Wednesday 26 February 2014



डूबते देश की कहानी...., वंशवाद और माफियावाद की खाद से, खा गई स्विस बैंक..., हमारी हरियाली का राष्ट्रवाद... से अब बनी आबाद www.merdeshdoooba.com 
हमारे संविधान के बंद कर दिए कान...
काले मन वाले बने उजियाले तन...
लुच्चे टुच्चे , उच्चके बने संविधान की शान
वोट बैंक की दीक्षा की महिमा से 
जाते-जाते अपने कर्मों से.. जनता के ताबूत
हर गल्ली मुह्ह्ल्ले में पुतले बनाकर... अब निकले साबूत
गरीबी हटाओं , आराम हराम है, मेरा भारत महान
माफियाओं के मन की मुस्कान बनी “भारत निर्माण” से एक नयी जान
जनता लहूलुहान
योजनाओं को भोजनाएं बनाकर कर रहें बखान
आ कर दंश देने वाले “आदर्श नेताओं” की अब बन गई “गर्व की पहचान”

Saturday 22 February 2014



मोदी से...!!!, सत्ता के भोगी ...भाग के डर से ...एक दुसरे से फेककोल का जोड़ बना रहें है...
यह राष्ट्रवाद की आंधी है...., गंदी राजनीती की कुर्बानी (आत्महत्या) है, 
अब चलेगा किसानों का ट्रेक्टर, सीमा पर जवान बनेगा रिएक्टर ,
साक्षरता, प्रतिभा के जज्बों से देशवासी बनेगा, अपने हुन्नर का डॉक्टर. 



“मेरा संविधान महान यहां हर माफिया पहलवान” ........!?!?! ........!?!?! ........!?!?!
क़ानून तो कब का बिक चुका है..., माफियाओं ने तो अब देश को भी बेच दिया है...,
मेरे वेबस्थल का स्लोगन है, “सत्ता मेवा है..,इसकी जय है” “मेरा संविधान महान..., यहां हर माफिया पहलवान” 
अब बना पेरोल, अमीरों का पेपर रोल , चरित्र के गंदे दाग पोछने का टिस्यू पेपर..टॉयलेट पेपर , क्या राष्ट्रपति भी इस भूमिका में प्रण रोल की भूमिका निभायेंगे. www.meradeshdoooba.com
जरूर पूरा पढ़े., यह पैरोल नहीं, अमीरों का पे- रोल है , मनी मून से कैसे हनी मून बनाया जाता है कैसे क़ानून को थप्पड़ मारा जाता, इसका ज्वलंत उदाहरण है , २५ रूपये का "बावर्ची" अब बना यरवदा जेल का "वर - देवा" खिलाड़ी..., बावर्ची, अब बन गया है जेल अधिकारियों का जेब खर्ची..., जेल में शराब से पैरोल को “पे” कर क़ानून को भी बनाया बावर्ची.. मनी मून से हनी मून के पेड रोल से क़ानून का बनाया भुरता
संजय दत्त को क़ानून के रक्षकों की संजीवनी ..
शीला दीक्षत की विशेष दीक्षा से जेसिका लाल के अपराधी, मनु शर्मा को पैरोल पर छोड़ा गया था, और वह पब (शराबी जोड़ों का मयखाना) में नशे में धुत्त मिला ....
आज देश में छोटे अपराधी व पाकेटमार , जेल में अपने अपराध से कई गुना ज्यादा की सजा से सड़ रहें है..??, क्योंकि उनके पास जमानत के लिए पैसे नहीं है.. वहीं माफिया “संविधान” में माफ़ +किया शब्द से गर्वित है, मेरे वेबस्थल का श्लोगन है.. “मेरा संविधान महान..., यहाँ हर माफिया पहलवान “... क़ानून इनकी तेल मालिश कर इन्हें इतना मुस्टंडा बनता है कि ६०० जमानत के बाद भी इनके चेहरों की लाली पर , न्यायाधीश के मुस्कुराते चहरे दिखते है.., बिकते क़ानून दिखाते हैं..
Posted in website on 17 October 2012. , कुछ अंश
आज का कानून. (कान + ऊन = क़ान मे ऊन= कानून बहरा हो गया है), अपराधी की पुस्तिका है, न्यायालय उनकी पाठशाला और जेल उसकी कार्यशाला है
इसमे अपराधी के लिये एक राहत का शब्द है जमानत…… ??????????
यह जमानत शब्द अपराधी के लिये अमानत बन गया है
इसमे एक अग्रिम जमानत भी है, जो अपराधी , अपराध करने से पहले या अपराध के तुरंत बाद ले लेता है और संविधान मुँह ताकता रहता है ?
अपराधी, जमानत के आड मे देश की अमानत (धरोहर ) बन जाता है

आज का कानून – मेरे विचार ….
इस देश न्याय पांने के लिये किसी भी व्यक्ती को, एक मकडी के जाल मे फसकर, मकडी (कानून) से लडना पडता है, इस जाल से उलझते- उलझते उसकी शारीरिक , मानसिक ताकत व घर बार बिक जा ता है, और क्या मिलता है? तारीख पर तारीख , न्याय पाने के चक्कर मे पीढिया गुजार दी जाती है…?? , घर मे कागजो के पुलीदों का ढेर , कहते है कानून मे कंकाल के अन्दर कंकाल होते है , इसमे उलझते जाते है.
आज न्याय की , “एक बन्दर और दो बिल्ली की कहानी गुजरे जमाने की बात हो गइ है, आज न्याय का बन्दर, अपने साथ दो बन्दर रखकर, न्याय के लिये तडफती बिल्लीयो को कहते है, न्याय के तराजू के पलडे की रोटी खत्म हो गई है, दोनो का पलडा एक समान है. जाओ, आगे न्याय चाहिए तो अपने घर बार बेच कर रोटी का जुगाड करो, “
आज न्याय तो नही मिलता है, हाँ, न्याय के नाम पर गरीबी जरूर मिलती है ?
इंडिया के कानून के शब्द कोश मे एक महत्वपूर्ण शब्द है प्राकृतिक न्याय ,इस शब्द के आड मे वकील बहस कर जज को झक झोर देता , जिसने, जितने ज्यादा व्याख्या (दलील) की क्षमता वह उतना बडा वकील कहलाता है
इस प्राकृतिक न्याय ने देश ने प्राकृतिक सौन्दर्य खो दिया है, भू मफिया जमीन , व दुसरे माफिया जनता व देश को लूट रहे है
आज एक मुकदमे का फैसला आने मे कम से कम 20-40 साल का समय लग जाता है , इस्का अर्थ हुआ के हम जज, पुलिस, वकीलो को बिना न्याय के वेतन दे रहे है
एक जज का कार्यकाल 2-4 साल का होता है, नया जज आने पर उसे मुकदमे का अध्धन करना पडता है, तारीख पर तारीख लगती है, जब तक वह मामले को समझने लगता है तो वह सेवांनृवितहो जाता है
प्रेमचन्द कि कहानी मे लिखा गया है, अदालते मतलब –कागजी घोडे दौडाना, इस कागजी घोडो पर बैठकर जजो वकीलो व पुलीसौ की फौजे आनन्द उठाते हुए अपनी आजीविका के साथ फरियादी को लूट रही है
किसी ने कहा है, “सभी कानून बेकार है अच्छे लोगो को उनकी जरूरत नही होती है और बुरे लोग उससे सुधरते नही है”,
आज के माहौल मे बुरे लोग सिर्फ सुधरते है औए वे अपनी सम्पती व सत्ता का अधिकार कर देश को चला रहे है,
एक ओटो रिक्शा के पीछे के लिखा था “सत्य परेशान होता है, लेकिन पराजित नही होता”
आज के मौजुदा हलात मे सत्य इतना परेशान होता है कि पराजित नही होने से पहले आत्महत्या कर लेता है – उदाहरण किसान आत्महत्या,और मध्यम वर्ग की आम जनता, गरीबी व भूखमरी से आत्महत्या के लाखो खबरे अखबारो मे पढने अखबारों मे मिलती है.
दुनिया के जिस देश मे प्रतिशोध वाला कानून है, वहा सबसे कम अपराध होते है. हमारे संविधान से न्याय न मिलने से हजारो फरियादी अपराधी बन चुके है, और परम्परागत अपराधी करोडपती है
अग्रेज लार्ड मैकाले का कानूनी सिद्धांत –
मैकाले ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC). ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ “I” का मतलब Irish है वहीं भारत में इस “I” का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है।
मैकोले का कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने अभी (आज मुझे कहना……. है ..????) मे Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी। ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में। ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि::
“मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा। इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा।“ वो आगे लिखता है कि
“जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा।”
ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के 65 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है? कारण यही IPC है। IPC का आधार ही ऐसा है।

