Tuesday 28 August 2018

तमिलनाडु केरल को बाढ़ का दोषी मान रहा है.., तमिलनाडु व कर्नाटका में आपस में पानी के तोल की लड़ाई हो रही है..., हरियाणा दिल्ली को पानी देने में ना – नुकुर कर रहा है.., आसाम, बिहार के सूखे इलाके मानसून में बाढ़ ग्रस्त हो जाते हैं.., गजराज इंद्र कह रहें है की मैं सनातन हिन्दुस्तान की संतानों को आदि काल से ही तृप्त कर जल वर्षा करता था .., और इस जन वर्षा को माती के माटी के मिश्रण से अन्न से देश में धन वर्षा से यह देश सोने की चिड़िया कहलाता था ...



तमिलनाडु केरल को बाढ़ का दोषी मान रहा है.., तमिलनाडु व कर्नाटका में आपस में पानी के तोल की लड़ाई हो रही है..., हरियाणा दिल्ली को पानी देने में ना – नुकुर कर रहा है.., आसाम, बिहार  के सूखे इलाके मानसून में बाढ़ ग्रस्त हो जाते हैं..,

गजराज  इंद्र कह रहें है की मैं सनातन हिन्दुस्तान की संतानों को आदि काल से ही तृप्त कर जल वर्षा करता था .., और इस जन वर्षा को माती के माटी के मिश्रण से अन्न से देश में धन वर्षा से यह देश सोने की चिड़िया कहलाता था ...

देश को सत्ता परिवर्तन की आड़ में आजादी कह वोट बैंक की राजनीती से देश को भाषावाद से आशावाद दिखाकर , देश को आरक्षण व जातिवाद से घुसपैठ मीठी चासनी में जलेबी की तरह डूबोकर इसका शुरूवात  व अंत की खोज कोई नहीं कर सकता है की देश इस तरह  खंडित होकर डूब कैसे रहा है...

मित्रों लिखने को बहुत है... लेकिन इस समुंद्री नाग का  मंथन कर इसमें से जहर को कैसे साफ़ किया जाय.. ,इसका पर्याय के बारे में कोई नहीं सोचता है...!!!!!! इसके मंथन से ही देश को निजात (कोई जाति नहीं के सिद्धान्त ) मिलेगी... !!!!

Saturday 25 August 2018

वासुधैव कुटुम्बकम के इस धागे में, धर्म परिवर्तन, जातिवाद, भाषावाद, अलगाववाद व घुसपैठीयों के वोट बैंक के विभिन्न रंगों के लेप से इस हिन्दुस्थानी धागे को तोड़कर , बहुत सारे खंडित धागे बनाने के लिए विदेशी आक्रमणकारीयों..., के बाद विश्व के देशों व अब तो देशी मीडिया भी इस गलिछ्ता से गलीचे वाला जीवन जी कर हिंदुत्व के ठेकेदार से “स्टार चैनल” से विदेशी संस्कृति से देश को “विकृत” कर दलाल बन कर देश को हलाल कर रहें है..,



१.              हिंदुत्व ही बंधुत्व है, पूरा विश्व ही हिन्दू का तत्व है..., अब आरक्षण की तलवार, एक नई धार से, नेताओं के वोट बैंक की दांत की चमक के पैने पन की तस्वीर से, आज देश ऊंचाई को छूने की बजाय बौनाहोते जा रहा है..

२. आजादी के मसीहा कहकर, छद्म पुतलों व सडकों के नाम देखकर.., देश को चौपटनगरीकर, अंधे राजाओं को देखकर , आज भी भारतमाता आहभर.., कराह कर, कह रही है.., ६८ सालों बाद भी..!!!, मेरे १२५ करोड़ बेटों को किस तरह, विदेशी हाथ- विदेशी साथ विदेशी विचार- विदेशी संस्कार , जाति, भाषा व धर्मपरिवर्तन से आपस में, लड़ाकर..., कैसे मेरे कटे अंगो के घाव सहित , पुन: मुझे विदेशी जंजीरों से बांधने का प्रयास किया जा रहा है.

३. कहां गए...!!!!!, मेरे वीर सपूत विनायक सावरकर, भगत सिंग ,राजगुरू, आजाद, सुभाष चन्द्र,रानी लक्ष्मीबाई पुत्री व अन्य लाखों क्रांतीकारी जिनके विचारों को ताबूत में बंद कर दिया.., क्या आज की गुलामों की शिक्षा से, अब अब्दुल कलाम जैसे राष्ट्रवादी प्रतिभाओ का जन्म होगा...

४. वासुधैव कुटुम्बकम के इस धागे में, धर्म परिवर्तन, जातिवाद, भाषावाद, अलगाववाद व घुसपैठीयों के वोट बैंक के विभिन्न रंगों के लेप से इस हिन्दुस्थानी धागे को तोड़कर , बहुत सारे खंडित धागे बनाने के लिए विदेशी आक्रमणकारीयों..., के बाद विश्व के देशों व अब तो देशी मीडिया भी इस गलिछ्ता से गलीचे वाला जीवन जी कर हिंदुत्व के ठेकेदार से स्टार चैनलसे विदेशी संस्कृति से देश को विकृतकर दलाल बन कर देश को हलाल कर रहें है..,

५. विश्व चाहता है कि कैसे हम इन हिंदुस्थानी धागों को तोड़कर , टूटे धागों की गाँठ बांधकर, हम नए गुलामों की जमात बनाकर..., एक मजबूत रस्सी से बाँध कर रखें...,

6. हिंदुत्व तो ..., मातृत्व-माता (वन्देमातरम),/ पितृत्व-पिता (राष्ट्रवाद),/गुरुतत्व-गुरू (वैदिक वैज्ञानिक ज्ञान से गुरू है) व वासुधैव कुटुम्बकम (भाई-बहन चारा ) के असंख्य धागों का योग है... 

