलादी जिगर से परास्त कर दिया था . युद्द में पाकिस्तानी के पठान कोट के पठानों की कोट उतार कर दुश्मनों ने घुटने टेक दिए थे

११ जनवरी, आज एक महान फ़कीर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ५३ वी पुण्य तिथी (ह्त्या दिवस ) पर अश्रुपूर्वक प्रणाम..,जय जवान किसान का सलाम..,

अपने १८ महीनों के कार्यकाल में देश में अकाल व विदेशी आक्रमण के काल के गाल में निगलने वाले अजगरों को अपने फौलादी जिगर से परास्त कर दिया था . युद्द में पाकिस्तानी के पठान कोट के पठानों की कोट उतार कर दुश्मनों ने घुटने टेक दिए थे 

१९६५ की लड़ाई की जीत की ५३ वीं  वर्ष गांठ में, मीडिया ने TRP की दौड़ में इसे जोर शोर से दिखाया जबकि शास्त्री के योगदान को नगण्य माना..,

आज उनकी ५३ वी पूण्य तिथी में देश में सन्नाटा ही नहीं, कांग्रेस व अन्य नेताओं में मुर्दानगी है.
 
आज उनकी मृत्यु के ५३  साल बाद भी.., देश, विदेशी आक्रमण के घावों से घायल होकर.., हम, अपने घायल होने का सबूत देकर, विश्व से गुहार लगा रहें है .

एक ५० इन्च की काया व ५६/२ =२८ इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था हम शांति के पक्षधर है .., यदि किसी ने देश की तरफ बुरी निगाह डाली तो उसकी आँखें फोड़ दी जायेगी...


गरीबी अभिशाप नहीं होती है..इसे उन्होंने प्रमाणित किया था , वे इतने गरीब थे कि उनके पास चाय पीने के भी पैसे नहीं थे .., देश के कुओं के पानी का स्वाद व देश की माटी की खुशबू के महक ही उनके सफलता की सीढ़ी थी 

काश.., मोदीजे, यदि आज नोटों पर लालबहादुर शास्त्री का चित्र छापते तो नयी पीढी उनके आदर्शों से अभिभूत होकर देश को एक नई दिशा के ओर अग्रसर होती .

.
यदि २ अक्टूबर को उनके अतुल्यनीय साहस की प्रेरणा व आने वाले सालों में हम यह दिवस लाल बहादुर शास्त्री, की जयन्ती के रूप में मनाएं तो देश के युवकों में लाल बहादुर शास्त्री के कार्यों से प्रेरित होकर, राष्ट्रवाद के खून का संचार से, जो काम गांधी व नेहरू न कर सके, हम जल्द ही विश्व गुरू व सर्वोपरि हो जायेंगे..., दोस्तों आप अपनी राय दें..

(गांधी व कांग्रेस की २०० भयंकर भूले , Deshdoooba Community या वेबसाईट पर कृपया गौर से पढ़े ) 
१.लाल बहादुर शास्त्री ने अपने १८ महीने के शासन काल में नेहरू के १७ साल के कार्यकाल की गन्दगी साफ़ कर दी थी..
२.गांधी की गंदी राजनीती व जवाहर लाल नेहरू के जहर से देश ७२  साल के सत्ता परिवर्तन के शासन में कंगाल हो गया है...

३.शास्त्री जी के अल्प काल में, देश में राष्ट्रवादी भावना से जनता को ओत प्रोत कर, श्वेत क्रांती के साथ हरित क्रांती का जन्म हुआ, उनका आव्हान था शहर वालों, घर के आस पास जितनी भी खाली जमीन है उसमें अन्न उगाओ.., उनकी सादगी से जनता कायल थी , लेकिन कांग्रेसी घायल थे, उनकी अय्याशी पर रोक लगने से, भ्रष्टाचार ख़त्म कर उन्हें मजदूर बना दिया था 

४. उन्होंने, पूरे देश को उन्होंने आव्हान किया की सोमवार को एक दिन का उपवास रखे , इसके पहिले उन्होंने कहा जब मेरा परिवार उपवास में सक्षम होगा तो ही मैं राष्ट्र को आव्हान करूंगा..
५. दक्षिण भारत जो हिन्दी विरोधी था उन्होंने भी इसका तहे दिल से अपनाया, व देश भर मे होटल बंद रहते थी,