Wednesday 19 February 2014

यह पैरोल नहीं, अमीरों का पे- रोल है , मनी मून से कैसे हनी मून बनाया जाता है कैसे क़ानून को थप्पड़ मारा जाता, इसका ज्वलंत उदाहरण है , २५ रूपये का "बावर्ची" अब बना यरवदा जेल का "वर - देवा" खिलाड़ी..., बावर्ची, अब बन गया है जेल अधिकारियों का जेब खर्ची..., जेल में शराब से पैरोल को “पे” कर क़ानून को भी बनाया बावर्ची.. मनी मून से हनी मून के पेड रोल से क़ानून का बनाया भुरता
संजय दत्त को क़ानून के रक्षकों की संजीवनी ..
शीला दीक्षत की विशेष दीक्षा से जेसिका लाल के अपराधी, मनु शर्मा को पैरोल पर छोड़ा गया था, और वह पब (शराबी जोड़ों का मयखाना) में नशे में धुत्त मिला ....
आज देश में छोटे अपराधी व पाकेटमार , जेल में अपने अपराध से कई गुना ज्यादा की सजा से सड़ रहें है..??, क्योंकि उनके पास जमानत के लिए पैसे नहीं है.. वहीं माफिया “संविधान” में माफ़ +किया शब्द से गर्वित है, मेरे वेबस्थल का श्लोगन है.. “मेरा संविधान महान..., यहाँ हर माफिया पहलवान “... क़ानून इनकी तेल मालिश कर इन्हें इतना मुस्टंडा बनता है कि ६०० जमानत के बाद भी इनके चेहरों की लाली पर , न्यायाधीश के मुस्कुराते चहरे दिखते है.., बिकते क़ानून दिखाते हैं..
Posted in website on 17 October 2012. , कुछ अंश
आज का कानून. (कान + ऊन = क़ान मे ऊन= कानून बहरा हो गया है), अपराधी की पुस्तिका है, न्यायालय उनकी पाठशाला और जेल उसकी कार्यशाला है
इसमे अपराधी के लिये एक राहत का शब्द है जमानत…… ??????????
यह जमानत शब्द अपराधी के लिये अमानत बन गया है
इसमे एक अग्रिम जमानत भी है, जो अपराधी , अपराध करने से पहले या अपराध के तुरंत बाद ले लेता है और संविधान मुँह ताकता रहता है ?
अपराधी, जमानत के आड मे देश की अमानत (धरोहर ) बन जाता है

आज का कानून – मेरे विचार ….
इस देश न्याय पांने के लिये किसी भी व्यक्ती को, एक मकडी के जाल मे फसकर, मकडी (कानून) से लडना पडता है, इस जाल से उलझते- उलझते उसकी शारीरिक , मानसिक ताकत व घर बार बिक जा ता है, और क्या मिलता है? तारीख पर तारीख , न्याय पाने के चक्कर मे पीढिया गुजार दी जाती है…?? , घर मे कागजो के पुलीदों का ढेर , कहते है कानून मे कंकाल के अन्दर कंकाल होते है , इसमे उलझते जाते है.
आज न्याय की , “एक बन्दर और दो बिल्ली की कहानी गुजरे जमाने की बात हो गइ है, आज न्याय का बन्दर, अपने साथ दो बन्दर रखकर, न्याय के लिये तडफती बिल्लीयो को कहते है, न्याय के तराजू के पलडे की रोटी खत्म हो गई है, दोनो का पलडा एक समान है. जाओ, आगे न्याय चाहिए तो अपने घर बार बेच कर रोटी का जुगाड करो, “
आज न्याय तो नही मिलता है, हाँ, न्याय के नाम पर गरीबी जरूर मिलती है ?
इंडिया के कानून के शब्द कोश मे एक महत्वपूर्ण शब्द है प्राकृतिक न्याय ,इस शब्द के आड मे वकील बहस कर जज को झक झोर देता , जिसने, जितने ज्यादा व्याख्या (दलील) की क्षमता वह उतना बडा वकील कहलाता है
इस प्राकृतिक न्याय ने देश ने प्राकृतिक सौन्दर्य खो दिया है, भू मफिया जमीन , व दुसरे माफिया जनता व देश को लूट रहे है
आज एक मुकदमे का फैसला आने मे कम से कम 20-40 साल का समय लग जाता है , इस्का अर्थ हुआ के हम जज, पुलिस, वकीलो को बिना न्याय के वेतन दे रहे है
एक जज का कार्यकाल 2-4 साल का होता है, नया जज आने पर उसे मुकदमे का अध्धन करना पडता है, तारीख पर तारीख लगती है, जब तक वह मामले को समझने लगता है तो वह सेवांनृवितहो जाता है
प्रेमचन्द कि कहानी मे लिखा गया है, अदालते मतलब –कागजी घोडे दौडाना, इस कागजी घोडो पर बैठकर जजो वकीलो व पुलीसौ की फौजे आनन्द उठाते हुए अपनी आजीविका के साथ फरियादी को लूट रही है
किसी ने कहा है, “सभी कानून बेकार है अच्छे लोगो को उनकी जरूरत नही होती है और बुरे लोग उससे सुधरते नही है”,
आज के माहौल मे बुरे लोग सिर्फ सुधरते है औए वे अपनी सम्पती व सत्ता का अधिकार कर देश को चला रहे है,
एक ओटो रिक्शा के पीछे के लिखा था “सत्य परेशान होता है, लेकिन पराजित नही होता”
आज के मौजुदा हलात मे सत्य इतना परेशान होता है कि पराजित नही होने से पहले आत्महत्या कर लेता है – उदाहरण किसान आत्महत्या,और मध्यम वर्ग की आम जनता, गरीबी व भूखमरी से आत्महत्या के लाखो खबरे अखबारो मे पढने अखबारों मे मिलती है.
दुनिया के जिस देश मे प्रतिशोध वाला कानून है, वहा सबसे कम अपराध होते है. हमारे संविधान से न्याय न मिलने से हजारो फरियादी अपराधी बन चुके है, और परम्परागत अपराधी करोडपती है
अग्रेज लार्ड मैकाले का कानूनी सिद्धांत –
मैकाले ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC). ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ “I” का मतलब Irish है वहीं भारत में इस “I” का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है।
मैकोले का कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने अभी (आज मुझे कहना……. है ..????) मे Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी। ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में। ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि::
“मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा। इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा।“ वो आगे लिखता है कि
“जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा।”
ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के 65 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है? कारण यही IPC है। IPC का आधार ही ऐसा है।
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 — with Ranvir DagarKali Das PatelKailash Tiwari and 31 others.
  • Mohammed Arif Paise ki Leelaa Aprampaar...
  • Serohi Rattan (१) केजरीवाल, मनीश तिवारी व गैंग , लम्बे समय ( सालों ) से, लगे हुवे थे राजनीति मैं घुसने के लिये। विदेशी ताक़तों की , सहायता और वित्तीय समर्थन है। मुझे अपने ख़ुद के स्तर पर पक्का अन्दाज़ा है, की केजरीवाल का सीधा लिंक विदेशी ताक़तों से, शायद फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन से है। इसी कारण ये शातिर धूर्त , अमेरीका , यूरोप, नेपाल व शायद पाकिस्तान से भी अपने गैंग पार्टी के आफिस और निधि संग्रह केन्द्रों ( FUND COLLECTION CENTRES ) , जो की शायद कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी भी नहीं कर पाई , स्थापित कर पाया। आज तक इसकी लेखांकन विशेषज्ञता ( accounting expertise) के कारण इसके छिपा धन की तह कोई नहीं पा रहा है। ये जान ले इसके पास धन व शुभचिन्तकों की कमी नहीं है । 