हम प्रतिज्ञा ले.. इस राष्ट्रवादी धागे को और मजबूत बनाएं...
Let's not make a party but become part of the country. I'm made for the country and will not let the soil of the country be sold. के संकल्प से गरीबी हटकर, भारत निर्माण से, इंडिया शायनिंग से, हमारे LONG – INNING से, “FEEL GOOD FACTOR” से देश के अच्छे दिन आयेंगें..,


राफेल की धार पहुंची सीमा पर , अब नहीं होने दूंगा देश का बंटाधार .., इस कोलाहल से बनाऊँ इन्हें कोल्हू का बैल से राजनीती में ध्वस्त करूं इनके विचारों के चित्र का अस्तित्व ..,,



प्रहार पर प्रहार..,
विरोधियों का चीत्कार, कोलाहल.., कहें मोदी नहीं है चित्रकार  ..,

इस कोलाहल से बनाऊँ इन्हें कोल्हू का बैल से राजनीती में ध्वस्त करूं इनके विचारों के चित्र का अस्तित्व ..,,

राफेल की धार पहुंची सीमा पर ,
अब नहीं होने दूंगा देश का बंटाधार ..


www.meradeshdoooba.com (a mirror of india) स्थापना २६ दिसम्बर २०११ कृपया वेबसाइट की ७०० से अधिक प्रवाष्ठियों की यात्रा करें व E MAIL द्वारा नई पोस्ट के लिए SUBSCRIBE करें - भ्रष्टाचारीयों के महाकुंभ की महान-डायरी

Thursday 23 August 2018

चेतो मोदी सरकार..., यह अच्छी बात नहीं है...,यह अटल सत्य जो बेबाक है..., मत करो अपना समय बर्बाद.. जगाओ..,जगाओ..., १०० करोड़ से अधिक गरीबों के घरों की राख की चिंगारी से देश में चरागों के उजालों से सूरज भी शर्मायेगा.. “यह अच्छी बात नहीं है...” यह.., राजनीती की गन्दगी से सौगात का भद्दा मजाक है शवों पर राजनीती कर पुतले बना तो ठीक है . इंदिरा गांधी की तरह मेरे राख से खिलवाड़ कर , जनता को गुमराह कर कुर्सी का धेय्य बनाना .., “यह अच्छी बात नहीं है...” – अटल बिहारी वाजपेयी



चेतो मोदी सरकार..., यह अच्छी बात नहीं है...,यह अटल सत्य जो बेबाक है..., मत करो अपना समय बर्बाद..

जगाओ..,जगाओ..., १०० करोड़ से अधिक गरीबों के घरों की राख की चिंगारी से देश में चरागों के उजालों से सूरज भी शर्मायेगा..

“यह अच्छी बात नहीं है...” यह.., राजनीती की गन्दगी से सौगात का भद्दा मजाक है.
 
शवों पर राजनीती कर पुतले बना तो ठीक है . इंदिरा गांधी की तरह मेरे राख से खिलवाड़ कर , जनता को गुमराह कर कुर्सी का धेय्य बनाना .., “यह अच्छी बात नहीं है...” – अटल बिहारी वाजपेयी

१९४७ में देश का लोकतंत्र के जन्म के बाद, १९५०  के संविधान में एक शैशव काल में पहुंचा.., और गांधी के छद्म चरित्र के सत्य, अहिंसा के पुतले की छाँव में इस शैशवी लोकतंत्र ने आज तक उजाला नहीं देखा.., आज भी ७२ सालों बाद इस  लोकतंत्र ने सूरज नहीं देखा और अपनी जवानी खो दी.., अब बुढ़ापे में खो रहा है.., वह भी इसे इंदिरा युग की समाप्ति के बाद मोदी युग की शुरूवात को राखों के ढेर से अब उसे बरगलाया जा रहा है....,    

Wednesday 15 August 2018

देश के इतिहास में लाल किले से एक शेर ५वीं बार दहाड़ा.., दुनिया को शिखाया राष्ट्रवाद का पहाड़ा..., ७१ सालों की तुष्टीकरण की नीती से देश के सुस्तीकरण से देश को बूढ़ेपन में ढकेलकर..., विदेशी बैसाखी देने वालों को चेताया.., कि हम अभी भी, लूले, लंगड़े नहीं है...




देश के इतिहास में लाल किले से एक शेर ५वीं  बार दहाड़ा..दुनिया को शिखाया राष्ट्रवाद  का पहाड़ा.

विरोधियों का सूपड़ा साफ़ करने बाद..., देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद , अपनी ललकार से ब्रिकस देशों की अपनी मनमानी की ब्रिक (ईट) तोड़कर, व अमेरिका को अपने देश के स्वाभिमान की फटकार से लताड़ कर.. होश उड़ा दिए है ..,
पहली बार विदेशी पट्टे (जंजीर व विदेशी नीती के घुटने टेकू विचार को ध्यान में रख, बनाए गये पिछले नेता
ओं के भाषण.., मोदीजी ने बिना कागज के लेख से.., अपने स्वाभिमानी मौखिक बयान से ) के बिना, और विदेशी इशारों की लगाम तोड़ कर दहाड़ा .., और विश्व के देश द्वारा अपनी नीती बनाकर, हमारे देश को लूटने, व आतंकवादी भी ..., जो देश को आतंकवाद से देश की दरार कर फर्राटे से भागने, में सफल होते थे.., अभी उन्हें.., मोदी द्वारा, भविष्य में अपने पिछड़ने का पहाड़ा समझकर..., अभी से चिंतित हो गए हैं ...,

७१ सालों की तुष्टीकरण की नीती से देश के सुस्तीकरण से देश को बूढ़ेपन में ढकेलकर..., विदेशी बैसाखी देने वालों को चेताया.., कि हम अभी भी, लूले, लंगड़े नहीं है...

