Thursday 14 August 2014



“न जात पर न पात पर , मुहर लगाओ राष्ट्रवाद पर..,” इस मंत्र से आज मोदी सरकार ने एक चमत्कार से जातिवाद,भाषावाद,अलगाववाद,घुसपैठीयों के वोट बैंक के चाटुकार को राष्ट्रवाद के गर्म चिमटे से भेद दिया है...

यह कार्टून सम्मानीय राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी को समर्पीत ..., आज के प्रधानमंत्री पद की गरीमा के महत्व को देशवासीयों को समर्पण सन्देश से राष्ट्रवादी भावनाओं की बयार की शुरूवात..इस शेर की अब होगी है दहाड़, सीमा पार लुटेरे देशों व आतंकवादियों को मिल रही लताड़, स्वाभिमान से ललकार..., अब हम हो गए होशियार, हम हों रहें कामयाब हर दिन.., लुटेरे देशों व आतंकवादियों के मिलने वाले सुर अब हो रहें बेकार

१. “न जात पर न पात पर , मुहर लगाओ राष्ट्रवाद पर..,” नहीं तो.., यह, हमारे गणतंत्र दिवस/स्वतंत्रता दिवस व संविधान के प्रति बेईमानी है..... दोस्तों....बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है. संविधान में जितने क़ानून है, उससे ज्यादा छोटे मोटे घोटालों की गिनती करें तो वे कहीं ज्यादा है..., हमारे घोटाले तो संविधान से भी महान है ...
२. जनता पार्टी के एक किसान नेता चौधरी चरण सिंग को धोखे से, इंदिरा गांधी ने उनके चरण छू कर प्रधानमंत्री पद का लालच देकर, चरण सिंग की राजनैतिक आकांक्षाओं की हत्या कर, उनका कान खीच कर गद्धी से नीचे उतारा, बाद में वे राष्ट्रीय स्तर पर संतरी के लायक भी नहीं रहे
इसके पश्चात, इंदिरा गांधी ने सिर्फ एक नारे से चुनाव जीत लिया. “न जात पर न पात पर, मुहर लगाओ हाथ पर,” जनता ने इस नारे को इंदिरा गांधी की “एक राष्ट्रवादी” विचार की धारा से देश “दिव्यमान” होगा, इस आश से वोट दिया, और इंदिरा गांधी ने रातों रात अपनी “इंदिरा कांग्रेस” की सत्ता पर काबिज हो गई
३. सत्ता में आते ही , जनता का ध्यान भटकाने के लिए यह नारा घातकतम बन गया” न जात पर न पात पर , मुहर लगाओ आतंकवाद पर” से देश की राजनीती को “पकड़” का हत्यार बनाया, जिसका अभिशाप आज भी हमारा देश भुगत रहा है ....
४. सत्ता एक अंधियारी गली होती है, उसमे “दिव्यमान” व्यक्ति ही राष्ट्रवाद के प्रकाश से इस गलियारे में चल सकता है , यदि उस नेता के जीवन मे प्रकाश नहीं है तो उसकी की ही पार्टी का कोइ नेता ही उसकी कुर्सी छीन लेता है
५. १९४७ में..., मोहनदास करमचंद गांधी , शरम का चन्द्र की गंदी राजनीती कर , लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए प्रधानमंत्री , लौह पुरूष सरदार पटेल का लहू पीकर , जवाहरलाल नेहरू में भरकर, संविधान की धज्जियाँ उड़ाई ,
६. कहते है , सही शुरूवात करों तो , आधा काम पूरा हो जाता है....१९५२ का संविधान तो नेहरू ने अंगेजी में व अंग्रेजों की स्मिता को ध्यान में रखकर , इसे कोपी ...पेस्ट ... कर आज तक कॉपी राईट बना रखा है, याद रहे..., आज भी हमारे देश का संविधान व अंग्रेजों द्वारा गुलाम देश आयरलैंड का संविधान एक ही है