    (२) केजरीवाल और मनीश सिसोदिया गैंग बहुत समय से राजनीतिक सुरंग विदेशीयो की सलाह से खोदने मैं लगे है। फ़ालतू फनडी अन्ना हज़ारे के आन्दोलन को घेरने में, इन्होंने देर नही की, और कूद पड़े । किरनबेदी, हेगड़े ....... और बहुत से लोगों को पछाड़ कर इन्होंने अन्ना के आन्दोलन पर अपना रंग व चेहरा थोप दिया। वही से सारे आन्दोलन कार्यकर्ताओं और उसमें जुड़े लोगों का विस्तृत डेटा ( complete data ) निकाल लिया गया। यही विस्तृत डेटा बहुत काम आया और इन शातिरो की राजनीतिक पार्टी बिना जायदा मेहनत के बन गई । 

    (३) विदेशी ताक़तों की मदद के बिना यह मुमकिन ही नहीं था कि अमेरीका व दूसरे देशों से विभिन्न कार्य में माहिर लोग भारत पहुँच इस राजनीतिक पार्टी से जुड़ गये। कांग्रेस , बी० जे० पी०, मुलायम सिंह, मायावती, अजीत सिंह , ममता बनर्जी ........ Etc etc के ख़यालों व राजनीतिक षड्यन्त्रों मैं फँसे रहे और ये गैंग अपना प्रभाव ( ख़ासकर दिल्ली मैं ) पक्का करता गया। इसका असर दिल्ली के चुनाव पर साफ़ नज़र आया। कांग्रेस की दोगली व गन्दी सियासत के सहारे गैर इकाई (non-entity) केजरीवाल ने कुर्सी घेर ली। 

    (४) शोर मचा, ग़दर कर, बकवास कर दिल्ली की सरकार को त्याग कर भारत देश की सत्ता की तरफ़ बठने की ठान ली। देश ने नाटक देखा। बेशरम केजरीवाल दिल्ली सरकार पर ध्यान ना देकर, केन्द्रीय सरकार के मन्त्रियों व महत्वपूर्ण व बड़े उद्योगपतियों पर क़ानूनी कार्यवाही कर दी। असंवैधानिक तरीक़े से लोकपाल बिल जानबूझकर प्रस्तुति किया। बहाना मार कर सरकारतोड दी। 

    (५) देश मे निचले मध्यम वर्ग के नागरिक, अनपढ़ , अशिक्षित व बेरोजगार व असंतुष्ट, और कुछ मुफ़्तख़ोर युवा वर्ग , को लोकलुभावन, झूठे आश्वासन दे दे कर अव्यवहारिक सपने दिखाकर बरगलाया गया। अराजकता फैलाने मैं कोई कमी नहीं छोड़ी गई। पहिले दिल्ली पुलीस को बरगला चुका है कि नौकरी से छुट्टी मारकर आन्दोलन मैं जुड़ जाओ , तुम्हारे ख़िलाफ़ कारयावाही नहीं होने देंगे । आज दिनांक १५ फ़रवरी २०१४ को ' आजतक ' के इनटरवियू में साक्षात्कारः कहा की आम जनता हथियार उठायेगी । केजरीवाल भारत देश मैं अराजकता फैलाकर औरतों को पछाड़ने मैं लगा है। कांग्रेस ज़लालत पर तुली है।


यह लेख कलकत्ता से दिल्ली तक लम्बा है... अन्ना अब आम आदमी पार्टीके खांसी से अब आम औरत पार्टी” (आऔ पार्टी) के झांसे में आकर उसे आज झांसी की रानी समझते है, लगता है आज के बापू ... नोवाखली जाकर गांधी के पाप का प्रायश्चित करने जा रहें है... जानिए शारदा चिट फंड के कला का काला चिट्टा, इसके आड़ में बांग्लादेश के घुसपैठीयों से बिठा रही है देश का भट्टा...!!!???, गुजरात मे लोकायुक्त की नियुक्ति मे देरी होने पर नरेन्द्र मोदी को कोसने वाले अन्ना को बंगाल नही दिखता जहाँ लोकायुक्त कानून का नामोनिशान तक नही हैँ

Posted on this Facebook page on May 25, 2013 May 25, 2013 at 12:36pm
ममता जो अपने को गरीबों की मसीहा समझती तू...? वह ही गरीबों की लुटेरी निकली...??? केन्द्र सरकार को कंधा देने की किमत रेल मंत्रालय ले कर वसूली, बंगाल के नगरपालिकाओ के चुनाव मे उन्नत छवि के झाँसे मे रेल मंत्रालय मे कम और अपने को झाँसा मंत्री बनाने मे ज्यादा महत्व दिया.. उसी समय रेल दुर्घटना होने पर मरे हुए लोगों के संवेदना देने का भी समय नही था.. विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वे रेल मंत्रालय अपने मंत्री दिनेश त्रिवेदी को देकर बंगाल की सत्ता मे आसीन हो गई, और यू.पी.अ.-2 सरकार को 1 लाख करोड की वित्तिय सहायता के माँग से सरकार को समर्थन वापस लेने की धमकी देने लगी, प्रति वर्ष 12 रसोई गैस सिलेडरों की माँग की धमकी से समर्थन वापस लेना , उल्टा दाँव पडा..??

रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने जब रेल का किराया 1 पैसा प्रति कि.मी. बढाया तो गरीबो पर आर्थिक बोझ के नाम से उनसे इस्तीफा ले लिया.. और बाद मे यू.पी.अ.-2 रेल मंत्री पवन बंसल ने रेल का किराया 10 पैसा प्रति कि.मी. बढाया, जनता की गाढी कमाई की घोटालों से वसूल की एक जमाने मे नेहरू भी हेराल्ड अखबार से अपनी व काँग्रेस का बखान करते थे, जनता ऊब चुकी थी , नेहरू भी जीप घोटाले मे बाजी मार गये...??? हेराल्ड अखबार प्रकाशन, घाटे मे जाने से सरकारी मदद से जिन्दा रखा गया ,वही हाल ममता का हुआ , समाचार चैनल-10 और अखबार के बखान से जनता को चिट फंड के नाम से 30 हजार करोड रूपये से ज्यादा का चिट (धोखा) किया गया

आज तक जितने भी राज्य कर्जे में हैं? वह सत्ताखोरो के घोटालो की वजह से ही है? यू.पी.अ.-2 सरकार की तो बात ही मत पूछो.. देश तो घोटालो की वजह से कंगाल हो गया है - 

भारत में नया बांग्ला देश गढ़ रहे हैं- घुसपैठिए website 3Nov 2012 post on www. meradeshdoooba
बंगाल में एक फीलगुड कहावत है, ए पार बांग्ला, ओ पार बांग्ला. आम जनता की बात छोड़िए, मुख्यमंत्री एवं राज्य के दूसरे बड़े नेताओं को यह कहावत उचरते सुना जाता रहा है. संकेत सा़फ है, ओ पार बांग्ला के निवासी भी अपने बंधु हैं. भाषा एक है, संस्कृति एक है, फिर घुसपैठ को लेकर चिल्ल-पों काहे की. राज्य में भाजपा के अलावा कोई भी दूसरी पार्टी इस मुद्दे को नहीं उठाती. असम में असम गण परिषद जो आरोप कांग्रेस की सरकार पर लगाती है, वही आरोप बंगाल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पर लगता रहा है कि वोट बैंक मज़बूत करने के लिए इन्हें बड़े पैमाने पर बसाया गया है. आंकड़े सा़फ-सा़फ सच बयां करते हैं. राज्य के सीमावर्ती ज़िलों में तो बांग्लादेशियों का बहुमत है और भारतीय नागरिक अल्पमत में आ गए हैं. राज्य में सांस्कृतिक एकता सिर चढ़कर बोलती है

अभी हाल मे 2012 के विधानसभा चुनाव मे जीत के बाद, ममता बनर्जी ने बंगला देशी मूल के मुस्लिमो को मंत्री बनाते हुए कहा , क्या हुआ ? उंनकी हमारी भाषा एक है, इस वोट बैक के व सत्ता के चक्कर मे, अब राष्ट्रवाद द्सरी ओर पीछे छूट जाता है.

और ममता बनर्जी ने यहा तक कह दिया के पशिचम बंगाल का नाम बंग प्रदेश रखा जाये, याद रहे शेख मुजीबर रहमान को बंग बन्धु के नाम से उपाधित किया गया था, युपीए -2 के चुनाव प्रचार के समय पी चिदंबरम ने खुले आम कह् दिया था, अब मै समझता हू, कि देश मे रह रहे , बंगलादेशीओ को भारतीय नागरीकता दे देनी चाहिए

दक्षिण दिनाजपुर के हिली गांव में भारत-बांग्लादेश सीमा पर कुछ दीवारें बनाई गई हैं, कोई नहीं जानता कि इन्हें किसने बनाया है, पर यह समझने में मुश्किल नहीं है कि यह तस्करों के गिरोह की करतूत है. वहां सुबह से शाम तक तस्करी और घुसपैठ जारी रहती है. घुसपैठिए ज़्यादा से ज़्यादा गर्भवती महिलाओं को सीमा पार कराते हैं और उन्हें किसी भारतीय अस्पताल में प्रसव कराकर उसे जन्मजात भारतीय नागरिकता दिलवा देते हैं. इस काम में दलाल और उनके भारतीय रिश्तेदार भी मदद करते हैं.

2006 में चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में ऑपरेशन क्लीन चलाया था. 23 फरवरी 2006 तक अभियान चला और 13 लाख नाम काटे गए. हालांकि चुनाव आयोग पूरी तरह संतुष्ट नहीं था और उसने केजे राव की अगुवाई में मतदाता सूची की समीक्षा के लिए अपनी टीम भेजी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन राज्य सचिव अनिल विश्वास ने कहा था, उन्हें सैकड़ों पर्यवेक्षक भेजने दीजिए, अब कोई भी क़दम हमें जीतने से नहीं रोक सकता. इस बयान से अंदाज़ा लगाया गया कि माकपा को अपने समर्पित वोट बैंक पर कितना भरोसा रहा है. 

'राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वाममोर्चा के सत्ता में आने के समय से ही मुस्लिम घुसपैठियों को वोटर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई. उस समय ममता बनर्जी ने कहा था कि राज्य में दो करोड़ बोगस वोटर हैं. विभिन्न संस्थाओं एवं मीडिया के मोटे अनुमान के मुताबिक़, भारत में डेढ़ से दो करोड़ घुसपैठिए बस गए हैं और बंगाल के एक बड़े हिस्से पर इनका क़ब्ज़ा है. अब ममता भी चुप हैं, क्योंकि उन्हें भी 2011 में बंगाल की कुर्सी दिख रही है.
पश्चिम बंगाल सरकार के सूत्रों के मुताबिक़, वर्ष 1980 तक कुल 32,84,065 शरणार्थियों का पुनर्वास हुआ था. अकेले बंगाल में इनकी संख्या 20,95,000 थी. इसके अलावा अवैध रूप से राज्य में रह रहे बांग्लादेशियों की आबादी कहने को 57 से 60 लाख के बीच है, पर असली संख्या इससे काफी ज़्यादा है. पूर्व आई बी प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल के राज्यपाल टी वी राजेश्वर राव ने 1990 में कोलकाता से प्रकाशित एक अंग्रेजी दैनिक में छपे अपने लेख में इस समस्या की तल्ख हक़ीक़त सामने रखी थी. उन्होंने राज्य सरकार के हवाले से ही लिखा था कि 1972 से 1988 तक बंगाल में 28 लाख बांग्लादेशी नागरिक आए, लेकिन उनमें से पांच लाख यहीं के होकर रह गए. 1971 के पहले बांग्लादेशियों का भारत आना मुजीबुर्रहमान और इंदिरा गांधी के बीच हुए समझौते का हिस्सा था, पर आरोपों के मुताबिक़ 77 के बाद से घुसपैठियों एवं वाममोर्चा सरकार के बीच राजनीतिक पुनर्वास के लिए जैसे एक अलिखित समझौता हुआ. डेमोग्राफिक एग्रेशन अगेंस्ट इंडिया पुस्तक के लेखक बलजीत राय ने 5 अक्टूबर 1992 को द स्टेट्‌समैन में पाठक के एक पत्र को उद्धृत किया, जिसमें लिखा था, मैं यह सुनकर चकित हूं कि जलपाईगुड़ी को छोड़कर पश्चिम बंगाल के सभी सीमावर्ती ज़िलों के मजिस्ट्रेटों ने राज्य मुख्यालय को रिपोर्ट भेजी कि उनके ज़िलों में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की कोई समस्या नहीं है. यह केवल कल्पना की बात नहीं रही कि भारी संख्या में घुसपैठियों को उनके मुस्लिम भाइयों ने पनाह दी है. राजमार्गों और रेल पटरियों के किनारे इन लोगों ने कालोनियां बना ली हैं. यह कृपा है उन राजनीतिक दलों की, जो अपने वोटबैंक की ह़िफाज़त करना चाहते हैं. बलजीत राय ने यह भी लिखा कि ये घुसपैठिए अब बिहार और पश्चिम बंगाल के हिस्सों को मिलाकर मुस्लिम बंगभूमि की मांग कर रहे हैं. कितनी दयनीय हालत है कि एक समय सरकार की आंख और कान कहे जाने वाले अधिकारी पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दलों को ख़ुश करने के लिए इस राष्ट्रीय संकट के प्रति अंधे-बहरे हो गए हैं. लेखक ने राज्य की राष्ट्रवादी ताक़तों के नैतिक स्तर पर भी सवाल उठाया है.
भारत और बांग्लादेश के बीच 4095 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें बंगाल से लगी सीमा की लंबाई 2216 किलोमीटर है. इसमें बीएसएफ की साउथ बंगाल फ्रंटियर 1145.62 किलोमीटर तक निगरानी करती है, जिसकी सीमा दक्षिण में सुंदरवन से लेकर उत्तर में दक्षिण दिनाजपुर ज़िले तक है. ग़ौरतलब है कि 367.36 किलोमीटर सीमा रेखा नदी-नाले के रूप में है, जबकि 778.36 किलोमीटर रेखा ही ज़मीन से होकर गुजरती है. पूरे बंगाल में कुल 600 किलोमीटर तक सीमा रेखा नदी-नालों के रूप में है. घुसपैठियों एवं तस्करों को सबसे ज़्यादा सुविधा नदी-नाले के कारण होती है. दिन में जब उन नदी-नालों में औरतें नहाती हैं, तो स्थानीय लोगों की ओर से बीएसएफ जवानों का विरोध किया जाता है. साउथ बंगाल फ्रंटियर की देखरेख वाली 529.12 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ इसलिए नहीं लग पाई है कि गांव वालों ने अदालत की शरण ली है. बीएसएफ के सूत्रों ने बताया कि इसका मक़सद बाड़ लगाने के काम को लटकाना है. सीमा पर बसे लोगों का अपना स्वार्थ है. दक्षिण दिनाजपुर के हरिपुर गांव के बीचोबीच अंतरराष्ट्रीय सीमारेखा है. भारत के मुसलमान रेखा से सटी मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं. अब समझा जा सकता है कि बीएसएफ का काम कितना कठिन है. ऐसे ही दर्ज़नों गांव हैं. बेरोज़गारी के चलते लोगों ने घुसपैठ की एजेंसी एवं तस्करी का काम पेशे की तरह अपना लिया है. दूसरी बात यह कि बाड़ लगाने का काम केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के ज़िम्मे है और बीएसएफ इसमें हस्तक्षेप नहीं करती. बीएसएफ के पास जवानों की भी कमी है. अभी बंगाल में 20 बटालियनें ही तैनात हैं, जबकि ज़रूरत 34 बटालियनों की है. रात में ठीक तरह से निगरानी हो सके, इसके लिए अत्याधुनिक उपकरणों की कमी है. सुंदरवन इलाक़े में बीएसर्ऐं की जल शाखा को और भी चुस्त करने की ज़रूरत है. वैसे बीएसएफ ने 300 अतिरिक्त सीमा निगरानी चौकियां लगाने का फैसला किया है, पर अगले पांच सालों में यह संभव होगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता.

1991 की जनगणना में सा़फ दिखा कि असम एवं पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती ज़िलों की जनसंख्या भी कितनी तेज़ी से बढ़ी. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, सीमावर्ती ज़िलों के क़रीब 17 प्रतिशत वोटर घुसपैठिए हैं, जो कम से कम 56 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का निर्णय करते हैं, जबकि असम की 32 प्रतिशत विधानसभा सीटों पर वे निर्णायक हालत में हैं. असम में भी मुसलमानों की आबादी 1951 में 24.68 प्रतिशत से 2001 में 30.91 प्रतिशत हो गई, जबकि इस अवधि में भारत के मुसलमानों की आबादी 9.91 से बढ़कर 13.42 प्रतिशत हो गई. 1991 की जनगणना के मुताबिक़, इसी दौरान बंगाल के पश्चिम दिनाजपुर, मालदा, वीरभूम और मुर्शिदाबाद की आबादी क्रमशः 36.75, 47.49, 33.06 और 61.39 प्रतिशत की दर से बढ़ी. सीमावर्ती ज़िलों में हिंदुओं एवं मुसलमानों की आबादी में वृद्धि का बेहिसाब अनुपात घुसपैठ की ख़तरनाक समस्या की ओर इशारा करता है. 1993 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री ने भी लोकसभा में स्वीकार था कि 1981 से लेकर 1991 तक यानी 10 सालों में ही बंगाल में हिंदुओं की आबादी 20 प्रतिशत की दर से बढ़ी, तो मुसलमानों की आबादी में 38.8 फीसदी का इज़ा़फा हुआ. 1947 में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 29.17 प्रतिशत थी, जो 2001 में घटकर 2.5 प्रतिशत रह गई. सबूत तमाम तरह के हैं. 4 अगस्त, 1991 को बांग्लादेश के मॉर्निंग सन अख़बार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, एक करोड़ बांग्लादेशी देश से लापता हैं. यह सब होते हुए बांग्लादेश सरकार आज तक घुसपैठ की बात स्वीकार नहीं करती.