अभी भी हममें राष्ट्रवाद का खून मौजूद है..., और हमारे में इतनी शक्ती है कि वोट बैंक की आड़ से , देश में हुआ अन्धकार... जो राष्ट्रवाद का ६७ सालों का जमा कर रखा खून था - व विदेशी कर्ज के खून से देश को दौडाने के खेल से सत्ता की भ्रष्टाचार की सुपर रेल का आनन्द के खेल के, तमाशे से देश वासियों को भारत निर्माण के अफीमी नारों से जनता को भरमा रहें थे..., वह दिन चले गए है 

अब राष्ट्रवाद से ही देशवासियों के अच्छे दिन आने वाले है...,” “यही विश्व के उन्नत देशों का मूल मंत्र है..

लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री के इसी अदभुत सन्देश से , अब हमारे देशवासी, विश्वगुरू की ऊर्जा से,एक नया उजाला देकर, वन्देमातरम (धरती/देश की सेवा का पूजक/सूचक) की दहाड़ से, हमारा देश सुजलाम सुफलाम से विश्व के सर्वोत्तम से श्रेष्ठतम बनेगा –
GOOD FACTOR” से देश के अच्छे दिन आयेंगें..,

Wednesday 8 August 2018

८ जून १९४२ अखंड भारत के इतिहास का विश्वास घातक दिवस .,यह “भारत छोड़ों” आन्दोलन नहीं“भारत तोड़ों” आन्दोलन है तुम्हारी तिकड़ी अखंड भारत के साथ धोखा है तुष्टिकरण से सत्तालोलुपता के “अखंड भारत” को “खंडित भारत” से देशवासियों को एक गंदी राजनीती से देश को गर्त में ले जाएगा – वीर सावरकर



८ जून १९४२ अखंड भारत के इतिहास का विश्वास घातक दिवस .,यह “भारत छोड़ों” आन्दोलन नहींभारत तोड़ों” आन्दोलन है तुम्हारी तिकड़ी अखंड भारत के साथ धोखा है तुष्टिकरण से सत्तालोलुपता के “अखंड भारत” को “खंडित भारत” से देशवासियों को एक गंदी राजनीती से देश को गर्त में ले जाएगा – वीर सावरकर

 जून १९४२ अखंड भारत के इतिहास का घातक दिवसकी ७६ वी बरसी ,देश के डाकुओं द्वारा तुष्टिकरण के अस्त्र से देश को खंडित करने का बीजोरोपण साबित हुआ ... पतंजली के ज्ञाता वीर ही नहीं परमवीर सावरकर की यह ४० से अधिक भविष्यवाणी वाणियों में यह एक सटीक भविष्य वाणी है.

१.             ये गांधी की ही देंन थी किभारत सरकार पर ५५ करोड़ रु. पाकिस्तान को देने का दबाव डालामाउंटबैटन ने गांधीजी को पाकिस्तान को ५५ करोड़ रु. दिलवाने की सलाह दी. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया. कश्मीर में युद्ध चलाए रखने के लिए उसे धन की सख्त जरुरत थी. गांधीजी ने पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपए रोकड़ राशि में से दिलवाने के लिएनेहरु और पटेल पर दबाव डालने हेतुआमरण उपवास आरम्भ किया. अन्ततोगत्वानेहरु और पटेल उपर्युक्त राशी पाकिस्तान को देने को विवश हुएयद्यपि बाद में पाकिस्तान को इससे भी अधिक धन-राशी भारत को देनी थी. जो आज तक नहीं मिली
२.            गांधी ने भारत – विभाजन कराने वाली भयंकर भूलों के तो बीज बो दिए थे
विघटन के बीज लखनऊ-पैक्ट (समझौते) मेंजब कांग्रेस ने लखनऊ पैक्ट में दो विषाक्त सिद्धांत स्वीकार किए : पहला ,संप्रदाय के आधार पर मुसलमानों को प्रतिनिधित्वतथा मुस्लिम लीग को भारत के सभी मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था मान्य.,सिद्धांत रूप में तो कांग्रेस द्वी राष्ट्रवाद को अस्वीकार करती थीपरन्तु व्यवहार में उसने लखनऊ-पैक्ट के रूप में उसे मान लिया क्योकि इसमें मुसलमानों की लिए पृथक मतदान स्वीकार किया गया था. इस प्रकार इस पैक्ट में विभाजन का बीज बोया गया.
 हिंदुस्थान के प्रतिनिधि तीन कट्टर मुसलमान थेमार्च १९४६ में ब्रिटिश सरकार के मंत्रिमंडल के तीन सदस्यसर स्टैफोर्ड क्रिप्समि.ए.वी. अलेग्जेंडर और लार्ड पैथिक लारेंस वार्ता और विचार-विमर्श के लिए भारत आए. हिन्दुओ की पूण्य भूमि हिंदुस्थान का प्रतिनिधित्व तीन कट्टर मुसलमानों ने किया. भारतीय कांग्रेस और हिंदुस्थान के समस्त हिन्दुओ के प्रतिनिधि थे कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद. .मुहम्मद अली जिन्नामुस्लिम लीग के अध्यक्ष , हिंदुस्थान के मुसलमानों के प्रतिनिधि थे! नवाब भोपाल ने भारत की देसी रियासतों के शासको का प्रतिनिधित्व किया. ब्रिटिश सरकार की ओर से तीन ईसाई और हिंदुस्थान की ओर से तीन मुसलमान हिंदुस्थान के ७७ प्रतिशत हिन्दुओ के भाग्य का निर्णय करने को बैठे.