७. १९५२ से कांग्रेस के “चुनाव चिन्ह” में “दो बैलों की जोड़ी” से, जवाहरलाल नेहरू ने चुनावी नारा “आराम हराम है” के अपने अय्याशी पन को छिपाकर जीता , सत्ता में आते ही इन दो बैलों को सत्ता की विदेशी शराब पीला कर बेहोशी में रखा.... और बिना किसान के, देश की उपजाऊ जमीन को बंजर बनाकर , देश में भूखमरी पैदाकर, विदेशी अनाज से देशवासियों का लालन पालन किया, हमें ऐसा घटिया/सड़ा अनाज खिलाने को मजबूर किया गया, जो कि अमेरिका के सूअर भी नहीं खाते थे ... हमारे सेना के जवानों के हाथों में बन्दूक थमाने की बजाय “शांती का गुलाबी फूल” थमा दिया .... और “हिन्दी –चीनी , भाई-भाई” के नारे में उसकी महक डालने से, नोबल पुरूस्कार जीतने की महत्वकांक्षा में सेना को नो बल कर दिया... हमारे से दो साल बाद, आजाद हुए “चीन” ने अपनी ताकत बढाते हुए .... मौके की ताक में हमारे देश ४६ हजार वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर , नेहरू को थप्पड़ मार कर , नेहरू का नारा “हिन्दी –चीनी , खाई –खाई” मे बदल दिया और नेहरू का “शांती” के नारें की देशवासियों के सामने पोल खोल दी
८. जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद . प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने इन दो बैलों का किसान बनकर ,अपने साढ़े चार फीट की काया को, राष्ट्रवादी बल से , इन अपाहिज हुए जवानों व किसानों में एक नया आत्मबल डाल कर , “जय जवान – जय किसान” के नारा को १९ महीने में सार्थक बना दिया. लेकिन...., देश के कांग्रेसी तो वंशवाद से भयभीत थे ... लेकिन उससे कहीं ज्यादा भयभीत विदेशी ताकतें थी, उन्हें अहसास हो चुका था {यदि हमारा देश दो साल और “राष्ट्रवादी प्रवाह” से चलेगा तो हम हिन्दुस्तान आत्मनिर्भर बन जाएगा, और कोई ताकत उस पर राज नहीं कर सकेंगी} इसलिए , देश के “लाल” को सुनोयोजित षड़यंत्र से मारकर, उन्हें दूध में जहर दे कर “नीली” काया में उनके पार्थीव शरीर को लाया गया , हमारे देशी कांग्रेसी ताकतों ने भी इसे हृद्याधात से प्राकृतिक मौत से, बिना पोस्टमार्टम के, डर से... कही पोस्टमार्टम करने पर , देशी व विदेशी ताकतों का पोस्टमार्टम न हो जाए ... आनन – फानन में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का शव दाह कर दिया , उनकी पत्नी अंत तक गुहार लगाती रही , मेरे पति की हत्या की जांच हो...
९. वही राजीव गांधी ने आस्था के वोट से , राष्ट्रपती ज्ञानी जैल सिंग ने उन्हें स्वंयभू प्रधानमंत्री बनाकर , “मेरा भारत महान” के अति अफीमी नारे से..., देश में महान घोटालों से, ६० करोड़ के बोफोर्स घोटाले से श्रंखला की शुरूवात कर, बीज बोकर , जो अंत में ४०० करोड़ रूपये, इस जांच में खर्च कर , क्वात्रोची अब अपने कब्र में भी ऐश कर रहा है...आज “आम आदमी के हाथ” के नारों से मल्टी फ़ोर्स घोटालों से , देश के नेताओं के काले धन के सितारें इतने चमक रहे है कि वे देश के राष्ट्रवादी सूरज को अपने काले धन के बादलो से ढक कर , देश को धनी अंधियारी में धकेल दिया है..... यह एक बिवंड़ना कहे कि घोटालों की जांच के बीच ही राजीव गांधी को “भारत रत्न” दे दिया...!!!!!!!!!!, 

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