2001 की जनगणना के मुताबिक़, भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 1.5 करोड़ थी. सीमा प्रबंधन पर बने टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, हर महीने तीन लाख बांग्लादेशियों के भारत में घुसने का अनुमान है. केवल दिल्ली में 13 लाख बांग्लादेशियों के होने की बात कही जाती है, हालांकि अधिकृत आंकड़ा चार लाख से कम ही बताता है. भारत-बांग्लादेश सीमा का गहन दौरा करने वाले लेखक वी के शशिकुमार ने इंडियन डिफेंस रिव्यू (4 अगस्त, 2009) में छपे अपने लेख में बताया कि किस तरह दलालों का गिरोह घुसपैठ कराने से लेकर भारतीय राशनकार्ड और वोटर पहचानपत्र बनवाने तक में मदद करता है. दक्षिण दिनाजपुर के हिली गांव में भारत-बांग्लादेश सीमा पर कुछ दीवारें बनाई गई हैं, कोई नहीं जानता कि इन्हें किसने बनाया है, पर यह समझने में मुश्किल नहीं है कि यह तस्करों के गिरोह की करतूत है. वहां सुबह से शाम तक तस्करी और घुसपैठ जारी रहती है. घुसपैठिए ज़्यादा से ज़्यादा गर्भवती महिलाओं को सीमा पार कराते हैं और उन्हें किसी भारतीय अस्पताल में प्रसव कराकर उसे जन्मजात भारतीय नागरिकता दिलवा देते हैं. इस काम में दलाल और उनके भारतीय रिश्तेदार भी मदद करते हैं. मालूम हो कि सीमा के क़रीब रहने वाले लोगों में परंपरागत रूप से अब भी शादी-ब्याह का रिश्ता चलता है. यही नहीं, कुंआरी लड़कियों को बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में दुल्हनों के तौर पर बेच दिया जाता है. कई दलाल तो शादी कर उन्हें कोठे पर पहुंचा देते हैं. सीमा से लगी ज़मीन की ऊंची क़ीमतों से भी साबित होता है कि घुसपैठ एवं तस्करी को स्व-रोज़गार का कितना बड़ा साधन बना लिया गया है.

14 जुलाई, 2002 को संसद में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि भारत में 10करोड़ 20 लाख 53 हज़ार 950 अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं. इनमें से केवल बंगाल में ही 57 लाख हैं. इलीगल इमिग्रेशन फॉम बांग्लादेश टू इंडिया : द इमर्जिंग कन्फिल्क्ट के लेखक चंदन मित्रा ने पुस्तक में पश्चिम बंगाल के साथ असम में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों से जुड़ी गतिविधियों एवं कार्रवाइयों का पूरा ब्यौरा दिया है. वह लिखते हैं, सच कहें तो पश्चिम बंगाल बांग्लादेशी घुसपैठियों का पसंदीदा राज्य बन गया है. 2003 में मुर्शिदाबाद ज़िले के मुर्शिदाबाद-जियागंज इलाक़े के नागरिकों को बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचानपत्र देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया. इसमें भारतीय नागरिकों और ग़ैर-नागरिकों की पहचान तय करनी थी. हालांकि अंतिम रिपोर्ट अभी सौंपी जानी है, पर अंतरिम रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ. इस प्रोजेक्ट के दायरे में आने वाले 2,55,000 लोगों में से केवल 24,000 यानी 9.4 प्रतिशत लोगों के पास भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए कम से कम एक दस्तावेज़ था. 90.6 प्रतिशत या 2,31,000 लोग निर्धारित 13 दस्तावेज़ों में से एक भी नहीं पेश कर पाए. आख़िर में इन्हें संदिग्ध नागरिकता की श्रेणी में डालकर छोड़ दिया गया.

मार्च के दूसरे सप्ताह में बीएसएफ और बांग्लादेश राइफल्स के बीच हुई बातचीत भी रुटीन ही रही. दोनों पक्षों ने घुसपैठ एवं तस्करी पर रोक लगाने और सीमा पर अमन क़ायम रखने पर सहमति जताई. बीएसएफ के महानिदेशक रमन श्रीवास्तव और 19 सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल के साथ आए बीडीआर के महानिदेशक मेजर जनरल मैनुल इस्लाम ने पिछले साल नवंबर में गृह सचिव स्तर की वार्ता के दौरान हुई सहमतियों पर काम आगे बढ़ाने की बात कही. बांग्लादेश ने भारत में आतंकी हरक़तें करने के लिए अपनी ज़मीन का इस्तेमाल न होने देने का वादा निभाने की बात कही. हाल में उलफ नेताओं की गिरफ़्तारी से इसका सबूत भी मिला, पर जब तक बांग्लादेश घुसपैठ की बात नहीं स्वीकार करता या उन्हें वापस लेने के लिए नहीं तैयार होता है, तब तक जनसंख्या के इस हमले को रोकने में मदद नहीं मिलने वाली. बीडीआर ने सीमा से लगी 150 गज ज़मीन को लेकर पैदा होते रहे विवाद को भी आपसी सहमति से सुलझाने का वादा किया है. घुसपैठ की समस्या का एक तार भारत में आतंकी गतिविधियों से जुड़ा हुआ है. बांग्लादेश का आतंकी संगठन हरकत-उल-जेहादी-इस्लामी (हूजी) भारत में दर्ज़नों आतंकी हमले एवं हरक़तें करा चुका है. गृह मंत्रालय के सूत्रों ने भी स्वीकार किया है कि वह लगातार अपने कॉडर भारत भेज रहा है. बांग्लादेश के सईदपुर, रंगपुर, राजशाही, कुस्ठिया, पबना, नीतपुर, रोहनपुर, खुलना, बागेरहाट एवं सतखीरा इलाक़ों से ज़्यादातर घुसपैठिए आते हैं और इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी खुलकर मदद करती है. जैसा कि बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री तपन सिकंदर ने चौथी दुनिया को बताया कि घुसपैठ रोकने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को ही तत्पर होना होगा और इसमें स्थानीय आबादी का भी सहयोग काफी अहम है. इसके साथ ही वोटबैंक की राजनीति भी बंद होनी चाहिए. उन्होंने 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक के प्रस्तावों को तुरंत लागू करने की ज़रूरत बताई, जिसमें राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं पुलिस महानिदेशकों ने शिरकत की थी. इस बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि घुसपैठियों को पकड़कर उन्हें किसी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंपा जाए, ताकि उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया आसान हो सके. इतने साल बीत जाने के बावजूद यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा है. बीएसएफ सूत्रों के मुताबिक, अभी घुसपैठियों को पकड़ कर राज्य पुलिस को सौंपा जाता है और फिर वे भारतीय जेलों की भीड़ बढ़ाते हैं.