३. कांग्रेस ने हिन्दू मतदाताओं को धोखा दिया,जब.. कांग्रेसियों ने १९४६ का निर्णायक चुनावअखंड भारत ’के नाम पर लड़ा था. बहुमत प्राप्त करने के बाद ,उन्होंने पाकिस्तान के कुत्सित प्रस्ताव को मान कर हिन्दू मतदाताओ के साथ निर्लज्जतापूर्वक विश्वासघात किया. वीर सावरकर ने उनकी भर्त्सना की कि जब उन्होंने निर्लज्ज होकर अपना सिद्धांत बदला हैऔर अब वे हिन्दुस्तान के विभाजन पर सहमत हो गए हैतो या तो वे अपने पदों से त्यागपत्र दे और स्पष्ट पाकिस्तान के मुद्दे पर पुन: चुनाव लड़े या मातृभूमि के विभाजन के लिए “जन-मत ” कराएं .

४. कांग्रेसियों ने विभाजन क्यों स्वीकार किया?इसमें गांधी की अहम छद्म अहिंसा का मूल मंत्र था,कांग्रेसियों ने मुस्लिम लीग द्वारा भड़काए कृत्रिम दंगो से भयभीत होकर जिन्ना के सामने कायरता से घुटने टेक दिए .यदि दब्बूपनआत्म-समर्पणघबराहट और मक्खनबाजी के जगह वे मुस्लिम लीग के सामने अटूट दृढ़ता तथा अदम्य इच्छा शक्ति दिखातेतो जिन्ना पाकिस्तान का विचार छोड़ देता. लिआनार्ड मोस्ले के अनुसार पंडित नेहरु ने इमानदारी के साथ स्वीकार किया कि बुढापे ,दुर्बलता ,थकावट और निराशा के कारण उनमे विभाजन के कुत्सित प्रस्ताव का सामना करने के लिए एक नया संघर्ष छेड़ने का दम नहीं रह गया था.उन्होंने सुविधाजनक कुर्सीयों पर उच्च पद-परिचय के साथ जमे रहने का निश्चय किया. इस प्रकार राजनितिक-सत्तासम्मान और पद के लालच से आकर्षित विभाजन स्वीकार कर लिया.

५. क्या दंगे रोकने का उपाय केवल विभाजन ही था?, सरदार पटेल गांधीजी के पिंजरे में बंद एक शेर थे. उन्हें दंगाइयों के साथ “जैसे को तैसाघोषणा करने के लिए खुली छूट नहीं थीइसलिए उन्होंने क्षुब्ध होकर कहा था, “ये दंगे भारत में कैंसर के सामान है. इन दंगो को सदा के लिए रोकने के लिए एक ही इलाज ‘विभाजन ’है”. यदि आज सरदार पटेल जीवित होतीतो वे देखते की दंगे विभाजन के बाद भी हो रहे है. क्योंक्योंकि जनसँख्या के अदल-बदल बिना विभाजन अधूरा था.

६. जनसंख्या के अदल-बदल बिना विभाजन का गांधी ने सुखाव ठुकरा दिया.. यदि ग्रीस और टर्की ने ,साधनों के सिमित होते हुए भी ,ईसाई और मुस्लिम आबादी का अदल-बदल कर के,मजहबी अल्पसंख्या की समस्या का मिलजुल कर समाधान कर लिया ,तो विभाजन के समय में हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं किया गयाखेद है की पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेसी नेताओ ने इस संबंध में डा. भीमराव आंबेडकर के सूझ्भूझ भरे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया. जिन्ना ने भी हिन्दू-मुस्लिम जनसँख्या की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था. परन्तु मौलाना आजाद के पंजे में जकड़ी हुई कांग्रेस ने नादानी के साथ इसे अस्वीकार कर दिया. कांग्रेसी ऐसे अदूरदर्शी थे कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि जनसंख्या की अदला-बदली बिना खंडित हिंदुस्थान में भी सांप्रदायिक दंगे होते रहेंगे.

७. पाकिस्तान को अधिक क्षेत्रफल दिया गया,१९४६ के निर्णायक आम चुनाव मेंअविभाजित हिंदुस्थान के लगभग सभी (२३%) मुसलमनो ने पाकिस्तान के लिए वोट दिया ,परन्तु भारत के कुल क्षेत्रफल का ३०% पाकिस्तान के रूप में दिया गया. दुसरे शब्दों में उन्होंने अपनी जनगणना की अनुपात से अधिक क्षेत्रफल मिला ,यह जनसंख्या भी बोगस थी. फिर भी सारे मुस्लिम अपने मनोनीत देश में नहीं गए.

८. झूठी मुस्लिम जन-गणना के आधार पर विभाजन का आधार मानाकांग्रेस ने १९४९ तथा १९३१ दोनों जनगणनाओ का बहिष्कार किया. फलत:मुस्लिम लीग ने चुपके-चुपके भारत के सभी मुसलमानों को उक्त जनगणनाओ में फालतू नाम जुडवाने का सन्देश दिया. इसे रोकने वाला या जाँच करने वाला कोई नहीं था. अत: १९४१ की जनगणना में मुसलमानों की संख्या में विशाल वृद्धि हो गई. आश्चर्य की बात है कि कांग्रेसी नेताओं ने स्वच्छा से १९४१ की जनगणना के आंकड़े मान्य कर लिएयद्यपि उन्होंने उसका बहिष्कार किया था. उन्ही आंकड़ा का आधार लेकर मजहब के अनुसार देश का बटवारा किया गया. इस प्रकार देश के वे भाग भी जो मुस्लिम बहुल नहीं थे,पाकिस्तान में मिला दिए गए.