नेहरू के दिन के २५ हजार के खर्च की जगह प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री महीने में मात्र ३०० रूपये में सरकारी वेतन से घर चलाते थे 
उनकी जिदंगी एक अति सादगी व प्रधानमंमंत्री के रूप में सडक किनारे, रहने वाले एक गरीब जैसी थी
प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे किराए के घर में रहते हुए उनकी रूस (मास्को) में ह्त्या हुई थी 

, लाल बहादुर शास्त्री हमेशा कहते थे सत्ता का स्वाद मत चखों..,देश की गरीबी के लिए काम करो, सत्ता के मद से अपने संस्कार मत बिगाड़ो, इसलिए उनके ६ बच्चे होने के बावजूद वंशवाद की परम्परा को तोड़ते ही अपन बच्चों को राजनीती में कदम रखने नहीं दिया, यहाँ तक की अपने बच्चो को सरकारी कार में बैठने नहीं देते थे..,

घर से प्रधानमंत्री दफ्तर में पहुँचाने के बाद सरकारी कार छोड़ देते थे, वे अन्य मंत्रियों से कहते थे आप इसका उपयोग करें 

८.. आजादी के आन्दोलन में अंग्रेज जब भी, कांग्रेसी नेता गिरफ्तार होते थे तो उन्हें जेल में विशेष खाना जैसे हलवा पुरी मिलती थी ..., लाल बहादुर शास्त्री वे खाना अन्य कैदियों में बाँट देते थे , कहते ऐसे मालपुआ भोजन से मैं बीमार पड़ जाऊंगा, और अन्य कैदीयों को बांटकर, वे भी खुश रहते थे...
३.जब उन्होंने रेल दुर्घटना की वजह से इस्तीफा दिया.., अगले दिन सरकारी घर खाली करने के पहले वे रात भर, बिना बिजली के रहे ..., कहा, मेरा पद चला गया है .., मैं सरकारी बिजली खर्च नहीं करूंगा ..

९.. प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके घर में कूलर लगा देखकर, उस कूलर को यह कहते ही वापस कर दिया कि मेरे बच्चों को इसकी आदत नहीं डालनी है

..
१०... १९५२ से कांग्रेस के चुनाव चिन्हमें दो बैलों की जोड़ीसे, जवाहरलाल नेहरू ने चुनावी नारा आराम हराम हैके अपने अय्याशी पन को छिपाकर जीता , सत्ता में आते ही इन दो बैलों को सत्ता की विदेशी शराब पीला कर बेहोशी में रखा.... और बिना किसान के, देश की उपजाऊ जमीन को बंजर बनाकर , देश में भूखमरी पैदाकर, विदेशी अनाज से देशवासियों का लालन पालन किया, हमें ऐसा घटिया/सड़ा अनाज खिलाने को मजबूर किया गया, जो कि अमेरिका के सूअर भी नहीं खाते थे ... हमारे सेना के जवानों के हाथों में बन्दूक थमाने की बजाय शांती का गुलाबी फूलथमा दिया .... और हिन्दी चीनी , भाई-भाईके नारे में उसकी महक डालने से, नोबल पुरूस्कार जीतने की महत्वकांक्षा में सेना को नो बल कर दिया... हमारे से दो साल बाद, आजाद हुए चीनने अपनी ताकत बढाते हुए .... मौके की ताक में हमारे देश ४६ हजार वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर , नेहरू को थप्पड़ मार कर , नेहरू का नारा हिन्दी चीनी , खाई खाईमे बदल दिया और नेहरू का शांतीके नारें की देशवासियों के सामने पोल खोल दी 

११. जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद . प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने इन दो बैलों का किसान बनकर ,अपने सवा चार फीट की काया को, राष्ट्रवादी बल से , इन अपाहिज हुए जवानों व किसानों में एक नया आत्मबल डाल कर , “जय जवान जय किसानके नारा को १९ महीने में सार्थक बना दिया. लेकिन...., देश के कांग्रेसी तो वंशवाद से भयभीत थे ... लेकिन उससे कहीं ज्यादा भयभीत विदेशी ताकतें थी, उन्हें अहसास हो चुका था {यदि हमारा देश दो साल और राष्ट्रवादी प्रवाहसे चलेगा तो हम हिन्दुस्तान आत्मनिर्भर बन जाएगा, और कोई ताकत उस पर राज नहीं कर सकेंगी} इसलिए , देश के लालको सुनोयोजित षड़यंत्र से मारकर, उन्हें दूध में जहर दे कर नीलीकाया में उनके पार्थीव शरीर को लाया गया , हमारे देशी कांग्रेसी ताकतों ने भी इसे हृद्याधात से प्राकृतिक मौत से, बिना पोस्टमार्टम के, डर से... कही पोस्टमार्टम करने पर , देशी व विदेशी ताकतों का पोस्टमार्टम न हो जाए ... आनन फानन में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का शव दाह कर दिया , उनकी पत्नी अंत तक गुहार लगाती रही , मेरे पति की हत्या की जांच हो...

१२. ये वही काग्रेसी थे, जिन्होने लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद , उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनके किराए के घर मे घुसकर धावा बोला, तब उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपनी अलमारी खोलकर कांग्रेसीयो को दिखाते हुए कहा , देखो?, ये मेरा काला धन है, ये हमारी सपत्ति है, कांग्रेसीयो ने छान बीन की तो उसमे , लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर कुछ कागज मिले , उन कांग्रेसीयों को लगा कि इसमे लाल बहादुर शास्त्री के अचल व काले धन की संपत्ति के दस्तावेज हैं.
जब कांग्रेसीयो ने दस्तावेजों को खंगाला तो वह बैक के कर्ज के पेपर निकले, जो लाल बहादुर शास्त्री ने, प्रधानमंत्री के कार्यकाल मे, अपनी नीजी कार, बैक के कर्ज से खरीदी थी, और कर्ज अदायगी मे असमर्थ होने पर, बाद मे वह कार बैक को लौटा दी थी. तो वे उन सभी काग्रेसीयों के चेहरे उतर गये और् उनके घर से खाली-हाथ मलते लौटे.

१३.उसी तरह लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद, प्रधानमंत्री बनने के बाद, इंदिरा गाधी भी उनके किराए के घर गई, और उनका घर देखकर, अपना नाक सिकुडते हुए कहा.. छी:मिडल क्लास फैमिली” ( “छी:मध्यम दर्जे का परिवार”)

१४.यह वही देश का लाल था , जिन्होने अपना जीवन देश को सर्मपित कर दिया था , और उस देश के लाल का मृत शरीर , विदेश से नीले रंग (मृत शरीर का नीला रंग, दर्शाता है कि शरीर मे विष का अंश है) मे आया, तो न कोई जाँच न कोई, न कोई पोस्ट मार्टम (शव विच्छेदन), आनन फानन मे अंतिम क्रिया कर दी गई,.ताकि मौत का रहस्य दब जायें?.

किसी ने अय्याशी की 
किसी ने तानाशाही की 
किसी ने वतन लूटा 
किसी ने कफ़न लूटा 
किसी ने देशवासियों को घोटाले की फ़ौज से मौज कर.., घोंट दिया

प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी आपकी ५०वी पुण्य तिथि का पुण्य देश पर है, हमारा प्रणाम , आपने शास्त्र के शास्त्र से जीत का मंत्र दिया , आज के सत्ताखोरों ने तुम्हारे आदर्शों को भूलाकर भ्रष्टाचार से देश को डूबों दिया 

देशी विदेशी शक्तियों ने जय जवान जय किसान के रखवाले की ह्त्या कर , देश की हरियाली ख़त्म कर दी... 