भारत से पूर्वोत्तर का इलाका सिलीगुड़ी कॉरीडोर या चिकन नीक पट्टी से जुड़ा हुआ है. ऐसी भी रपटें आई हैं कि मुस्लिम आतंकी इस हिस्से को काटकर अलग इस्लाकमस्तान बनाना चाहते हैं. इसे ऑपरेशन पिनकोड का नाम दिया गया है और उनका इरादा पूर्वोत्तरइलाकों में 3000 जेहादियों को घुसाना है. मुगलिस्तान रिसर्च इंस्टीट्यूट र्ऑें बांग्लादेश ने मुगलिस्तान का एक नक्शा जारी किया है. सीमा प्रबंध टास्क फोर्स के मुताबिक़, भारतीय सीमा में 905 मस्जिदें बनाने और 439 मदरसे खोलने की योजना है. बांग्लादेशी घुसपैठियों के मामले में पूरी सतर्कता बरतने की ज़रूरत है. सचमुच, अगर समय रहते उपाय न किए गए तो पश्चिम बंगाल आबादी के बोझ के कारण एक गहरे संकट में फंस सकता है. देश के दूसरे हिस्से भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे. बंगाल में पूरे देश का केवल तीन प्रतिशत भूभाग है, जबकि वह कुल आबादी के 8.6 प्रतिशत हिस्से का भार ढो रहा है. अचरज की बात है कि विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, ऋषि अरविंद और सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रवादी महापुरुषों को पैदा करने वाला पश्चिम बंगाल सदियों से इस तरह की संवैधानिक धोखाधड़ी को बर्दाश्त कर रहा है. भाजपा नेता एवं पत्रकार चंदन मित्रा ने एक बार टिप्पणी की थी कि कोलकाता का लगभग हर दूसरा आदमी अपने को बुद्धिजीवी की श्रेणी में रख अगली एक अप्रैल से जनगणना का काम शुरू होना है और ता है, पर ऐसा लगता है कि राज्य में हो रही ऐसी अलोकतांत्रिक चुनावी धोखाधड़ी के प्रति वह संवेदनहीन हो गया है.

याद रहे 26/11 के घटना के समय सीमा पार से आतंकवादीओ के आकाओ की चुनौती भरी आवाज आई थी, हिन्दुस्तान मे हमारे लाखों समर्थक है, रोक सको तो रोक ?

लेकिन हमारे सत्ताधारी अभी भी बैठें मूक है, और आस लगाये बैठे है कि , इस निती से वापस सत्ता मे आयेगे

Friday 14 February 2014



दोस्तों.., देश के ४० करोड़ से कहीं ज्यादा अन्नदाता का नहीं सम्मान..???, माफियाओं को मिले ऊँचे दाम..., ऊँचे लोग . ऊँची मंजिल , और अन्नदाता ऊँचाई से फंदा लगाकर दे रहा है, अपनी जान ... देश के २०लाख जवानों के जज्बे व सरहद की सीमा की ऊँचाई में जाकर ह्त्या होने पर, नहीं कोई सम्मान 
पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अपनी कला से विदर्भ की विधवा कलावती के, हाल का खुबसूरत बखान कर .. वादों से अपनी सत्ता को फलफूलित किया ...कलावती को कोई सहायता न मिलने से वह दिल्ली आ धमकी... वही कलावती के दामाद द्वारा कर्ज से आत्महत्या का भी कोई दाम नहीं मिला ... क्योकिं सत्ताखोंर भ्रष्टाचार में आमाद थे..
N.G.O. बना नो जियो आर्गेनाईजेशन, ३ करोड़ की भारी भरकम माफिया + सत्ताखोरों के मिलीभगत की माला , जिसने भारी रकम डकारकर देश को बेच डाला, और संविधान को पूछने का भी अधिकार नहीं
सूखा हो या बरसात ...इनके लिए है.., एक नई सौगात
वहीं फ्रीडम फाईटर की औलादें बनी , FREE+DRUM मुफ्त में ड्रम बजाने की आवाज से पेंशन व आरक्षण से देश के संस्थानों से संसाधनों पर पहला अधिकार हो गया है..
उपर से सरकारी बाबूओं की १५ करोड़ से ज्यादा की फ़ौज ... जिसमे अधिकांश कर्मचारी अपने को राष्ट्र का जमाई समझ कर देश की मलाई खा रहें हैं, चपरासी भी चप –चप कर चपलता से, करोड़ों की सम्पत्ती जमा कर रहा है ...
गद्दार बने गद्दीदार, से तलवार..जनता पर करें वार,सफ़ेद धोती कुर्ता की औलादें बनी काले कोट व भ्रष्टाचार के पेंट (Paint- बदरंग ) से बनाया देश का भुरता , २० लाख किसानों की आत्महत्या व २० लाख जवानों का नहीं सम्मान


केजरीवालजी, “आप” कही बाबाजी का ठुल्लु न कहलाये...??? 
केजरीवालजी “आप” क्रिकेट के खिलाड़ियों के अनाड़ीपना से, मिस शीला दीक्षित के मिस फील्ड से तो चौकेजी बन गए...???, अब छक्के लगाने के चक्कर में छब्बे जी बनने के चक्कर में हिट विकेट कर, अब दुबके जी बनकर ....., अपने आऊट होने के श्रेय के लिए , अपने जनता की संवेदना लेकर , दूसरी पारी का इन्तजार कर रहे हो, आपने ५० ओवर की पारी में ४९ दिन की ४९वें ओवर में आऊट होने का श्रेय ले रहें हैं.... याद रहें एक दिवसीय मैच में दूसरी पारी नहीं आती है...
फेस बुक व वेबसाईट की के पेज की December 31, 2013 की पोस्ट जो आज सार्थक हुई है..., केजरीवालजी कांटो भरी राह से .. बड़े रोड़े हैं...., आपको १८ स्टम्प बचाने है , हर विकेट बचाने के लिए कांग्रेस के हथौड़े खाने है..????, अपनी गददी बचाने के लिए, हर कदम पर फुल टॉस बाँल (गेंद) है... , मैदान में बिछाया जाल व पिंजरा है , कही इस जाल के झोल से, “आप” अपने वादों के चक्रव्यूह के पिंजरे में फंस न जाओ..., कही, शपथ.., अब अग्निपथ बन कर न रह जाए.. “आप” कही बाबाजी का ठुल्लु न कहलाये...???