९. स्वाधीन भारत का अंग्रेज गवर्नर जनरल की सहमती दी....,गांधीजी और पंडित नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस ने मुर्खता के साथ माऊंट बैटन को दोनों उपनिवेशोंहिंदुस्थान और पाकिस्तान का गवर्नर जनरलदेश के विभाजन के बाद भी मान लिया. जिन्ना में इस मूर्खतापूर्ण योजना को अस्वीकार करने की बहुत समझ थी. अत: उसने २ जुलाई १९४७ को पत्र द्वारा कांग्रेस और माऊंट बैटन को सूचित कर दिया की वह स्वयं पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनेगा.परिणाम यह हुआ की माऊंट बैटन स्वाधीन खंडित बहरत के गवर्नर जनरल नापाक-विभाजन के बाद भी बने रहे.

१०. सीमा-आयोग का अध्यक्ष अंग्रेज पदाधिकारी को मनोनीत किया गया ,माऊंट बैटन के प्रभाव में,गांधीजी और पंडित नेहरु ने पंजाब और बंगाल के सीमा आयोग के अध्यक्ष के रूप में सीरिल रैड क्लिफ को स्वीकार कर लिया.सीरिल रैडक्लिफ जिन्ना का जूनियर (कनिष्ठ सहायक) थाजब उसने लन्दन में अपनी प्रैक्टिस आरम्भ की थी. परिणाम स्वरुपउसने पाकिस्तान के साथ पक्षपात और लाहौरसिंध का थरपारकर जिला,चटगाँव पहाड़ी क्षेत्रबंगाल का का खुलना जिला एवं हिन्दू-बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिला दिये

११. बंगाल का छल-पूर्ण सीमा निर्धारण किया गया,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदासीनता के कारण ४४ प्रतिशत बंगाल के हिन्दुओ को ३० प्रतिशत क्षेत्र पश्चिमी बंगाल के रूप में संयुक्त बंगाल में से दिया गया.५६ प्रतिशत मुसलमानों को ७० प्रतिशत क्षेत्रफल पूर्वी पाकिस्तान के रूप में मिला.
चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र जिसमे ९८ प्रतिशत हिन्दू-बौद्ध रहते है,एवं हिन्दू-बहुल खुलना जिला अंग्रेज सीमा-निर्धारण अधिकारी रैडक्लिफ द्वारा पाकिस्तान को दिया गया.कांग्रेस के हिन्दू नेता ऐसे धर्मनिरपेक्ष बने रहे की उन्होंने अन्याय के विरुद्ध मुँह तक नहीं खोला.

१२. सिंध में धोखे भरा सीमा-निर्धारण कियाजब सिंध के हिन्दुओ ने यह मांग की की सिंध प्रान्त का थारपारकर जिला जिसमे ९४ प्रतिशत जनसँख्या हिन्दुओ की थी,हिंदुस्थान के साथ विलय होना चाहिए,तो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने सिन्धी हिन्दुओ की आवाज इस आधार पर दबा दी की देश का विभाजन जिलानुसार नहीं किया जा सकता.परन्तु जब आसाम के जिले सिल्हित की ५१ प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने पकिस्तान के साथ जोड़े जाने की मांग की,तो उसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया.
बोलू: मजहब के आधार पर विभाजन-धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गांधी का खेल था... यदि गांधीजी पंडित नेहरु सच्चे धर्म-निर्पेक्षतावादी थे तो उन्होंने देश का विभाजन मजहब के आधार पर क्यों स्वीकार किया?
https://www.facebook.com/BapuKeTinaBandaraAbaBanaGayeHaiMa…/ फेस बुक व वेबस्थल की १७ जनवरी २०१४ की पुरानी पोस्ट 

बोलू: गांधी की आड़ में कांग्रेस में एक बड़ा खेल खेला , हिन्दू राज्य को ठुकराकरजब गांधीजी और नेहरु ने देश का विभाजन मजहब के आधार पर स्वीकार कियापाकिस्तान मुसलमानों के लिए और शेष बचा हिंदुस्थान हिंदूओ के लिएतो उन्हें हिंदूओं को तर्कश: :द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के अनुसार अपना हिन्दूराज्य स्थापित करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए था .यह पंडित नेहरु ही थे जिन्होंने स्वेच्छाचारी तानाशाह के समान अगस्त १९४७ में घोषणा की थी कि जब तक वे देश की सरकार के सूत्रधार है,भारत “हिंदू राज्य” नहीं हो सकेगा. कांग्रेस के सभी हिंदू सदस्य इतने दब्बू थे कि इस स्वेच्छाचारी घोषणा के विरुद्ध एक शब्द भी बोलने की भी उनमें हिम्मत नहीं थी.

सुनू: असांविधानिक धर्मनिरपेक्षतावाद के आड़ में कांग्रेस ने देश को धोखा दियाजब खंडित हिंदुस्थान को “हिंदू राज्य” घोषित करने के स्थान पर सत्ताधारी छद्म धर्मनिरपेक्षतावादीयों ने धूर्तता के साथ धर्मनिरपेक्षतावाद को ,१९४६ तक अपने संविधान में शामिल किये बिना हीहिन्दुओं की इच्छा के विरुद्ध राजनीति में गुप्त रूप से समाहित कर दिया.