१. ताशकंद जाने से पहले वीर सावरकर ने लालबहादुर शास्त्री को चेताया और कहा “शास्त्रीजी हम जीते हुए राष्ट्र है , रूस के प्रधान्मत्री को हमारे देश मे बुलाओ, यदि आप ताशकंद जाओगे तो वापस नही आओगे.. और हमारे द्वारा जीता भाग भी लुटा आओगे.. उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई, २. ९ जनवरी १९६६ की रात लालबहादुर शास्त्री ने ताशकंद से अपनी पत्नी ललिता शास्त्री को फोन कर कहा “मैं हिन्दुस्तान आना चाहता हूँ, यहां, मुझ पर हस्ताक्षर करने के लिए दवाब डाल रहें है..., मुझे यहां घुटन हो रही है... देश के सत्ता की राजनयिक फौजे बार-बार, शास्त्रीजी से कह रही थी..., भले हम युद्ध जीत गये हैं, यदि आप हस्ताक्षर नहीं करोगे तो आगे अन्तराष्ट्रीय बिरादरी एकजुट होकर देश की आर्थिक स्तिथी बिगाड़ देगी...



१. ताशकंद जाने से पहले वीर सावरकर ने लालबहादुर शास्त्री को चेताया और कहा शास्त्रीजी हम जीते हुए राष्ट्र है , रूस के प्रधान्मत्री को हमारे देश मे बुलाओ, यदि आप ताशकंद जाओगे तो वापस नही आओगे.. और हमारे द्वारा जीता भाग भी लुटा आओगे..
उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई,

२. ९ जनवरी १९६६ की रात लालबहादुर शास्त्री ने ताशकंद से अपनी पत्नी ललिता शास्त्री को फोन कर कहा मैं हिन्दुस्तान आना चाहता हूँ, यहां, मुझ पर हस्ताक्षर करने के लिए दवाब डाल रहें है..., मुझे यहां घुटन हो रही है...
देश के सत्ता की राजनयिक फौजे बार-बार, शास्त्रीजी से कह रही थी..., भले हम युद्ध जीत गये हैं, यदि आप हस्ताक्षर नहीं करोगे तो आगे अन्तराष्ट्रीय बिरादरी एकजुट होकर देश की आर्थिक स्तिथी बिगाड़ देगी...

३. इसके बाद उनके कड़े मंसूबे, हमारे देश के सत्ता की राजनयिक फौजे तोड़ने में कामयाब हो गयी.., १० जनवरी १९६६ के शाम ४.३० बजे , शास्त्रीजी ने जीती हुई जमीन वापस लौटाने व शांती समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, उनके पुत्र अनिल शास्त्री को कहा गया ..., वे देश के प्रधानमंत्री हैं, उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें विशेष आवास में अकेले में सुरक्षित रखना होगा 
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद समझौते के बाद ८ घंटे के बाद , ११ जनवरी तड़के १ बजे,पाकिस्तानी रसोईये द्वारा रात को दूध पीने के बाद उनकी मौत हो गई, मौत के समय उनके कमरे मे टेलिफोन नही था, जबकि, उनके बगल के कमरे के राजनयिकों के कमरों मे टेलिफोन था, उनकी मौत की पुष्टी होने पर राजनयिकों की फौज दिल्ली मे फोन लगा कर चर्चा कर रहे थे कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ?

४. अंत तक ललिता शास्त्री गुहार लगाती रही, मेरे पति की मौत की जाँच हो, आज तक सभी सरकारों द्वारा, कोइ कारवाई नही हुई?, 

५. इस रहस्य को जानने के लिये, आर.टी.आई. कार्यकर्ता अनुज धर ने एडी चोटी का जोर लगाने के बाद, सरकार की तरफ से जवाब मिला कि यदि हम इस बात का खुलासा करेगें तो हमारे संबध दूसरे देशों से खराब हो जायेगें ?

६. और एक राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री बेमौत, मौत् का शिकार हो गया., और…..? अपने परिवार के पीछे छोड गया……, सिर्फ और सिर्फ……?????, कर्ज का बोझ?