Wednesday 12 February 2014



आजम खां की भैंस खो गई है, सत्ता के राजा ने उसे ब्यूटी क्वीन कह कर अपने होश खो दिए है, पुलिस प्रशासन पर पड़ी भैसे भारी, अब सस्पेंड कर.. पहनी.., अपनी सत्ता की नई सौं – सौं पैंटें ,बनी सत्ता की हज ...
!!!!!...आजम खां की भैंस खो गयी...!!!!!!!
बोलू: नयी खबर हैं बापू, दुनिया कंहा सो गयी
मुस्लिम नेता आजम खां की भैंस खो गयी
सारे नेता, पुलिस, कुत्ते, भैंस को खोज रहे है
अब तक ये, सारे भारत में बोझ रहे हैं

विक्टोरिया क्वीन से सुन्दर बता रहा है
ये कामुक सौन्दर्य स.पा. का जगा रहा है
सभी मिडिया आज भैंस की चर्चे में हैं
क्या सारे चैनल आजम खां के खर्चे में हैं

बापू सारे खोजी कुत्ते, फेल हो गये
अब चारा खाने वाले नेता खेल हो गये
आजम खां की भैंस, कैस को लुटवाती है
माया के खेमे में शक की सुई जाती हैं

बापू, भैंसों के चक्कर में नंगे मार खायेंगे?
क्या भैंसे पर यमराज , यू.पी. आयेंगे
कौंन मजहब, भैंसे खाता है, जांच कराओ
बापू, इनकी खबर लोहिया तक पहुँचाओ
यू. पी. में तो हिन्दू, मुस्लिम झगड़ रहे रहें हैं
डांस - बार बाला को , नेता पकड़ रहे हैं
पिता, पुत्र दोनो ने मिल कर लुफ्त उठाया
ये किस्सा, टी.वी. चैनल ने खूब दिखलाया

लाल बहादुर, गोविन्द भी यू.पी. से आयें
भगत सिह,सुभाष,सावरकर आज देश में हुये पराये
राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध की ये धरती हैं
आजम खां की भैंस, यंहा पर क्यों चरती है

खुद बापू देखो नेता, जानवरों से बदतर
राजनीति में आज सियासी खसम हैं सत्तर
गाय सडक में पन्नी, कागज चाब रही है
आजम खां की भैंस, पंजीरी दाब रही है

ये आज की खबर थी बापू, जो बतलायी
ये सब गांधीवादी हैं, कुछ समझ में आयी
हमारी बातों को सुनकर, गांधी भी चकराया
बोले, बेटा बंदरों ‘आग’ के शोले से बोलों तुम...., मैं फिर आया..!!

साभार: meradeshdoooba.com के लिए,
राजेन्द्र बहुगुणा उर्फ़ कवि “आग”, आज के “काका हाथरसी”, जो बताए देश के नेताओं के पैजामों के नाडा खींची की रस्सी के हनुमानी पुंछ की ज़ुबानी
 

  • माकांत शर्मा लालू को "वोट" दिया तो भी सरकार "कांग्रेस" की.
    मुलायम को "वोट" दिया तो भी सरकार"कांग्रेस" की
    मायावती को "वोट" दिया तो भी सरकार "कांग्रेस" की
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  • Amit Dhawan बूझो तो जाने ...
    मुकेश अम्बानी को थप्पड़ मारो तो नकवी के गाल लाल क्यों ?
    शीला के खिलाफ जांच बोलो तो हर्षवर्धन का बुरा हाल क्यों.?.

    वीरप्पा मोइली के पिछवाड़े लात पड़े तो विजेंद्र गुप्ता कि टेडी चाल क्यों.?
    कांग्रेस अम्बानी कि दूकान तो मोदी के घर माल क्यों.?
    राहुल के खिलाफ विश्वाश लड़े तो बी जे पी में बवाल क्यों.?
    गरीबी अगर हट गयी तो गरीब बढ़ते हर साल क्यों.?.
    सिस्टम बिलकुल ठीक है तो हर शहर में हड़ताल क्यों.?
    आम आदमी के हमदर्द हैं सब तो उसकी खींचती खाल क्यों.?
    लोकतंत्र के मंदिर में बैठे लोकतंत्र के दलाल क्यों ?
    गौ माता के पुजारियों कि आँख में सुवर का बाल क्यों ?
    भ्रस्टाचार के सारे दुश्मन फिर भ्रस्टाचार का जाल क्यों.?
    कांग्रेस बी जे पी दोनों अच्छे फिर देश का बुरा हाल क्यों ?
    लकी येड़ा
  • Rockey Bhadra modi laao desh bachaaooo
  • Rajendra Bahuguna बे-षर्मी
    वाह रे ,भारत की स!सद तू लूटि कमीनो के हाथो!
    ये भारत हैे,कोई केक नही,मत काटो हे ,सहजादो!
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  • Rajendra Bahuguna न!गी राजनीति
    हम राजनीति के न!गे पन को झेल रहे हैं
    प्रजातन्त्र मे! देख,लफ!गे खेल रहे हैं

    ओछे भद्दे षब्दों की कैसी भाशा है
    भ्रश्ट आचरण लोकतन्त्र की परिभाशा है

    अषिश्ट षब्द भी षिश्टाचारी बन जाते हैं
    छल ,बल ,कपटी नेता जनता को भाते हैं
    एक राश्ट्र मे! राजनीति के कितने दल हैं
    जनता की ताकत से नेता आज सफल हैं

    जनमानस की ताकत जन केा काट रही है
    राजनीति डबरो!मे! सागर बा!ट रही है
    छोटे- छोटे मजहब मालिक बन जाते हैं
    आड़ धरम की लेकर मानव को खाते हैं

    गुनाहगार हम हैं जो सब कुछ भूल रहे ह!ै
    ये आमलेट से अण्डे , नेता फूल रहे ह!ै
    बलात्कार, व्यभिचार देष को भा जाता है
    आज राश्ट्र को नरभक्षी नेता खाता है

    राम कृश्ण के भजन भाव मे!घाव हरे! हैं
    धर्मो में आडम्बर देखो आज खरे हैं
    आड़मे अल्ला ईष्वर की मत मिलजाते है!
    आज दरिन्दे दानव बन, मानव खाते है!

    इस राजनीति मे! नये-नये अ!कुर बोराये
    क्षेत्र ,जाति जन-मत के सबने ढेर बनाये
    ठाकुर,पण्डित,वैेष्य, षुद्र के तालाबो!मे!
    हिन्दू, मुस्लिम आडम्बर काषी काबा मे!

    देष के टुकडे़ करने मे! सब लगे हुये हे!ै
    सभी विरोधी देखो कितने सगे हुये हे!ै
    हम मालिक है! हमको कुछ भी पता नही है
    प्रजा-तन्त्र न!गा होता है!,कोइ खता नही है

    भीडो! से अच्छा चुनकर के कब आता हेै
    अच्छा भी मजबूर, भ्रश्ट बन ही जाता हेै
    लावारिस है हरा - भरा मरूधान य!हा पर
    डेढ़ अरब के कीडे़ है!,कब कौन क!हा पर

    प्रजातन्त्र की बन्जर धरती है झा!सो मे!
    फसल नही बस, नेता है गाजर घासो! मे!
    नश्ट करो फिर दुगनी होकर उग आती हैे!
    कवि‘आग’ की कलम व्यर्थ मे! ही गाती है।।
  • Rajendra Bahuguna न!गी राजनीति
  • Rajendra Bahuguna न!गी राजनीति
  • Rajendra Bahuguna दिल्ली का लोकपाल
    ना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ
    तर्को और कू-तर्को मे!षब्दो! का ठेलम-ठेल हुआ
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