बोलू : धर्म-निरपेक्षता एक विदेशी धारणा से वाहवाही बटोरने का खेल खेला ,यद्यपि गांधीजी और नेहरु “स्वदेशी के मसीहा” होने की डींगे मारते थेतथापि उन्होंने विदेशी राजनितिक धारणा ‘धर्म-निरपेक्षता’ का योरप से आयात कियायद्यपि यह धारणा भारत के वातावरण के अनुकूल नहीं थी.
देखू: धर्मविहीन धर्मनिरपेक्षता को पाखण्ड बनाया,यदि इंग्लॅण्ड और अमेरिकाईसाइयत को राजकीय धर्म घोषित करने के बाद भीविश्व भर में धर्म-निरपेक्ष माने जा सकते है,तो हिंदुस्थान को हिंदुत्व राजकीय धर्म घोषित करने के बाद भी,धर्म-निरपेक्ष क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता?पंडित नेहरु द्वारा थोपा हुआ धर्म-निरपेक्षतावाद धर्म-विहीन और नकारात्मक है.

देखू: इसी की आड़ में पूर्वी पाकिस्तान (बंगला देश) में हिन्दुओं का नरसंहार बेरहमी से हुआ और १९४७ में,पूर्वी पाकिस्तान मेंहिंदुओं की जनसंख्या कुल आबादी का ३० प्रतिशत (बौद्धों सहित) अर्थात डेढ़ करोड़ थी. ५० वर्षो में अर्थात १९४७ से १९९७ तक इस आबादी का दुगना अर्थात ३ करोड़ हो जाना चाहिए था.परन्तु तथ्य यह है कि वे घट कर १ करोड़ २१ लाख अर्थात कुल आबादी का १२ प्रतिशत रह गये है.१९५० में ५० हजार हिंदुओं का नरसंहार किया गया. १९६४ में ६० हजार हिन्दू कत्ल किये गए. १९७१ में ३० लाख हिन्दूबौद्ध तथा इसाई अप्रत्याशित विनाश-लीला में मौत के घाट उतारे गए. ८० लाख हिंदुओं और बौद्धों को शरणार्थी के रूप में भारत खदेड़ दिया गया. हिंदुस्थान के हिन्दू सत्ताधारियो द्वारा हिंदुओं को इस नरसंहार से बचने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

बोलू: हमारे देश में कांग्रेस ने हिदू विस्थापितों की उपेक्षा की गईयदि इज्रायल का ‘ला ऑफ़ रिटर्नप्रत्येक यहूदी को इज्रायल में वापिस आने का अधिकार देता है. प्रवेश के बाद उन्हें स्वयमेवनागरिकता’ प्राप्त हो जाती है.परंतु खेद है की हिन्दुस्थान के छद्म-धर्मनिरपेक्ष राजनितिक सत्ताधारी उन हिदुओं को प्रवेश करने पर अविलंब नागरिकता नहीं देतेजो विभाजन के द्वारा पीड़ित हो कर और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में अत्याचार से त्रस्त होकर भारत में शरण लेते है.

देखू: नेहरु ने लियाकत समझौता का नाटक खेलाजब विभाजन के समय कांग्रेस सरकार ने बार बार आश्वासन दिया था कि वह पाकिस्तान में पीछे रह जाने वाले हिंदुओं के मानव अधिकारों के रक्षा के लिए उचित कदम उठाएगी परन्तु वह अपने इस गंभीर वचनबद्धता को नहीं निभा पाई. तानाशाह नेहरु ने पूर्वी पकिस्तान के हिंदुओं और बौद्धों का भाग्य निर्माण निर्णय अप्रैल ८ १९५० को नेहरु लियाकत समझौते के द्वारा कर दिया उसके अनुसार को बंगाली हिंदू शरणार्थी धर्मांध मुसलमानों के क्रूर अत्याचारों से बचने के लिए भारत में भाग कर आये थेबलात वापिस पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली मुसलमान कसाई हत्यारों के पंजो में सौप दिए गए
.
बोलू: हां लियाकत अली के तुष्टिकरण के विरोध कने के लिए लिए वीर सावरकर गिरफ्तार कर लियाजब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को पंडित नेहरु द्वारा दिल्ली आमंत्रित किया गया तो छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी कृतघ्न हिन्दुस्थान सरकार ने नेहरु के सिंहासन के तले,स्वातंत्र वीर सावरकर को ४ अप्रैल १९५० के दिन सुरक्षात्मक नजरबंदी क़ानून के अन्दर गिरफ्तार कर लिया और बेलगाँव जिला कारावास में कैद कर दिया.पंडित नेहरु की जिन्होंने यह कुकृत्य लियाकत अली खान की मक्खनबाजी के लिए कियालगभग समस्त भारतीय समाचार पत्रो ने इसकी तीव्र निंदा की. लेकिन नेहरू के कांग्रेसी अंध भक्तों ने कोई प्रतिक्रया नहीं की

देखू१९७१ के युद्ध के बाद , हिंदू शरणार्थियो को बलपूर्वक बांग्लादेश वापिस भेजा
श्रीमती इंदिरा गाँधी की नेतृत्व वाली हिन्दुस्थान सरकार ने बंगाली हिंदूओं और बौद्ध शर्णार्थियो को बलात अपनी इच्छा के विरुद्ध बांग्लादेश वापिस भेजा.इनलोगो ने इतना भी नहीं सोचा कि वे खूंखार भूखे भेडीयो की मांद में भेडो को भेज रहे है.

बोलू: बंगलादेशी हिंदुओं के लिए अलग मातृदेश की मांग को इंदिरा गांधी ने अपने दुर्गा देवी की छवि को आंच न आये , इसलिए वह भी अपने निहित स्वार्थों की वजह से इसे अनदेखा कर दिया
सूनू: यह आज तक कांग्रेस का दुग्गला पण रहा है,एक तरफ तो , यदि हिन्दुस्थान की सरकार १० लाख से भी कम फिलिस्थिनियो के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक अलग मातृभूमि का प्रस्ताव रख सकती है तो वह २० लाख बंगाली हिंदुओं और बौद्धों के लिए जो बांग्लादेश के अन्दर और बाहर नारकीय जीवन बिता रहे है उसी प्रकार का प्रस्ताव क्यों नहीं रख सकती.