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७. देश का एक लाल, लाल बहादुर शास्त्री, जब प्रधानमंत्री बने, तब देश मे विकट परिस्थीतिया थी, देश भुखमरी के कगार मे पहुँच रहा था, सीमा पर दुशमनो की तोपें आग उगलने की तैयारी मे थी. जिन्होने जय जवान जय किसानके नारे से दुश्मनों को सबक सीखाकर देश मे हरित क्रति के साथ-साथ श्वेत क्रांति की, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 19 महिने के प्रधानमंत्री के कार्यकाल की कामयाबी से नेहरू द्वारा किया गया भ्रष्टाचार का शौच साफ कर दिया था…., नेहरू के चमचे नेताओ की अय्याशी खत्म कर, उन्हे आम नेता बना दिया था…???

८. देश की जनता उनकी कायल थी, उनके आवाहन को जनता, सर आँखो मे रखकर , उन्हें देश का भाग्य विधाता मानती थी,

९. उनकी साफ सुथरी छवि के कारण ही उन्हें 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी शीर्ष प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धान्तिक न होकर पूर्णत: व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे।

१०. निष्पक्ष रूप से यदि देखा जाये तो शास्त्रीजी का शासन काल बेहद कठिन रहा। पूँजीपति देश पर हावी होना चाहते थे और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने की फिराक में थे। 

1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परम्परानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मन्त्रिमण्डल के सदस्य शामिल थे। संयोग से प्रधानमन्त्री उस बैठक में कुछ देर से पहुँचे। उनके आते ही विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ। तीनों प्रमुखों ने उनसे सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा: "सर! क्या हुक्म है?" शास्त्रीजी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया: "आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?"

११. शास्त्रीजी ने इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकजुट हो गया। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी.

१२. लाल बहादुर शास्त्री के आगे प्रधानमंत्री पद पर रहना, दुनिया के देशों को इतना डर नही था.., जितना इंडियन काग्रेसीयों को, वे इस डर को पचा नही पा रहे थे, उन्हे डर था कि राजनीती अब नेताओ की मजदूरी हो जायेगी, सादगी की वजह से उनकी अगली पीढी भी मजदूर बनना पसंद नही करेगी, और वंशवाद खत्म हो जायेगा. और उन्होने इंदिरा गाधी को ब्रिटेन मे भारत का उच्चायुक्त बनाने का संकेत दे दिया था.

१३. आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया, हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी ताशकन्द न जायें और वे भी मान गयीं, अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा. 

१४. जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं. काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये.
उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? कई लोग उनकी मौत की वजह जहर को ही मानते हैं.

१५. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद समझौते के बाद , रात को दूध पीने के बाद उनकी मौत हो गइ, मौत के समय उनके कमरे मे टेलिफोन नही था, जबकि, उनके बगल के कमरे के राजनयिकों के कमरों मे टेलिफोन था, उनकी मौत की पुष्टी होने पर राजनयिकों की फौज दिल्ली मे फोन लगा कर चर्चा कर रहे थे कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ?

यही हाल वीर सावरकर के जीवन के साथ भी, लालबहादुर शास्त्री के मौत के सदमे के बाद,वीर सावरकर बिमार होते गये ,
उन्होने कहा अब देश गर्त मे चला गया, अब मुझे इस देश मे जीना नही हैवीर सावरकर ने दवा लेने से इंकार कर दिया, एक बार डाक्टर ने उन्हे चाय मे दवा मिला कर दी, तो वीर सावरकर को पता चलने पर उन्होने चाय पीना भी बंद कर दिया , और एक राष्ट्र का महानायक इच्छा मृत्यु (कहे तो आत्महत्या) से चला गया.
वीर सावरकर की यह भविष्यवाणी भी सही निकली ……?????

शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है
.आओ शास्त्रीजी, ताशकंद में तुम्हारी विजय पताका को ताश के महल के पत्तों की तरह ढ़हा कर, तुम्हारा काम तमाम करता हूं... 

मेरे पति का शरीर जहर से नीला पड़ गया है.., इनके शव-विच्छेदन से जांच की जाए...

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Tuesday 1 January 2019

वीर सावरकर को जिसने नही पहचाना ? उसने हिन्दुस्थान को नही जाना?



वीर सावरकर को जिसने नही पहचाना ? उसने हिन्दुस्थान को नही जाना?

