Saturday 27 December 2014



संजय दत्त को पैरोल , और सलमान खान के कानूनी पेपर रोल खो गए थे, पुलिस व कोर्ट का दल dabang के शराबी रिश्वत से झूम रहें थे.., एक दल दूसरे पर आरोप लगा रहा था , बड़ी मश्तक्क के बाद, आखिर में ज़ेरॉक्स कॉपी मिल गयी.. और मूल प्रति भी..., और मामला ३ महीने आगे.., धकेल दिया गया..., अब जनवरी २०१५ में अदालत का फैसला आने की घोषणा की गयी है.. क्या इस फैसले में क़ानून भी फिसल कर , अब नई तारीख देगा...

१९९९ के हिरन केस का, हरण कर.., जज शाही व नौकर शाही को धन्ना बनाकर.., धत्ता बताया है...

याद रहे.., सैफ अली के पिता , पूर्व क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी भी इसी तरह के केस में, जमानत लेकर, क़ानून के दुलारे बनकर.., अल्ला को प्यारे हो गए

इसके बावजूद इसं हाई प्रोफायल के सुपर लोगों के लिए हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुले है... और ३० साल की राहत पाने के लिए

दोस्तों.., सेशन कोर्ट तो, गरीबों के लिए शोषण कोर्ट व कारपेट पर चलने वालों, उच्च व राजनैतिक घरानों के लिए सुशोभित कोर्ट है...

अभी हाल ही के, संजय दत्त के १४ दिनों के पैरोल पर केंद्र ने, अभिनेता संजय दत्त को बार-बार पैरोलदिए जाने के मुद्दे पर केंद्र ने महाराष्ट्र सरकार से रिपोर्ट मांगी है। महाराष्ट्र सरकार ३० दिनों बाद जांच रिपोर्ट देगी ..., और संजय दत्त तो इस दरम्यान, १४ दिनों की मजा ले लेगा.,इसे कहते है...,सांप नहीं मरा और लाठी टूट गयी..,

वही १९९२ के केस की कैसर से पीड़ित मुस्लिम महिला को बार-बार निवेदन के बावजूद अब तक पैरोल नही मिल.पाई है....

बड़े शर्म की बात है.., केंद्र व महाराष्ट्र में भा.ज.पा.सरकार के सात्तारूढ होने के बावजूद इन अपराधियों को विशेष सुविधा देकर इनके अच्छे दिन जरूर ला रही है....

जमानत को अमानत मानकर लाखों अमीर अपने अपराध का आनन्द लेकर, अपराध के नन्द गोपाल बनकर देश को लूट रहें है.., देश में ७०% से ज्यादा गरीब अपराधी, जिनके पास जमानत के लिए जमा करने का धन नहीं है…इसलिए वे अपनी सजा से १० गुना सजा भुगत / सड़ रहे है…

वहीं, २४ दिसंबर २०१४ की दूसरी ताजा खबर...,मॉडल जेसिका लाल की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सिद्धार्थ वशिष्ठ उर्फ मनु शर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट ने 30 दिन का पैरोल दिया है ताकि वह पोस्ट ग्रेजुएशन की परीक्षा में बैठ सके.

याद रहे.., नवम्बर २००९ में कांग्रेस की सीएम शीला दीक्षित ने सिफारिश कर दी। मनू की पैरोल पर मात्र 20 दिन में फैसला कर दिया गया, यही नहीं लंबे समय से दिल्ली सरकार के पास 98 याचिका पैरोल के लिए पड़ी थी,, लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं किया गया, हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को लताड़ लगाई थी, और इस पैरोल के हनीमून के दौरान, मनु शर्मा पब में मारपीट करते पकड़ा गया

तीसरी पुरानी खबर तहलका के सम्पादक, बलात्कार के राजपाल, तरुण तेजपाल ने अपनी मां की मृत्यु में ३० दिनों की पैरोल लेकर, दिल्ली में क़ानून को छेद पाल कर..., अब तो जमानत लेकर आजाद घूम रहें हैं..

वही आशाराम बापू को पीड़िता के बयान बदलने के बावजूद.., अपराधी घोषित बनाए रखा है..

देश में नक्सलवाद का जन्म की जननी व बढ़ती हुई घटना इसी प्रतिशोध की भावना है... जाने कुछ घटनाएं...

लालू के राज में , पुलिस बल को आधुनिक हथियार से लैस कर, ६ महीने तक बिहार पुलिस अभिमान में रही कि… नक्सली हमारे आधुनिक हथियारों से डर गई है, और वे निश्चित हो कर. हर रात में खर्राटे लगाकर सोते रहे.. एक रात नक्सलीयो ने ,,अपनी वर्दी बदलकर सोये.., खर्राटेदार पुलिस बल पर हमला कर ३०० से ज्यादा पुलिसों की ह्त्या कर दी..,

और जेल में बंद,जमानत की रकम ने होने से, अपराध से ज्यादा सजा पाने वाले ७०० से ज्यादा गरीब कैदीयों को छुडाकर , बिहार पुलिस का आधुनिक हथियारों का जखीरा भी लूट कर ले गयी ….,सरकार, नक्सली हिंसा के मूल को जाने, पिछले प्रधानमंत्री भी बार-बार कहते थे…,मुझे पता है गरीबों का बहुत शोषण हुआ है… और नक्सलीयों इस जंग छोड़कर.., हमारी विचार धारा से जुड़े, ताकि …??? और , हमें तुम्हारी धरती की खुदाई करने दे … और वतन को उजाड़ने में हमें सहयोग दे …

याद रहें..., नक्सलवाद के जन्म होने से पहिले बिहार (आज के छतीसगढ़) के बिसरा मुंडा ने अग्रेजी सेना से लोहा लिया... जो अन्याय के विरोध में अल्प आयु में अपना जीवन समाप्त कर दिया

लोग भगत सिंग को तो जोरों शोरों से जानते है..., लेकिन शेष भारत के लोग इनके बलिदान से अनभिज्ञ हैं...

बिरसा मुंडा 19वीं सदी के एक प्रमुख आदिवासी जननायक थे। उनके नेतृत्वे में मुंडा आदिवासियों ने 19वीं सदी के आखिरी वर्षों में मुंडाओं के महान आन्दोलन उलगुलान को अंजाम दिया। बिरसा को मुंडा समाज के लोग भगवान के रूप में पूजते हैं.

उनका आंदोलन ऐसे दौर में शुरू हुआ था जब ब्रिटिश शासन का आतंक था। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और छोटी सी जिंदगी में ही इतना कुछ हासिल कर लिया जितना कई लंबी उम्र के बावजूद नहीं हासिल कर पाते.

1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला.., 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी

लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।

जनवरी 1900 में डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे, उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे.., बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं, अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये.
बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें मात्र २५ साल की उम्र में 9 जून 1900 को राँची कारागार मे लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई-अड्डा भी है।
लालू रांची की बिसरा मुंडा जेल में बंद थे, चारा घोटाला मामले में दोषी पाए जाने पर लालू को पांच साल की सजा सुनाई गई थी लेकिन क़ानून के पेंच से अब वे जमानत से बाहर आकर... अब,अपनी जमीन राजनैतिक जमीन खोजने मे जी-जान से जुटे हैं,,,

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