देखू: इसके पहले कि और एक विडबन्ना , जो बांग्लादेश के ‘तीन-बीघा’ समर्पण कर दियाजब
१९५८ के नेहरु-नून पैक्ट (समझौते) के अनुसार अंगारपोटा और दाहग्राम क्षेत्र का १७ वर्ग मिल क्षेत्रफल जो चारो ओर से भारत से घिरा था,हिन्दुस्थान को दिया जाने वाला था .हिन्दुस्थान की कांग्रेसी सरकार ने उस समय क्षेत्र की मांग करने के स्थान पर १९५२ में अंगारपोटा तथा दाहग्राम के शासन प्रबंध और नियंत्रण के लिए बांग्लादेश को ३ बीघा क्षेत्र ९९९ वर्ष के पट्टे पर दे दिया.

बोलू: लेकिनअब तो वोट बैंक के तुष्टीकरण की भी कांग्रेस ने सभी हदें पार कर दी , जब केरल में लघु पाकिस्तानमुस्लिम लीग की मांग पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने तीन जिलोत्रिचूर पालघाट और कालीकट को कांट छांट कर एक नया मुस्लिम बहुल जिला मालापुरम बना दिया .इस प्रकार केरल में एक लघु पाकिस्तान बन गया. केंद्रीय सरकार ने केरल सरकार के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया.

आयें ...हम प्रतिज्ञा ले.. इस राष्ट्रवादी धागे को और मजबूत बनाएं...

Let's not make a party but become part of the country. I'm made for the country and will not let the soil of the country be sold. के संकल्प से गरीबी हटकरभारत निर्माण सेइंडिया शायनिंग सेहमारे LONG – INNINGसे, “FEEL GOOD FACTOR” से देश के अच्छे दिन आयेंगें..,
साभार
www.meradeshdoooba.com (a mirror of india) स्थापना २६ दिसम्बर २०११ कृपया वेबसाइट की ७००  प्रवाष्ठियों की यात्रा करें व E MAIL द्वारा नई पोस्ट के लिए SUBSCRIBE करें - भ्रष्टाचारीयों के महाकुंभ की महान-डायरी

सन १९४२, मैं सिंध का प्रधानमंत्री अल्लाह बख्श..,मै, हिन्दुस्थान के टुकड़े होने नहीं दूंगा.., चर्चिल.., आपके अखंड हिन्दुस्थानअल्लाह बख्श देश का हीरा था गांधी इस राष्ट्रवादी की हत्या के विरोध में आप चुप रहकर,अहिंसा की आड़ में महात्मा से “हीरो” बनने का खेल, खेल रहे थे .. १४ मई १९४३. मुस्लिम लीग द्वारा अल्लाह बख्श की हत्या की अपमान जनक टिप्पणी के विरोध में, मैं तुम्हारी सभी उपाधियाँ फेंक देता हूँ..



सन १९४२, मैं सिंध का प्रधानमंत्री अल्लाह बख्श..,मै, हिन्दुस्थान के टुकड़े होने नहीं दूंगा.., चर्चिल.., आपके अखंड हिन्दुस्थान की अपमान जनक टिप्पणी के विरोध में, मैं तुम्हारी सभी उपाधियाँ फेंक देता हूँ..

अल्लाह बख्श देश का हीरा था गांधी इस राष्ट्रवादी की हत्या के विरोध में आप चुप रहकर,अहिंसा की आड़ में महात्मा से हीरोबनने का खेल, खेल रहे 
थे ..
१४ मई १९४३. मुस्लिम लीग द्वारा अल्लाह बख्श की हत्या
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स्वतंत्रता संग्राम का एक गुमनाम नायक

स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा अल्लाह बख्श की शहादत के ७० साल  होने वाले हैं। लेकिन उनकी कुर्बानी और योगदान से लोग आमतौर पर अनभिज्ञ हैं। ज्यादा दुखद तो यह है कि हमारी सरकार ने भी अल्ला बख्श के बलिदान के बारे में चुप्पी साध रखी है।