मोदी के प्रधानमंत्री पद पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आजादी के ७५ वें वर्ष की याद में भले ही अंडमान जेल की यात्रा की हो ...??? लेकिन आज भी अंडमान जेल की ईंटें, चीख चीख वीर सावरकर को दी गई यातनाओं को बयां करती हैं .
जंहा सभी कैदियों को ३० पौंड पा उंड नारियल व सरसों के तेल को कोल्हू के बैल की तरह पेरना पड़ता था जो वीर सावरकर को दी गई १० अधिक वर्षो की यातनाओं की दास्तान हैं  .

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जलियावाला बाग़ हत्याकांड से लेकर भगतसिंग की फांसी का समर्थन व १९४७ में देश के तुकडे कर सत्ता परिवर्तन के आजादी कहकर कर कहकर प्रधानमंत्री नेहरू ने स्वंभू को भारत रत्न व इंदिरा गांधी ने खालिस्तान आन्दोलन को हवा देकर व राजीव गांधी ने सिख हत्याकांड से सहानुभूति खेलकर भारत रत्न व गांधी नेहरू परिवार को अपनी बपौती बनाकर गली मोहल्लों के नाम व पुतलों से सडकों को पाट दिया .....

इन भारत रत्नों ने १९४७ के पहिले देश की आजादी में खलल डालकर , अंग्रेजों के पिछलगू व सुरक्षा वाल्व बनकर अंग्रेजों को हिन्दुस्तानी आन्दोलन से तनाव मुक्त रखकर १९४७ तक उन्मुक्त राज करने का अवसर दिया. व जेल में VIP का दर्जा पाकर, बिना डंडा खाए हलवा पुरी खाने वाला जीवन बिताया और आज तक उनकी पीढी स्वतंत्रता सेनानी के नाम से बिना टेंशन से पेंशन डकार रही हैं.



 वीर सावरकर को जिसने नही पहचाना ? उसने हिन्दुस्थान को नही जाना

१. आज भी अंडमान जेल की ईंटें, चीख चीख वीर सावरकर को दी गई यातनाओं को बयां करती हैं ..

२. उन्हें ऐसी कोठारी में रखा गया जहाँ से कैदियों को फांसी की सजा देने का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता था .., ताकि वीर सावरकर की रूह काप कर वे क्षमा की गुहार लगाए.., अंडमान जेल में कडी ठंड मे , वीर सावरकर को कंबल नही दिया जाता था ताकि ठंड से वे ठिठुर ठिठुर कर मर जाये, इस दंड का भी तोड, वीर सावरकर ने निकाल लिया, वे रात भर शरीर गर्म रखने के लिये दंड-बैठक करते थे, और इसके बाद, उन्हें और उनके जेल के साथियों को,सवेरे से शाम तक कोल्हू के बैल की तरह से तेल निकालना पडता था. जबकि आज तिहाड जेल के सफेद पोश नकाब वाले राजनैतिकों व माफियाओं को, हीटर व वेटर, स्वेटर, पख़े अखबार इत्यादि की एशों-आराम की सुविधा है

३. मेरी गुहार...., क्या इस कोहीनूर हीरे के चमक से कही गुना ज्यादा..., ५६ गुणों से ज्यादा.., परमवीर सावरकर, जिन्होंने राष्ट्रवाद की बलि देंने से इनकार कर, अंग्रेजों के तलवे चाटने के खेल को ठुकराकर सत्ता के ५६ भोग को नकार दिया...

४. अब तो, मोदी सरकार तो उन्हें भारतरत्न के सम्मान को भूल चुकी है..., क्या...!!!, २८ मई २०१७ को, उनकी १३४ वी जन्म तिथी को राष्ट्रीय प्रेरणा दिवस से बाबा साहेब आंबेडकर की तरह शौर्य दिवस पखवाड़ा के रूप में मनायेगी....

५. सावरकर जो वीर ही नही परमवीर थे, इस धरती पर चाणक्य के बाद दुरदर्शी क्रातिकारी वीर सावरकर ही थे ,जिनकी दहाड् से अग्रजो का साम्राज्य हिल उठता था, मै तो उन्हे देश के क्रांति का चाणक्य मानता हूँ,? उनकी भूमिका अग्रेजो के समय वीर शिवाजी महाराज व सत्ता परिवर्तने के बाद वीर महाराणा प्रताप की थी? आज तक हमारे देश्वासियो को यह पता नही है, सुभाष चन्द्र बोस, चद्रशेखर आजाद व सरदार भगत सिंग मे क्राति का जन्म वीर सावरकर द्वारा हुआ?

६. यह वीर सावरकर की ही देंन है कि अमृतसर व कलकत्ता पकिस्तान में जाने से बच गया जो सिद्धपुरूष हुए, भविष्य दर्शन सिद्दी उनमे थी , जो सावरकर द्वारा कही है 40 से अधिक भविष्यवाणी आज सार्थक हुई है देश में राष्ट्रवाद की बर्बादी को देखकर उन्होंने नेहरू को चुनौती देते हुए कहा ... मैं सत्तालोलुप नहीं हूं, मुझे दो साल का शासन दो, मैं हिन्दुस्थान को गौरवशाली बनाऊंगा ..

७. आजाद हिद फौज का जन्म वीर सावरकर की प्रेरणा द्वारा ही हुआ, सुभाष चन्द्र बोस उनसे आशीर्वाद लेने गये थे कि मेरी मजिल को सफलता मिले? याद रहे 1947 मे आजाद हिद फौज की अहम भूमिका थी ?

८. चन्द्रशेखर वेकट रमण को वर्ष 1930 मे जब नोबल पुरस्कार मिला. जब, वे मंच पर पुरस्कार ग्रहण करने पर गये तो, तो उन्होने कहा मुझे बढा दु:ख है कि यह पुरस्कार एक गुलाम देश के नागरिक को मिल रहा है, मुझे गर्व होता यदि मै आजाद देश का नागरिक होता. उनके विचार सुनकर चन्द्रशेखर वेकट रमण जब वीर सावरकर को बैगलोर में मिले , तब चन्द्रशेखर वेकट रमण से 3-4 घटे राष्ट्रवाद के बारे मे विस्तार से चर्चा कि तो उन्होने वीर सावरकर के बारे मे कहा यह देश का अनमोल हिरा जिसके चमक के सामने कोहिनूर हीरा भी फीका है?”. 

याद रहें, महान भौतिकशास्त्री वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेकट रमण को 1954 मे भारत रत्न मिला था

९. जब वीर सावरकर के अंडमान जेल मे अमानवीय अत्याचार के वजह से जेलर बारी को काला पानी से ब्रिटिश के राजधानी मे तबादला कर दिया था.. . (याद रहे, जेलर बारी ने अंग्रेज प्रशासकों को बताया था कि वीर सावरकर को प्रताडना व कड़ी सजा के बावजूद वे टस से मस होने वालो मे से नही है, वह फौलादी दिल वाला इंसान है और उनके {वीर सावरकर} जेल के कार्यकालमे 90% से ज्यादा कैदी साक्षर हो गये हैं, – इनमे से 60% से ज्यादा मुसलिम कैदी थे

१०.अंडमान जेल में कडी ठंड मे , वीर सावरकर को कंबल नही दिया जाता था ताकि ठंड से वे ठिठुर ठिठुर कर मर जाये, इस दंड का भी तोड, वीर सावरकर ने निकाल लिया, वे रात भर शरीर गर्म रखने के लिये दंड-बैठक करते थे, और इसके बाद, उन्हें और उनके जेल के साथियों को,सवेरे से शाम तक कोल्हू के बैल की तरह से तेल निकालना पडता था. जबकि आज तिहाड जेल के सफेद पोश नकाब वाले राजनैतिकों व माफियाओं को, हीटर व वेटर, स्वेटर, पख़े अखबार इत्यादि की एशों-आराम की सुविधा है

१० वीर सावरकर को अडमान जेल की यातना देने/सहन करने के बाद उनके चेले सुभाष चन्द्र बोस ने कहा , वीर सावरकरजी आप गाँधी जी के कांग्रेस मे शामिल हो जाओ, मै देश की क्राति की बागडोर सभाँलूगा, वीर सावरकर ने उन्हे लताडते हुए कहा मेरे सिद्दांत को त्यागकर मै अग्रेजो की पीछे की चाटता तो मै गाँधी से बहुत आगे होता था,
यदि गाँधी, मेरे सिद्दांओ को मानेगे, तो मै गाधी के पीछे चलकर उनको राष्ट्रवाद की रूकावट मे मार्ग दर्शन कराऊँगा? तु मेरी फिक्र नही करना मै तो देश के लिये, अपनी मौत की कफन साथ मे लेकर फिरता हूँ?