अल्लाह बख्श सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान) में इत्तिहाद पार्टी के नेता थे। इत्तिहाद पार्टी सिंध के हिंदुओं-मुसलमानों की एक साझा पार्टी थी। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान हुआ, तो अल्लाह बख्श के नेतृत्व में सिंध में इसी पार्टी की सरकार थी। जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने इंग्लैंड की पार्लियामेंट में भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में अपशब्द कहे, तो सिंध के इस मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का सदस्य न होने के बावजूद अंग्रेज सरकार की तमाम उपाधियों को लौटा दिया। इस नाफरमानी से नाराज गवर्नर ने 10 अक्तूबर, 1942 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी।
सिंध हालांकि मुस्लिम बहुल राज्य था, लेकिन अल्लाह बख्श ने वहां कभी मुस्लिम लीग को पैर जमाने का मौका नहीं दिया। वह अल्लाह बख्श ही थे, जिन्होंने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव के खिलाफ पूरे देश के मुस्लिम संगठनों और नेताओं को एक मंच पर जमा करने का बीड़ा उठाया। 1940 में उन्होंने मुस्लिम लीग विरोधी जनाधार वाले मुसलमान नेताओं के साथ मिलकर आजाद मुस्लिम कांफ्रेंसका दिल्ली में आयोजन किया, जिसमें देश भर के 1,400 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। उस समय ज्यादातर अंग्रेजी अखबार लीग समर्थक थे, पर उन्हें भी यह मानना पड़ा था कि यह देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे बड़ा आयोजन था। इसमें पिछड़े व कामगार मुसलमानों की संस्थाओं की बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी थी। दिल्ली के कंपनी बाग में एक विशाल जन समूह के सामने मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत की धज्जियां उड़ाते हुए उन्होंने पूछा था कि मुसलमान एक राष्ट्र होते, तो वे इतने सारे अरब राष्ट्रों में क्यों बंटे होते? उनका तर्क था कि पाकिस्तान की योजना अव्यावहारिक है। यह पूरे देश के लिए और खासकर मुसलमानों के लिए हानिकारक है।
वह मुस्लिम लीग के लिए एक बड़ा रोड़ा साबित हो रहे थे। 1942 में उनकी सरकार की बर्खास्ती के बाद सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग ने वीर सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के साथ मिलकर मिली-जुली सरकार बनाई। लीग के लोग इससे खुश नहीं हुए। 14 मई, 1943 को मुस्लिम लीग ने एक षड्यंत्र करके उनकी हत्या करा दी। उनकी हत्या के बाद सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग को फैलने से कोई नहीं रोक सका।
आजादी के बाद पाकिस्तान के हुक्मरानों ने तो इतिहास के पन्नों से इस बहादुर स्वतंत्रता सेनानी के कारनामों को मिटा दिया। लेकिन अखंड भारत के इस महान समर्थक को हम क्यों भूल गए?
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१. जय-जय वीर सावरकर.., पढ़े.., इतिहास के कब्र में दफ़न , अनकही सच्चाई... (२८ मई को सावरकर के जन्म दिवस पर विशेष .... ) जिन्होंने अंग्रेजों के काटों को काटने के बाद, ४० से अधिक कांटो के बारे में भविष्यवाणी की थी

२. आज इसी काँटों की वजह से शेर दिल देशवासी खून से लहूलुहान है..., राष्ट्रवाद के प्रति उसका खून सूख गया ..., इसी वजह से सत्ता-नौकरशाही-माफिया-मीडिया-कॉर्पोरेट इस देश की सुखी धरती में कारपेट के सुखी जीवन से गरीबों का निवाला छीनकर अपना पेट भर रहें हैं..

, वीर सावरकर ने १९४२ के आन्दोलन को कांग्रेस की चाटुकारिता को देख कर भविष्यवाणी कर दी थी..., यह भारत छोडोआन्दोलन नहीं भारत तोड़ोके खेल का आन्दोलन है..

४ देश के विभाजन से पहले मुस्लिम लीग की नापाक योजनाओं के खिलाफ हिन्दुस्तान के मुसलबानों को जमीनी स्तर पर एक रूप से एक जुट करने वाले अल्लाह बख्श अज्ञात व्यक्ती नहीं थे..

५. वे १९४२ के भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान इत्तेहाद पार्टी (एकता पार्टी) के नेता के रूप में वहां के प्रधानमंत्री बनें , इस पार्टी ने सिंध में मुस्लिम लीग को पैर जमाने नहीं दिया

६. अल्लाह बख्श और उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं थी लेकिन जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में अपने भाषण में भारत छोड़ोंआन्दोलन पर अपमान जनक टिप्पणी की तो अल्लाह बख्श ने विरोध ब्रिटिश सरकार की सभी उपाधियां लौटा दी.

७. ब्रिटिश शासन उनके विरोध को पचा नहीं पाया और गवर्नर सर ह्युग डाव ने १० अक्टूबर १९४२ में उन्हें बर्खास्त कर दिया..., अखंड हिंदुस्तान की आजादी के लिए एक मुसलबान का यह महान त्याग इतिहास के अंधेरे में दबा दिया

८. मुस्लिम लीग को इस महान योद्धा को ख़त्म करना जरूरी हो गया था क्योंकि वे पकिस्तान के विरोध में भारत भर में आम मुसलमानों को एकजुट करने में सफल हो रहे थे.

९. इसके अलावा एक धर्म निरपेक्षता वादी नेता और पकिस्तान के निर्माण के विरोधी के रूप में सिंध में बेहद लोकप्रिय थे और पकिस्तान के गठन में बड़ा रोड़ा थे क्योंकि सिंध के बिना पश्चिमी क्षेत्र में इस्लामी राष्ट्र का गठन हो ही नहीं सकता था.

१०. १४ मई १९४३ में अल्लाह बख्श की ह्त्या, मुस्लिम लीग के भाड़े के हत्यारों द्वारा कर दी गई..

११. यह सर्व विदित तथ्य है कि १९४२ में अल्लाह बख्श सरकार की बर्खास्ती और १९४३ में उनकी ह्त्या ने मुस्लिम लीग के प्रवेश का रास्ता साफ़ कर दिया था की राजनैतिक व शारीरिक ह्त्या और उनकी सांप्रदायिक विरोधी राजनीती को चोट पहुँचाने में ब्रिटिश शासकों और मुस्लिम लीग की सैंड सांठ गांठ से हिन्दुस्थान को खंडित करने का रास्ता साफ़ से सफल हो गया

१२ . वीर सावरकर ने अल्लाह बख्श की बर्खास्ती.., इस राष्ट्रवादी के जज्बे की भूरी-भूरी प्रशंसा की व उनकी ह्त्या का विरोध कर एक सच्चा हिन्दुस्थानीका बलिदान , कह सम्मान दिया.., जबकि कांग्रेस के नेहरू व गांधी मुंह में पट्टी बांधकर.., अहिंसा का जाप जपते रहे...