११. वीर सावरकर व उनके परिवार का जन्म ही मातृभूमि की स्वाधीनता हेतु ही हुआ था , अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होने जो संघर्ष किया , उनके बदले मे उन्होने मान. यश, पद या देश से कोई अपेक्षा नही की. लेकिन सच तो यही है उनके अनुपम त्याग के बदले मे पराधीन सरकार व सत्त लोलूप जो आजादी को एक झाँसा बनाकर ,जनता को स्वाधीनता की लोलूप सरकारो ने भी उन्हे शारीरिक व मानसिक यंत्रणाए ही दी...???? 

१२. क्रांतिकार्य, अस्पृश्यता निवारण , देशोरेम, स्वाभिमान , धर्मसुधारक,लिपी शुद्धी, धर्मांतरित लोगो का शुद्धीकरण, सप्त बंधन तोडने, स्वदेशी व्रत, विदेशी कपडों की होली , शुरूवात मे यह सब कार्य समाज मे विष के समान प्रतीत होती थी,लेकिन यह सब बाद मे समाज मे अमृत समान प्रतीत हुआ उन्होने कहा , ये सब कार्य, समाज को दोषपूर्ण लगे तो भी मै,उन्हे नही छोडूगा/ कारण सभी कार्य शुरूवात मे दोषपूर्ण होते है, इसलिए उन्होनें मिलने के लिए, कर्म, क्रांतीकर्म, अस्पृश्योद्वार का कर्य, अंतिम समय तक नही छोडा. 

१३. ताशकंद जाने से पहले वीर सावरकर ने लालबहादुर शास्त्री को चेताया और कहा शास्त्रीजी हम जीते हुए राष्ट्र है , रूस के प्रधान्मत्री को हमारे देश मे बुलाओ, यदि आप ताशकंद जाओगे तो वापस नही आओगे
उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई,

१४. यही हाल वीर सावरकर के जीवन के साथ भी, लालबहादुर शास्त्री के मौत के सदमे के बाद,वीर सावरकर बिमार होते गये ,

उन्होने कहा अब देश गर्त मे चला गया, अब मुझे इस देश मे जीना नही हैवीर सावरकर ने दवा लेने से इंकार कर दिया, एक बार डाक्टर ने उन्हे चाय मे दवा मिला कर दी, तो वीर सावरकर को पता चलने पर उन्होने चाय पीना भी बंद कर दिया , और एक राष्ट्र का महानायक इच्छा मृत्यु (कहे तो आत्महत्या) से चला गया.
वीर सावरकर की यह भविष्यवाणी भी सही निकली ……?????

१५. आज का श्लोगन बन गया है…..
सच्चे का मुँह काला ..????
भ्रष्टाचार का बोलबाला……..

१६. वीर सावरकर ने अपने मौत के पहने कहा कहा मेरी मौत पर कोई हडताल व देश के किसी नगर, शहर मे बंद का आयोजन नही होगा और जो मेरे जिदगी की 5000रू अमानत है, वह जो हिन्दू , मुस्लिम बने, उनके पुन: हिन्दु धर्म मे आने पर यह धन उनके शुध्हीकरण मे उपयोग मे लाना?

१७. आज भी स्वर साम्राज्ञी कोकिला , भारतरत्न लता मगेशकर भी गला फाडकर चिल्ला रही है, वीर सावरकर को कोइ सम्मान नही मिला है, उनके वीरता की इस देश मे दुर्गति हुई है ………..

१८. अब इस दुनिया ऐसा वीर सावरकर दुबारा पैदा नही होगा? देश के इतिहास को अन्धेर मे रखकर यो कहे देश के इतिहास को दफन कर दिया है….?????????